Badrikashram Badrinath ki Yatra
यात्रा (Travel) शब्द इतना आकर्षक है कि ऐसा कौन है जिसका हृदय इसे सुनकर फड़कने न लगे. सच बात यह है कि इंसान रोजी-रोटी के जुगाड़ में अपना दैनिक जीवन एक ही बंधे-बंधाए ढर्रे पर बिताते-बिताते इतना ऊब जाता है कि वह अपने जीवन चक्र में कुछ बदलाव चाहता है. यात्रा इसी इच्छित परिवर्तन का सुखद अवसर पेश करती है, साथ ही नए स्थान देखने, नए लोगों से मिलने और नई भाषा सुनने का आकर्षण भी कुछ कम प्रबल नहीं होता.
बद्रिकाश्रम की यात्रा की योजना
उत्तर की तरफ बद्रिकाश्रम (Badrikashram) हिंदुओं का बेहद पवित्र तीर्थ स्थान है. यह स्थान पवित्र चार धामों के आलावा चार छोटे धामों में भी गिना जाता है और यह भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देशों में से एक है. कहते हैं कि जब गंगा नदी (Ganga River) धरती पर आईं, तो 12 धाराओं में बंट गईं और इस स्थान पर से होकर बहने वाली धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई. नर और नारायण नाम के महर्षियों ने यहां हजारों सालों तक तपस्या करके इस स्थान को विशेष गरिमा दी है.
फिर भगवान बादरायण यानी वेदव्यास जी ने यहीं की एक गुफा में बैठकर वेदांत-सूत्रों की रचना की थी, इसलिए बद्रिकाश्रम के दर्शनों की इच्छा बहुत दिनों से मन में थी, लेकिन समुद्र से करीब 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान बहुत दुर्गम है. अभी कुछ दशक पहले तक यहां की यात्रा पैदल ही करने पड़ती थी, लेकिन आज मुख्य मंदिर के निकट तक जाने के लिए कई सुविधाएं मौजूद हैं. तो बस…हिम्मत करके हम सब ने भी बद्रिकाश्रम की यात्रा का विचार बनाया.
यात्रा की तैयारी
हम लोग बस के जरिए ऋषिकेश (Rishikesh) पहुंचे. वहां हमने अपने एक संबंधी को टैक्सी तय करने का निर्देश पहले ही दे दिया था, इसलिए ऋषिकेश पहुंचते ही टैक्सी की व्यवस्था पक्की थी. अगले दिन सुबह ही निकलना था, क्योंकि मालूम हुआ कि लगातार 14 घंटे की मोटर यात्रा के बाद ही मंजिल तक उसी दिन पहुंचा जा सकता है, नहीं तो एक दिन रास्ते में ही रुकना पड़ेगा. इसका एक कारण यह है कि जोशीमठ (Joshimath) से वन-वे ट्रैफिक शुरू हो जाता है, ऐसा अवरोध तीन स्थानों पर आता है, जिनमें काफी समय लग जाता है, इसलिए एक ही दिन में बद्रिकाश्रम पहुंचना तय रहा.
बहुत खूबसूरत रास्ता
हालांकि, टैक्सी वाले ने पहले दिन जाकर सलाह दी कि सुबह-सुबह 4 बजे ही निकलना अच्छा रहता है, लेकिन हमें निकलते-निकलते 6 बज गए, लेकिन टैक्सी ड्राइवर बहुत कुशल था. लगातार चढ़ाई के बाद भी उसने हम लोगों को समय पर श्रीनगर (Srinagar) पहुंचा दिया. एक तो सुबह-सुबह का समय और दूसरी तरफ श्रीनगर तक दोनों तरफ के पहाड़ों पर काफी वनस्पति दिखाई पड़ रही थी. बीच-बीच में पर्वतों से बहकर आने वाले जलस्रोत बड़ा ही मनोरम दृश्य बना रहे थे.
वे जलस्रोत अक्सर मोटर रास्ते को काटते हुए लगभग 3,000 फीट नीचे अलकनंदा नदी (Alaknanda River) में गिरते हैं. इतनी ऊंचाई से अलकनंदा नदी भी एक छोटी नहर जैसी दिखाई पड़ती है, लेकिन वह पहाड़ी नदी है, इस कारण उसमें दुर्धर्ष वेग है. विशाल शिलाखंडों से टकराकर उछलता हुआ उसका जल भीषण ध्वनि उत्पन्न करके दिलों को भयकंपित करता है.
ठंडी हवा, पर्वतीय फूलों की सुगंध और पक्षियों की मधुर आवाज यात्रियों का मन तो मोह ही लेता है, साथ ही उनकी थकान भी उतार देता है. ऐसे सुंदर वातावरण के बाद भी एक बात हमारे लिए बड़ी ही कष्टदायक थी, और वह यह कि टैक्सी बहुत जल्दी-जल्दी मोड़ ले रही थी. कहीं चढ़ाई तो कहीं सीधा उतार, पेट में उथल-पुथल सी मचने लगी थी.
नाश्ता करके तुरंत बढ़ चले आगे, क्योंकि..
जैसे-तैसे श्रीनगर पहुंचकर हम सब लोगों ने चाय-नाश्ता लिया और तुरंत चल पड़े, क्योंकि अभी हमारे सामने करीब 11 घंटे की यात्रा बाकी थी. टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि अगर हम लोग जोशीमठ 4 बजे तक नहीं पहुंच पाए, तो पुलिस वहीं रोक लेगी, क्योंकि जोशीमठ से आगे का रास्ता बेहद दुर्गम और चढ़ाई एकदम खड़ी है, इसलिए 4 बजे तक जोशीमठ पहुंचने वाले यात्रियों को ही आगे बढ़ने की अनुमति दी जाती है.
प्रकृति ने इस तरह बनाया रास्ते को आसान
हम श्रीनगर से करीब साढ़े दस बजे निकल सके. दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर हमारा कुशल ड्राइवर टैक्सी को उड़ाता ले चला, रास्ते दूर से दूर होते दिखाई दे रहे थे. इस समय सब जगह काफी तेज धूप छा गई थी और गर्मी बढ़ती ही जा रही थी, लेकिन श्रीनगर से आगे बढ़ने पर जैसे-जैसे हम ऊंचाई पर चढ़ते गए, दोनों तरफ पहाड़ों की ढालों पर उगी घनी बनस्पति ने हमारा स्वागत किया.
विशाल पेड़ों की छाया हमारे रास्ते को ठंडी और सुखद बना रही थी और जगह-जगह पर हिरणों के झुंड और मोरों के दल हमारे मन को आकर्षित कर रहे थे. श्रीनगर से आगे पहाड़ी रास्ता बहुत जल्दी-जल्दी मोड़ ले रहा था. इससे हमारी रफ्तार में काफी रुकावट आई, लेकिन धन्य है वह टैक्सी ड्राइवर, जिसने 4 बजे तक हमें जोशीमठ पहुंचा दिया. अगर 5 मिनट भी देर हो जाती तो हम सबको रात वहीं बितानी पड़ती.
अब आगे थी बड़ी ठंड
जोशीमठ से वन-वे ट्रैफिक के कारण हम रुकते-रुकते जैसे-तैसे हनुमान चट्टी (Hanuman Chatti) पहुंचे. यहां की ठंडी हवा के स्पर्श से मन प्रसन्न हो उठा. उस समय करीब 6 बज रहे थे. लोगों ने बताया कि यह आखिरी बस्ती है. यहां पर सभी यात्रियों ने गर्म कपड़े पहन लिए, क्योंकि आगे बहुत तेज ठंड की आशंका थी. सब लोग आश्चर्य से बैठे हुए संकरी सड़क पर बड़ी तेजी से चढ़ती-उतरती मोड़ लेती टैक्सी को देख रहे थे, जिसे अनुभवी और कुशल ड्राइवर बड़े आत्मविश्वास से बिना रुके रफ्तार के साथ दौड़ाए जा रहा था.
बाईं तरफ से पर्वतों की ढालों पर बर्फी की पतली-चौड़ी धाराएं पिघली चांदी की तरह लग रही थीं और धीरे-धीरे बहती हुई अलकनंदा में गिर रही थीं. हवा में ठंडक भी बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही थी. गर्म कपड़े पहनने के बाद भी शरीर जड़जड़ाने लगा था. ये चढ़ाई यात्री के धैर्य और श्रद्धा की अंतिम परीक्षा होती है, जिसमें पास होने पर ही भगवान बद्रीनाथ के दिव्य दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हो सकता है.
जैसे ही दिखाई दी दिव्य बद्रीनाथ धाम की ‘रोशनी’
करीब ढाई घंटे की चढ़ाई के बाद जैसे ही दिव्य बद्रीनाथ धाम की बिजली की बत्तियां चमकती हुईं दिखाई दीं, तो ऐसा लगा मानो अंधकार में भटकते प्राणी को रोशनी दिखाई दे गई हो या, कोई मृत्यु के मुख से निकलकर सशरीर स्वर्ग पहुंच गया हो. हम लोग लंबी और बिना रुके, लेकिन सुखद यात्रा के बाद अपनी मंजिल तक पहुंचने के संतोष के साथ-साथ भारी थकान का भी अनुभव कर रहे थे. हम लोगों ने एक अच्छे होटल के सुविधाजनक कमरे में टिकने की व्यवस्था की.
गर्म पानी से स्नान करके निकल पड़े दर्शनों के लिए
कमरे की खिड़कियों को जरा खोल कर देखा तो झिलमिल सितारों की सी रोशनी में सामने भगवान के विशाल मंदिर का शिखर अपनी भव्यता के साथ दिखाई पड़ा. साथ ही बेहद ठंडी हवा का झोंका रोम-रोम को थरथरा गया, जिससे हमें खिड़की तुरंत ही बंद करनी पड़ी. अगले दिन हम सुबह मंदिर के दर्शनों के लिए चल पड़े.
इससे पहले हम लोगों ने गर्म पानी से स्नान किया. यह गर्म पानी वहां के स्थानीय मजदूर बद्रीनाथ मंदिर के पास स्थित गर्म पानी के एक विशाल कुंड से लाकर 4 रुपये पीपे की दर से बेच रहे थे, हालांकि बहुत से लोग उस कुंड में ही जाकर स्नान करके मंदिर के दर्शनों के लिए जा रहे थे.
यह देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि पास ही बहती अलकनंदा बर्फ की मोटी चादर से ढकी हुई थीं, चारों तरफ बर्फ के पहाड़ों के अंबार लगे थे, ठंडी हवा से हड्डियां कंपकंपा रही थीं, लेकिन उस कुंड का पानी इतना गर्म था कि उसे शरीर पर सहन करना भी एक तपस्या थी. कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से चर्म रोग (Skin Diseases) दूर हो जाते हैं.
भगवान बद्रीनाथ के भव्य दर्शन
हम सब बद्रीनाथ धाम पहुंचे, जहां बड़ी भीड़ थी. भारत के कोने-कोने से आए यात्री पूरे भक्ति भाव से भगवान बद्रीविशाल का दर्शन और उनकी स्तुति कर रहे थे. भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा बड़ी ही दिव्य है. घंटों के जयघोष, भक्तों की स्तुति, गंध-धूप की सुगंध और दीपकों के प्रकाश से सारा वातावरण गहरी भक्ति भावना में डूबा लग रहा था.
मंदिर काफी ऊंचाई पर है, जहां तक पत्थरों की सीढ़ियां जाती हैं. हमें वहां एक और बात का अनुभव हुआ कि चार कदम चलते ही टांगे इतनी भर जाती थीं, मानो पत्थर की हों. कुछ लोग थोड़ा चलते ही हांफने लग रहे थे. इसकी वजह 12,000 फीट की ऊंचाई पर मिलने वाली हवा का पतलापन और ऑक्सीजन की कमी है.
इंजीनियरों की प्रशंसा से भर उठा मन
उसी दिन दोपहर को वापसी यात्रा पर भी चल पड़े, जिसमें कोई विशेष कठिनाई न हुई, बल्कि उस दिव्य स्थान से जैसे-जैसे दूर होते जा रहे थे, मन बेचैन होता जा रहा था. उतार के कारण टैक्सी ने भी पूरा रास्ता 11 घंटे में ही पूरा करके 10 बजे तक ऋषिकेश पहुंचा दिया. मन सीमा सड़क संगठन के इंजीनियरों के लिए प्रशंसा से भर उठा, जिन्होंने ऐसे दुर्गम स्थान पर भी सड़क बनाकर अद्भुत कौशल का परिचय देते हुए असंभव को भी संभव कर दिखाया. यह यात्रा हमारे जीवन की एक स्मरणीय घटना बन गई है. (1994)
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