भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 99 : प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग की सीमा

section 99 ipc in hindi

IPC Section 99 in Hindi – भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-

भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 तक प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकारों (Right of Private Defense) के बारे में बताया गया है.

IPC की धारा 99

वे कार्य जिनके खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है-
“अगर कोई कार्य जिससे युक्तियुक्त रूप से मृत्यु या घोर उपहति की आशंका कारित नहीं होती, सद्भावपूर्वक अपने पद के आभास में कार्य करते हुए लोक सेवक द्वारा किया जाता है, या किए जाने का प्रयास किया जाता है, तो उस कार्य के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह कार्य विधि अनुसार पूरी तरह से न्यायानुमत न भी हो.

अगर कोई कार्य जिसे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद्भावपूर्वक अपने पद के आभास में कार्य करते हुए लोक सेवक के निर्देश से किया जाता है, या किए जाने का प्रयास किया जाता है, तो उस कार्य के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह निर्देश विधि अनुसार पूरी तरह से न्यायानुमत न भी हो.

उन दशाओं में, जिनमें सुरक्षा के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिए समय है, प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है.

इस अधिकार के प्रयोग का विस्तार- किसी दशा में भी प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार उतनी अपहानि से ज्यादा अपहानि करने पर नहीं है (उतनी क्षति से ज्यादा क्षति पहुंचाने पर नहीं है) जितनी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से करना जरूरी है.

स्पष्टीकरण (1)
कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक द्वारा ऐसे लोग सेवक के नाते किए गए कार्य, या किए जाने के प्रयास के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होगा, जब तक कि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है.

स्पष्टीकरण (2)
कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक के निर्देश से किए गए कार्य या किए जाने के प्रयास के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होगा, जब तक वह यह ना जानता हो, या विश्वास करने का कारण ना रखता हो कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसे निर्देश से कार्य कर रहा है, जब तक कि वह व्यक्ति उस प्राधिकार का कथन न कर दे, जिसके अधीन वह कार्य कर रहा है, या अगर उसके पास लिखित प्राधिकार है, तो जब तक कि ऐसे लिखित प्राधिकार को मांगे जाने पर पेश न कर दे”.

धारा 99 का कहना ये है कि अगर कोई लोक सेवक अपने अधिकार से या अपने पद के आभास में कोई कार्य कर रहा है, या उसके निर्देश में कोई कार्य किया जा रहा है, तो उस कार्य के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार नहीं है; बशर्ते लोक सेवक का आशय मृत्यु या गंभीर चोट पहुंचाने का न हो, साथ ही उसका कार्य सद्भावपूर्वक होना चाहिए, साथ ही वह अपने अधिकार से या पद के आभास में कार्य कर रहा हो.

धारा 99 वह सीमा निर्धारित करती है, जिसके तहत प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. धारा 99 के तहत प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार की सीमा को चार भागों में बांटा गया है-
(A) पहले भाग में लोक सेवक द्वारा किए गए कार्य के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं होता, अगर-
(1) कार्य लोक सेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयास किया जाता है,
(2) कार्य सद्भावपूर्वक किया गया है,
(3) कार्य लोक सेवक द्वारा अपने पद के अधिकार में या पद के आभास (यानी अगर लोक सेवक को लगता है कि यह कार्य करना उसके अधिकार में है) के तहत किया गया है,
(4) कार्य ऐसा है, जिससे मृत्यु या घोर उपहति (कोई गंभीर चोट) की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती (यानी अगर कोई सामान्य व्यक्ति ऐसे कार्य को गंभीर या जानलेवा हमला न माने),
(5) (ऊपर की परिस्थितियों के होने पर) हो सकता है कि कार्य कानूनन न्यायसंगत न भी हो,
(6) यह विश्वास करने का युक्तियुक्त आधार होना चाहिए या यह साबित किया जाना चाहिए कि कार्य लोक सेवक द्वारा या किसी लोक सेवक के पद के आभास के तहत ही किया गया है. (पढ़ें)

(B) दूसरे भाग में, लोक सेवक की निर्देश से किए गए कार्य के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार नहीं है, अगर-
(1) कार्य लोक सेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयास किया जाता है.
(2) कार्य सद्भावपूर्वक किया गया है,
(3) कार्य लोक सेवक द्वारा अपने पद के अधिकार में या पद के आभास (यानी अगर लोक सेवक को लगता है कि यह कार्य करना उसके अधिकार में है) के तहत किया गया है,
(4) कार्य ऐसा है, जिससे मृत्यु या घोर उपहति (कोई गंभीर चोट) की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती (यानी अगर कोई सामान्य व्यक्ति ऐसे कार्य को गंभीर या जानलेवा हमला न माने),
(5) (ऊपर की परिस्थितियों के होने पर) हो सकता है कि कार्य कानूनन न्यायसंगत न भी हो,
(6) यह विश्वास करने की युक्तियुक्त आधार हो कि कार्य लोक सेवक के निर्देश से ही किया जा रहा था, या निर्देश से कार्य करने वाला व्यक्ति यह स्पष्ट या साबित करे कि वह किस आदेश के तहत कार्य कर रहा था, या अगर उसके पास लिखित आदेश है तो मांगे जाने पर उसे पेश करे.

अगर लोक सेवा का कार्य कानून के खिलाफ है, तो उसके खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर कोई पुलिस अधिकारी जो बिना लिखित आदेश के छानबीन करता है, तो वह अपने पद के आभास के तहत कार्य करता हुआ नहीं कहा जाएगा. यानी यहां धारा 99 की सीमा लागू नहीं होगी.

(C) तीसरे भाग में, उन परिस्थितियों के बारे में बताया गया है, जिनमें अपने बचाव या अपनी रक्षा के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त की जा सकती है, तब उस समय प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है. यानी उस समय अपने बचाव या रक्षा के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता ही ली जानी चाहिए.

(D) चौथे भाग में बताया गया है कि आत्मरक्षा में या अपने बचाव में आक्रमण करने वाले को उतनी ही क्षति पहुंचाई जानी चाहिए, जितनी अपने बचाव के लिए जरूरी है, उससे ज्यादा क्षति नहीं पहुंचाई जानी चाहिए. यानी अगर A B को केवल एक सामान्य या मामूली सी चोट पहुंचाने के लिए ही उस पर हमला करता है, तो B को भी उस समय अपने बचाव में A को सीधा मार डालने का अधिकार नहीं है.

प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार ऐसे व्यक्ति के खिलाफ नहीं दिया गया है, जो निःशस्त्र (बिना हथियार के) हो, या अब जो आक्रमण न कर रहा हो, या जो गिर पड़ा हो और केवल उठने का प्रयास कर रहा हो न कि फिर से हमला करने का.

पढ़ें – भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 96 और 97 : प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार

पढ़ें – भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 98 : किसी पागल व्यक्ति के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार



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