Dharm Vigyan Naitikta Manavta : धर्म, विज्ञान, नास्तिकता और मानवतावाद

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Dharma and Science (Dharm Vigyan Naitikta Manavta)

मंत्रदृष्टा ऋषियों ने नदियों के तट पर वेदों की ऋचाएं लिखीं और कहा –
“हे जीवनदायनी माता! हमारे धर्म, स्वास्थ्य, ज्ञान, धन और जीवन की रक्षा करो.”

ऋषियों ने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि वे जानते थे कि धर्म, स्वास्थ्य, ज्ञान, धन, जीवन आदि सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.

ऋषियों ने नदियों पहाड़ों आदि की उपयोगिता और महत्व को देखते हुए उनके संरक्षण हेतु rules और advice की लंबी चौड़ी श्रृंखला नहीं बनाई, बस एक वाक्य दे दिया कि नदियां हमारी माता हैं, पर्वत हमारे पिता हैं.

उस समय के लोगों ने ऋषियों की इस बात पर मूर्खों की तरह “विज्ञान विज्ञान” करके उनकी खिल्ली नहीं उड़ाई, बल्कि वे ऋषियों के इस फार्मूले को समझ गए कि
हां! चाहे बात विकास की हो या धर्म या आस्था की, लेकिन हमें नदियों-पर्वतों आदि का ध्यान रखना ही है, उसी प्रकार जैसे हम अपने माता पिता का ध्यान रखते हैं.

जैसे बच्चा अपने पिता के कंधे पर चढ़कर दुनिया देखता है, लेकिन अपने पिता को कष्ट नहीं पहुंचाता, उसी प्रकार वह पर्वतों पर चढ़कर दुनिया देखता है और उन्हें भी क्षति नहीं पहुंचाना चाहिए.

लेकिन फिर भी आज यमुना माता के मुख से इतना जहरीला सफेद झाग निकल रहा है, जैसे किसी व्यक्ति को जहर पिला दो, तो उसके मुंह से सफेद झाग निकलता है.मतलब कि इतना जहर दिया है मनुष्य ने अपनी माता को, और बात करता है धर्म की.

दरअसल, ऋषियों ने यह बात उस समय कही थी, जब लोग अपने माता-पिता का सम्मान करते थे, उनका महत्व समझते थे, उनकी चिंता और सेवा करते थे. शायद आज के समय के लोग ऋषियों के इस फार्मूले को इसीलिए नहीं समझ पा रहे क्योंकि अब तो वे अपने जीते-जागते माता पिता का ही महत्व नहीं समझते, तो ….

और शायद इसलिए आज के लोग यही कह सकते हैं कि “भला इसमें क्या विज्ञान है? यह तो अंधविश्वास है”

ठीक है! मत मानिए. लेकिन आज आपके “विज्ञान विज्ञान” वाले कुतर्कों का दुनिया पर अच्छा असर देखने को मिल रहा होता, तो अलग बात होती.

क्या आज आप बिना जतन किए स्वच्छ हवा में सांस ले पा रहे हैं? क्या बिना मशीनों के साफ पानी पी पा रहे हैं? क्यों आज इतने बड़े-बड़े अस्पताल इतना प्रॉफिट कमा रहे हैं? क्यों आज दुनिया में इतने प्रकार के दुख हैं? जबकि आज के लोग तो पहले से बड़े वैज्ञानिक हैं, तो दुखों की संख्या तो कम होनी चाहिए थी, लेकिन फिर भी यह हालत?
हर बात में “विज्ञान विज्ञान” करने से पहले यह तो तय कर लिया करो कि तुम इंसान ही हो, या घर्र घरर्र करने वाली कोई मशीन?

सनातन धर्म में बेवजह की पशुहत्या और मांसाहार को घोर अधर्म बताया गया है. भगवान श्रीकृष्ण ने गायों की सेवा की, क्योंकि वे मानवजाति को गाय का, गाय की सेवा का महत्व समझाना चाहते थे, भगवान विष्णु को “गोद्विजहितकारी” कहा जाता है.

हिन्दुओं में गाय का, उसके दूध का, उसके गोबर और मूत्र का भी महत्व बताया गया है. यानी कि गाय चाहे दूध देने योग्य भी न रह जाए तो भी उसका महत्त्व कम नहीं होता.
और आज उन्हीं श्रीकृष्ण के देश में दूध के उत्पादन के लिए डेयरी इंडस्ट्रीज में क्रूरता की सारी हदें पार हो जाती हैं.

जिन गौतम बुद्ध के नाम पर “विज्ञान विज्ञान” करके हिन्दुओं का, उनके आराध्यों का अपमान आज के नास्तिक लोग बहुत ज्यादा करते हैं, उन्हीं बुद्ध ने (सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय) में क्या कहा है-

कि “पहले संसार में केवल तीन प्रकार के दुख थे- इच्छा, भूख और जरा, लेकिन पशुवध आरंभ हो जाने से दुनिया में दुखों की संख्या बढ़कर 98 हो गई है. और गायों की बलि को देखकर तो देव, पितर, इंद्र, और असुर भी चिल्ला उठे कि हाय! अधर्म हुआ, जो गौवों पर अस्त्र पड़ा. माता-पिता, भाई या दूसरे बंधुओं की तरह गायें भी हमारी परम मित्र हैं, जिनसे औषधियां उत्पन्न होती हैं. ये अन्न, बल, वर्ण तथा सुख देने वाली हैं.”

बुद्ध के नाम पर हर बात का वैज्ञानिक कारण पूछने वाले नवबौद्ध क्या अपने बुद्ध से नहीं पूछेंगे कि उन्होंने गायों को औषधियां उत्पन्न करने वाला क्यों बताया है, और पशुहत्या का मानवजाति के सुख-दुख की संख्याओं से कनेक्शन क्यों बताया है?

न हिन्दू अपने आराध्यों की बातों को समझना चाहता है और न बौद्ध लोग अपने बुद्ध की बातों को, न कोई धर्म को समझना चाहता है और न विज्ञान को, लेकिन “धर्म धर्म” और “विज्ञान विज्ञान” का गाना सब गाना चाहते हैं.

धर्म की अपने अपने मनमुताबिक व्याख्या करने की बजाय, धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझेंगे तो पता चलेगा कि
“धर्म ही विज्ञान है.”

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Written By : Aditi Singhal (working in the media)
(Guest Author)


नास्तिकता और मानवतावाद

आज सोशल मीडिया पर बहुत सारे ऐसे ग्रुप्स चलाए जा रहे हैं कि –
“नास्तिक बनो, इंसान बनो”

और अब रिपोर्ट्स के मुताबिक दुनिया के नास्तिक देशों की वास्तविकता भी देख लीजिए, हालांकि ये सारी रिपोर्ट्स आप लोग पहले से ही न्यूज वगैरह में पढ़े होंगे, फिर भी एक बार और दिखा रही हूं.

सबसे बड़े नास्‍त‍िक देश की बात करें तो पहले नंबर पर आता है चीन. वर्ल्‍ड पॉपुलेशन सर्वे 2023 के मुताबिक, यहां 91 फीसदी आबादी ईश्वर और धर्म को नहीं मानती. यहां इंसान और भगवान के बीच श्रद्धा का कोई सिद्धांत नहीं. गैलप इंटरनेशनल के एक सर्वे में 61 फीसदी चीन‍ियों ने ईश्वर के अस्‍त‍ित्‍व को ही नकार दिया. वहीं, 29 फीसदी ने स्वयं को नास्‍त‍िक बताया.

और चीन दुनिया का सबसे बड़ा मांसाहारी देश है और मांस का सबसे बड़ा बाजार भी.
यानी कि जितना बड़ा नास्तिक, उतनी ही अधिक जीवहत्या, उतनी ही अधिक क्रूरता.

90 के दशक की शुरुआत से चीन में मांस की खपत लगातार बढ़ी है. 2021 में, चीनियों ने लगभग 100 मिलियन टन मांस खाया, जो दुनिया की कुल मांस खपत का 27 प्रतिशत था.

दक्षिण और पूर्वी चीन में कुत्ते, बिल्ली और सांप के व्यंजन काफी चाव से खाए जाते हैं. जबकि अन्य प्रांतों में सुअर और गाय का मांस तो दाल-सब्जी की तरह भोजन में शामिल होना एक सामान्य बात है. चीनियों की पहली पसंद में कुत्ते, बिल्ली, सांप, बिच्छू, केकड़ा, घेंघा, मगरमच्छ आदि हैं. इसके अलावा यहां तो आवारा कुत्तों के अलावा पालतू कुत्तों की भी चोरियां खूब होती है. बात यहीं खत्म नहीं होती. वियतनाम, थाईलैंड आदि देशों की तरह चीन में भी कुत्तों की स्मलिंग होती है. और यदि आप चीन में श्रमिकों और दासों की हालत के बारे में जानेंगे तो आपकी रूह कांप जाएगी.

तो बताइए कि कहां है मानवता और इंसानियत?

जापान दूसरे नंबर पर आता है. यहां के 86 फीसदी लोग क‍िसी धर्म और ईश्वर को नहीं मानते और खुद को नास्‍त‍िक बताते हैं और लोगों का कहना है क‍ि ईश्वर, गॉड या भगवान जैसी कोई चीज नहीं होती.

और आप कई रिपोर्ट्स में पढ़ सकते हैं कि कैसे जापान मांस का एक बड़ा उपभोक्ता बन गया, जैसे जैसे वह नास्तिक बना. मांस के प्रति भूख विकसित करने वाला पहला पूर्वी एशियाई देश, और जो अपेक्षाकृत कम समय में लगभग शाकाहारी से मांस-प्रेमी बनने की प्रक्रिया की झलक पेश कर सकता है, वह जापान है.

और विकसित देश जापान की यह भी हालत देखिए कि जापान के बारे में कौन-कौन सी वर्ल्ड न्यूज बन चुकी हैं –

“जापान में बुजुर्ग अक्सर अकेले रहते हैं और मर जाते हैं.”

“खुदकुशी नहीं Kodokushi का शिकार हो रहे इस देश के बुजुर्ग. इस समस्या का सबसे दुखद पहलू ये है कि मरने के बाद इनका अंतिम संस्कार भी नहीं होता है और कई हफ्तों तक इनकी लाश सड़ती रहती है.”

“जापान में बड़े-बुजुर्ग छोटे-मोटे अपराध कर रहे हैं ताकि वे निगाह में आएं और रहने को ठिकाना मिले. जापान में बुजुर्ग महिलाएं अकेले रहने की बजाय जेल में रहना पसंद करती हैं.”

“जापान में आत्महत्या की दर इतनी अधिक क्यों है?”

“हर 8 दिन में 1 बुजुर्ग की हत्या: जापान में महंगाई की वजह से माता-पिता की हत्या क्यों?”

तो बताइए कि कहां है मानवता और इंसानियत?

कुछ विज्ञानवादी लोग भारत में भेदभाव के नाम पर दिनरात सनातन धर्म के खिलाफ झूठ फैलाते रहते हैं, स्त्रियों को लेकर इंद्र देवता का मजाक उड़ाते हैं, लेकिन थाइलैंड जैसे देशों की मानवता के विषय में चूं भी नहीं करेंगे, जिसने (मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक) सेक्स पर्यटन स्थल के रूप में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है, साथ ही थाईलैंड में मांसाहार का प्रतिशत भी देख लीजिए.

तो बताइए कि कहां है मानवतावाद?

मतलब कि आधुनिक विज्ञान की चकाचौंध ही विकास कहलाती है, भले ही इंसान जानवर से भी अधिक बद्तर बन जाए?

सच तो यह है कि नास्तिकता का संबंध मानवता से तो दूर-दूर तक है ही नहीं, क्योंकि नास्तिकता की मुख्य रूप से दो वजहें हैं-
1. अज्ञानता और
2. स्वार्थ

Written By : Aditi Singhal (working in the media)
(Guest Author)



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