इतिहास और प्रकृति के संगम, ओरछा, मध्य प्रदेश के रोचक तथ्य

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इतिहास और प्रकृति के संगम को देखने के लिए ओरछा से बेहतर कोई जगह नहीं है।  ओरछा मध्य प्रदेश का एक छोटा सा शहर है, लेकिन यह बेहद खूबसूरत है। यही कारण है कि आपको यहां हमेशा विदेशी लोग भी दिखाई देंगे। 

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ओरछा शहर के कई स्मारकों ने आज भी अपनी मूल भव्यता को बरकरार रखा है।  खूबसूरत किले और पुराने महल के अलावा, यहाँ पास में बहती बेतवा नदी और उसके किनारे बनी छतरियों की एक अलग ही खूबसूरती है। यहाँ आसपास जंगल भी है।

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ओरछा के प्रमुख आकर्षण रामराजा मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, ओरछा किला, राजमहल, लक्ष्मी नारायण मंदिर, छत्री, बेतवा नदी, ओरछा वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी आदि हैं।  ओरछा झांसी से करीब 16 किलोमीटर दूर है। यहाँ आराम से घूमने के लिए 2 दिन चाहिए।

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ओरछा के ऐतिहासिक शहर की स्थापना 16वीं शताब्दी में बुंदेला राजपूत प्रमुख रुद्र प्रताप ने बेतवा नदी के तट पर की थी।  बेतवा नदी यहाँ सात चैनलों में विभाजित होती है जिन्हें सतधारा के नाम से जाना जाता है।

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ओरछा बुंदेलखंड की आस्था का केन्द्र है। कारण है यहाँ का रामराजा मंदिर।  रामराजा मंदिर में भगवान श्रीराम विराजमान हैं। इस मंदिर में भगवान राम को न केवल भगवान के रूप में बल्कि राजा के रूप में भी पूजा जाता है। उन्हें तोप की सलामी भी दी जाती है।

रामराजा मंदिर

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मधुकर शाह के शासनकाल के दौरान, उनकी रानी गणेश कुंवर अयोध्या से उनकी मूर्ति लाईं थीं।  पुष्य नक्षत्र के दिन ओरछा तक  कई भक्त पैदल यात्रा करते हैं। राम नवमी के शुभ अवसर पर राम राजा मंदिर में दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।

रामराजा मंदिर

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भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर, ओरछा में सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। मंदिर का निर्माण महल जैसे ही हुआ है।  यह ओरछा की बड़ी इमारत है।इसके गर्भ गृह का मुंह राजमहल के समक्ष है। 

चतुर्भुज मंदिर

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कहते हैं कि इसे राजा इस तरह से बनवाया था कि राजमहल के शयन कक्ष से जब वे सो कर उठें तो गर्भ गृह में भगवान के दर्शन हो जाएं।  परन्तु उनकी यह योजना अधूरी रह गई क्योंकि भगवान राम यहां तक पहुंचे ही नहीं। वो रामराजा मंदिर में ही विराजमान हो गए।

चतुर्भुज मंदिर

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ओरछा में बेतवा और जामनी नदियों का संगम है। जामनी नदी का नाम उसके किनारे उगने वाले जंगली जामुन के पेड़ों की अधिकता के कारण रखा गया था। इसी प्रकार बेतवा नदी के तट पर अर्जुन के वृक्ष बहुत ज्यादा हैं। 

बेतवा और जामनी नदियों का संगम

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जामुन जहाँ मधुमेह के लिए रामबाण है, वही अर्जुन उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए वरदान है।  इन दोनों नदियों का जल निर्मल और शुद्ध है क्योंकि इनके किनारे कोई बड़ा शहर या कोई औद्योगिक इकाई नहीं है।

बेतवा और जामनी नदियों का संगम

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ओरछा का अंतिम पड़ाव कंचना घाट है। उसके आगे नदी, जंगल और छोटे पहाड़ दिखाई देते हैं। कंचना घाट पर ओरछा के राजाओं की छत्री हैं।  कंचना में ये छत्रियाँ बहुत खूबसूरत हैं। इस क्षेत्र में ऐसी 15 छत्रियां हैं।

कंचना घाट और छत्री

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जब आप ओरछा किले में प्रवेश करते हैं तो सबसे पहले राजमहल दिखाई देता है। यह महल पूरी तरह से भूलभुलैया जैसा है।  महल में किसी भी जगह जाने पर आपको लगेगा मैं इस जगह को देख चुका हूँ।

राजमहल

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रामराजा मंदिर के बगल में ही लाला हरदौल का मंदिर है। आस-पास के हर गांव में शादी-विवाह हो या यज्ञ-अनुष्ठानों का भंडारा, लोग सबसे पहले ‘हरदौल चबूतरों' में जाकर राजा हरदौल को आमंत्रित करते हैं।  कहा जाता है कि उन्हें निमंत्रण देने से भंडारे में कोई कमी नहीं आती।

लाला हरदौल का मंदिर

ओरछा के एक बगीचे फूलबाग में दो बहुत ऊँचे खंभे (वायु यंत्र) हैं। इन खम्भों का नाम भारतीय कैलेंडर में दो वसंत महीनों - सावन भादो के नाम पर रखा गया था।

सावन भादो खंभे

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इनके बारे में किवदंती है कि सावन के महीने के खत्म होने और भादो मास शुरू होने के समय दोनों स्तंभ आपस में जुड़ जाते हैं।  भारत में शीतलन की फारसी प्रणाली का शायद यह एकमात्र उदाहरण है।

सावन भादो खंभे

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