Chennakeshava Temple Somanathapura
भारत के खूबसूरत राज्य कर्नाटक के मैसूर जिले में स्थित छोटा सा नगर सोमनाथपुरा (Somanathpura) चेन्नाकेशव मंदिर (Chennakeshava Temple) के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है. चेन्नाकेशव या केशव मंदिर देश के बहुत प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और इसे सोमनाथपुर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर अभी भी होयसला वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक के रूप में भव्य रूप से खड़ा है. पवित्र कावेरी नदी सोमनाथपुरा से होकर गुजरती है. मंदिर के चारों ओर फैली हरियाली शांत वातावरण में प्रार्थना को आपके दिल से गहराई तक ले जाती है.
कर्नाटक के गौरवशाली इतिहास को केशव मंदिर (Keshav Temple, Somanathpura, Karnataka) में संजोया गया है. जैसे ही आप केशव मंदिर के बरामदे में अपना कदम रखेंगे, आप आज की आधुनिक दुनिया को भूल ही बैठेंगे. उत्तम नक्काशी और अच्छी तरह से परिभाषित मूर्तियां आपको उस समय में ले जाती हैं, जब दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला अपने चरम पर थी. भारतीय वास्तुकला के सुनहरे समय में वापस आने की इच्छा रखने वालों को केशव मंदिर जरूर जाना चाहिए.
केशव मंदिर होयसल वास्तुकला का एक प्रतीक है. यह होयसल शासन के सबसे अच्छी तरह से संरक्षित मंदिरों में से एक है. मंदिर के बाहर एक शिलालेख से केशव मंदिर के निर्माण के समय के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है. उसके मुताबिक, चेन्नाकेशव मंदिर का निर्माण 1254-1291 ईस्वी के दौरान किया गया था.
केशव मंदिर का निर्माण होयसल के राजा नरसिंह III (Narasimha III, Hoysala) के जनरल सोमनाथ द्वारा किया गया था. इसीलिए इस मंदिर को ‘सोमनाथ मंदिर’ (Somnath Temple) के नाम से भी जाना जाता है. यह भी माना जाता है कि यह केशव मंदिर होयसल वंश द्वारा बनाया गया आखिरी प्रमुख मंदिर था.
होयसल साम्राज्य (Hoysala Empire) दक्षिण भारत के सबसे प्रमुख राजवंशों में से एक था. उनका राज्य कर्नाटक से लेकर तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश तक फैला था. होयसल राजवंश के शासनकाल के दौरान दक्षिण भारतीय कला और वास्तुकला का काफी विकास हुआ. दक्षिण भारतीय इतिहास का होयसल काल लगभग 1000 ईस्वी सन् से शुरू हुआ और 1346 ईस्वी तक जारी रहा. इस अवधि में, उन्होंने 958 केंद्रों में लगभग 1,500 मंदिरों का निर्माण किया.
चेन्नाकेशव मंदिर की अद्भुत विशेषताएं-
♦ अन्य होयसल मंदिर की तरह चेन्नाकेशव मंदिर भी एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है. 16 बिंदु तारे के आकार में बने इस मंदिर में तीन मंदिरों को समरूपता में बनाया गया है. इस लेआउट का इस्तेमाल ‘प्रदक्षिणा’ के लिए किया जाता है. और खराद से बने खंभे तो होयसल मंदिरों की विशेषता हैं. केशव मंदिर की चट्टानी खिड़कियां अद्भुत हैं. ये रॉक कट खिड़कियां मंदिर में पर्याप्त मात्रा में सूरज की रोशनी प्रदान करती हैं.
♦ केशव मंदिर की अंदर और बाहरी, दोनों ही दीवारों पर जो बेहतरीन और बहुत ही बारीक नक्काशी है, उसे देखकर तो कोई कुछ कह ही नहीं पाता. बस आश्चर्य से देखता रह जाता है. दीवारों को देवताओं की नक्काशी और मूर्तियों के साथ-साथ रामायण, महाभारत की घटनाओं और भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की कहानियों आदि जैसे पवित्र उदाहरणों से सजाया गया है.
♦ सभी घटनाओं को एक दक्षिणावर्त दिशा में यानी ‘प्रदक्षिणा’ की दिशा में तराशा गया है. दीवारों पर देवी-देवताओं के साथ-साथ उनके वाहन भी दर्शाए गए हैं. सबसे निचले हिस्से में हाथियों की कतार यह दर्शाती है कि मंदिर का वजन हाथियों के ऊपर है.
♦ मंदिर की छत और दरवाजे अद्भुत हैं. केशव मंदिर की छतें सोलह अलग-अलग प्रकार की होयसल कला को दर्शाती हैं और किसी रत्नों के टुकड़ों से कम नहीं हैं. केशव मंदिर की बाहरी दीवार पर नरसिंह की एक मूर्ति है. शानदार शिकारा छवियों से घिरी हुईं केशव, वेणुगोपाल और जनार्दन की छवियां गर्भगृह की छत को सुशोभित करती हैं.
♦ यह त्रिकूट मंदिर है, यानी तीन मंदिरों वाला मंदिर. मंदिर के उत्तर, दक्षिण और पश्चिम में तीन गर्भगृह हैं. मंदिर का केंद्रीय गर्भगृह भगवान केशव को समर्पित है, दक्षिणी गर्भगृह में भगवान वेणुगोपाल की और उत्तरी गर्भगृह में भगवान जनार्दन की मूर्ति है.
♦ पहले तीनों मंदिरों में भगवान केशव, जनार्दन और वेणुगोपाल की मूर्तियां थीं. लेकिन वर्तमान में केवल दो ही मूर्तियां मंदिर में हैं और मुख्य भगवान केशव की मूर्ति गायब है. हालांकि, बहुत से लोग अभी भी यहां भगवान की पूजा-अर्चना करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए ही आते हैं.
♦ केशव मंदिर में भगवान विष्णु, भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी और सरस्वती की बेहतरीन मूर्तियां हैं. मंदिर के भीतर रति, मनमाथा और महिषासुर जैसी पौराणिक आकृतियों और राक्षसों के चित्र भी हैं. मंदिर में सात फीट लंबे पत्थर के स्लैब में केशव मंदिर के निर्माण और रखरखाव से संबंधित कन्नड़ भाषा में शिलालेखों को इकठ्ठा किया गया है.
♦ इस मंदिर परिसर के भीतर एक लाल पोस्ट बॉक्स है, जो एक बड़े पेड़ से जुड़ा हुआ है. अगर कोई व्यक्ति इस बॉक्स में पोस्टकार्ड पोस्ट करता है, तो उस पर एक अद्वितीय सोमनाथपुरा स्टैंप की मुहर लगा दी जाएगी, जो पूरी दुनिया में अपने आप में अनूठा है.
♦ केशव मंदिर के बारे में एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि आप मंदिर में दिखने वाली मूर्तियों के मूर्तिकारों के नाम भी जान सकते हैं, क्योंकि मूर्तियों के आसनों पर मूर्तिकारों के नाम भी उकेरे गए हैं, जैसे कि मल्लिथम्मा, मसानाथम्मा, चमेया और भामेय. इससे पता चलता है कि भारतीय सनातन संस्कृति में कलाकारों, कारीगरों आदि का कितना सम्मान रहा है.
चेन्नाकेशव मंदिर कब जाना चाहिए?
यह मंदिर सुबह 8.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक खुला रहता है. इस मंदिर के दर्शन करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के महीने का है. चूंकि मुख्य देवता की मूर्ति फिलहाल मंदिर में नहीं है, इसलिए इस मंदिर में फिलहाल कोई नियमित पूजा नहीं होती है, और इसलिए यहां भोजन या प्रसाद वितरण की व्यवस्था नहीं है. वर्तमान में इस मंदिर परिसर में त्योहार भी नहीं मनाए जाते हैं.
हालांकि बहुत से लोगों के लिए आज भी यह पूजनीय स्थान ही है, लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए अब यह केवल दर्शनीय स्थल है, लेकिन फिर भी मंदिर में जूते पहनकर घूमने पर सख्त मनाही है. इसलिए गर्मियों के दौरान इस मंदिर में सुबह के समय जाना अच्छा रहता है. अगर आप बाहर से आए हैं, तो सर्दियों के मौसम में या मानसून के ठीक बाद इस मंदिर में जाएं. मानसून के ठीक बाद यहां आने पर शिवानासमुद्र झरने की मनमोहक सुंदरता को भी देखा जा सकता है.
सोमनाथपुरा के चेन्नाकेशव मंदिर कैसे जाएं-
(How to reach Chennakeshava Temple)-
चेन्नाकेशव मंदिर सोमनाथपुरा शहर में स्थित है, जो मैसूर शहर से लगभग 35 किमी और बैंगलोर से करीब 137 किमी दूर है. केशव मंदिर मैसूर के जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर है. बैंगलोर, मैसूर और श्रीरंगपटना से सोमनाथपुरा के लिए कई बसें हैं.
मैसूर और सोमनाथपुरा के बीच कई प्राइवेट बसें चलती हैं, लेकिन अगर आप अपनी स्पीड से यात्रा करना चाहते हैं, तो मैसूर से चेन्नाकेशव मंदिर के लिए कैब भी किराए पर ली जा सकती है. प्राइवेट गाड़ियों से इस मंदिर के आसपास की भी खूबसूरत जगहों को देखा जा सकता है. मैसूर से इस मंदिर तक पहुंचने में करीब 1 घंटे का समय लगता है.
सोमनाथपुरा के चेन्नाकेशव मंदिर के आसपास के कुछ दर्शनीय स्थल-
चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर (Chennakeshava Temple, Belur)- यह मंदिर भी होयसल वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है और केशव मंदिर के पास ही स्थित है. तारे के आकार के इस बेहद खूबसूरत मंदिर को बनाने में लगभग 103 साल लग गए थे.
जानिए- बेलूर के चेन्नाकेशव मंदिर के बारे में विस्तार से
तालकाडु (Talakadu Temple)- यहां वैद्यनाथेश्वर के रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है. सोमनाथपुरा से 25 किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान कावेरी नदी के तट पर स्थित है. यह स्थान रेत के टीलों के लिए भी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि कई मंदिर अभी भी रेत के टीलों के नीचे दबे हुए हैं.
यहां पाए जाने वाले कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में पटेलेश्वर मंदिर, विद्याेश्वर मंदिर, मारुलेश्वर, कृतिनारायण, गौरीशंकर और आनंदेश्वर मंदिर प्रमुख हैं. पटेलेश्वर मंदिर के शिवलिंग का रंग बदलता रहता है. सुबह इनका रंग लाल, दोपहर में काला और शाम को सफेद हो जाता है.
श्री रुद्र देवस्थान, विजयपुरा (Sri Rudra Devasthanam, Vijayapura)- भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भक्तों की अच्छी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जाना जाता है. हर साल बहुत से तीर्थयात्री मोक्ष, धन, रोगों का इलाज और ज्ञान प्राप्त करने के लिए इस मंदिर में आते हैं.
तिरुमाकुदालू नारासिपुरा (Tirumakudal Narsipur)- मैसूर का यह स्थान दक्षिण भारत में कुंभमेला के लिए प्रसिद्ध है. यहां स्थित मंदिर में भगवान शिव की पूजा सोमेश्वर और मार्कंडेश्वर के रूप में की जाती है.
नंजनागुडु (Nanjangud Temple)- कपिला नदी के तट पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. यह मंदिर ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. कहा जाता है कि परशुराम ने यहां भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी.
रंगनाथ मंदिर, श्रीरंगापटना (Ranganatha Temple Srirangapatna)- मैसूर जिले में स्थित इस मंदिर का निर्माण गंग वंश द्वारा किया गया था. यह मंदिर होयसल और विजयनगर मंदिर की मिश्रित स्थापत्य शैली को प्रदर्शित करता है.
श्री वरदराज मंदिर, हम्मीगे (Sri Varadaraja Temple, Hammigen)- भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर का एक समृद्ध इतिहास है. इस स्थान पर बहुत सारे ऋषियों और सिद्धपुरुषों ने तपस्या की है.
विश्वनाथ मंदिर, कृष्णपुरा (Vishwanatha Temple, Krishnapura)- यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. इस जगह पर कृष्णपुर मठ भी है, जो प्रसिद्ध द्वैत दार्शनिकों में से एक श्री माधवाचार्य द्वारा स्थापित आठ मठों में से एक है.
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