Maa Lakshmi in Hindi
संसार में सुख संपत्ति की प्राप्ति के लिए मनुष्य, देवता या राक्षस आदि जिनकी उपासना करते रहते हैं, वे साक्षात देवी भगवती महालक्ष्मी जी (Devi Lakshmi) ही हैं, जो दरिद्रों के दुख दूर करती हैं और अपनी कृपा से भक्तों को धन-वैभव, ऐश्वर्य और सद्गुणों से युक्त बना देती हैं. मां लक्ष्मीजी को धन की देवी कहा जाता है. इनकी भक्ति करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है.
देवता हों या राक्षस, सभी महालक्ष्मी जी के आगे सिर झुकाते हैं और उनकी कृपा दृष्टि अपने पर बनाए रखने की प्रार्थना करते रहते हैं. दरिद्र की दरिद्रता दूर करने वाली, भूखे को अन्न देने वाली और संसार में विषय-भोगों को प्रदान करने वाली माता लक्ष्मी की महिमा अनंत है.
कौन हैं माता लक्ष्मी (Maa Lakshmi)
माता लक्ष्मी भगवान श्री विष्णु जी (Shri Vishnu) की पत्नी हैं और पार्वती, सरस्वती जी के साथ त्रिदेवियों में से एक हैं. यही वो महामाया हैं, जो सारे जगत को धारण भी करती हैं और एक माता की तरह सभी का पालन-पोषण भी करती हैं. यही वो महाशक्ति हैं जो प्राणियों की दरिद्रता और दुखों से रक्षा करती हैं, ब्रह्मांड की समस्त शक्तियों और सिद्धियों की स्वामिनी हैं. महालक्ष्मी जी शांति, समृद्धि, धनसंपदा की देवी मानी जाती हैं, यानी जहां लक्ष्मी जी का वास होता है, वहां केवल धन-वैभव ही नहीं, सुख-शांति और सद्गुणों का भी वास होता है.
सुख-संपत्ति और ऐश्वर्य देने वाली महालक्ष्मी का पूजन सभी के लिए अनिवार्य है. समाज और राष्ट्र की शक्ति का आधार धन-संपदा ही है और इन सभी संपदाओं की अधिष्ठात्री महालक्ष्मी जी हैं और उन्हें प्रसन्न किए बिना कोई भी समाज या देश सुखी नहीं रह सकता.
महालक्ष्मी मंत्र : महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि। हरिप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे।।
‘श्री’ का अर्थ स्वच्छता और सुव्यवस्था से भी लगाया गया है. पुराणों के अनुसार, गायत्री की एक किरण लक्ष्मी जी भी हैं, यानी गायत्री जी की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक वरदान लक्ष्मी जी भी हैं. मार्कंडेय पुराण के अनुसार, समस्त सृष्टि की मूलभूत आदिशक्ति महालक्ष्मी जी हैं. वह सत, रज और तम तीनों गुणों का समावेश हैं. वह संसार में लक्ष्य और अलक्ष्य दोनों ही रूपों में व्याप्त हैं.
लक्ष्य के रूप में यह सारा जगत उन्हीं का स्वरूप है और अध्यक्ष के रूप में समस्त सृष्टि का मूल कारण वही हैं. उन्हीं से अलग-अलग शक्तियां प्रकट हुई हैं. दीपावली का त्यौहार आदिशक्ति के इसी स्वरूप की उपासना का पर्व है. संसार का भरण-पोषण करने वाली वैष्णवी शक्ति को महालक्ष्मी कहा गया है और दीपावली के पुण्य अवसर पर इन्हीं आदिशक्ति की पूजा की जाती है.
महालक्ष्मी जी का स्वरूप (Maa Lakshmi ji ka Roop)
महालक्ष्मी जी की अनेक रूप हैं, जिनमें से उनके आठ रूप प्रसिद्ध हैं, जिन्हें ‘अष्टलक्ष्मी’ कहा जाता है- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, गजलक्ष्मी. मां लक्ष्मी जी कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं और दो हाथी उनका अभिषेक करते हैं. कमल कोमलता और सुंदरता का प्रतीक है. लक्ष्मी जी के एक मुख और चार हाथ हैं, जो कि चार प्रकृतियों- दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता और व्यवस्था शक्ति के प्रतीक हैं. उनके दो हाथों में भी कमल सुशोभित होते हैं और लक्ष्मी जी का एक नाम कमला भी है.
इसी तरह उनका जलाभिषेक करने वाले दोनों हाथियों को ‘परिश्रम’ और ‘मनोयोग’ कहा जाता है. यह युग्म जहां भी रहता है, वहां वैभव और सहयोग की कमी नहीं रहती और सदैव संपन्नता और सफलता की वर्षा होती रहती है. माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ के आसन पर भी विराजमान रहती हैं. गरुड़ को शक्ति और गति का प्रतीक माना जाता है. वहीं, माता लक्ष्मी जी का एक वाहन उल्लू भी है, जो रात में या अंधेरे में भी देखने की क्षमता और निर्भीकता (निडरता) का प्रतीक है.
महालक्ष्मी जी का जन्म
(Maa Lakshmi ji ka Janm)
भारत के प्राचीन ग्रंथों में माता लक्ष्मी जी के जन्म के विषय में कई तथ्य बताए गए हैं, लेकिन इन सभी कथाओं और तथ्यों में समुद्र-मंथन (Samudra Manthan) की कथा का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है. विष्णु पुराण में समुद्र मंथन की कथा को विस्तार से बताया गया है, जिसके अनुसार माता लक्ष्मी जी समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक हैं और इसीलिए लक्ष्मी जी को ‘सागर नंदिनी’ (समुद्र की पुत्री) कहा जाता है.
एक समय सभी देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन करके उसमें छिपी शक्तियों को बाहर निकालने की योजना बनाई. इस समुद्र मंथन के लिए देवताओं का नेतृत्व राजा इंद्र और राक्षसों का नेतृत्व राजा बलि कर रहे थे. इसके लिए वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया. समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले थे- कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा घोड़ा, एरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, देवी महालक्ष्मी, वारुणी देवी, चंद्रमा, पारिजात वृक्ष, पंचजन्य शंख और अमृत कलश को लेकर भगवान धनवंतरी.
जब समुद्र से प्रकट हुईं महालक्ष्मी जी
समुद्र से महालक्ष्मी जी के प्रकट होने से चारों दिशाओं में ऐसा प्रकाश फैला कि समुद्र मंथन का कार्य कुछ समय के लिए रुक गया था. महालक्ष्मी जी की कांति, भव्य स्वरूप और अद्भुत छटा को देखकर देवता हों या असुर, सभी अपनी सुधबुध खो बैठे. माता लक्ष्मी जी को देखकर सभी समझ गए कि समुद्र मंथन से प्रकट होने वाली ये सबसे बड़ी शक्ति हैं. हर कोई उनकी कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए उन्हें प्रसन्न करने में जुट गया.
क्षीरसागर से प्रकट होने के बाद महालक्ष्मी जी का किस प्रकार स्वागत हुआ, इसका भी वर्णन विष्णु पुराण में है. सागर से प्रकट होते ही सभी ऋषि-मुनि, देवता और राक्षस उनकी स्तुति करने लगे. सभी देवताओं ने उन्हें सुंदर आसन पर विराजमान किया. सभी ऋषि-मुनियों ने पूजा सामग्री इकट्ठा कर पूरे विधि-विधान से भगवती महालक्ष्मी का अभिषेक किया और उनकी पूजा-आराधना की. चारों दिशाओं में मृदंग, नगाड़े, शंख, वीणा आदि बज रहे थे और चारों तरफ खुशियां छाई हुई थीं.
माता लक्ष्मी जी ने जैसे ही भगवान विष्णु जी को देखा, उन्होंने अपने हाथों में पकड़ी हुई कमलों की माला उनके गले में डाल दी. ये देखते ही सभी देवता बहुत प्रसन्न हुए. उसके बाद पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी का विवाह संपन्न कराया गया और उसके बाद समुद्र मंथन का कार्य फिर शुरू हुआ. आदिशक्ति महालक्ष्मी जी अजन्मा हैं और भगवान विष्णु जी की पत्नी के रूप में सदा से ही हैं. समुद्र मंथन के दौरान सागर से प्रकट होना उनकी केवल एक लीला है.
भगवान विष्णु की पूजा से प्रसन्न होती हैं मां लक्ष्मी
(Bhagwan Vishnu aur Mata Lakshmi)
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी एक-दूसरे के पूरक हैं. भगवान विष्णु जो भी संकल्प लेते हैं, उन सभी संकल्पों को साकार माता लक्ष्मी जी करती हैं. माता लक्ष्मी सागर में विराजमान होकर पति-पत्नी के आदर्श रूप को प्रकट करती हुईं विष्णु जी के चरण दबाती रहती हैं. जब-जब भगवान विष्णु पापों का नाश करने के लिए धरती पर अवतार लेते हैं, तब माता लक्ष्मी जी उनकी सहभागिनी बनकर ही अवतार लेती हैं. माता सीता और माता रुक्मिणी, देवी लक्ष्मी जी के ही अवतार हैं.
कहा जाता है कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा एक साथ ही फलदाई होती है. अगर माता लक्ष्मी जी की पूजा अकेले की जाए तो वह निष्फल मानी जाती है, क्योंकि माता लक्ष्मी अपने भक्तों पर तब और भी ज्यादा प्रसन्न होती हैं, जब उनसे पहले उनके पति यानी भगवान श्री विष्णु जी की पूजा-आराधना की जाए. भक्त ध्रुव ने जब भगवान विष्णु जी की उपासना शुरू की, तो माता लक्ष्मी जी की कृपा उन्हें अपने आप ही प्राप्त हो गई. लक्ष्मी जी ने ध्रुव को अपना पुत्र मानकर उस पर अपनी सारी ममता लुटा दी. यानी जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान विष्णु की उपासना करता है, उसे लक्ष्मी जी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है.
‘लक्ष्मी के आगमन’ का क्या है अर्थ (Lakshmi ji ka swagat)
मां लक्ष्मीजी को धन की देवी कहा जाता है. इनकी भक्ति करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. केवल अधिक मात्रा में धन इकट्ठा कर लेने से ही व्यक्ति सौभाग्यशाली नहीं कहा जाता. सद्गुण और सद्बुद्धि के बिना वह धन नशे के समान होता है, जो किसी भी व्यक्ति को विलासी, दुर्व्यसनी और अहंकारी बना देता है, या सद्बुद्धि के बिना कोई भी धन ज्यादा समय तक टिक नहीं सकता. जिन लोगों में कोई संस्कार नहीं होते या दूसरों का बुरा चाहने या करने वाले लोगों को धन हमेशा मूर्ख ही बनाता है. इसीलिए धन के साथ सद्गुण और सद्बुद्धि का होना ही महालक्ष्मी जी की कृपा माना गया है.
लक्ष्मी जी अपने साथ केवल धन-वैभव या संपत्ति और ऐश्वर्य ही लेकर नहीं, बल्कि आरोग्य, सुख-शान्ति, यश, सौंदर्य और सद्गुण भी लेकर आती हैं. जिस व्यक्ति पर भी महालक्ष्मी जी की कृपा होती है, उसके सभी दुख समाप्त हो जाते हैं और वह व्यक्ति धन-वैभव, आरोग्य और सुख-शांति के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है. उस व्यक्ति के घर में दरिद्रता, कुरूपता और रोग आदि टिक नहीं सकते.
खुद को और आसपास को बनाए रखें स्वच्छ
माता लक्ष्मी सौंदर्य, उल्लास और प्रसन्नता की देवी हैं. वह जहां भी रहती हैं, वहां का वातावरण सदैव प्रसन्न और हंसने-हंसाने वाला रहता है. माता लक्ष्मी जी को सुंदरता और स्वच्छता बेहद प्रिय है. भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र सुदामा जी की पत्नी के अच्छे कर्मों से प्रसन्न होकर माता लक्ष्मी ने उन्हें सौंदर्य का ही वरदान दिया था और उन्हें सुंदरता का महत्व भी बताया था.
सुंदरता से मतलब नैन-नक्श की खूबसूरती से नहीं, बल्कि अपने आप को और अपने आसपास के वातावरण को सुंदर, स्वच्छ और सुगंधित बनाए रखने के प्रयास से है. गंदगी या अस्वच्छता भी दरिद्रता का ही प्रतीक है. झाड़ू इसी दरिद्रता (गंदगी) को घर से बाहर निकालने का काम करती है, इसीलिए झाड़ू को कभी पैर नहीं लगाया जाता है.
लक्ष्मी जी के स्वागत का सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली
(Maa Lakshmi Diwali Pooja)
समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी कार्तिक की अमावस्या को ही क्षीरसागर से धरती पर प्रकट हुई थीं और भगवान विष्णु को पति के रूप में स्वीकार किया था. दिवाली (Deepawali) को मनाने की सबसे खास वजह यही है. इस त्योहार को मां लक्ष्मी के स्वागत के रूप में मनाया जाता है. इसीलिए सुख-समृद्धि की कामना के लिए दिवाली सबसे बड़ा और प्रमुख त्योहार है. कुछ लोग दीपावली को भगवान विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में भी मनाते हैं.
ये भी माना जाता है कि दीपावली की रात को माता लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं. कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो भी दीवाली पर भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) का पूजन करता है, उस पर लक्ष्मी जी की विशेष कृपा होती है. इसलिए लोग दिवाली की रात को मां का स्वागत करने के लिए अपने घर के दरवाजे और खिड़कियों को खुला छोड़ देते हैं ताकि मां लक्ष्मी का आगमन हो सके.
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