Media Jobs and Institute
नोएडा फिल्म सिटी में कुछ बड़े-बड़े न्यूज चैनल्स के बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट खुले हैं, जिनके विज्ञापन भी आप न्यूज चैनल्स पर देखते रहते होंगे. मुझे Journalism में डिप्लोमा कराने के लिए मेरे पेरेंट्स ने Noida Film City के एक बड़े और नेशनल न्यूज चैनल के Institute में एडमिशन कराने के लिए अप्लाई किया.
उस इंस्टीट्यूट ने मेरे घरवालों को बताया कि ‘हमारे यहां कैंडिडेट्स का बड़ा इंटरव्यू लिया जाता है, हम ऐसे ही किसी भी कैंडिडेट को एडमिशन नहीं देते. हम देखते हैं कि वह हमारे इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करने लायक है भी या नहीं. इंटरव्यू में पास होना जरूरी है’.
उस इंस्टीट्यूट की फीस बहुत ज्यादा थी, एक ही झटके में लाखों रुपये चले जाते, इसलिए मैं नहीं चाहती थीं कि मेरा एडमिशन वहां हो, लेकिन ये बात मैंने घरवालों को नहीं बताई, नहीं तो बहुत डांट पड़ती. मैंने सोच लिया कि इंटरव्यू ही अच्छा नहीं दूंगी, तो एडमिशन अपने आप ही नहीं होगा.
इंस्टीट्यूट में ही मेरा Interview हुआ. मुझसे जितने भी करेंट अफेयर्स और सवाल पूछे गए, मैंने किसी के भी जवाब नहीं दिए, एक के भी जवाब न आने का पूरा नाटक किया. इंटरव्यू लेने वालों का चेहरा अलग उतरा हुआ लग रहा था, लेकिन उन्होंने मुझसे बस इतना कहा कि ‘बाद में जवाब देंगे’. मैं मन ही मन निश्चिंत हो गईं कि मेरा सेलेक्शन हो ही नहीं सकता.
शाम को मेरे पेरेंट्स ने मुझे बताया कि उस इंस्टीट्यूट में मेरा सेलेक्शन हो गया है. मैंने तुरंत पेरेंट्स से पूछा कि “कैसे हो गया? मुझे तो उनके किसी सवाल के जवाब आए ही नहीं थे.” तब पेरेंट्स ने मुझे बताया कि-
“उन्होंने कहा है कि शायद आपकी बेटी इंटरव्यू में बहुत नर्वस हो गई थी, इसलिए उस समय वह ठीक से परफॉर्म नहीं कर पाई, लेकिन केवल एक इंटरव्यू में कुछ सवालों के जवाब न देने के कारण किसी की भी काबिलियत पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते. हमने आपकी बेटी में सीखने की ललक देखी है, मेहनत से काम करने और आगे बढ़ने की इच्छा देखी है, इसलिए हम उसे ये मौका दे रहे हैं. हमें उसका व्यवहार और उसकी आवाज भी बहुत अच्छी लगी. हम उसे सब चीजें अच्छे से सिखा देंगे और हमें उम्मीद है कि वह बहुत आगे तक जाएगी. हम बच्चों को परखना जानते हैं. एक छोटे से इंटरव्यू से किसी की भी काबिलियत का पैमाना तय नहीं किया जा सकता है.”
घरवाले वहां एडमिशन लेने के लिए जोर देने लगे. सबने समझाया कि देखो, आजकल किसी अच्छी जगह काम करने के लिए किसी न किसी रेफरेंस की जरूरत पड़ती है…
उस इंस्टीट्यूट से भी रोज कॉल आने लगे. वे रोज मुझे और मेरे घरवालों को समझाते कि उनके इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेने के क्या फायदे होंगे और एडमिशन न लेने के क्या नुकसान होंगे. उन्होंने ये भी कहा कि ‘अगर यहां के किसी इंस्टीट्यूट में एडमिशन नहीं लोगी, तो यहां करियर बनाना बहुत मुश्किल होगा’. लेकिन आखिरकार मैंने जिद पकड़कर घरवालों को मना ही लिया कि मैं वहां एडमिशन नहीं लूंगी. मेरी जिद पर मेरा एडमिशन वहीं के किसी और इंस्टीट्यूट में करवा दिया गया, जहां की फीस कम थी.
मुझे मेरे टैलेंट के दम पर पहली बार में ही एक अच्छे नेशनल न्यूज चैनल में प्लेसमेंट मिल गया, जहां मुझे अच्छे से काम सिखाया गया. वहां 1.5 साल काम (न्यूज राइटर) करने के बाद मैंने उसी पहले वाले इंस्टीट्यूट के चैनल में जॉब (हेल्थ कंटेंट राइटर) के लिए अप्लाई किया.
HR ने फोन पर मुझसे पूछा कि “आपको हेल्थ पर लिखने का कितना Experience है?”
मैंने कहा, “मैं नेशनल और पॉलिटिकल बीट पर काम करती थीं, लेकिन मैंने कई बार हेल्थ पर भी पोस्ट लिखे थे और सबको काफी पसंद भी आए थे. आप जिस भी टॉपिक पर लिखने को कहेंगे, मैं अभी ही लिखकर दिखा सकती हूं… प्लीज”.
HR ने “नहीं, ठीक है” कहकर फोन काट दिया.
अब न मुझमें सीखने की कोई ललक दिखाई दी, न काम करने की इच्छा. न मेरी आवाज अच्छी लगी न मेरा व्यवहार. Content Writer की पोस्ट पर भी मेरा एक कंटेंट देखना भी जरूरी नहीं समझा. बस एक मिनट के टेलीफोनिक इंटरव्यू में ही मुझे पूरा परख लिया और… सवाल भी खड़ा कर दिया.
केवल एक्सपीरियंस, सिर्फ एक्सपीरियंस
क्या आप जानते हैं कि मीडिया इंडस्ट्री (Media Industry) में आने वाले ज्यादातर नए युवाओं की क्या शिकायत है? यही कि यहां की हर Company में बैठा HR फोन पर उस काम के लिए आपको परख रहा होता है, उस काम के लिए आपका एक्सपीरियंस चेक कर रहा होता है, जिसमें खुद उसका ही एक्सपीरियंस जीरो होता है. और इसीलिए वो अपना फोकस केवल कैंडिडेट के एक्पीरियंस पर ही रखता है, जैसे एक्सपीरियंस बाजार में बिकता हो.
जबकि एक्सपीरियंस्ड व्यक्ति का काम अच्छा ही होगा, ये कोई जरूरी नहीं है. आजकल की न्यूज के स्तर और फैक्ट्स में अनगिनत गलतियों को देखकर आप ये बात अच्छी तरह समझ भी सकते होंगे. मेरी पिछली कंपनी में एक बंदा जिसे कई बड़ी कंपनियों में काम करने का (एडिटर) साढ़े 9 सालों का एक्सपीरियंस था (उसी ने कई बार मुझे ये लाइन रटाई थी), उसने एक News की पहली ही लाइन में लिखा-
“देश में आज से “ये” कानून लागू हो गया है. कल राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा.”
लेकिन फिर भी यहां की कई कंपनियां अपनी जॉब पोस्ट में ठोककर लिख देती हैं, कि “फ्रेशर्स अप्लाई न करें”. अब सोचिए कि जो युवा यहां के बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट की बातों में आकर अपने माता-पिता का लाखों पैसा खर्च करके अपने लिए पहला अवसर तलाश कर रहे होते हैं, उनके मन पर ऐसी जॉब पोस्ट को देखकर क्या बीतती होगी??
कई लोगों का कहना है कि मीडिया इंडस्ट्री में फिलहाल नए लोगों की कोई जरूरत ही नहीं है, क्योंकि जब तक पत्रकार के आगे “वरिष्ठ” न लगा हो, तब तक मजा ही नहीं आता… लेकिन मीडिया इंडस्ट्री की ये सब बातें यहां आने से पहले किसी युवा को पता नहीं होतीं, नहीं तो वह पत्रकारिता में महंगे महंगे कोर्स करके अपने पेरेंट्स का पैसा और अपना समय और ऊर्जा बर्बाद करने की भूल कभी नहीं करना चाहेगा.
यहां मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि आप किसी भी संस्था की बाहरी चमक-धमक के बहकावे में न आएं. आप जो भी फैसला लें या जो भी करें, अपनी दम पर करें. किसी संस्था या किसी बाहरी व्यक्ति पर निर्भर होकर कहीं न जाएं.
Written By : Nancy Garg (यह मीडिया इंडस्ट्री में मेरा व्यक्तिगत अनुभव है).
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