Hindu Sanatan Dharm Kya Hai
“हिन्दू शब्द क्या है और यह कहाँ से आया है? सनातन धर्म क्या है और यह कितना पुराना है? क्या हिन्दू एक धर्म है, और यदि धर्म नहीं तो फिर क्या है?”
इन सभी सवालों के जवाब के तौर पर हम यहां अलग-अलग स्रोतों से प्राप्त केवल कुछ तथ्यों को सामने रख रहे हैं-
आर्य कौन हैं (Who are Arya)
हम सब यह तो जानते ही हैं कि हमारे भारत देश का प्राचीन नाम ‘जम्बूद्वीप’ और ‘आर्यावर्त’ भी था. श्रीराम के समय पूरे भारतवर्ष पर इक्ष्वाकु वंश का ही राज था. वाल्मीकि रामायण में श्रीराम को सीता जी द्वारा बहुत बार ‘आर्य’ कहकर सम्बोधित किया गया है. वाल्मीकि जी ने भी कई स्थानों पर श्रीराम को ‘आर्यपुत्र’ कहा है. कई संस्कृत साहित्यों में ‘आदरणीय’ के अर्थ में ‘आर्य’ का बहुत प्रयोग हुआ है. हर पत्नी अपने पति को ‘आर्य’ या ‘आर्यपुत्र’ कहती थी. सीताजी श्रीराम को ‘आर्य’ कहती थीं और मंदोदरी भी रावण को ‘आर्य’ कहती थीं. ऐसा क्यों?
क्योंकि ‘आर्य’ का अर्थ उत्तम, श्रेष्ठ, पूज्य, महान, बुद्धिमान, सम्मानित, प्रतिष्ठित, परोपकारी, शुभ, सज्जन या साधु, सभ्य, अच्छे स्वभाव वाले, धर्मसम्मत या न्यायसंगत कार्य करने वाला भी होता है, जो वैदिक नीति-नियम के अनुसार जीवन यापन करते हैं, वे आर्य हैं… और इसीलिए श्रीराम को आर्य और आर्यपुत्र भी कहा गया है. आर्य का अर्थ किसी जाति या वंश या वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र) से नहीं है.
आर्य और अनार्य कोई जाति या समुदाय नहीं है, यह इस बात से भी सिद्ध होता है कि अयोध्याकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 31 में वाल्मीकि जी ने माता कैकेयी को ‘अनार्या’ कहा है. चूंकि उस समय माता कैकेयी स्वार्थ की सीमाओं को पार कर गई थीं, इसलिए वाल्मीकि जी ने क्रोधवश उन्हें उस स्थान पर ‘अनार्या’ कहा है.
समझ नहीं आता कि यह आर्य-द्रविड़ की थ्योरी कब और किसने क्या सोचकर दे दी.
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दरअसल, आज हम ज्यादातर प्राचीन शब्दों को जाति के तौर पर देखने-पढ़ने लगे हैं, जबकि हर शब्द किसी न किसी जाति या धर्म से ही जुड़ा हुआ नहीं है. जैसे आज हमने ‘सूत’, ‘शूद्र’, ‘क्षुद्र’, ‘अधम’ आदि सभी शब्दों को जातिसूचक बना दिया है, जबकि सभी सनातन ग्रंथों का ठीक से अध्ययन और विश्लेषण करने से पता चलता है कि प्राचीन भारत में इन सभी शब्दों का किसी भी जाति से कोई लेना-देना ही नहीं था.
पशु, पक्षी, वृक्ष आदि में तो अलग-अलग जातियां होती हैं, उसी तरह मनुष्य भी एक जाति है जिसकी उत्पत्ति का मूल एक ही है. जाति रूप में तो मनुष्यों में कोई भेद नहीं होता लेकिन गुण, कर्म, स्वभाव और व्यवहार आदि में बहुत भिन्नता होती है. वेदों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को ‘आर्य’ कहा गया है, और इसीलिए वेदों में कहा गया है कि ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम’ अर्थात पूरे संसार को आर्य (श्रेष्ठ मनुष्य) बनाओ. ‘आर्यावर्त’ का अर्थ है श्रेष्ठ जनों का निवास स्थान.
हर देश, काल और समय की अपनी भाषा होती है
किसी भी शब्द का आकलन करने से पहले यह ध्यान रखिये कि हर देश, काल और समय की अपनी भाषा होती है. अब जैसे हमारी भारतीय संस्कृति में “बाई” शब्द सम्मान का सूचक था, जो महान स्त्रियों के नाम में लगाया जाता था, जैसे महारानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई, मीराबाई, कर्माबाई, अहिल्या बाई आदि. और आज भी हम इन नारियों के नाम के आगे सम्मान से ‘बाई’ शब्द ही लगाते हैं.
उस समय ‘बाई’ शब्द उनकी महत्ता और श्रेष्ठता बताता था, जबकि आजकल “बाई” शब्द ‘गंगूबाई’ (आलिया भट्ट की एक फिल्म) आदि में लगाया जाता है. अब आज के परिप्रेक्ष्य से हम यह तो नहीं कह सकते हैं न कि महारानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई, मीराबाई, कर्माबाई, आदि के नाम में ‘बाई’ शब्द लगाकर उस समय इन महान नारियों को गंगूबाई के समान माना जाता था. आज ‘बाई’ शब्द का अर्थ ही बदल गया है, ये सभी जानते हैं, और ऐसा ही सभी शब्दों के साथ हुआ है, अनगिनत उदाहरण हैं.
• झाँसी में ‘आंतिया ताल’ नाम का एक सुन्दर तालाब है. रानी लक्ष्मीबाई के समय इस तालाब का नाम ‘हाथियाँ ताल‘ था, क्योंकि इसमें राजाओं के हाथी नहाने के लिए आते थे.
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हिन्दू क्या है (What is Hindu)?
कहा जाता है कि ‘हिन्दू’ शब्द विदेशियों का दिया हुआ है. इसे लेकर अलग-अलग लोगों के अलग-अलग जवाब हैं, जैसे-
- हिन्दू शब्द फारसी या पारसी भाषा का शब्द है, या
- हिन्दू शब्द ज़ेंद अवेस्ता की उपज है
- हिन्दू शब्द सिंधू शब्द से बना है, या
- हिन्दू शब्द इंदु शब्द से बना है, या
- हिन्दू शब्द इंद्र शब्द से बना है… आदि.
पारसी कौन हैं (Who are Parsis)-
बहुत से इतिहासकारों का कहना है कि पारसी और कोई नहीं, आर्यों यानी प्राचीन भारतवर्ष में ही रहने वाले लोगों की एक शाखा है, जो प्राचीनकाल में (700 ईसा पूर्व में) सप्तसिंधु के पश्चिम में बस गए थे.
सप्तसिंधु ये आर्यावर्त की सात नदियाँ शामिल थीं- सिंधु, सरस्वती, वितस्ता (झेलम), अस्किनी (चिनाब), पुरुष्णी (रावी), शातुद्री (सतलज) और विपासा (व्यास). ऋग्वेद में सप्तसिन्धु का उल्लेख है. वह भूमि जहां आर्य रहते थे. जरथुस्त्र (ज़रथुष्ट्र) वे व्यक्ति थे, जिन्होंने पारसी मत को एक सिस्टम में ढाला. इसीलिए पारसियों को जोरास्ट्रियन भी कहा जाता है.
अब यदि हम यह मान भी लें कि ‘हिन्दू’ शब्द पारसी से निकला है, तो भी यह शब्द पूरी तरह से भारतीय ही कहलाएगा, क्योंकि उस समय भारत की सीमायें आज के ईरान और उसके आगे तक फैली हुयी थीं. इस बात के कई सबूत मिल चुके हैं, जैसे-
एशिया माइनर (तुर्की) से प्राप्त 1400 ईसा पूर्व का अभिलेख जिसे 1907 ईस्वी में पुरातत्वविद् ह्यूगो विंकलर (Hugo Winkler) द्वारा खोजा गया. यह अभिलेख संस्कृत भाषा में है. इसमें चार वैदिक देवताओं- इन्द्र, मित्र, वरुण और अश्विन कुमार का उल्लेख है. इस अभिलेख पर राजाओं के मध्य एक संधि का उल्लेख है जिसमे राजाओं ने इन वैदिक युगीन देवताओं को साक्षी माना था. इसी के साथ, हाल ही में सऊदी अरब में 8000 साल पुराने मंदिर, हवन कुंड, यज्ञ की वेदी आदि का मिलना.
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(मोहनजोदड़ो में 1927 में मैके द्वारा किए गए पुरातात्विक उत्खनन में मिली एक पत्थर की टेबलेट में एक छोटे से बालक को दो पेड़ों को खींचता दिखाया गया है और उन पेड़ों से दो पुरुषों को निकलकर उस बालक को प्रणाम करते हुए भी दिखाया गया है. यह दृश्य भगवान श्रीकृष्ण की बचपन की यमलार्जुन-लीला से समानता दिखाता है).
‘स्’ ध्वनि का ‘ह्’ ध्वनि में परिवर्तन
यह भी बताया जाता है कि ईरानी, मुस्लिम और अंग्रेज लोग ‘स्’ ध्वनि का उच्चारण नहीं कर पाते थे, इसलिए ‘स्’ ध्वनि ईरानी भाषाओं की ‘ह्’ ध्वनि में बदल जाती है. और इस तरह ‘सप्तसिन्धु’ अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर ‘हफ्त हिन्दू’ में बदल गया.
लेकिन यदि वाकई में ऐसा ही होता, तो ईरानी सम्राट ‘सायरस’ का ‘हायरस’ या ‘डेरियस’ का ‘डेरियह’ क्यों नहीं हुआ? ‘संस्कृत’ का ‘हंस्कृत’ क्यों नहीं हुआ? ध्यान देने वाली बात यह है कि ईरानी लोग आज भी ‘सिंधु’, ‘सिंधी’ आदि शब्द ही बोलते हैं. यानी उन्हें ‘स्’ ध्वनि के उच्चारण में ऐसी कोई समस्या नहीं थी.
चीनी यात्री ह्वेनसांग के समय में ‘हिन्दू’ शब्द प्रचलित था. इसी तरह फारसी इतिहासकार अलबरूनी ने स्पष्ट लिखा है कि, “सिन्ध में जाने के लिए हिमरोज यानी रिजिस्थान से होकर जाना पड़ता है, पर यदि हिन्द में जाना हो, तो काबुल होकर जाना पड़ता है.” इससे भी स्पष्ट हो रहा है कि ‘सिन्ध’ और ‘हिन्द’ दोनों अलग-अलग शब्द हैं और ‘हिन्दू’ शब्द ‘सिन्धु’ से नहीं बना है.
दूसरी बात कि, ‘स्’ ध्वनि को ‘ह्’ ध्वनि में बदलने वाला प्रयोग भी वेदों में ही मिलता है. जैसे- ‘सरस्वती’ को ‘हरस्वती’, ‘सरिता’ को ‘हरिता’ और ‘सिन्धु’ को ‘हिन्धु’. देखिये-
तं ममर्तुदुच्छुना हरस्वती (ऋग्वेद)
हरितो न रह्या (अथर्ववेद)
सरितो हरितो भवन्ति (राजनिघण्टु)
पारसियों की किताब से पूर्व की किताबों में ‘हिन्दू’ शब्द का उल्लेख मिलता है. उस पुस्तक का नाम है विशालाक्ष शिव द्वारा लिखित बार्हस्पत्य शास्त्र जिसका संक्षेप बृहस्पति जी ने किया. बाद में वराहमिहिर द्वारा रचित ‘बृहत्संहिता’ में भी इसका उल्लेख किया गया है. बृहस्पति आगम ने भी इसका उल्लेख किया है. देखिए उसी का यह श्लोक-
हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
अर्थात- “हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है.” हिमालय से समुद्र (सिन्धु) तक का स्थान हिन्दुस्थान और उसमें बसने वाले लोग हिन्दू.
आसिन्धो: सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका।
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स व हिन्दुरीति: स्मृति:॥
अर्थात- “सिंधु नदी से लेकर समुद्र पर्यन्त की भारत भूमि जिसकी पैतृक संपत्ति और पुण्यभूमि हो, उसे हिन्दू कहा जाता है.” यानी जो अपने देश की भूमि को अपनी पैतृक भूमि और पुण्यभूमि मानता है, और ऐसा ही मानकर इसकी रक्षा करता है, वह हिन्दू है.
ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।
(माधव दिग्विजय)
अर्थात- “ॐकार’ जिसका मूल मंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, जो गौभक्त है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है और जो हिंसा की निंदा करता है, वह हिन्दू है.”
हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्चते प्रिये। (मेरु तंत्र)
अर्थात- “जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं.”
ऋग्वेद (८:२:४१) में ‘विवहिंदु’ नाम के राजा का उल्लेख भी देखने को मिलता है, जिन्होंने 46,000 गायें दान में दी थीं.
इस प्रकार ‘हिन्दू’ शब्द का मूल निश्चित रूप से प्राचीन ग्रंथों में विद्यमान है. अब यह पक्के तौर पर तो नहीं कहा जा सकता है कि ‘बृहस्पति आगम’ सहित इन सभी आगमों की रचना किस काल में हुई. इन ग्रंथों में ‘हिन्दू’ शब्द का उल्लेख सामान्य शब्दों की तरह ही हुआ है. लेकिन इन श्लोकों में जो हिन्दू शब्द की जो परिभाषा दी गई है, उससे यह भी पता चलता है कि ‘हिन्दू’ शब्द और उसकी यह परिभाषा अधिक पुरानी भी नहीं है, क्योंकि यह परिभाषा एक निश्चित भौगोलिक सीमा तय करती है, जबकि राजा हरिश्चंद्र के बारे में पढ़ें, तो उस समय पूरे विश्व में केवल सनातन धर्म ही था. इक्ष्वाकु वंश पूरे विश्व पर राज करता था. त्रेता में शिवभक्त रावण श्रीलंका से और द्वापर में शिवभक्त गांधारी गांधार (अफगानिस्तान) से थीं.
अनेक विद्वानों का मत है कि प्राचीनकाल से ही ‘हिन्दू’ शब्द सामान्यजनों की व्यावहारिक भाषा में भी प्रयुक्त होता रहा है. एक तथ्य यह भी है कि उस समय ‘हिन्दू’ शब्द धर्म की बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था. ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग होते थे और तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था, इसलिए सभी भारतीयों के लिए ‘हिन्दू’ शब्द प्रयुक्त होता था.
इण्डिका और हिन्द
“इतिहास की मृत्यु” नामक पुस्तक के लेखक नरेन्द्र पिपलानी का मानना है कि ‘हिन्द’ शब्द की उत्पत्ति वेदों में वर्णित ‘इन्द्र‘ का अपभ्रंश है. यह “इंडिया” शब्द भी “इंद्र” शब्द से ही निकला हुआ है. जब अर्जुन को इंद्रप्रस्थ का राज्य मिला, तब उनके वंशज ‘अर्जुनायन’ कहलाए, जो इंद्रप्रस्थ से समस्त भारत पर राज्य करते थे. इंद्रप्रस्थ से इंद्रप, इंद्रप से इंद्रक और इंद्रक से इंद्रिका हो गया, और ‘इन्द्रिका’ को ही यूनानी लेखक मेगस्थनीज ने ‘इंडिका’ लिखा (जैसे ‘गिरीश’ को ‘ग्रीस’ और ‘अलक्षेंद्र’ को ‘अलेक्जेंडर’ लिखा गया).
अब जो इतिहासकार यह बताते हैं कि अरबी में हिन्दू शब्द का अर्थ काला, चोर, लुटेरा मिलता है, वे ही इतिहासकार यह सच्चाई क्यों नहीं बताते कि अरबी में ‘हिन्दू’ शब्द का अर्थ ‘सुन्दर’ होता है. प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक जाकोलियेत ने लिखा है-
“हिन्दू एक ऐसा शब्द है, ऐसा नाम है, जिसके उच्चारण से मन हृदय में फिर से आशा का संचार हो जाता है. क्षीण देह में बल स्रोत फिर वेग से बहने लगता है.”
क्या हिन्दू एक धर्म है (Is Hindu a Religion)?
सिख धर्म गुरुनानक देव जी से निकला है, बौद्ध धर्म महात्मा बुद्ध जी से निकला है, जैन धर्म महावीर स्वामी जी से निकला है, ईसाई धर्म यीशु मसीह जी से निकला है और इसी प्रकार, इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद जी को कहा जाता है. लेकिन हिन्दू धर्म, जिसे सनातन धर्म भी कहते हैं, इसका कोई संस्थापक नहीं है. ऐसा क्यों?
ऐसा इसलिए क्योंकि आज की भाषा और अर्थ के अनुसार हिन्दू कोई धर्म है ही नहीं. अंग्रेजी में धर्म को ‘Religion’ और उर्दू में ‘मजहब’ कहा जाता है. लेकिन हिन्दुओं में धर्म शब्द का अर्थ आचरण, स्वभाव, कर्तव्य आदि से लगाया जाता है (जैसे- ‘ऐसा’ करना हमारा धर्म या कर्तव्य है). और इसीलिए महर्षि जाबालि जो नास्तिक विचारधारा के थे, पर फिर भी उन्हें ‘महर्षि’ कहा गया है. और इसीलिए किसी भी ग्रन्थ में ‘हिन्दू’ शब्द का उल्लेख करते समय इसे ‘धर्म’ नहीं लिखा गया है.
धर्म क्या है- इसे लेकर राजर्षि मनु ने मनुसंहिता में लिखा है-
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
मनुसंहिता के अनुसार, ये धर्म के दस लक्षण हैं. यानी यदि आपके अंदर ये 10 विशेषताएं हैं तो आप धार्मिक हैं–
- धैर्य,
- क्षमा,
- दम,
- अस्तेय (चोरी न करना)
- शौच (भीतर और बाहर की पवित्रता और स्वच्छता),
- इन्द्रिय निग्रह (आत्मसंयम, आत्मनियंत्रण),
- धी (सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना),
- विद्या (यथार्थ या सत्य या सही ज्ञान लेना),
- सत्य (हमेशा सत्य का आचरण करना),
- अक्रोध.
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः॥
(मनुस्मृति 4 : 138)
“सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये. प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये, यही सनातन धर्म है.”
• हिन्दू धर्म जीवन जीने की एक शैली या एक तरीका बताता है, और यह तरीका बताने में मदद करती हैं- वेद, मनुसंहिता, रामायण, रामचरितमानस, भगवद्गीता आदि.
हिन्दू एक ऐसा धर्म है जो जीने का तरीका सिखाता है, जो ब्रह्माण्ड को ब्रह्मा (सृजनकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता) और महेश (संहारकर्ता) के रूप में पूजता है. एक ऐसा धर्म जिसमें केवल मूर्तिपूजा ही नहीं की जाती, बल्कि प्रकृति के हर रूप को पूजा जाता है. पेड़-पौधों से लेकर पत्थरों, नदियों और गाय की भी पूजा की जाती है.
एकमात्र ऐसा धर्म जो नारीवाद को बढ़ावा देता है. नारी को देवी और शक्ति के रूप में पूजता है. कामाख्या देवी मंदिर इस बात को भी दर्शाता है कि हिन्दू धर्म में नारी पीरियड्स में भी अपवित्र नहीं मानी जाती है.
हिन्दू जो पूरे विश्व के कल्याण की कामना रखता है-
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
हिन्दू धर्म के लिए हर वृक्ष पिता समान है, हर नदी माता समान है, हर पर्वत पर देवता निवास करते हैं, अर्थात पर्वत भी पूजनीय हैं, हर जीव और पत्थरों में तक ईश्वर को निहारा जाता है. लोग सुबह उठते ही भूमि को प्रणाम करते, स्नान से पहले नदी को प्रणाम करते, सूर्योदय में सूर्य को अर्घ्य देते और संध्या में चंद्रमा पूज्य मामा हो जाते. पीपल में भगवान विष्णु को देखते हैं, तुलसी और नीम में मातृशक्ति को, बरगद में ग्राम देवता को.
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सूर्य प्रकाश के देवता हैं, चंद्र शीतलता के, वरुण देव जल के देवता हैं, और पवन देव वायु के… और इंद्र इन समस्त शक्तियों के नियामक हैं. सनातन धर्म में इन देवताओं के नाम से प्रकृति का सम्मान किया जाता है, प्रकृति को पूजा जाता है. लोग खेतों में हल लगाने से पहले भूमि को प्रणाम कर उससे क्षमा मांगते थे, खेती करते समय अनजाने में कुछ सूक्ष्मजीव पीड़ा पाते तो प्रायश्चित का विधान बनाया गया था और उपज का एक हिस्सा निर्धनों को दान देने की रीत गढ़ी गई. यही है सनातन धर्म.
• अब आर्य कौन हैं? जो वैदिक नियमों का पालन करते हैं, जो ईश्वर पर विश्वास करते हैं, यज्ञ का महत्व समझकर यज्ञादि करते हैं, गौ का महत्त्व समझकर गौ पालन, गौपूजन और गौ रक्षा करते हैं, जो जीवों और प्रकृति का महत्त्व समझकर हिंसा नहीं करते, नारी और प्रकृति की रक्षा करते हैं, जो रिश्तों का महत्त्व समझते हैं, सभी को सम्मान देते हैं, किसी को छोटा-बड़ा नहीं समझते, जो अपने देश से प्रेम करते हैं और देश की रक्षा करना भी अच्छी तरह जानते हैं, जो शास्त्रों और शस्त्रों का उचित और न्यायसंगत प्रयोग जानते हैं, वे आर्य (श्रेष्ठ या उत्तम पुरुष) हैं.
और इसीलिए हिन्दुओं का ही दूसरा नाम है आर्य यानी श्रेष्ठ, जिसका चाल-चलन, रहन-सहन, आचार-व्यवहार आदि जो स्वाभाविक कल्याणमय आचरण हैं, उसी का नाम है हिन्दू संस्कृति. आर्यों की इस संस्कृति को सदाचार कहा गया है. यह सदाचार अनादि काल से पीढ़ियों दर पीढ़ी चला आ रहा है, इसीलिए इसे सनातन धर्म (शाश्वत) कहते हैं. ‘सनातन’ का अर्थ ही है – शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, जिसका न आदि है न अन्त.
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क्या शास्त्रों में सनातन धर्म का उल्लेख है?
सनातन धर्म क्या है, इस बात का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में बहुत बार किया गया है. कुछ प्रमुख उदाहरण देखिये-
तदेतत् कारणं पश्य यदर्थं त्वं मया हतः।
भ्रातुर्वर्तसि भार्यायां त्यक्त्वा धर्मं सनातनम्॥ १८॥
(किष्किन्धाकाण्ड)
“बाली! तुम सनातन धर्म का त्याग करके अपने छोटे भाई की पत्नी से सहवास करते हो.”
भरतः पालयेद् राज्यं शुश्रूषेच्च पितुर्यथा।
तथा भवत्या कर्तव्यं स हि धर्मः सनातनः॥२६॥
(अयोध्याकाण्ड)
“माता! आप ऐसा प्रयत्न करना जिससे भरत इस राज्य का पालन और पिताजी की सेवा करते रहें, क्योंकि यही सनातन धर्म है.”
कृते च प्रतिकर्तव्यमेष धर्मः सनातनः।
(वाल्मीकि रामायण : सुंदरकांड 1:114)
“किसी ने उपकार किया हो तो बदले में उसका भी उपकार किया जाये, यह सनातन धर्म है.”
सनातनमेनमहुरुताद्या स्यात पुनण्रव्।
( अथर्ववेद 10:8:23)
त्वम् अक्षरं परमं वेदितव्यं त्वम् अस्य विश्वस्य परं निधानम्।
त्वम् अव्ययः शाश्वत-धर्म-गोप्ता सनातनस् त्वं पुरुषो मतो मे॥
(गीता 11:18)
त्वत्त: सनातनो धर्मो रक्ष्यते तनुभिस्तव।
धर्मस्य परमो गुह्यो निर्विकारो भवान्मत:॥
(श्रीमद भागवतम 3:16:18)
चतुर्युगान्ते कालेन ग्रस्ताञ्छ्रुतिगणान्यथा।
तपसा ऋषयोऽपश्यन्यतो धर्म: सनातन:॥४॥
(श्रीमद भागवतम 8:14:4)
ऊर्ध्वमूलोऽवाक्शाख एषोऽश्वत्थः सनातनः।
तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते।
तस्मिंल्लोकाः श्रिताः सर्वे तदु नात्येति कश्चन।
एतद्वै तत्॥ (कठोपनिषद् 2:3:1)
अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहश्च दानं च सतां धर्मः सनातनः॥
(महाभारत :वनपर्व 297 : 35)
एष धर्मो महायोगो दानं भूतदया तथा।
ब्रह्मचर्ये तथा सत्यमनुक्रोशो धृतिः क्षमा॥
सनातनस्य धर्मस्य मूलमेतत् सनातनम्।
(महाभारत : आश्वमेधिकपर्व 91:33)
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