Gaurav Anand Water Hyacinth Saree
प्रदूषक (Pollutant) के रूप में जानी जाने वाली जलकुंभी (Water Hyacinth) का उपयोग अब साड़ी (Fusion Saree) बनाने के लिए किया जाएगा. यह पहल न केवल नदियों, जलाशयों को पर्यावरणीय लाभ पहुंचाएगी, बल्कि महिलाओं को रोजगार दिलाने की दिशा में भी काम करेगी. ‘स्वच्छता पुकारे’ टीम (Swachhata Pukare Foundation) के संस्थापक गौरव आनंद (Gaurav Anand) ने जब 4 साल पहले जमशेदपुर से गुजरने वाली स्वर्णरेखा नदी की सफाई का संकल्प उठाया, तो जलकुंभी सबसे बड़ी समस्या थी.
इस समस्या को गौरव ने अवसर में बदला और आज जलकुंभी से बनी साड़ियां ऑनलाइन बेची जा रही हैं. पेशे से इंजीनियर 46 वर्षीय गौरव आनंद ने टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड में सीनियर मैनेजर की स्थाई नौकरी छोड़कर यह इनोवेशन किया. इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन भी हुआ.
जलकुंभी के नुकसान
जलकुंभी को ‘बंगाल का आतंक’ (Terror of Bengal) भी कहा जाता है. ये शांत तालाब के पानी में उगती हैं. जलकुंभी को जितनी बार हटाओ, वे फिर से उग आती हैं. इससे जल का प्रवाह तो रुकता ही है, साथ ही गंदगी भी फैलती है. ये जलीय जीव-जंतुओं तक प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन और धूप भी नहीं पहुंचने देतीं.
जलीय जीवन तभी जीवित रह सकता है जब पानी में घुलनशील ऑक्सीजन कम से कम पांच मिलीग्राम प्रति लीटर हो, लेकिन जलकुंभी की उपस्थिति में ऑक्सीजन की यह मात्रा घटकर एक मिलीग्राम प्रति लीटर हो जाती है. इससे जलीय जीवन के लिए खतरा पैदा होता है और पानी की गुणवत्ता भी खराब होती है. यह गंगा, गोदावरी, कृष्णा जैसी बहती नदियों को छोड़कर लगभग सभी नदियों में मौजूद है.
गौरव आनंद ने बताया-
“मैं जलकुंभी की बढ़ती समस्या का एक स्थायी समाधान निकालना चाहता था. अब इस तरह से, जलस्रोतों से जलकुंभी हटाने से वे भी साफ हो जाएंगे और लोगों के उपयोग के लायक भी बन जाएंगे. इससे लोग जलकुम्भियों को एक समस्या के रूप में नहीं बल्कि एक संसाधन के रूप में देखेंगे. एक फ्यूजन साड़ी बनाने के लिए 25 किलोग्राम जलकुंभी का उपयोग करते हैं. ये साड़ियां घर पर ही धुलाई योग्य हैं और सामान्य साड़ियों की तरह टिकाऊ हैं. यह दुनिया में अपनी तरह का पहला उत्पाद है.”
“पश्चिम बंगाल की प्रसिद्ध ‘टेंट’ साड़ियों में इस्तेमाल होने वाले कपास के साथ-साथ, जलकुंभी से निकाले गए फाइबर से बने धागे का उपयोग ‘फ्यूजन साड़ियां’ बनाने के लिए किया जाएगा. जिस तरह जूट से फाइबर निकाला जाता है, उसी तरह हमने शुरुआत में जलकुंभी से निकाले गए फाइबर का उपयोग करके कम से कम 1000 साड़ियों का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है.”
“हमारे इस संगठन ने लगभग 200 महिलाओं को रोजगार दिया है. पौधों को पानी से निकालने के बाद उन्हें सुखाया जाएगा, फिर पतले रेशे को निकालकर प्रोसेस करके बारीक धागे में बदला जाएगा. इस धागे का उपयोग गुणवत्तापूर्ण साड़ियों के निर्माण के लिए किया जाएगा. तकनीकी जानकारी के लिए ‘स्वच्छता पुकारे’ ने एक अन्य गैर सरकारी संगठन नेचरक्राफ्ट के साथ सहयोग किया है, जो पहले से ही जलकुंभी से बिजली के लैंप, भित्ति चित्र, टाइल कला और मैट जैसी वस्तुएं बना रहा है.”
“शुरुआत में हम इस प्रोजेक्ट के लिए स्वेच्छा से योगदान दे रहे हैं और इसकी लागत 20 लाख रुपये से अधिक होने की उम्मीद है. हमें उम्मीद है कि एक बार पूर्ण उत्पादन शुरू हो जाने पर, इस कार्य में लगी महिलाएं प्रतिमाह 4,000 से 5,000 रुपये कमाने लगेंगी. इस काम से हमने पश्चिम बंगाल के शांतिपुर गांव के लगभग 10 बुनकर परिवारों को रोजगार दिया है ताकि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके. हमारा उद्देश्य साड़ी बनाकर कमाई करना नहीं है. हम बुनकरों की आजीविका को बढ़ावा देना चाहते हैं.”
फ्यूजन साड़ियाँ कैसे बनती हैं (How are fusion sarees made)?
गौरव आनंद बताते हैं कि ‘जलकुंभी को फ्यूजन साड़ी में बदलने की प्रक्रिया एक कठिन काम है. सबसे पहले पौधे के तनों को इकट्ठा करके एक सप्ताह तक धूप में सुखाया जाता है. हम गूदे का उपयोग फाइबर बनाने के लिए करते हैं. गूदे से कीड़ों को हटाने के लिए गर्म पानी के उपचार के बाद तने से रेशे या फाइबर निकाला जाता है. इन रेशों का उपयोग धागा बनाने के लिए किया जाता है, जिसे बाद में रंगीन किया जाता है. फिर बुनकर हथकरघे पर साड़ी बुनते हैं. एक साड़ी बनाने में लगभग तीन से चार दिन लगते हैं.’
गौरव आनंद ने कहा कि ‘चूंकि यह श्रम-केंद्रित काम है, इसलिए जलकुंभी और कपास के लिए 25:75 का अनुपात रखा गया है. यदि हम जलकुम्भी का 100 प्रतिशत प्रयोग करके साड़ी बनाते हैं, तो यह थोड़ी कमजोर होगी. यही कारण है कि हम इसे कपास जैसी चीजों के साथ मिलाते हैं. हालाँकि हम अनुपात बढ़ा सकते हैं लेकिन इसके लिए हमें कई तने निकालने होंगे, जिससे हमारी Production Cost बढ़ जाएगी जो प्रति साड़ी 1,200 रुपये है. फाइबर जितना महीन होगा, cost उतनी ही अधिक होगी. फिलहाल हमने अपनी साड़ी की कीमत 2,000-3,500 रुपये रखी है.’
2018 में, उन्हें गंगा नदी को साफ करने के लिए एक महीने तक चलने वाले नमामि गंगे मिशन (Namami Gange Mission) का हिस्सा बनने का मौका मिला, जहां उन्होंने 1,500 किलोमीटर से अधिक जलमार्ग को कवर किया. उन्होंने बताया कि मिशन के बाद टीम के सभी सदस्य अपने-अपने काम पर वापस चले गए लेकिन मेरे लिए यह जीवन बदलने वाला अभियान था. मैंने हर रविवार को नदियों की सफाई के लिए समर्पित करना शुरू कर दिया.
फिर 2022 में, गौरव ने अपना 16 साल लंबा कॉर्पोरेट करियर छोड़ दिया और खुद को पूर्णकालिक समर्पित करने के लिए ‘स्वच्छता पुकारे’ फाउंडेशन की स्थापना की. उद्यम शुरू करने से पहले, उन्होंने जलकुंभी से लैंपशेड, कागज, नोटबुक और मैट जैसे हस्तनिर्मित उत्पाद बनाना शुरू कर दिया था. उन्होंने बताया कि ऐसे प्रोडक्ट्स पर काम करते समय मैंने पाया कि इन पौधों के गूदे में सेल्यूलोज होता है, जिसे जूट के समान धागे में बदला जा सकता है.
अपने 16 साल लंबे कॉर्पोरेट करियर को छोड़कर कुछ नया करने वाले गौरव आनंद कहते हैं कि, “यदि मैं कॉर्पोरेट नौकरी करते हुए रिटायर हो गया होता, तो मैंने अपने देश के लिए कुछ नहीं किया होता. पहले जब मुझे वेतन मिलता था, तो मैं केवल अपने परिवार का भरण-पोषण ही कर पाता था. आज मैं इस काम से कई परिवारों का भरण-पोषण करने में सक्षम हूं.”
Written By : Nancy Garg
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