Ek Bharat Shreshtha Bharat Essay in Hindi – मेरा अतुल्य भारत!
पूरे विश्व में हमारा भारत (Bharat) सबसे प्राचीन, सबसे खूबसूरत और सबसे महान देश है, जिसकी सभ्यता और संस्कृति इतनी पुरानी है जितना कि स्वयं मानव. विश्व की कई प्राचीन सभ्यताएं समाप्त हो गईं लेकिन हमारी सभ्यता एवं संस्कृति सनातन है, जो आज भी समृद्ध एवं व्यवहारिक है. भारत के लिए माना जाता है कि यह एक देव निर्मित राष्ट्र है, जहां देवता भी जन्म लेने के लिए अपनी बारी का इन्तजार करते हैं.
भारत के प्राचीन नाम आर्यावर्त, जम्बूद्वीप और भारतवर्ष है. भारत इतना विशाल है कि यह एक उपमहाद्वीप कहलाता है. पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और बीच में हिंद महासागर से घिरा हुआ, विश्व की सबसे प्राचीन और सबसे महान सभ्यता वाला यह देश बहु-सांस्कृतिक अनुभवों की एक सुंदर चित्रावली प्रस्तुत करता है. भारत विश्व का अकेला ऐसा देश है, जिसका नाम किसी महासागर से यानी हिंद महासागर से जुड़ा हुआ है.
हिमाच्छादित पर्वतों से लेकर हरित वन प्रदेश और ढालनुमा पहाड़ों की हरियाली तक, सुनहरी रेत वाले असीमित समुद्री तटों से लेकर नीलम और पन्ना-सी झीलों तक, ये सभी तत्व मिलकर भारत के परिदृश्य को अद्भुत व अद्वितीय बनाते हैं. देश का वह क्षेत्र जहां अभी तक मनुष्य नहीं पहुंचा है और जहां की प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं हुई है, लोगों को विस्मयकारी भव्यता से सराबोर कर देता है और व्यक्ति “अरे वाह!” कहने को बाध्य हो जाता है.
भारत वह धरती है, जहाँ शास्त्रीय संगीत की स्वर लहरियाँ, खूबसूरत चित्रों की बारीक कारीगरी और हस्तकलाओं, नृत्य के दिव्य प्रकारों, शानदार प्रतिमाओं और मन को मोह लेने वाले त्योहारों से घुली मिली हुई हैं. भारत कला और शिल्प का सुंदर सम्मिश्रण है. इसका हर प्रांत और केंद्र शासित प्रदेश परम्परा की सुगंध में सराबोर है जो इसकी हर गली, हर मोड़ में फैली हुई है. यह देश जीवनी शक्ति की चमक से जगमगाता रहता है.
भारत के बारे में जितना भी कहा जाए उतना ही कम है. उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक इसकी खूबसूरती की कहीं कोई मिसाल नहीं है. भारत में अनगिनत ऐसे स्थान हैं जहां पर प्रकृति ने अपनी बेहतरीन छटा को खूब बिखेरा है. आप जैसे-जैसे इस देश में भ्रमण करेंगे तो आपको व्यंजनों, आस्था, कला, शिल्प, संगीत, प्रकृति, भू-भाग, आदिवासी समुदाय, इतिहास एवं रोमांचक क्रीड़ाओं में विविधता देखने को मिलेगी. भारत प्राचीन एवं आधुनिक जगत को मंत्रमुग्ध कर देने वाला सम्मिश्रण है.
भारत कर्मभूमि है, धर्मभूमि है, पुण्यभूमि है, भारत भोग भूमि नहीं है, भारत वंदनीय भूमि है. भारत का इतिहास योद्धाओं का है, विजय का है, त्याग का है, तप का है, वीरता का है, बलिदान का है, महान परंपराओं का इतिहास है. यह अत्याचारियों के विरुद्ध अभूतपूर्व शौर्य और पराक्रम दिखाने का इतिहास है.
स्वामी विवेकानंद जब शिकागो से लौटकर आए तो उनसे पूछा गया कि ‘अब वे भारत के बारे में क्या सोचते हैं’ तो उन्होंने कहा कि-
“पहले मैं भारत को प्यार करता था लेकिन अब इसकी पूजा करता हूं.”
प्रधान न्यायाधीश और फ्रांसीसी-लेखक लुई जेकोलियत (Louis Jacolliot : 1837-1890) ने सन् 1869 में ‘La Bible dans l’Inde, ou la Vie de Iezeus Christna’ नामक ग्रन्थ में बताया है कि संसार की सभी प्रधान विचारधाराएँ प्राचीन आर्य-विचारधारा से ही निकली हैं. उन्होंने भारतभूमि को मानवता की जन्मदात्री बताया है-
“प्राचीन भारतभूमि! मानवता की जन्मदात्री! नमस्कार. पूजनीय मातृभूमि! जिसको शताब्दियों से होने वाले नृशंस आक्रमणों ने भी अब तक विस्मृति की धूल के नीचे नहीं दबा पाया, तेरी जय हो. श्रद्धा, प्रेम, काव्य एवं विज्ञान की पितृभूमि! तेरा अभिवादन. हम अपने पाश्चात्य भविष्य में तेरे अतीत के पुनरागमन का जय-जयकार मनायें.”
ऋषियों ने कहा है-
रत्नाकर धौतपदां हिमालय किरीटिनीम्।
ब्रह्मराजर्षि रत्नाढ्यां वन्दे भारत-मातरम्।
“बहुमूल्य रत्नों से भरा सागर जिसके चरण धो रहा है, हिमालय जिसका मुकुट है और जो ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि रत्नों से समृद्ध है, ऐसी भारत मां की मैं वंदना करता हूं.”
विष्णु पुराण में कहा गया है-
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षंतद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।
“समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो राष्ट्र है, उसका नाम भारत है और जो भारतीय हैं, वो यहां की संतति हैं.”
भारतवासी भारत को मां मानते हैं, इसलिए हम कहते हैं- ‘भारत माता की जय!’ ‘वंदेमातरम्!’. भारत में कहा जाता है कि यह भूमि हमारी मां है और हम इसकी संतान हैं. भूमि को माता के रूप में देखने की दृष्टि हमें वेदों ने दी है. वेदों में कहा गया है-
माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः
भारत की एकात्मकता के प्रतीक (Ek Bharat Shreshtha Bharat in Hindi)
भारत की सात पवित्र नदियाँ- भारतीय संस्कृति नदियों के तटों पर फली-फूली और बढ़ी है. हमारी नदियों के प्रति श्रृद्धा और उनके द्वारा देश में एकात्मकता बनाये रखने के लिए स्नान करने से पहले यह मंत्र बोला जाता है-
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा।
आगच्छन्तु पवित्राणि पूजाकाले सदा मम॥
अर्थात जिस जल से मैं स्नान कर रहा हूँ, उसमें गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी आदि सभी पवित्र नदियों का एवं पुष्कर आदि तीर्थांक का पवित्र जल सम्मिलित हो जाये. इस श्लोक में देश की समस्त पवित्र नदियों से प्रार्थना की गई है जो देश के अलग-अलग भागों में प्रवाहित हो रही हैं. ये हमारी एकता और अखण्डता का प्रतीक हैं.
द्वादश ज्योतिर्लिंग- भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंग भारत की एकता और अखंडता के स्वरूप हैं. शिवपुराण के कोटिरुद्ध संहिता के अनुसार, भगवान् शिव जहां-जहां शिवलिंग के रूप में विराजमान हुये, वे सभी मुख्य तीर्थों के रूप में महत्त्व को प्राप्त हुए. ये द्वादश ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग भागों में स्थित हैं-
महाकालेश्वर (उज्जैन, मध्य प्रदेश), केदारनाथ (रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड), त्र्यम्बकेश्वर (नासिक, महाराष्ट्र), सोमनाथ (सौराष्ट्र, गुजरात), रामेश्वरम (रामनाथपुरम, तमिलनाडु), ओंकारेश्वर (मालवा, मध्य प्रदेश), बैद्यनाथ (देवघर, झारखंड), नागेश्वर (द्वारका, गुजरात), मल्लिकार्जुन (कर्नल, कृष्णा नदी, आंध्र प्रदेश), भीमाशंकर (पुणे, महाराष्ट्र), विश्वनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश), घृष्णेश्वर (औरंगाबाद, महाराष्ट्र).
चार धाम- भारत में चारों कोनों पर स्थित चार प्रमुख पीठों को 4 धाम कहते हैं. इन चार धामों की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी. इनमें तीन- बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी और रामेश्वरम. उत्तर में स्थित बद्रीनाथ और दक्षिण में रामेश्वरम एक ही देशान्तर पर स्थित है, जबकि पूरब में पुरी और पश्चिम में द्वारिका एक ही अक्षांश पर स्थित है. भौगोलिक एकता की दृष्टि से देखें तो ये चारों धाम मिलकर एक विशुद्ध चतुर्भुज का निर्माण करते हैं. प्रत्येक हिन्दू चारों धामों की यात्रा करना चाहता है.
चार कुंभ मेला स्थान- भारत में 4 स्थानों पर हर तीसरे वर्ष कुंभ का आयोजन किया जाता है. भारतीय पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के बाद जिन स्थानों पर अमृत की बूँदें गिरीं, उन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. ये स्थान हैं- हरिद्वार (उत्तराखंड), प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), नासिक (महाराष्ट्र) एवं उज्जैन (मध्य प्रदेश).
ये चारों स्थान क्रमशः गंगा नदी, गंगा-यमुना-सरस्वती संगम, गोदावरी एवं क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित हैं. प्रत्येक हिंदू की यह मनोकामना होती है कि वह कुंभ के मेले में जाकर पवित्र नदियों में स्नान करे एवं वहां होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होकर अपने जीवन को सार्थक बनाए.
राष्ट्रीय एकता के प्रतीक 51 शक्तिपीठ- देवी भागवत के अनुसार, जहां-जहां माता सती के अंग वस्त्र आभूषण आदि गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना की गई. ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये. ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अलग-अलग भागों में फैले हुए हैं. देवी भागवत पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है. भारत विभाजन के बाद 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान और 4 बांग्लादेश में चले गए. 1 शक्तिपीठ श्रीलंका, 2 नेपाल एवं 42 शक्तिपीठ भारत में हैं.
सप्तपुरी- भारत में 7 मोक्षदायिनी पुरियां हैं- अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, (वाराणसी), कांची (कांचीपुरम, तमिलनाडु), अवंतिका (उज्जयिनी) एवं द्वारिका (गुजरात).
• वेद में अयोध्या को ‘ईश्वर का नगर’ बताया गया है- “ॐ अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या”. इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्गलोक से की गई है. कई शताब्दियों तक यह नगरी सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रही. अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है. भगवान् श्रीराम भारत की अस्मिता, एकता और अखण्डता के प्रतीक और रक्षक हैं.
सात पर्वत- भारत में राष्ट्रीय एकता के प्रतीक सात पर्वत हैं- महेंद्र पर्वत (ओडिशा), मलय पर्वत (नीलगिरी), सह्याद्रि (पश्चिमी घाट), देवात्मा हिमालय, रेवतक पर्वत (काठियावाड़ में गिरनार), विंध्याचल पर्वत तथा अरावली पर्वत (राजस्थान). विंध्यांचल पर्वतमाला भारत के उत्तर और दक्षिण भाग को जोड़ती है.
सात वन- भारत में एकता के प्रतीक सात वन, सात द्वीप, सात सागर, सात पाताल, सात ऋषियों एवं सात वायु का भी वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है-
सप्तार्णवा: सप्त कुलाचलाश्च
सप्तर्षयो द्वीवीपवनानि सप्त
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम॥
सात समुद्र- लवण, क्षीर, सुरा, घृत, इक्षु, दधि एवं स्वादु (मीठा जल).
सात वन- दंडकारण्य, खंडकारण्य, चंपकारण्य, वेदाकारण्य, नैमिषारण्य, ब्रह्मारण्य, धर्मारण्य.
सात द्वीप- जम्बू द्वीप, प्लक्ष द्वीप, शाल्मल द्वीप, कुश द्वीप, क्रौंच द्वीप, शाक द्वीप, पुष्कर द्वीप.
• पौराणिक भूगोल के वर्णन के अनुसार, जम्बूद्वीप सप्तमहाद्वीपों में से एक है. यह पृथ्वी के केन्द्र में स्थित माना गया है. इसके नवखण्ड हैं- इलावृतवर्ष, भारतवर्ष, भद्राश्ववर्ष, हरिवर्ष, केतुमालवर्ष, रम्यकवर्ष, हिरण्यमयवर्ष, उत्तरकुरुवर्ष, किम्पुरुषवर्ष.
सात वायु- प्रवह, आवह, उद्वह, संवह, विवह, परिवह और परावह.
सात पाताल- अतल, वितल, नितल, गभस्तिमान, महातल, सुतल, पाताल.
सात लोक- भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्गलोक (त्रैलोक्य जो कि नाशवान लोक हैं), जनलोक, तपोलोक तथा सत्यलोक (ये तीनों अनश्वर या नित्य लोक हैं). नित्य और अनित्य लोकों के बीच में महर्लोक की स्थिति मानी गई है.
“भू, भुव, स्व, मह, जन, तप एवं सत्य- सभी मेरे प्रभात को मंगल करें. अपने गुण रूपी गंध से युक्त पृथ्वी, रस, संयुक्त जल, स्पर्श वायु, ज्वलनशील तेज तथा शब्द रूपी गुण से युक्त महत तत्व बुद्धि के साथ मेरे प्रभात को मंगलमय करें, अर्थात पांचों बुद्धि तत्व कल्याणमय हों.”
राष्ट्रीय एकता के प्रतीक सूर्य मंदिर- भारत में सूर्य उपासना की परम्परा बहुत पुरानी है. रामायण में महर्षि अगस्त्य ने भगवान श्रीराम को सूर्य की उपासना के क्रम में आदित्य हृदय स्त्रोत के विषय में बताया था. भारत में मुख्य रूप से द्वादश सूर्य मंदिरों का उल्लेख है- देवार्क, पुण्यार्क, उल्लार्क, पंडार्क, कोणार्क अंजार्क, लोलार्क, वेदार्क, मार्कण्डेयार्क, दर्शनार्क, बालार्क और चाणार्क.
जनश्रुतियों के अनुसार इन सभी मंदिरों का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण एवं माता जांबवती के पुत्र साम्ब ने करवाया था. इन मंदिरों में तीन प्रमुख हैं- कोणार्क, कालपी और मुल्तान (पाकिस्तान). इनमें कोणार्क में उन्होंने प्रातःकालीन सूर्य की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई थी, कालपी में मध्यकालीन और मुल्तान में सायंकालीन.
विविधता में एकता (Ek Bharat Shreshtha Bharat in Hindi)
भारत अपने अरबों लोगों से बना हुआ है. यही लोग परिभाषित करते हैं कि भारत में अध्यात्म का क्या अर्थ है. यहां अलग-अलग विचारों को मानने वाले लोग हैं. एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में विद्यमान अंतर और आपस में उनकी विषमता, उनके सौंदर्य को और भी बढ़ा देती है. यह देश आध्यात्मिक स्थलों से भरा हुआ है, जिन्हें कोई भी शख्स जो असली भारतीयता का अनुभव करना चाहता है, खोना नहीं चाहेगा. ये सभी के लिए खुले हुये हैं और सबका स्वागत करते हैं.
हिन्दुस्थान में हर किसी का एक स्वतंत्र अस्तित्व है, सम्मान है, चैतन्य और बौद्धिक स्वातंत्र्य है, उपासना के वैविध्य की स्वीकृति है, चिंतन की स्वतंत्रता है, जड़-चेतन में ब्रह्म को देखने के संस्कार हैं, प्रकृति में मां है. विश्व की तमाम आतंकित और पीड़ित जातियां हिंदुत्व के उदार और विशाल हृदय में स्थान पाकर भारत भूमि पर उन्नति करती हैं.
भारत की एकता का सबसे सुदृढ़ स्तम्भ इसकी संस्कृति है. भारत विविधताओं से भरा देश है, जहां दुनियाभर की संस्कृतियां निवास करती हैं. इस देश में हर मौसम और हर धर्म किसी न किसी पर्व, उत्सव या त्योहार को लेकर आता है. भारत के सभी धर्मों और सम्प्रदायों मे बाह्य विभिन्नता भले ही हो, लेकिन सबकी आत्माओं का स्रोत एक ही है. मोक्ष, निर्वाण या कैवल्य एक ही गंतव्य के अलग-अलग नाम हैं. भारतीय धर्मों में कर्मकाण्डों की विविधता भले ही हो, लेकिन उनकी मूल भावना में पूर्ण सादृश्यता है. भारतीय संस्कृति की इन्हीं विशेषताओं ने इस देश को भावनात्मक एकता के सूत्र में बांध रखा है. आपसी समझ और विश्वास भारत की ताकत की नींव है.
यहां सभी महापुरुषों, महान ग्रंथों, पंथ, मत, संप्रदाय, तीर्थ स्थानों को महत्व दिया गया है. हमारे देश में किसी की भी आलोचना नहीं की जाती है. सभी मत और पंथ को स्वीकार किया गया है. यहां कहा गया है- “एकम् सत् विप्रा बहुधा वदन्ति” अर्थात सत्य एक है, जिसे विद्वान लोग अलग-अलग तरीके से बोलते हैं. हमने विश्व को बाजार नहीं, परिवार माना है, इसलिए हम कहते हैं “वसुधैव कुटुम्बकम्”. हमारे व्यवहार का आधार ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ है अर्थात सबको हम अपने जैसा मानते हैं. हमारे देश में किसी भी मत या संप्रदाय आदि में अंतर नहीं किया जाता है. जो जिस पद्धति से पूजा-उपासना-प्रार्थना करना चाहे, उसी की रीति से वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है. भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं-
“तुम किसी भी मार्ग से आओ, सभी मार्ग मुझ तक ही पहुंचते हैं. जैसे नदियां कहीं से भी होकर आयें, अंत में समुद्र में ही विलीन हो जाती हैं.”
जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम्!
Written By : Aditi Singhal (Working in The Media)
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