आदि शंकराचार्य जी का जन्म केरल (मालाबार) के एक छोटे से गांव कालडी में उच्च कोटि के विद्वान शिवगुरु के घर में हुआ था. शिवगुरु भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे.
आदि शंकराचार्य का जन्म भगवान शिव की कृपा से हुआ था, इसलिए इनके पिता ने इनका नाम शंकर रख दिया था. इनके गुरु ने इनका नाम 'शंकराचार्य' रख दिया था.
आदि शंकराचार्य ने मात्र 8 वर्ष की आयु में ही संन्यास ग्रहण कर 'आत्मबोध' नाम के अमूल्य ग्रंथ की रचना कर दी थी, जिसके माध्यम से आज न जाने कितने ही ज्ञानियों ने अपने-अपने ग्रंथ लिखे हैं.
आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने और सनातन धर्म की फिर से स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन्होंने वेदों का सही अर्थ निकाला और शास्त्रों के जरिए लोगों को सही दिशा दिखाने का प्रयास किया.
आदि शंकराचार्य ने पूरे भारत का भ्रमण कर कई नए मंदिरों का निर्माण कराया तो कई पुराने मंदिरों की मरम्मत भी करवाई. उन्होंने भारत को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए देश के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2021 में उत्तराखंड के केदारनाथ (12 ज्योतिर्लिंगों में से एक) में आदिगुरु शंकराचार्य जी की 12 फीट और 35 टन की प्रतिमा का अनावरण किया.
इस दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि 'आदिगुरु शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण करना और उनके सामने बैठकर उनकी आराधना करना एक दिव्य अनुभूति है'.
अद्वैत वेदांत के प्रणेता, चारों वेदपीठों के संस्थापक, ब्रह्मज्ञानी आदि शंकराचार्य का अंतिम उपदेश था कि- "तुम पहले स्वयं को पहचानो, स्वयं को पहचानने के बाद तुम भगवान को भी पहचान जाओगे".