Global Climate Classification
विश्व के अलग-अलग भागों में अलग-अलग जलवायु पाई जाती है. यदि हम जलवायु के तत्वों (Elements of Climate) के आधार पर अलग-अलग स्थानों की जलवायु की तुलना करें, तो हमें ऐसे अनेक स्थानों की जानकारी प्राप्त होगी, जिनके एक या एक से अधिक जलवायविक तत्वों (Climatic Elements) में समानता होगी. जलवायु के तत्वों की इन क्षेत्रीय समानताओं और असमानताओं के आधार पर आसान समझ, वर्णन और विश्लेषण के लिए जलवायु को अलग-अलग भागों में बांटा जाता है. इस विभाजन से हमें यह समझने में आसानी होती है कि विश्व में कितने प्रकार की जलवायु पाई जाती है.
जलवायु से संबंधित विशेषताओं में समानता के आधार पर पृथ्वी को मुख्य भागों में बांटा गया है. इस प्रकार बांटे गए भूखंड जलवायु प्रदेश (Climatic Regions) कहलाते हैं. यानी विश्व को अनेक जलवायु प्रदेशों में बांटा गया है. पहले हम भारत के जलवायु वर्गीकरण के आधार पर कुछ उदाहरण देखते हैं और फिर अपने विषय पर लौटते हैं-
• भारत की जलवायु को उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु कहा जाता है. एशिया में ऐसी जलवायु मुख्य रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है. भारत के बड़े आकार, इसकी अक्षांशीय सीमा, उत्तर में हिमालय और दक्षिण में हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के परिणामस्वरूप भारत के उपमहाद्वीप में तापमान और वर्षा के वितरण में बहुत भिन्नता है.
भारत को जलवायु क्षेत्रों में विभाजित करने के लिए जलवायु विज्ञानियों, भूगोलवेत्ताओं और कृषि विशेषज्ञों द्वारा कई प्रयास किए गए हैं. तापमान और वर्षण (Temperature and precipitation) दो महत्वपूर्ण कारक हैं जिन्हें जलवायु वर्गीकरण की सभी योजनाओं में निर्णायक माना जाता है. जलवायु के दो महत्वपूर्ण तत्व तापमान और वर्षा को लेकर हमें जान सकते हैं कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर, और एक मौसम से दूसरे मौसम से तापमान और वर्षण में किस प्रकार की भिन्नता है.
गर्मियों में राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जबकि उस समय जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20 डिग्री सेल्सियस रहता है. वहीं, सर्दियों की रात में जम्मू-कश्मीर के द्रास का तापमान -45 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है, जबकि उस समय तिरुअनंतपुरम में यह 22 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है.
कुछ क्षेत्रों में रात और दिन के तापमान में भी बहुत अंतर होता है, जैसे थार के मरुस्थल में दिन का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है, जबकि उसी रात यह तापमान गिरकर 15 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है. दूसरी ओर, केरल और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में दिन और रात का तापमान लगभग समान ही रहता है.
अब वर्षण की ओर ध्यान दें. वर्षण के रूप और प्रकार में ही नहीं, बल्कि इसकी मात्रा और मौसम के अनुसार वितरण में भी भिन्नता देखने को मिलती है. जैसे- हिमालय में अधिकतर वर्षण हिम के रूप में होता है, जबकि देश के बाकी भाग में यह वर्षा के रूप में ही होता है.
मेघालय में वर्षा 400 सेंटीमीटर से लेकर लद्दाख और पश्चिमी राजस्थान में यह 10 सेंटीमीटर से भी कम होती है. देश के ज्यादातर भागों में जून से सितंबर तक वर्षा होती है, पर कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडु के तट पर ज्यादातर वर्षा अक्टूबर और नवंबर में होती है. उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा आमतौर पर पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है.
सामान्य रूप से तटीय क्षेत्रों के तापमान में अंतर कम पाया जाता है. देश के आंतरिक भागों में मौसमी अंदर ज्यादा होता है. ये भिन्नताएं लोगों के जीवन में विविधता लाती हैं, जो उनके भोजन, वस्त्र और घरों के रूप में दिखाई देती हैं, जैसे राजस्थान में घरों की दीवारें मोटी और छत चपटी बनाई जाती है. तराई क्षेत्र और गोवा और मंगलौर में ढाल वाली छतें बनाई जाती हैं. वहीं, असम में कुछ घर बांस के खंभों पर बने होते हैं.
वैश्विक जलवायु वर्गीकरण (Global Climate Classification)-
अब हम जानते हैं कि विश्व की जलवायु को मुख्य रूप से कितने भागों में बांटा गया है-
• उष्ण आर्द्र भूमध्यरेखीय जलवायु प्रदेश
• उष्णकटिबंधीय मानसूनी और उष्णकटिबंधीय समुद्री जलवायु
• सवाना या सूडान जलवायु
• गर्म मरुस्थल और मध्य अक्षांशीय मरुस्थलीय जलवायु
• उष्ण शीतोष्ण पश्चिमी सीमान्त (भूमध्यसागरीय) जलवायु
• शीतोष्ण महाद्वीपीय जलवायु (स्टेपी के समान)
• उपोष्ण पूर्वी सीमान्त जलवायु
• शीत शीतोष्ण पश्चिमी सीमान्त जलवायु
• शीत शीतोष्ण महाद्वीपीय जलवायु (साइबेरिया के समान)
• शीत शीतोष्ण पूर्वी सीमान्त जलवायु
• आर्कटिक या ध्रुवीय जलवायु
• पर्वतीय जलवायु.
उष्ण आर्द्र भूमध्यरेखीय जलवायु प्रदेश –
कैसी होती है यह जलवायु-
तापमान- भूमध्यरेखीय क्षेत्र पर सूर्य की ऊष्मा सालभर प्राप्त होती है. इस कारण यहां तापमान हमेशा ही अधिक रहता है. लेकिन मेघाच्छादन (बादलों से ढके होने) और भारी वर्षा के कारण यहां तापमान अधिक नहीं हो पाता है. इस क्षेत्र का औसत वार्षिक तापमान लगभग 20° सेल्सियस रहता है और अधिकतम 30° सेल्सियस तक हो सकता है.
इस क्षेत्र में पूरे वर्ष तापमान में एकरूपता होती है और सर्दियों का मौसम नहीं होता है. साल भर तापमान अधिक होने के कारण भूमध्यरेखीय क्षेत्र में निम्न वायुदाब की पेटी बन जाती है. इसे डोलड्रम क्षेत्र कहा जाता है और इसमें विषुवतीय पछुआ पवनें चलती हैं.
वर्षण- इस क्षेत्र में सालभर वर्षा होती है, लेकिन वर्षा का वितरण समान नहीं है. वार्षिक वर्षा का औसत हमेशा 150 सेमी से ऊपर होता है. कुछ क्षेत्रों में वार्षिक औसत 250-300 सेमी तक हो सकता है. इस क्षेत्र में सवाना और उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु के समान स्पष्ट शुष्क मौसम (Distinct Dry Season) का अभाव होता है.
भूमध्यरेखीय क्षेत्र में अधिक वाष्पीकरण के कारण संवहनीय वायु धाराओं (Convective air currents) की उत्पत्ति होती है, जिससे यहां कपासी वर्षण बादलों द्वारा मूसलाधार वर्षा होती है. इसे संवहनीय वर्षा (Convectional Rain) भी कहते हैं.
प्राक्रतिक वनस्पति- भूमध्यरेखीय क्षेत्र में अलग-अलग प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं. यहां सालभर अधिक तापमान और वर्षा के कारण चौड़ी पत्तियों वाले सदाबहार वन पाए जाते हैं. सूर्य के प्रकाश को प्राप्त करने के लिए ये वन ऊंचाई में बढ़ते जाते हैं. यहां एक ही प्रकार के वृक्ष समूह में नहीं मिलते हैं. इस कारण इनका व्यावसायिक स्तर पर दोहन करना कठिन होता है. इसलिए आर्थिक दृष्टि से ये वन अधिक उपयोगी नहीं होते हैं.
अमेजन के उष्णकटिबंधीय वर्षा वन को ‘सेल्वास’ (Selvas) कहा जाता है (क्योंकि यह वन बहुत घना है). यहां महोगनी, एबोनी, गटापार्चा, आबनूस, डाईवुड, रबड़, ताड़, बांस जैसे सदाबहार वृक्ष ज्यादा संख्या में पाए जाते हैं. इनसे कठोर लकड़ी प्राप्त होती है. यहां लताएं, एपिफाइट्स (वे पौधे, जो आश्रय के लिये वृक्षों पर निर्भर होते हैं लेकिन परजीवी नहीं होते) और परजीवी (दूसरे जीवों को आहार बनाकर जीवित रहने वाले पौधे और प्राणी) पौधे भी पाए जाते हैं. तटीय क्षेत्रों और खारे दलदलों में मैंग्रोव वन पनपते हैं.
जनजीवन और आर्थिक विकास- इन क्षेत्रों में आबादी एक ही स्थान पर केंद्रित नहीं होती, बिखरी हुई होती है. इन वनों में सबसे ज्यादा आदिम लोग निवास करते हैं. ये लोग शिकारी और संग्राहक (एकत्र या जमा करने वाला) होते हैं. कुछ लोगों द्वारा स्थानांतरित या झूम खेती की जाती है. कुछ वृक्षारोपण फसलों का भी अभ्यास किया जाता है जैसे- प्राकृतिक रबर, कोको आदि.
अमेजन बेसिन की इंडियन जनजातियां जगली रबड़ इकठ्ठा करती हैं. कांगो बेसिन के पिग्मी (मध्य अफ्रीका में बसने वाली छोटे क़द की जातियां) सूखे मेवे और वनोपज (Woodpox) इकठ्ठा करते हैं. मलेशिया के जंगलों में ओरंग बेंत (Orang cane) के प्रोडक्ट्स बनाकर उन्हें गाँवों और कस्बों में बेचा जाता है.
कहाँ-कहाँ पाई जाती है यह जलवायु- इस प्रकार की जलवायु भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण अक्षांशों में 0° से 10° के बीच पाई जाने वाली उष्ण और आर्द्र जलवायु होती है. हालांकि, सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन के कारण यह 15° से 25° तक भी विस्तृत हो जाती है. यह जलवायु मुख्य रूप से अमेजन, कांगो, मलेशिया और ईस्ट इंडीज, के निचले इलाकों में पाई जाती है.
दक्षिण-पूर्वी एशिया (South-East Asia) में मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस द्वीप समूह में इस प्रकार की जलवायु पायी जाती है. अफ्रीका (Africa) में यह जलवायु प्रदेश कांगो बेसिन, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिणी-पूर्व नाइजीरिया, गिनी की खाड़ी का तटीय भाग और अफ्रीका के पूर्वी तटीय भाग में पाया जाता है.
दक्षिण अमेरिका (South America) में इस जलवायु प्रदेश का सबसे बड़ा विस्तृत भाग अमेजन बेसिन में पाया जाता है. लेकिन पश्चिम में यह इक्वाडोर के पठारी भाग बोलीविया, पेरु और कोलंबिया के मैदानी भागों तक भी फैला हुआ है. मध्य अमेरिका (Central America) में पनामा, कोस्टारिका, निकारागुआ, होंडुरास और ग्वाटेमाला के पूर्वी भाग भी समुद्री प्रभाव के कारण इस प्रकार की जलवायु प्रदेश के अंतर्गत आ जाते हैं.
Read Also : उष्णकटिबंधीय मानसूनी और उष्णकटिबंधीय समुद्री जलवायु
Read Also : रोचक तथ्य (Interesting Facts)
Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved
All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.
Be the first to comment