IPC Section 90, 91 and 92 in Hindi
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-
IPC की धारा 90 (IPC Section 90 in Hindi)
सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भ्रम या भय के अधीन दी गई है-
“कोई सम्मति ऐसी सम्मति नहीं है, जैसी इस संहिता की किसी धारा से आशयित है, अगर वह सम्मति किसी व्यक्ति ने क्षतिभय के अधीन, या तथ्य के भ्रम के अधीन दी हो, और अगर कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो, या उसके पास विश्वास करने का कारण हो कि वह सम्मति ऐसे या भ्रम के परिणामस्वरूप दी गई थी, अथवा
उन्मत्त व्यक्ति की सम्मति- अगर वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो या विकृतचित्त या मत्तता के कारण उस बात की, जिसके लिए वह अपनी सम्मति देता है, प्रकृति और परिणाम को समझने में असमर्थ हो, अथवा
शिशु की सम्मति- जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत ना हो, अगर वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो, जो 12 साल से कम उम्र का है”.
धारा 90 उन परिस्थितियों के बारे में बताती है, जिनमें प्राप्त की गई सहमति को स्वतंत्र सहमति (Free Consent) नहीं माना जाता है. धारा 90 के तहत निम्नलिखित मामलों में दी गई सहमति स्वतंत्र सहमति नहीं है-
(1) अपहानि या किसी क्षति या नुकसान के भय से दी गई सहमति,
(2) तथ्य के भ्रम के अधीन दी गई सहमति,
(3) 12 साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा दी गई सहमति,
(4) विकृतचित्त या पागल व्यक्ति द्वारा दी गई सहमति,
(5) मत्तता की हालत में दी गई सहमति,
उन सभी मामलों में, जिनमें सहमति अनुचित प्रभाव, भय, धोखा और अभिवचन द्वारा प्रभावित हो, सहमति नहीं कही जाती.
पुनाई फात्तेमा के मामले में एक सपेरे ने एक व्यक्ति से कहा कि वह खुद को एक जहरीले सांप से कटवा ले, साथ ही उस व्यक्ति को यह विश्वास भी दिलाया कि वह (सपेरा) उसे किसी भी तरह की क्षति या हानि से बचाने का सामर्थ्य रखता है. व्यक्ति सपेरे की इस बात पर विश्वास करके खुद को एक जहरीले सांप से कटवा लेता है. व्यक्ति की मौत हो जाती है.
इस मामले में न्यायालय ने कहा कि मृतक द्वारा दी गई सहमति स्वतंत्र सहमति नहीं थी, क्योंकि उसने इस भ्रम में सहमति दी थी कि सपेरा उसे सांप के जहर से बचाने में समर्थ है, वहीं अभियुक्त यानी सपेरे को भी यह पता था कि मृतक अपनी सहमति उस भ्रम के अधीन ही दे रहा है, इसलिए सपेरा मृतक की सहमति के आधार पर अपना बचाव करने का हकदार नहीं है.
IPC की धारा 91
ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो कारिता अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध हैं-
“धारा 87, 88 और 89 के अपवादों का विस्तार उन कार्यों पर नहीं है, जो उस अपहानि के बिना भी खुद में ही अपराध हैं, जो उस व्यक्ति को, जो सम्मति देता है या जिसकी तरफ से सम्मति दी जाती है, उन कार्यों से कारित हो, या कारित किए जाने का आशय हो, या कारित होने की संभाव्यता ज्ञात हो”.
यानी अगर कोई कार्य ऐसा है, जो स्वतंत्र रूप से या खुद में ही अपराध है, तो सहमति के आधार पर बचाव नहीं किया जा सकता है.
दरअसल, सहमति केवल उस कार्य को क्षमा करती है, जो सहमति देने वाले व्यक्ति को अपहानि कारित करता है या सहमति देने वाले व्यक्ति को कोई क्षति पहुंचाता है, और अगर सहमति न दी गई होती, तो वह कार्य एक अपराध होता.
लेकिन धारा 91 कहती है कि अगर कोई कार्य कानून में किसी क्षति या अपहानि के बिना भी अपराध ही बताया गया है, तो वह कार्य हर हाल में अपराध ही होगा. उस कार्य में कर्ता सहमति के आधार पर बचाव नहीं ले सकता. जैसे- गर्भपात कराना, लोक न्यूसेंस और नैतिक आचरण के खिलाफ अपराध आदि.
गर्भपात कराना खुद में ही एक अपराध है. अगर गर्भपात किसी स्त्री का जीवन बचाने के उद्देश्य से सद्भावपूर्वक कराया जाता है, तो वह अपराध नहीं है, लेकिन अगर ऐसी स्थिति नहीं है, तो इस आधार पर बचाव नहीं लिया जा सकता है कि इस कार्य में उस महिला की या उस महिला के संरक्षक की सहमति थी.
IPC की धारा 92
सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य-
“वह कोई बात जो किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक, यद्यपि उसकी सम्मति के बिना, की गई है, ऐसी किसी अपहानि के कारण जो उस बात से, उस व्यक्ति को कारित हो जाए, अपराध नहीं है, अगर परिस्थितियां ऐसी हैं कि उस व्यक्ति के लिए यह असंभव हो कि वह अपनी सम्मति प्रकट करे या वह व्यक्ति सम्मति देने के लिए असमर्थ हो और उसका कोई संरक्षक या उसका विधिपूर्ण भारसाधक या दूसरा व्यक्ति ना हो, जिससे ऐसे समय पर सम्मति लेना संभव हो कि वह बात फायदे के साथ की जा सके :
लेकिन,
(1) इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्यु कारित करने या मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर नहीं होगा,
(2) इस अपराध का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर बीमारी या किसी अंग को काट देने के प्रयोजन से अलग किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात करने पर ना होगा, जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है.
(3) इस अपवाद का विस्तार स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर ना होगा, जब तक कि मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर बीमारी या अंग काटने की प्रयोजन से न की गई हो,
(4) इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा, जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है”.
धारा 92 का कहना है कि किसी दूसरे व्यक्ति के फायदे के लिए बिना सहमति के भी किया गया कार्य अपराध नहीं होता. यानी धारा 92 के तहत सहमति विवक्षित मानी जाती है.
धारा 92 के तहत बचाव का अधिकार पाने के लिए यह जरूरी है कि-
(1) कार्य एक व्यक्ति के फायदे के लिए किया गया हो,
(2) कार्य सद्भावपूर्वक किया गया हो,
(3) मामले की परिस्थितियों के अनुसार कार्य उचित होना चाहिए,
(4) कार्य व्यक्ति की बिना सहमति के या उसके बदले किसी अन्य व्यक्ति की सहमति के बिना किया गया हो-
(A) अगर परिस्थितियां ऐसी हैं कि उस व्यक्ति के लिए सहमति देना संभव नहीं है, या
(B) अगर वह सहमति देने में असमर्थ है और ऐसी स्थिति में न तो उसका कोई संरक्षक है और ना ही कोई अन्य व्यक्ति या विधिक संरक्षक या भारसाधक पास में मौजूद है, जिससे कि कार्य के समय सहमति ली जा सके.
धारा 92 में भी धारा 89 की तरह ‘परंतुक’ या अपवाद दिए गए हैं, यानी जिन परिस्थितियों में यह धारा लागू नहीं होगी और बचाव नहीं मिल सकेगा.
धारा 92 और 89 में मुख्य अंतर ये है कि-
धारा 89 के तहत सहमति अभिव्यक्त होती है, जबकि 92 के तहत सहमति विवक्षित होती है. वहीं, धारा 89 में संरक्षक की सहमति होती है, जबकि धारा 92 में सहमति होती ही नहीं.
धारा 92 के तहत कुछ प्रमुख उदाहरण दिए गए हैं-
(1) A को कोई शेर उठा ले जाता है. B उस शेर पर गोली चलाता है, जबकि B को पता है कि उसके गोली चलाने से वह गोली A को भी लग सकती है, लेकिन वह A को बचाने के आशय से, न कि उसे मारने के आशय से शेर पर गोली चला देता है. लेकिन वह गोली A को लग जाती है, तो यहां B को इस धारा का बचाव मिल सकेगा.
(2) किसी घर में आग लगी है और ऊपर वाली जलती हुई बिल्डिंग में A नाम का छोटा सा बच्चा B नाम के वयस्क व्यक्ति के साथ फंसा हुआ है. उस बिल्डिंग के नीचे कुछ लोग एक कंबल तानकर खड़े हो जाते हैं और B से कहते हैं कि वह A को उस कंबल में फेंक दे, ताकि उस बच्चे की जान बच सके. B यह जानता है कि कंबल पर गलत तरीके से गिरने से बच्चे की मौत भी हो सकती है, लेकिन बच्चे को बचाने के आशय से ही वह उसे बिल्डिंग से नीचे गिरा देता है, तो अगर नीचे गिरने पर बच्चे की मौत हो जाती है, तो भी B को इस धारा का बचाव मिल सकेगा.
(3) A अपने घोड़े से गिरकर बेहोश हो गया. B जो कि एक डॉक्टर है, उसे लगता है कि A के सिर का तुरंत ऑपरेशन किया जाना जरूरी है, नहीं तो कुछ भी हो सकता है. यही सोचकर, न कि A की मृत्यु कारित करने के आशय से, B बिना A की सहमति के या बिना उसके किसी संरक्षक की सहमति से, उसके सिर का ऑपरेशन कर देता है, तो B ने कोई अपराध नहीं किया.
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