Monkey to Human Evolution : क्या वाकई में इंसान पहले बंदर था (Did humans come from monkeys)?
जब-जब पढ़ने-सुनने में आता है कि इंसान पहले बंदर था, या हमारे पूर्वज पहले बंदर थे, और फिर धीरे-धीरे उसने खुद से सब कुछ सीख लिया और आज इतना बड़ा वैज्ञानिक युग भी ले आया, तब सिवाय आश्चर्य के और कुछ नहीं होता. खासकर ये देखकर कि आज किसी भी बंदर को इंसान बनाने की कोशिश में खुद इंसान ही मदारी बन जाता है, लेकिन बंदर में नाममात्र का भी बदलाव नहीं आता.
मनुष्य के विकास क्रम की इस वैज्ञानिक थ्योरी को लेकर मेरे मन में कुछ सवाल हमेशा से रहे हैं, जिनके जवाब मुझे आज तक नहीं मिले, लेकिन अपने सवालों का जिक्र करने से पहले मैं चार्ल्स डार्विन की इवोल्यूशन की थ्योरी और बंदरों से इंसान बनने तक के सफर पर आती हूं. तो आइए जानते हैं कि ह्यूमन इवोल्यूशन पर क्या कहती हैं वैज्ञानिक रिपोर्ट्स-
इवोल्यूशन का सिद्धांत (Evolution Theory)
करीब साढ़े तीन अरब साल पहले, जब विकास का क्रम (Process of Evolution) शुरू हुआ था, तब सबसे पहले बैक्टीरिया आए, फिर बैक्टीरिया से अमीबा, अमीबा से कीड़े-मकोड़े और छोटे-मोटे पेड़ पौधों का विकास हुआ. उसके बाद जानवरों ने अपना आकार लेना शुरू कर दिया. इसके बाद मैमल्स (Mammals) का विकास हुआ, फिर पक्षी और फिर धरती पर रेंगने वाले जीवों (Crawling Creatures) जैसे कछुए आदि आये.
इनके बाद कुछ ऐसी प्रजातियों का विकास हुआ, जो पानी के अंदर भी रह सकती थीं और बाहर भी. इसके बाद आए प्राइमेट्स (Primates), जो चूहों की तरह दिखते थे और इनके साथ विकास का क्रम आगे बढ़ा. प्राइमेट्स से बंदर बने, इन बंदरों से गोरिल्ला, चिम्पैंजी…. और फिर धीरे-धीरे इनसे मानव का विकास हुआ. ये पूरा विकास क्रम पृथ्वी पर हो रहे मौसमीय और अन्य बदलावों के चलते अपनी-अपनी जरूरत के आधार पर हुआ.
क्या कहती है चार्ल्स डार्विन की थ्योरी
(Charles Darwin theory of human evolution)?
जो बदलते माहौल या वातावरण में खुद को ढाल सके, वही जीवित रह सकता है और वही विकास के क्रम में आगे बढ़ सकता है, क्योंकि परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है.
Finch Bird Evolution : चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) ने इवोल्यूशन की यह थ्योरी फिंच पक्षियों (Finch Birds) को देखते हुए दी थी. चार्ल्स डार्विन ने देखा कि फिंच नाम का एक छोटा पक्षी कई द्वीपों में पाया जाता है, लेकिन हर एक द्वीप में इसी पक्षी की शारीरिक बनावट, खासकर उसकी चोंच में बहुत अंतर था. फिंच पक्षियों की इसी विशेषता को देखते हुए डार्विन ने अपना नेचुरल सेलेक्शन और एवोल्यूशन का सिद्धांत (Theory of Natural Selection and Evolution) दिया.
डार्विन के अनुसार, जो भी जीव जिस माहौल या वातावरण में रहता है, वह खुद को उसी वातावरण में ढालने की कोशिश करने लगता है, ताकि उसका जीवन और उसकी आने वाली पीढ़ियां बच सकें. इसी कोशिश में अलग-अलग जगहों के मुताबिक उसकी शारीरिक बनावट और बुद्धि में बदलाव आने लगता है. अलग-अलग द्वीपों में फिंच पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों के होने का भी यही कारण है कि जो फिंच पक्षी जिस द्वीप पर गए, उसी द्वीप के वातावरण के अनुसार उन्होंने खुद को ढाल लिया.
अलग-अलग द्वीपों पर रहन-सहन, तापमान और खाने-पीने के साधनों और तरीकों में बदलाव था. इस वजह से एक ही तरह की फिंच चिड़िया के अलग-अलग द्वीपों पर जाने पर, उनकी शारीरिक बनावट खासकर चोंच में भी बदलाव आता गया. जैसे- किसी द्वीप पर फलों को खाने वाली लंबी चोंच वाली फिंच, दूसरे द्वीप पर कीड़ों को खाने वाली छोटी चोंच वाली फिंच, और अपने ही द्वीप पर अपने मूल स्वरूप में मौजूद फिंच. इस तरह फिंच पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों का विकास हुआ.
सभी तरह के जीवों पर लागू की गई यह थ्योरी
इस तरह सभी फिंच चिड़ियों का प्राइमरी सोर्स (Primary Source) तो एक ही था. डार्विन ने यही सिद्धांत सभी तरह के जीवों और यहां तक कि मनुष्य के विकास क्रम में भी लागू किया. जैसे सांप और छिपकली, या भेड़िये और कुत्ते का प्राइमरी सोर्स एक ही है. और ठीक इसी तरह इंसानों का विकास सीधे बंदरों या चिम्पैंजी से नहीं हुआ, बल्कि बन्दर, चिम्पैंजी और मानव का भी प्राइमरी सोर्स एक ही है, फिंच चिड़ियों की ही तरह.
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आसान शब्दों में, मनुष्य सीधे बंदरों से इंसान नहीं बना, बल्कि बन्दर, चिम्पैंजी और इंसान के पूर्वज एक ही थे और यही पूर्वज अलग-अलग माहौल या वातावरण में जाकर अपनी-अपनी जरूरत के हिसाब से अलग-अलग प्रजातियों जैसे- मनुष्य, चिम्पैंजी, गोरिल्ला या बन्दर के रूप में विकसित हो गए. यानी हम इंसान, गोरिल्ला, चिंपैंजी, बंदर आदि सभी एक ही फैमिली-ट्री (Family Tree) का हिस्सा हैं, जिसकी मुख्य शाखा, जड़ या बीज (प्राइमरी सोर्स) एक ही है… और इसी कारण इंसानों का DNA बंदरों और चिम्पैंजी से काफी मिलता-जुलता है.
इंसान, बन्दर और चिम्पैंजी का प्राइमरी सोर्स क्या था?
अब सवाल ये है कि इंसान, बन्दर और चिम्पैंजी का वह प्राइमरी सोर्स कौन था, जिससे यह विकास का क्रम आगे बढ़ा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, लाखों साल पहले वह प्राइमरी सोर्स ‘होमिनिड (Hominid)‘ थे, जिन्हें ‘वनमानुष’ भी कहा जाता है. शरीर से ये बन्दर जैसे भी लगते थे और इंसान जैसे भी. ये झुककर चलते थे और ज्यादातर समय पेड़ों पर ही रहते थे और इसी से इनके हाथ लंबे थे. इस प्राइमरी सोर्स में कपि (एप्स) परिवार की वे सभी नस्लें या प्रजातियां शामिल हैं, जो मनुष्य हों या मनुष्य जैसी हों. इनमें मनुष्य, चिम्पैंजी, गोरिल्ला और ओरंगउटान आदि के वंश आते हैं.
कैसे हुआ मानव का विकास (Humans Evolved from Apes)
Monkey to Human Evolution : जब धरती की संरचना और उसके मौसम में तेजी से बदलाव हो रहे थे, तब पेड़-पौधों की कई प्रजातियां खत्म हो रही थीं, तो वहीं कुछ नई प्रजातियों का विकास हो रहा था. कहीं धरती बेहद गर्म हो रही थी, तो कहीं अन्य तरह के बदलाव हो रहे थे. इन बदलावों के चलते जीवों की कई प्रजातियां खत्म होती जा रही थीं, तो वहीं जो जीव या जानवर खुद को इस बदलते वातावरण के अनुसार ढाल रहे थे, या अपना स्थान बदलने की कोशिश कर रहे थे, उनकी अलग-अलग प्रजातियों का विकास हो रहा था, जैसे कि इंसान.
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पेड़ों पर रहने वाली पिरोल पिथिकस प्रजाति (Pierolapithecus), जिसे इंसानों का पूर्वज कहा जाता है, ये पेड़ों पर उछल-कूद करने वाले बन्दर थे. इन्हीं की आगे की पीढ़ियों ने खुद के विकास के लिए पेड़ों से नीचे उतरकर जमीन पर चलना शुरू किया.
आरडी पिथिकस (Ardipithecus Ramidus), जिन्हें मनुष्यों के शुरुआती पूर्वजों में से एक माना जाता है, नई जगह और भोजन की तलाश में पेड़ों से उतरकर जमीन पर आए. कई हजारों सालों तक विकास के क्रम में इनकी शारीरिक बनावट में कई बदलाव आने लगे थे. जैसे- पेड़ों पर न झूलने की वजह से इनके हाथ छोटे होने लगे थे, साथ ही जमीन पर ये अपने दो पैरों पर ठीक से चलने भी लगे थे.
इन्हीं से आगे चलकर होमो हैबिलिस (Homo Habilis) का विकास हुआ, जिन्होंने भोजन के लिए पत्थरों से औजार बनाना शुरू किया था, क्योंकि विकास के क्रम में इनके दिमाग का आकार बढ़ गया था, जिससे ये अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करने लगे थे. फिर और विकास हुआ और आगे चलकर होमो इरेक्टस (Homo Erectus) ने ग्रुप बनाकर शिकार करना सीखा, साथ ही आग की भी खोज की. और फिर आए होमो सेपियन्स (Homo Sapiens) यानी चिंतनशील मनुष्य, और ये ह्यूमन इवोल्यूशन आज भी जारी है.
मेरे सवाल-
तो आज के बंदर या चिम्पैंजी क्यों नहीं बनते इंसान?
Will monkeys evolve into humans? : अब जब सवाल पूछा जाता है कि इस थ्योरी से आज के बंदरों, चिम्पैंजी या गोरिल्ला में क्यों कोई भी बदलाव नहीं आता? जब उस समय के होमिनिड या बन्दर बिना किसी को देखे खुद ही धीरे-धीरे सब कुछ सीख गए, तो आज के बंदर या चिम्पैंजी इंसानों को देखकर भी क्यों कुछ नहीं सीख पाते. तो इसका जवाब कुछ यूं मिला कि, “प्रकृति में किसी प्रजाति का एवोल्यूशन या विकास तब ही होता है, जब उसे विकास की जरूरत होती है.”
“होमिनिड से इंसानों का विकास इसलिए हुआ, क्योंकि उन्होंने पेड़ों से उतरकर जमीन पर चलने का रास्ता चुना था. वे अपना जीवन बचाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने खुद में विकास किया. लेकिन गोरिल्ला या चिम्पैंजी को ऐसा करने की जरूरत महसूस नहीं हुई. वे पेड़ों पर ही खुश हैं, और इसीलिए वे अपना विकास करके इंसान बनने की कोशिश नहीं करते.”
लेकिन अब सवाल ये है कि आज के बंदरों को इंसान बनने की जरूरत महसूस क्यों नहीं हो रही, जब तेजी से जंगल कटते जा रहे हैं, जंगली जानवरों का तेजी से शिकार हो रहा है, जंगलों में आए दिन भयंकर आग लगने की घटनाएं हो रही हैं. यहां तक कि कुछ प्रजातियां तो लुप्तप्राय जानवरों तक की कैटेगरी में शामिल हो चुकी हैं. ऐसी परिस्थितियों में भी आखिर किसी बन्दर, चिम्पैंजी या गोरिल्ला ने ये कैसे सोच लिया कि ‘अभी हमें तो विकास की जरूरत नहीं है, इसलिए अभी हमें नहीं बनना इंसान’?
आज के जंगलों में रहने वाले आदिवासी क्यों नहीं चाहते कोई बदलाव?
दूसरी बात कि अगर आप अफ्रीका के जंगलों में जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि आज भी जंगलों में जो आदिवासी रहते हैं, वे किसी भी तरह के दूसरे वातावरण या माहौल को सहन नहीं कर पाते और न ही वे अपनी स्थिति में बदलाव लाना चाहते हैं. अंडमान निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले जारवा आदिवासियों के लिए कहा जाता है कि ये आदिवासी करीब 50,000 सालों से मुख्य समाज से कटकर जंगलों के बीच रह रहे हैं और बेहद खतरनाक हैं. अगर जंगलों में रहने वाले आदिवासियों को शहरी वातावरण में लाने की कोशिश की जाती है, तो वे ज्यादा दिनों तक जीवित ही नहीं रह पाते.
बंदरों को ‘इंसान’ बनाने की कोशिश में वे क्यों हो जाते हैं और भी कमजोर?
आप भी देखते होंगे कि जिन बंदरों को शहरी वातावरण में लाकर कई सुख-सुविधाएं दी जाती हैं और उन्हें इंसानों की तरह ही जीना सिखाया जाता है, वे इंसानों की तरह बनने के बजाय और भी कमजोर होते चले जाते हैं. तो फिर इस बात पर यकीन कैसे किया जाए कि उस समय जंगलों में रहने वाले बंदर जरूरत के हिसाब से धीरे-धीरे अपने अपने-आप ही सब कुछ सीखते चले गए और उनमें इतना बड़ा अंतर आता गया?
इसी के साथ, आप आज किसी भी तेज दिमाग वाले व्यक्ति से भी पूछ लें कि जब तक उसे किताबों से नहीं बताया गया था या उसे किसी ने बताया नहीं था, तब तक क्या वह यह बात जानता था कि दो पत्थरों को रगड़-रगड़कर आग जलाई जा सकती है? और क्या वह बिना प्रैक्टिस के पत्थरों से आग जलाकर दिखा सकता है?
लेकिन जिन आदिमानवों के दिमाग का विकास भी नहीं हुआ था, उन्होंने अपने-आप ही आग जलाना सीख लिया, यह बात गले से नहीं उतरती.
हजारों सालों से प्रवास कर रहे जानवर-पक्षियों में क्यों नहीं आता कोई बदलाव?
तीसरी बात कि जानवरों और पक्षियों की कई ऐसी प्रजातियां हैं, जो हजारों-लाखों सालों से आज तक अपने स्थान पर आए मौसमी बदलावों की वजह से हर साल ग्रुप बनाकर सैंकड़ों मीलों का सफर तय करके प्रवास करने के लिए दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं, और फिर वापस अपने स्थानों पर लौट जाते हैं.
अब अगर ये बात सही है कि इंसान, बन्दर, चिम्पैंजी आदि के प्राइमरी सोर्स या पूर्वजों ने पृथ्वी पर हो रहे बदलावों के चलते अपना स्थान बदलने का फैसला किया और इसी वजह से उन्होंने पेड़ों से उतरकर जमीन पर दो पैरों पर चलना शुरू किया, ग्रुप बनाकर शिकार आदि करना सीखा, और इसी से उनकी शारीरिक बनावट, बुद्धि और आदतों में अंतर आता गया और वे इंसान बनने की राह पर चल पड़े.
तो फिर इसी थ्योरी से हजारों-लाखों सालों से प्रवास करने वाले उन जानवरों या पक्षियों की शारीरिक बनावट में क्यों कोई भी बदलाव नहीं आया? उन्होंने इतने सालों से क्यों एक भी नई चीज नहीं सीखी? क्यों इन प्रवासी जानवरों-पक्षियों का वर्णन हजारों सालों पुरानी किसी किताब में भी वही मिलता है, जैसे वे आज हैं? यानी जब से मानव सभ्य बना, तब से क्यों किसी भी दूसरे जीव-जंतुओं में कोई विशेष बदलाव देखने को नहीं मिला?
इस बात पर यकीन कर पाना बहुत मुश्किल
आंवला, नींबू, संतरा और आम… इन सभी में विटामिन C होता है. चारों में कई गुण समान हैं, तो क्या नींबू ही कालांतर में जाकर संतरा या आंवला या आम बन गया? या आंवले से ही नींबू या आम का विकास हो गया?
हां! ये बात सही है कि अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग जलवायु, तापमान, प्राकृतिक साधन और रहन-सहन के अंतर के चलते किसी भी प्रजाति की शारीरिक बनावट, उसकी आदतों आदि में बदलाव आ जाता है. जैसे- इंसानों के बीच रहने वाली बिल्ली और जंगलों में रहने वाली बड़ी बिल्ली या चीते, बाघ आदि में बहुत अंतर होता है, और यही बात हम इंसानों में भी है. लेकिन ये अंतर इतना बढ़ जाए कि कोई जानवर ही इंसान बन जाए, या किसी प्रजाति की पूरी तरह पहचान ही बदल जाए, इस बात पर यकीन कर पाना बहुत मुश्किल है.
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