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श्रीमद्भगवद्गीता - आठवां अध्याय (अक्षर ब्रह्म योग) (संस्कृत और हिंदी अर्थ सहित)
"अर्जुन! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है॥6॥ इसलिए अर्जुन! तुम सब समय में ..."
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