Germany Italy Britain Unification
उदारवादियों की क्रांति (The Revolution of the Liberals)
अब जब सभी लोग क्रांति कर रहे थे तो मिडिल क्लास के लोग कैसे शांत बैठ सकते थे. तो मिडिल क्लास के लोग भी 1848 में क्रांति कर रहे थे. मिडिल क्लास के लोग क्रांति इसलिए कर रहे थे क्योंकि वे एक राष्ट्र राज्य (Nation State) बनाना चाहते थे, और इसके साथ ही वे संसदीय सिद्धांतों (Parliamentary Principles) की मांग कर रहे थे.
यानी लोगों का एक संविधान (Constitution) होना चाहिए, प्रेस की स्वतंत्रता (Freedom of Press) होनी चाहिए, संघ बनाने की स्वतंत्रता (Freedom of Association) होनी चाहिए, यानी किसी को भी अपना संघ या पार्टी बनाने की स्वतंत्रता (Own Association or Party) होनी चाहिए.
जर्मन क्षेत्र (German Region)
मिडिल क्लास लोग एक असेंबली बनाते हैं जिसे ‘All German National Assembly’ कहा जाता है, जिसमें वोटिंग के लिए 831 मेंबर्स को चुना जाता है. 18 मई 1848 को ये सारे 831 मेम्बर्स फ्रैंकफर्ट (Frankfurt) के एक चर्च ‘सेंट पॉल’ में इकट्ठा होते हैं. वहां ये 831 मेंबर्स जर्मन राष्ट्र (German Nation) के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार करते हैं (Drafted a Constitution).
लेकिन यहां एक समस्या थी कि ये जो 831 मेंबर्स (मिडल क्लास लोग) मजदूरों और कारीगरों (Workers and Artisans) को इग्नोर करने लगे. उनकी माँगें नहीं सुनी जा रही थीं. इससे मजदूर और कारीगर नाराज हो गए और उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया (हालाँकि मजदूर और कारीगर पहले तो समर्थन कर रहे थे, लेकिन अब नहीं कर रहे थे). इससे संविधान के लिए मिडिल क्लास के लोगों की लड़ाई कमजोर पड़ने लगी. लेकिन उसके बाद भी ये लोग संविधान के विचार को लेकर राजा के पास गए.
उस समय फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ (Frederick William IV, Prussia) प्रशिया का राजा था, क्योंकि उस समय जर्मनी नाम का कोई देश नहीं था, बल्कि एक जर्मन क्षेत्र (German Region) हुआ करता था, इसलिए ये सभी लोग प्रशिया के राजा के पास गए, लेकिन राजा नहीं चाहता था कि संविधान आए और उसकी शक्ति (Power) कम हो, इसलिए उसने अपनी सेना (Army) बुलाई और उन मिडिल क्लास लोगों की अच्छी तरह से ‘खातिरदारी’ की, और यहीं पर यह आंदोलन समाप्त हो गया.
तो अगर ये मिडिल क्लास के लोग मजदूरों और कारीगरों का समर्थन (सपोर्ट) लेते, तो शायद उनकी मांग पूरी हो जाती और शायद राजा भी दबाव में आकर उनकी मांग मान लेता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यह आंदोलन विफल (फेल) हो गया.
लेकिन राजशाही व्यवस्था (Monarchy System) के लोगों को यह समझ आ गया था कि वे इन मिडिल क्लास के लोगों को ज्यादा दिनों तक नहीं रोक पाएंगे, किसी दिन ये मिडिल क्लास के लोग जीत ही जाएँगे, इसलिए इस डर के कारण राजशाही व्यवस्था के लोगों ने छोटी-छोटी रियायतें (Concessions) देनी शुरू कर दीं, जैसे-
• हैब्सबर्ग डोमिनियन और रूस दोनों में ही दास प्रथा और बंधुआ मजदूरी को समाप्त कर दिया गया.
• 1867 में हंगरी को स्वायत्तता प्रदान की गई.
जर्मनी और इटली का निर्माण (The making of Germany and Italy)
यहां हम यह जानेंगे कि जर्मनी और इटली एकीकृत राष्ट्र (Unified Nations) कैसे बने और उनका एकीकरण (Unified) कैसे हुआ.
जर्मनी (Germany)
अब तक हमने पढ़ा कि जर्मनी के मिडिल क्लास के लोग संविधान की माँग (Demand of Constitution) लेकर पर्शिया के राजा के पास जाते हैं, लेकिन राजा उनकी माँग को मानने से इनकार कर देता है और अपनी सेना की मदद से उन्हें चुप करा देता है. तो यहाँ मिडिल क्लास के लोगों का आंदोलन समाप्त हो जाता है.
तो अब मिडिल क्लास लोग प्रशिया के बड़े-बड़े जमीदारों (Landlords) के पास जाते हैं और उनसे मदद मांगते हैं, जिन्हें जंकर्स ऑफ प्रशिया (Junkers of Prussia) भी कहा जाता है. जमींदार मिडिल क्लास लोगों की मदद करने के लिए तैयार हो जाते हैं और जर्मनी के एकीकरण (Unification of Germany) की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते हैं.
यानी कि अब सारी जिम्मेदारी प्रशिया के पास आ चुकी थी. उस समय प्रशिया का मुख्यमंत्री (Chief Minister) ओटोमन बिस्मार्क (Ottoman Bismarck), उसकी सेना (मिलिट्री) और सारे जमींदार मिलकर फ्रांस, ऑस्ट्रिया और डेनमार्क के खिलाफ लड़ाई लड़ना शुरू कर देते हैं, क्योंकि जर्मन भाषी क्षेत्र (German Speaking Area) इनके कंट्रोल में था, और उसे ही छीनने के लिए ये लोग लड़ाई लड़ते हैं.
यह युद्ध 7 साल तक चला और प्रशिया ने इस युद्ध को जीत लिया और इसके साथ ही जर्मनी के एकीकरण (Unification of Germany) की प्रक्रिया पूरी हो गई. यानी कि जर्मनी एक एकीकृत राष्ट्र (Unified Nation) बन गया. 18 जनवरी 1871 को जर्मनी का नया राजा चुना गया जिसका नाम था कैसर विलियम (Kaiser William) I. इस राजा ने मुद्रा, बैंकिंग, कानूनी और न्यायिक प्रणाली को आधुनिक बनाने को बहुत महत्व दिया.
इटली का एकीकरण (Unification of Italy)
19वीं शताब्दी में इटली 7 राज्यों में बंटा हुआ था. सार्डिनिया पीडमोंट (Sardinia Piedmont) एकमात्र ऐसा राज्य था, जहां विक्टर इमैनुएल द्वितीय (Victor Emmanuel II) नामक राजा शासन करता था और जो इतालवी भाषा (Italian Language) बोलता था. इटली के उत्तर का क्षेत्र ऑस्ट्रिया हैब्सबर्ग (Habsburg) के नियंत्रण में था. इटली के मध्य का क्षेत्र पोप के नियंत्रण में था, और इटली के दक्षिण का क्षेत्र स्पेन के बॉर्बन राजा (Bourbon King of Spain) के नियंत्रण में था.
ज्यूसेप माज़िनी (Giuseppe Mazzini) भी इटली का एकीकरण करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने ‘यंग इटली’ नामक एक गुप्त समाज का गठन भी किया था, लेकिन वे असफल रहे थे. और वे इटली का एकीकरण नहीं कर पाए. लेकिन 1848 में सार्डिनिया पीडमोंट के राजा ने फैसला किया कि वे इटली का एकीकरण करेंगे. इसके लिए उन्होंने अपने मुख्यमंत्री को बुलाया, जिनका नाम काउंट कैवूर (Count Cavour) था. उन्हें इटली के एकीकरण की जिम्मेदारी दी गई. और यहीं से क्रांति की शुरुआत हुई.
काउंट कैवूर ने सबसे पहले 1859 में फ्रांस के साथ मिलकर ऑस्ट्रियाई हैब्सबर्ग सेना को हराया और उनके द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया. अब इटली के दक्षिणी क्षेत्र पर नियंत्रण करने के लिए काउंट कैवूर ने ग्यूसेप गैरीबाल्डी (Giuseppe Garibaldi) नामक व्यक्ति की मदद ली, जिसके पास अपनी सेना थी. ये सभी लोग मिलकर लड़ाई लड़ते हैं और 1860 में इटली के दक्षिणी क्षेत्र को स्पेन से आजाद करा लेते हैं.
अब सिर्फ मध्य इटली बचा था जो पोप के नियंत्रण में था. पोप से मध्य इटली को आजाद कराने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होती, क्योंकि पोप डर जाता है इसलिए वह पहले ही आत्मसमर्पण कर देता है. और इस तरह इटली का एकीकरण हो जाता है. और अंत में विक्टर इमैनुएल द्वितीय (Victor Emmanuel II) को 1861 में पूरे इटली का राजा बना दिया जाता है.
ब्रिटेन का एकीकरण (Unification of Britain)
ब्रिटेन का एकीकरण किसी युद्ध या क्रांति की वजह से नहीं हुआ था, बल्कि ब्रिटेन के एकीकरण में एक बहुत लंबी-चौड़ी प्रक्रिया थी. स्कॉटलैंड, वेल्स, इंग्लैंड और आयरलैंड (Scotland, Wales, England and Ireland) में अलग-अलग पहचान वाले लोग रहते थे. वेल्स 1535 से इंग्लैंड का हिस्सा था. इंग्लैंड में 1688 से पहले राजशाही व्यवस्था (Monarchy System) था और उसके पास पावर (Power) भी थी, लेकिन 1688 के बाद उसके पास मोनार्की सिस्टम तो रहता है, लेकिन उसकी ज्यादातर पावर अंग्रेजी संसद (English Parliament) के पास पहुंच जाती है.
अब इंग्लैंड ने सोचा कि क्यों न इन सभी राज्यों पर कब्ज़ा करके अपने आस-पास के इलाके का विस्तार किया जाए. और इंग्लैंड ने ऐसा ही किया. उसने सबसे पहले स्कॉटलैंड पर ध्यान केंद्रित किया. इसके लिए इंग्लैंड ने स्कॉटलैंड से अच्छी तरह से बात की और उसका भरोसा जीता और उसके साथ 1707 में एक एक्ट ऑफ यूनियन (Act of Union) पर हस्ताक्षर किए. इस एक्ट पर हस्ताक्षर होते ही इंग्लैंड और स्कॉटलैंड एक हो गए और दोनों मिलकर यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन (United Kingdom of Great Britain) बन गए.
अब धीरे-धीरे ब्रिटिश संसद में इंग्लैंड के लोगों का दबदबा बढ़ने लगा और उन्होंने धीरे-धीरे स्कॉटलैंड के लोगों को दबाना शुरू कर दिया. स्कॉटलैंड के लोग न तो उनकी भाषा बोल सकते थे और न ही अपनी पसंद का कुछ पहन सकते थे. और यही आयरलैंड के साथ भी हुआ.
आयरलैंड में दो तरह के लोग रहते थे- कैथोलिक्स और प्रोटेस्टेंट (Catholics and Protestants). कैथोलिक बहुसंख्यक थे (अर्थात उनकी संख्या अधिक थी) और प्रोटेस्टेंट की संख्या कम थी. इन दोनों के बीच हमेशा तनाव रहता था. अर्थात दोनों आपस में लड़ते रहते थे. इसका फायदा इंग्लैंड ने उठाया.
इंग्लैंड प्रोटेस्टेंट को सपोर्ट करता है, तो कैथोलिक्स ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. वुल्फ टोन (Wolf Tone) नाम के व्यक्ति ने भी इसके खिलाफ विद्रोह किया, लेकिन उसे दबा दिया गया. और अंत में 1801 में आयरलैंड को जबरन यूनाइटेड किंगडम में मिला लिया गया. और एक नया ब्रिटिश राष्ट्र (British Nation) बना, जिसका झंडा ब्रिटिश था, राष्ट्रगान (National Anthem) भी उन्हीं का था और भाषा अंग्रेजी थी. सबको बढ़ावा दिया जाने लगा.
राष्ट्र की कल्पना (Visualizing the Nation)
18-19वीं सदी के कलाकारों ने सोचा कि क्यों न राष्ट्रों की कल्पना की जाए. यानी राष्ट्रों को आकार दिया जाए. जैसे भारत को ‘भारत माता’ से रिप्रेजेंट किया जाता है, ताकि हम सबको यह महसूस हो सके कि हम सब एक हैं और हम सब भारत माता की संतान हैं.
इसी प्रकार से यूरोप के कलाकारों ने अलग-अलग महिला आकृतियों (Female Figures) के माध्यम से अपने-अपने राष्ट्रों को आकार देना शुरू किया, जिन्हें रूपक (Allegories) भी कहा जाता है, ताकि लोगों में एकता बनी रहे. जैसे फ्रांस की Allegory मैरिएन Marianne थी, वैसे ही जर्मनी की Allegor जर्मेनिया (Germania) थी. तो इस तरह से राष्ट्रों की कल्पना की जाने लगी.
राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद (Nationalism and Imperialism)
राष्ट्रवाद (Nationalism) का अर्थ होता है अपने देश के प्रति प्यार होना. 19वीं सदी के अंत तक राष्ट्रवाद की भावना साम्राज्यवाद (Imperialism) की भावना में बदलने लगी. यानी जब कोई बड़ा राष्ट्र अपने क्षेत्र को बढ़ाने के लिए छोटे देशों पर कब्जा करना शुरू कर देता है, तो उसे साम्राज्यवाद कहा जाता है.
इससे जुड़ा एक केस स्टडी बाल्कन क्षेत्र (Balkan Region) का है.
बाल्कन यूरोप का एक ऐसा स्थान था जो ओटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) के अंतर्गत आता था. इस बाल्कन क्षेत्र (Balkans Region) के अंदर बहुत सारे राज्य आते थे जैसे- रोमानिया, बुल्गारिया, अल्बानिया, ग्रीस आदि.
ओटोमन साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होने लगा. इस कारण बाल्कन क्षेत्र के राज्य खुद को स्वतंत्र करने लगे. उन्होंने अपने अलग देश बनाने शुरू कर दिए. ये सभी देश एक दूसरे से ईर्ष्या करते थे और हर देश चाहता था कि उसका प्रभुत्व वाला क्षेत्र (Dominance Region) सबसे बड़ा हो, जिसके कारण ये सभी देश अपने क्षेत्र को बढ़ाने के लिए आपस में लड़ने लगे.
यह देखकर रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, हंगरी जैसे बड़े देश भी लालच में आ गए, और वे भी इस लड़ाई में हिस्सा लेने लगे. और यही प्रथम विश्व युद्ध (First World War) का कारण बना. बाद में कई लोगों ने साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन (Anti-imperial Movement) भी शुरू किए और कहीं न कहीं साम्राज्यवाद के कारण लोगों में राष्ट्रवाद की भावना भी पैदा हुई क्योंकि लोग प्रभुत्व वाले देश (Dominant Country) से आजादी चाहते थे.
Read Also :
The Rise of Nationalism in Europe (Part-3)
The Rise of Nationalism in Europe (Part-2)
The Rise of Nationalism in Europe (Part-1)
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