Newton’s Laws of Motion : गति क्या है? न्यूटन के गति के नियम की व्याख्या

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Newton Laws of Motion (Gati ke Niyam)

गति क्या है (What is Motion)- गति (Motion) को हम समय के साथ किसी वस्तु की स्थिति में होने वाले परिवर्तन के रूप में परिभाषित कर सकते हैं. हमारे जीवन के हर पहलू में गति देखी जा सकती है. उदाहरण के लिए, यदि कोई लड़का सड़क पर चल रहा है, तो हम उसे गतिमान कहेंगे. मेज से गिरती हुई पुस्तक, नल से बहता हुआ पानी, खिड़कियों का खड़खड़ाना आदि सभी गति दर्शाते हैं. हम जिस हवा में सांस लेते हैं, उसमें भी गति होती है. ब्रह्मांड में सब कुछ गति करता है. गति या तो तेज हो सकती है या धीमी, लेकिन गति मौजूद है.

हमारी दैनिक गतिविधियाँ, जैसे चलना, दौड़ना, दरवाजा बंद करना आदि में गति शामिल होती है. इन गतिविधियों में शामिल वस्तु की स्थिति में बदलाव होता है. हमारे फेफड़ों के अंदर और बाहर हवा का प्रवाह भी गति का एक उदाहरण है. यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाली गाड़ियों में गति होती है. इस स्थिति में यात्रियों की स्थिति एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदल जाती है.

परिभाषा- समय (Time) के साथ किसी वस्तु के सापेक्ष (Relatively) किसी निकाय (Body) की स्थिति (Position) या स्थान (Place) में होने वाले परिवर्तन (Change) को गति (Motion) कहते हैं.

गति किसी वस्तु के सापेक्ष ही हो सकती है. पृथ्वी सूर्य के सापेक्ष गतिशील (Moving) है, लेकिन इस पर स्थित वस्तुओं के सापेक्ष स्थिर है. इसलिये हम पृथ्वी को स्थिर मानकर उसके सापेक्ष सभी वस्तुओं की गति का अध्ययन करते हैं.

विराम की अवस्था क्या है (What is the State of Rest)?

यदि किसी वस्तु की स्थिति (Position) में समय और वातावरण (Surrounding) के सापेक्ष कोई परिवर्तन नहीं होता तो हम कहते हैं कि वस्तु विराम (Rest) की अवस्था में है.

गति को मुख्य रूप से निम्नलिखित शब्दों में वर्णित किया जाता है-
दूरी (Distance)
विस्थापन (Displacement)
चाल (Speed)
वेग (Velocity)
त्वरण (Acceleration)
समय (Time)

दूरी (Distance)- किसी दिये गए समय अंतराल में किसी वस्तु द्वारा तय किये गए मार्ग की लंबाई को दूरी कहते हैं. यह एक अदिश राशि है. यह हमेशा धनात्मक (positive) होती है.

विस्थापन (Displacement)- एक निश्चित दिशा में दो बिंदुओं के बीच की लंबवत् (न्यूनतम) दूरी को विस्थापन कहते हैं. यह सदिश राशि है. इसका SI मात्रक मीटर है.

विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक और शून्य कुछ भी हो सकता है. जैसे- अगर कोई वस्तु उत्तर दिशा में 5 मीटर चलकर फिर से उसी रास्ते से वापस अपने स्थान पर आ जाए तो उसका कुल विस्थापन तो शून्य होगा, लेकिन चली गई कुल दूरी 10 मीटर होगी.

चाल (Speed)- किसी वस्तु द्वारा इकाई समय में तय की गई दूरी को चाल कहते हैं.
गति को दूरी और तय की गई दूरी के समय के अनुपात के रूप में मापा जाता है. चाल एक अदिश राशि है, क्योंकि इसमें केवल दिशा होती है और कोई परिमाण नहीं होता.
इसका S.I. मात्रक मीटर/सेकेण्ड है.
चाल = दूरी/समय

वेग (Velocity)- किसी वस्तु द्वारा एक निश्चित दिशा में एक इकाई समय में तय की गई दूरी को वेग कहते हैं. या या किसी निश्चित दिशा में गतिशील वस्तु की स्थिति में परिवर्तन की दर का वेग कहते हैं. वेग एक सदिश राशि है; यानी कि इसे परिभाषित करने के लिए परिमाण और दिशा दोनों की आवश्यकता है, (जैसे- उत्तर की ओर 60 किमी/घंटा).

इसका S.I. मात्रक मीटर/सेकेण्ड है.
वेग (V) = विस्थापन/समयांतराल

त्वरण क्या है (What is Acceleration)- समय के सापेक्ष वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहा जाता है. त्वरण वह दर है जिस पर समय के साथ वेग में परिवर्तन होता है, चाहे वह गति के रूप में हो या दिशा के रूप में या दोनों के रूप में. या किसी वस्तु को त्वरित तब कहा जाता है जब उसके वेग में कोई परिवर्तन होता है. किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन, गति में वृद्धि या कमी या गति की दिशा में परिवर्तन हो सकता है. या जब किसी गतिशील वस्तु की दिशा में परिवर्तन होता है या गति में वृद्धि या कमी होती है, तो त्वरण होता है. त्वरण एक सदिश राशि है क्योंकि इसमें परिमाण और दिशा दोनों होते हैं.

उदाहरण- गिरता हुआ सेब, पृथ्वी की परिक्रमा करता हुआ चंद्रमा, या ट्रैफिक लाइट पर रुकी हुई कार, ये सभी त्वरित गति वाले पिंडों के उदाहरण हैं. पृथ्वी के घूमने के कारण होने वाले त्वरण को कोरिओलिस त्वरण के रूप में जाना जाता है. गुरुत्वाकर्षण त्वरण का उपयोग गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की तीव्रता को दर्शाने के लिए किया जाता है. इसे m/s^2 के रूप में व्यक्त किया जाता है और पृथ्वी की सतह पर इसका मान 9.8 m/s^2 है.

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गति के नियम (Laws of Motion)

गैलीलियो और आइजैक न्यूटन ने सर्वप्रथम वस्तुओं की गति के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत किये. न्यूटन ने सन् 1687 ई. में अपनी पुस्तक ‘प्रिंसिपिया’ में सबसे पहले गति के नियम को प्रतिपादित किया था.

प्रथम नियम – कोई भी वस्तु अपनी गति या विराम की वर्तमान अवस्था में तब तक बनी रहेगी, जब तक उस पर कोई बाह्य बल कार्य न करे.

दूसरा नियम – यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान निश्चित है, तो इस वस्तु का द्रव्यमान जितना अधिक होगा, वस्तु को गति देने के लिए उतना ही अधिक बल लगेगा. इसे समीकरण F = ma द्वारा दर्शाया जाता है, जहाँ ‘F’ वस्तु पर लगने वाला बल है, ‘m’ वस्तु का द्रव्यमान है और ‘a’ वस्तु का त्वरण है.

तीसरा नियम – प्रत्येक क्रिया के लिए एक समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है.

गति के नियम (विस्तार से)-

(1) गति का पहला नियम (First Law of Motion)-

इस नियम के अनुसार, वस्तुएं स्वाभाविक रूप से अपनी वर्तमान विश्राम या गति की स्थिति को तब तक बनाए रखती हैं, जब तक कि उन पर कोई बाहरी बल द्वारा कार्य न किया जाए. यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो वह विराम अवस्था में ही रहेगी या यदि वह एक समान चाल से सीधी रेखा में चल रही है तो वैसी ही चलती रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए.

गति के प्रथम नियम को गैलीलियो का नियम या जड़त्व का नियम भी कहते हैं, क्योंकि वस्तुओं की यह प्रवृत्ति उनके जड़त्व (Inertia) के कारण होती है.

जड़त्व (Inertia)- वस्तु के विरामावस्था में रहने या एक समान वेग से गतिशील रहने की प्रवृत्ति यानी अपनी मूल अवस्था को बनाए रखने की प्रवृत्ति को जड़त्व (Inertia) कहा जाता है. किसी वस्तु का जड़त्व उसका वह प्राकृतिक गुण होता है, जो वस्तु की अवस्था (विरामावस्था या गति की अवस्था) में परिवर्तन का विरोध करता है. किसी वस्तु का द्रव्यमान (Mass) उसके जड़त्व का माप होता है यानी भारी वस्तुओं का जड़त्व अधिक, जबकि हल्की वस्तुओं का जड़त्व कम होता है.

गति के प्रथम नियम से बल (Force) की परिभाषा मिलती है. बल वह बाह्य कारक (External factor) है जो किसी वस्तु की प्रारंभिक अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने की कोशिश करता है. या बल एक बाहरी कारक है जो किसी पिंड की विश्राम अवस्था या गति को बदलने में सक्षम है (आप या तो किसी वस्तु को गतिमान करने के लिए उस पर बल लगाते हैं, या किसी वस्तु को रोकने के लिए उस पर बल लगाते हैं, या किसी चल रही वस्तु को और अधिक तेज करने के लिए उस पर बल लगाते हैं आदि).

बल एक सदिश राशि है, क्योंकि इसका एक परिमाण और एक दिशा होती है. जिस दिशा की ओर बल लगाया जाता है उसे बल की दिशा कहते हैं. इसका SI मात्रक न्यूटन है. बल के अलग-अलग प्रभाव-
• बल किसी स्थिर पिंड को गतिशील बना सकता है.
• यह किसी गतिशील पिंड को रोक सकता है अथवा उसकी गति धीमी कर सकता है.
• यह गतिशील पिंड की गति को तीव्र कर सकता है.
• यह किसी गतिशील पिंड के आकार और आकृति के साथ-साथ उसकी दिशा भी बदल सकता है.

गति के प्रथम नियम के कुछ उदाहरण-

1. जब कोई गाड़ी रुकी हुई है और अचानक चलना शुरू करती है तो इसमें बैठे यात्री गाड़ी के अचानक गतिक अवस्था में आते ही पीछे की ओर झुक जाते हैं.

2. चलती हुई गाड़ी में अचानक ब्रेक लगाए जाने पर गाड़ी तो रुक जाती है, लेकिन गाड़ी में अचानक ब्रेक लगते ही यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं. इस तरह की चीजों से बचने के लिये ही गाड़ियों में Safety Belt की सुविधा दी जाती है.

3. धूल लगे हुए कपड़े, कंबल, कारपेट आदि को डंडे से पीटने पर धूल के कण अलग हो जाते हैं. पेड़ की शाखाओं को जोर-जोर से हिलाने पर उस पर लगे फल टूटकर गिर पड़ते हैं.


(2) गति का द्वितीय नियम (Second Law of Motion)

गति का दूसरा नियम किसी पिंड या वस्तु पर लगने वाले बल और परिणामी त्वरण (Relationship between the force acting and the resulting acceleration) के बीच के संबंध को बताता है. न्यूटन के दूसरे नियम के अनुसार, किसी पिंड पर लगने वाला बल उसके द्रव्यमान और त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है.

न्यूटन के दूसरे नियम को समझकर, हम यह निर्धारित कर सकते हैं कि किसी वस्तु पर एक विशिष्ट शुद्ध बल लगाने पर उसका त्वरण कितना होगा. इस नियम से, हम इस बात की मात्रात्मक समझ प्राप्त करते हैं कि बाहरी बल वस्तुओं के द्रव्यमान और उनके द्वारा अनुभव किए जाने वाले त्वरण के आधार पर उनकी गति को कैसे प्रभावित करते हैं.

इस नियम के अनुसार, किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होती है और संवेग परिवर्तन बल की दिशा में होता है.
या यदि किसी वस्तु पर कोई बाह्य बल (External force) लगाया जाता है तो उस वस्तु में बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण लगाए जाने वाले बल के समानुपाती (Proportional) होता है.
F = m x a
या बल = द्रव्यमान × त्वरण
यानी कि किसी वस्तु पर आरोपित बल (F) उस वस्तु के द्रव्यमान (M) तथा उसमें बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण (a) के गुणनफल के बराबर होता है.

1 न्यूटन और भार क्या है-
1 न्यूटन – 1 किलोग्राम द्रव्यमान की वस्तु में, 1 मी./से.2 का त्वरण उत्पन्न करने के लिये आवश्यक बल का मान 1 न्यूटन कहलाता है.
भार (Weight) – किसी वस्तु पर लगने वाले गुरुत्वीय बल को ही उस वस्तु का भार (Weight) कहा जाता है.

संवेग (Momentum) – गति करती हुई किसी वस्तु के द्रव्यमान (m) तथा वेग (v) के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहा जाता है. संवेग वह राशि है जिसका उपयोग शून्य से अधिक द्रव्यमान वाली किसी वस्तु की गति की स्थिति का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इसलिए संवेग किसी भी गतिशील वस्तु पर लागू होता है. इसे ‘P’ अक्षर से प्रदर्शित करते हैं. यह एक सदिश (Vector) राशि है.

गति के द्वितीय नियम के कुछ उदाहरण-

1. क्रिकेट के खेल में कोई खिलाड़ी जब तेजी से आती हुई गेंद को कैच करता है तो अपने हाथों को गेंद के वेग की दिशा में पीछे की ओर करते हुए कैच पकड़ता है.

2. यदि दो हल्की व भारी गेंदें समान वेग से गतिशील हैं तो हल्की गेंद को कैच करना अधिक आसान होगा.

3. मुलायम फर्श या गद्दे पर गिरने से सीमेंट की बनी फर्श पर गिरने की तुलना में कम चोट लगती है. ऊँची कूद व लंबी कूद के खिलाड़ियों के जमीन पर गिरने वाले स्थान पर मिट्टी खोदकर ढीली कर दी जाती है जिससे खिलाड़ियों को चोट न लगे.

4. गाड़ियों में लगने वाले झटकों से बचने के लिये स्प्रिंग तथा शॉक एब्जॉर्बर लगाए जाते हैं.

5. कराटे के खिलाड़ी हाथ के प्रहार से एक ही झटके में बर्फ की सिल्ली या ईंटों की पट्टी (Slab) को तोड़ देते हैं. कील को दीवार में ज्यादा गहराई तक गाड़ने के लिये भारी हथौड़े से प्रहार किया जाता है.


(3) गति का तृतीय नियम या क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम (Third Law of Motion or Action- Reaction Law)

गति के प्रथम दो नियम बताते हैं कि बल, वस्तु की गति की अवस्था में परिवर्तन कर देता है. और गति का तीसरा नियम बताता है कि प्रत्येक क्रिया के लिए एक समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है. जब दो पिंड परस्पर क्रिया करते हैं, तो वे एक-दूसरे पर बल लगाते हैं जो परिमाण में बराबर और दिशा में विपरीत होते हैं. यह नियम इस अवधारणा पर प्रकाश डालता है कि बल हमेशा जोड़े में होते हैं. न्यूटन के गति के तीसरे नियम को समझने से भौतिक दुनिया के भीतर परस्पर जुड़ाव और संतुलन की हमारी समझ गहरी होती है.

गति के तृतीय नियम के अनुसार- एक वस्तु दूसरी वस्तु पर क्रिया (Action) रूप में जितना बल लगाती है, दूसरी वस्तु भी उतना ही बल विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया (Reaction) रूप में लगाती है, अतः इस नियम को क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम कहा जाता है. जैसे मेज पर रखी हुई किताब मेज पर अपने वजन के बराबर नीचे की ओर बल लगाती है, और मेज भी किताब पर बराबर और विपरीत बल लगाती है.

क्रिया-प्रतिक्रिया नियम के कुछ उदाहरण

1. बंदूक से जब गोली छोड़ी जाती है तो बंदूक द्वारा गोली पर एक बल आगे की ओर लगाया जाता है, जबकि गोली भी बंदूक एक समान लेकिन विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया बल लगाती है, जिससे बंदूक पर भी पीछे की ओर झटका लगता है.

2. रॉकेट की गति, उससे निकलने वाली गैसों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप होती है. जब कुएँ से रस्सी द्वारा पानी खींचा जाता है और अचानक यदि रस्सी टूट जाए तो रस्सी खींचता हुआ मनुष्य पीछे की ओर गिर जाता है.

3. नाव को जल में चलाने के लिये, चप्पू से पानी को पीछे की तरफ धकेलना पड़ता है. नाव से जमीन पर कोई नाविक जब आगे की ओर कूदता है तो नाव पीछे की ओर गति करती है. जमीन पर पैदल चलता हुआ मनुष्य अपने पैर से पृथ्वी को पीछे की ओर धकेलता है जबकि पृथ्वी भी प्रतिक्रियास्वरूप मनुष्य को आगे की ओर धक्का देती है.

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