Sringeri Sharada Peetham : आदि शंकराचार्य के चार मठों में से एक श्रृंगेरी शारदा पीठम

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Sri Sringeri Sharada Peetham Temple

जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य (Jagadguru Sri Adi Shankaracharya) ने सनातन धर्म (Sanatan Dharma) की पवित्र परंपरा को बचाने और आगे बढ़ाने के लिए पूरे भारत का भ्रमण कर कई पुराने मंदिरों की मरम्मत भी करवाई तो कई नए मंदिरों का निर्माण भी कराया. इसी के साथ, उन्होंने द्वारिका, पुरी, बद्रीनाथ और श्रृंगेरी में, यानी भारत के चारों कोनों पर चार मठों या पीठों की स्थापना भी की. भारत के चारों कोनों में चार पीठों की स्थापना कर उन्होंने इस भ्रम को तोड़ा था कि भारत एक राष्ट्र या एक इकाई नहीं था.
(1) जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ (पूर्व)
(2) द्वारिका में शारदामठ (पश्चिम)
(3) बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ (उत्तर)
(4) श्रृंगेरीमठ (दक्षिण)

श्रृंगेरी (Sringeri) कर्नाटक के चिकमंगलूर जिला (Chikkamagaluru, Karnataka) का एक तालुक या तहसील है. यह शहर तुंगा नदी (Tunga River) के तट पर स्थित है, व आठवीं शताब्दी में बसाया गया था. आदि शंकराचार्य ने यहां कुछ दिनों के लिए निवास किया था. इस दौरान उन्होंने श्रृंगेरी और शारदा मठों (Sringeri Sharada Peetham) की स्थापना की थी. श्रृंगेरी मठ पहला मठ है, जो कि आदि वेदांत (Adi Vedanta) से संबंधित है. यह एक ऐसा स्थान जो एक पुराने अतीत से भरा हुआ है, और प्राकृतिक वैभव और शांति से भरपूर है.

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श्रृंगेरी पीठ आठवीं शताब्दी ईस्वी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार अम्माया पीठों में से पहला स्थल था. अम्माया पीठम शब्द का अर्थ है- ‘वेद का सिंहासन’. आदि शंकराचार्य ने वेदों की रक्षा और प्रचार के लिए देश के चारों कोनों में चार पीठों या केंद्रों की स्थापना की थी. मठ के प्रमुख को ‘जगद्गुरु’ कहा जाता है.

हमारी भारतीय परंपरा में गुरु को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है. गुरु की कृपा के बिना कोई भी जीवन के उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सकता. बिना गुरु के, हम चाहे कितने भी ग्रंथों का अध्ययन करें, हम उस ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते.

श्रृंगेरी मंदिर परिसर काफी विशाल है और इसमें कई मंदिर हैं-
श्री शारदम्बा मंदिर (Sri Sharadamba Temple)- यह मंदिर ग्रेनाइट पत्थरों से बना है. यह विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती जी को समर्पित है. मंदिर की प्रतिमा अपनी अतुलनीय सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है. श्री शारदम्बा श्रृंगेरी शहर की पीठासीन देवी हैं.

महामंडपम में दुर्गा, राजा राजेश्वरी, द्वारपालकों और देवी जैसे देवताओं के साथ नक्काशीदार विशाल पत्थर के खंभे हैं. मंदिर का दरवाजा सोने के आवरण (Gold covering) से बना है. इसमें 8 पैनल हैं जिन पर अष्टलक्ष्मी की आकृतियां खुदी हुई हैं.

माना जाता है कि देवी शारदाम्बिका मां सरस्वती जी का अवतार हैं, जो उपया भारती के रूप में पृथ्वी पर आई थीं. कहा जाता है कि उनकी पूजा करने से दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ ब्रह्मा, शिव और विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है.

यहां किया जाने वाला अक्षराभ्यास का अनुष्ठान बहुत पवित्र माना जाता है. 2-5 वर्ष की आयु के बच्चों के माता-पिता को एक स्लेट और चॉक या वैकल्पिक रूप से, चावल की एक थाली दी जाती है, जिस पर वे देवी सरस्वती और गुरु से प्रार्थना करते हैं कि वे अपने बच्चों को अच्छा ज्ञान और शिक्षा प्रदान करें.

यह मंदिर साल भर खुला रहता है. यह सुबह 6 बजे खुलता है और शाम को 9:15 बजे बंद हो जाता है. दोपहर 2 बजे से शाम 4 बजे तक बंद रहता है.

श्री तोरण गणपति मंदिर (Shri Torana Ganapati Temple)- यह अद्वितीय मंदिर एक साधारण चांदी का दरवाजा है जिसके शीर्ष पर गणपति की सोने से ढकी प्रतिमा है. तोरण गणपति के दर्शन करने के बाद श्री शारदंबा के दर्शन करने की प्रथा है.

श्री विद्याशंकर मंदिर (Sri Vidyashankar Mandir)- इस मंदिर का निर्माण 1338 ईस्वी में चालुक्य और द्रविड़ शैली की वास्तुकला में किया गया था. इसे वास्तुशिल्प का चमत्कार कहा जाता है. इस मंदिर का गर्भग्रह पश्चिम की ओर है जिसमें विद्या गणपति, मां दुर्गा, शिव जी, ब्रह्मा जी, विष्णु जी की प्रतिमाएं हैं.

विद्याशंकर मंदिर की संरचना के पूर्वी भाग में बारह स्तंभों वाला एक मंडप देखा जा सकता है. उनमें से प्रत्येक राशि चक्र के बारह राशियों के क्रम में सुशोभित है. इन स्तंभों को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है कि सूर्य की किरणें 12 सौर महीनों के क्रम में उनमें से हर एक पर पड़ती हैं.

श्री जनार्दन मंदिर (Sri Janardan Mandir)- मंदिर 9वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया था. मंदिर जनार्दन के रूप में भगवान विष्णु को समर्पित है. भगवान जनार्दन की मूर्ति के दोनों ओर श्रीदेवी और भूदेवी हैं. मूर्ति को साल भर चंदन के लेप से ढका जाता है.

जनार्दन मंदिर के परिसर में एक बड़ा सुदर्शन चक्र देखा जा सकता है. ऐसा माना जाता है कि चक्र की पूजा करने से अन्य मनुष्यों के प्रति शत्रुता की भावना दूर हो जाती है. यह लोगों को बुराईयों और नुकसान से बचाने के लिए भी माना जाता है.

श्री आदि शंकराचार्य मंदिर (Adi Shankaracharya Temple)- आदि शंकराचार्य की मूर्ति चार शिष्यों के साथ एक योगासन की मुद्रा में है. सामने एक शिवलिंग है.
श्री कोडंदरमास्वामी मंदिर (Sri Kodandarama Swamy Temple)- श्री शारदंबा मंदिर के दाईं ओर भगवान श्रीराम- सीता और लक्ष्मण जी को समर्पित एक छोटा मंदिर मौजूद है.

इन मंदिरों के अलावा, आदि शंकराचार्य ने शहर की चारों दिशाओं में चार संरक्षक देवताओं की भी स्थापना की थी- पूर्व में कालभैरव, पश्चिम में अंजनेय, दक्षिण में दुर्गा और उत्तर में कालिकाम्बा.

श्रृंगेरी मंदिर का अन्य इतिहास
मूल श्रृंगेरी मंदिर आकार में छोटा था जिसमें आदि शंकराचार्य द्वारा तराशे गए श्रीचक्र के ऊपर देवी शारदा की चंदन की लकड़ी की प्रतिमा स्थापित की गई थी. इसके बाद श्री भारती कृष्ण तीर्थ और श्री विद्यारण्य द्वारा श्रृंगेरी मंदिर का जीर्णोद्धार और विस्तार किया गया.

श्री भारती कृष्ण तीर्थ ने चंदन की मूर्ति को वर्तमान स्वर्ण मूर्ति से प्रतिस्थापित किया. श्री सच्चिदानंद शिवभिनव नरसिम्हा भारती ने गर्भगृह के चारों ओर पॉलिश ग्रेनाइट की दीवारों के साथ ग्रेनाइट में वर्तमान संरचना को खड़ा किया और श्री चंद्रशेखर भारती ने मई 1916 में नए मंदिर का अभिषेक किया.

14वीं शताब्दी में, विजयनगर साम्राज्य द्वारा इसे शाही संरक्षण दिया गया था. कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी के प्रमुख सेनापति मलिक काफूर के अधीन मुस्लिम आक्रमण के दौरान, चंदन से बनी मूल मूर्ति को नष्ट कर दिया गया था. विजयनगर काल के दौरान यहां शारदाम्बा की एक सोने की मूर्ति स्थापित की गई थी.

लोक कल्याणकारी कार्य- श्रृंगेरी मठ कुछ कॉलेज और एक अस्पताल भी चलाता है. यह पूरे भारत में कुछ मंदिरों और वैदिक स्कूलों का रखरखाव भी करता है. श्रृंगेरी मंदिर का रखरखाव मठ द्वारा किया जाता है. श्रृंगेरी की प्राकृतिक सुंदरता को संरक्षित करने के लिए मठ कड़ी मेहनत करता है.


आसपास घूमने के स्थान-
श्री मालाहनिकेरेश्वर मंदिर (Sri Malahanikareshwara Temple), जो एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. मंदिर तक पहुंचने के लिए 156 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं.
होरानाडु मंदिर (Horanadu Temple) देवी अन्नपूर्णेश्वरी को समर्पित होरानाडु शहर में स्थित है. इस मंदिर में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भोजन उपलब्ध कराया जाता है और उसे सोने या आराम करने के लिए जगह दी जाती है.
कलसा (Kalasa) शहर कलशेश्वर मंदिर का घर है. मंदिर 3 तरफ से भद्रा नदी से घिरा हुआ है. मंदिर भगवान शिव को समर्पित है.
अन्य दर्शनीय स्थल हैं- अगुम्बे (30 किलोमीटर), सिरिमाने फॉल्स (12 किलोमीटर), कुंदाद्री (28 किलोमीटर), कविशैला (40 किलोमीटर), किग्गा में ऋष्यश्रृंग मंदिर, कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर.

श्रृंगेरी कैसे पहुंचें-
(How to reach Sringeri)
श्रृंगेरी बेंगलुरु से 320 किलोमीटर और मंगलुरु (Nearest Airport) से 111 किलोमीटर दूर है. शिवमोग्गा निकटतम रेलवे स्टेशन (90 किमी) है. श्रृंगेरी की बेंगलुरु से सीधी बस सेवा है. शिवमोग्गा और मंगलुरु से पहुंचने के लिए बसें उपलब्ध हैं.

श्रृंगेरी में ठहरने के लिए
यहां बड़ी संख्या में छोटे गेस्ट हाउस और होटल उपलब्ध हैं. इसी के साथ, मंदिर प्रबंधन (Sringeri Temple Management) भी भक्तों के लिए बुनियादी आवास सुविधा चलाता है. श्री शारदा पीठम की तरफ से निर्मित अतिथि गृहों (Guest Houses) में से किसी एक में भक्त आराम से ठहर सकते हैं.

सामान्य कमरे और शयनगृह (Dormitories) नाममात्र की दरों पर उपलब्ध हैं. कमरों की बुकिंग के लिए, तीर्थयात्रियों को मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के पास स्थित सूचना कार्यालय से संपर्क करना होगा.

भोजन के लिए- श्री शारदा पीठम के नेतृत्व में शारदा मंदिर के पास ‘श्री भारती तीर्थ प्रसाद’ के नाम से एक भोजन कक्ष भी बनाया गया है. दोपहर 12:15 से 2:30 बजे के बीच और रात में 7:15 बजे से 8:30 बजे के बीच सभी भक्तों को भोजन परोसा जाता है. हालांकि, मंदिर परिसर के पास कुछ प्राइवेट रेस्टोरेंट्स भी हैं, जिनमें मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय भोजन ही परोसा जाता है.


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