वे राजा जो भव्य मंदिर बनवाकर मनाते थे जीत का जश्न, भारत का ये अद्भुत मंदिर भी उन्हीं की देन

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बृहदेश्वर मंदिर या राजराजेश्वर मंदिर

Brihadeshwara Temple Tanjore (बृहदेश्वर मंदिर या राजराजेश्वर मंदिर, तंजावुर)

अन्य नाम राजराजेश्वर मंदिर, पेरुवुटैयार कोविल

तमिलनाडु के तंजौर (Tanjore, Tamil Nadu) में स्थित भगवान शिव को समर्पित मंदिर.

निर्माण- 11वीं सदी के आरम्भ में (1003-1010 ई. के बीच)

चोल शासक राजराज प्रथम ने बनवाया था.

मंदिर की मुख्य विशेषताएं-

♦ भव्य शिवलिंग (गर्भग्रह में स्थित शिवलिंग देश के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है, ऊंचाई- 13 फीट)

♦ गोपुरम (दक्षिण भारत के मंदिरों की चहरदीवारों में लगे द्वार) के अंदर एक चौकोर मंडप के चबूतरे पर भगवान नन्दी जी विराजमान

♦ नन्दी जी की प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी और 3.7 मीटर ऊंची (पूरे भारत में एक ही पत्थर से बनी नन्दी जी की ये दूसरी सबसे विशाल प्रतिमा)

♦ पूरी तरह से ग्रेनाइट से नि‍र्मि‍त मंदिर (अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो ग्रेनाइट का बना हुआ है)

♦ सिर्फ पत्थरों पर पत्थर रख कर बनाया गया मंदिर (बनाने में 1.3 लाख टन पत्थरों का इस्तेमाल, चूने या अन्य किसी पदार्थ से जुड़ाई नहीं की गई)

♦ मंदिर परिसर के लगभग 60 किलीमीटर के दायरे में कोई पहाड़ या पत्थर का स्रोत नहीं है

♦ पत्थरों को यहां तक लाने के लिए 3,000 हाथियों का इस्तेमाल किया गया.

♦ 13 मंजिला (ऊंचाई- 216 फीट या 66 मीटर)

♦ परिसर का मुख्य द्वार (गोपुरम) लगभग 30 मीटर ऊंचा

♦ शिखर पर स्वर्णकलश (जिस पत्थर पर ये कलश स्थित है, उसका भार करीब 80 टन है, एक ही पत्थर को काट कर बनाया गया)

♦ मंदिर के गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती

♦ दीवारों और मंडपों पर सभी जगह मूर्तियां, चित्र और तमिल और संस्कृत के अभिलेख खुदे हुए हैं

♦ 1987 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल

♦ विश्व के विशालतम संरचनाओं में शामिल

♦ संस्कृत और तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण.

बृहदेश्वर या राजराजेश्वर मंदिर के निर्माणकर्ता राजराज प्रथम (Rajaraja I)

राजराज प्रथम दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य के महान चोल सम्राट (Chola Empire) थे, जिन्होंने 985 से 1014 तक शासन किया. उनके शासनकाल में चोलों ने दक्षिण में श्रीलंका और उत्तर में कलिंग तक अपना साम्राज्य फैलाया. राजराज चोल ने कई नौसैनिक अभियान भी चलाए और मालाबार तट, मालदीव और श्रीलंका को अपने अधिकार में लिया. वह चोलों की महत्ता के वास्तविक संस्थापक थे और उन्हीं के समय से चोल साम्राज्यवाद के युग की शुरुआत हुई.

राजाराज प्रथम ने चोल मार्तण्ड, चोल नारायण, चोलेन्द्र सिंह, राजाश्रय, राज मार्तण्ड, रवि कुल माणिक्य, जगन्नाथ, जयगोंड, अरिमौली वर्मन, शशिपादशेखर आदि उपाधियां धारण कीं. तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर के निर्माण के साथ-साथ उन्होंने सन 1000 में भू-सर्वेक्षण की भीषण परियोजना (Massive Earth Survey) शुरू कराई, जिससे देश को वलनाडु यूनिट्स में फिर से संगठित करने में मदद मिली.

चोल राजवंश (Chola Dynasty)

इस वंश के संस्थापक विजयालय (850-871 ई.) थे. उन्होंने मुत्तयारों से तंजौर जीतकर नरकेसरी की उपाधि धारण की और वहां निःशुम्भसूदनी (मां दुर्गा) का मंदिर बनवाया था. विजयालय (Vijayalaya) के बाद आदित्य प्रथम, परांतक प्रथम, राजराजा प्रथम, राजेंद्र प्रथम, राजधिराज प्रथम, कुलोत्तुंग प्रथम, विक्रम चोल, कुलोत्तुंग द्वित्तीय, राजराजा द्वितीय, राजाधिराज द्वितीय, कुलोत्तुंग तृतीय, राजराजा, तृतीय, राजेंद्र तृतीय ने शासन किया. मंदिरों के साथ-साथ चोल राजाओं ने सिंचाई की सुविधा के लिए कुएं और तालाब खुदवाए और नदियों के प्रवाह को रोककर पत्थर के बांध से घिरे जलाशय भी बनवाए.

मंदिर बनवाकर मनाते थे जीत का उत्सव

तमिल चोल शासकों ने 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के बीच दक्षिण भारत (South India) और आसपास के अन्य देशों में एक अत्यंत शक्तिशाली साम्राज्य का निर्माण किया. संगमयुगीन (दक्षिण भारत के प्राचीन इतिहास का एक कालखंड) मणिमेक्लै में चोलों को सूर्यवंशी कहा गया है. ये भी माना जाता है कि चोल वंश आज का चंदेल राजपूत वंश था. कहते हैं कि चोल शासक खासतौर पर राजराजा प्रथम और राजेंद्र प्रथम युद्ध में हुई जीत का जश्न भगवान शिव या भगवान विष्णु के मंदिर बनवाकर मनाते थे.

दक्षिण भारत के इतिहास का चरम बिंदु

चोल काल दक्षिण भारत के इतिहास का चरम बिंदु था, जब स्थापत्य कला समेत संस्कृति के अलग-अलग पहलुओं का बहुमुखी विकास हुआ. चोल शासकों ने द्रविड़ शैली के तहत ईंटों की जगह पत्थरों और शिलाओं का इस्तेमाल कर ऐसे मंदिर बनवाए, जिनका अनुसरण पड़ोसी राज्यों और अन्य देशों तक ने किया. चोल इतिहास के प्रथम चरण यानी कि विजयालय से लेकर उत्तम चोल में तिरुकट्टलाई का सुंदेश्वर मंदिर, कन्नूर का बालसुब्रह्मण्यम मंदिर, नरतमालै का विजयालय मंदिर, कुंभकोणम का नागेश्वर मंदिर और कदम्बर-मलाई मंदिर आदि का निर्माण हुआ.

वास्तुकला के साथ मूर्तिकला और चित्रकला का बेजोड़ संगम

महान चोलों यानी कि राजराज-से कुलोतुंग-III तक के दौर में तंजौर में राजाराज चोल प्रथम की तरफ से बनवाया गया बृहदेश्वर मंदिर और राजेंद्र प्रथम की तरफ से बनवाया गया गंगईकोंड चोलपुरम का शिव मंदिर प्रमुख हैं. इन दोनों मंदिरों के अलावा दारासुरम का ऐरावतेश्वर और त्रिभुवनम का कम्पहरेश्वर मंदिर भी बेहद सुंदर और भव्य हैं. चोल स्थापत्य कला में वास्तुकला के साथ-साथ मूर्तिकला और चित्रकला का भी बेजोड़ संगम है. जैसे- राजेश्वर मंदिर में श्री दुर्गा, श्री लक्ष्मी, भगवान शिव, अर्द्धनारीश्वर जैसी मूर्तियों के साथ-साथ राजा-रानियों की भी मूर्तियां हैं. चोलकालीन मूर्तियों में नटराज (Nataraja) की कांस्य प्रतिमा सबसे उत्कृष्ट कृति है. इसे चोल कला की सांस्कृतिक कसौटी कहा जाता है.

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