Somnath Temple Gujarat Tourism
हमारे भारत का खूबसूरत राज्य गुजरात (Gujarat) अपने राजसी किलों और महलों, लुभावने राष्ट्रीय उद्यानों और पवित्र मंदिरों के लिए जाना जाता है. इस सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य के स्थानीय लोग अपनी परंपराओं से गहराई से जुड़े हुए हैं और अपने धर्म का पालन दिल से करते हैं. गुजरात का एक समृद्ध इतिहास है.
द्वारकाधीश मंदिर से लेकर कच्छ के महान रण तक, आश्चर्यजनक समुद्री राष्ट्रीय उद्यान से लेकर विस्मयकारी सूर्य मंदिर तक यहां एक से बढ़कर एक दर्शनीय स्थल हैं. इन्हीं में से एक है भव्य सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple), जिसके दर्शन किए बिना कोई भी तीर्थयात्रा पूरी नहीं मानी जाती है.
भगवान शिव को समर्पित सोमनाथ मंदिर (Somnath temple, Gujarat) सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्थलों में से एक है. सोमनाथ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘सोम के भगवान’. दरअसल, यहां विराजमान शिवलिंग की स्थापना सोम यानी चंद्र देवता ने की थी.
यह भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है जिसका उल्लेख ऋग्वेद, स्कंदपुराण, शिवपुराण और श्रीमद भगवद गीता में मिलता है. इसे 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है. सोमनाथ और उसके आसपास का क्षेत्रफल ही वह स्थान है, जहां से भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वीलोक को छोड़कर अपने निज धाम गोलोक को गए थे.
सोमनाथ मंदिर पर हमले और उसका पुनर्निर्माण
(Attack on Somnath Temple and Its Reconstruction)
अत्यंत वैभवशाली होने के कारण सोमनाथ मंदिर को कई बार तोड़ा गया और पुनर्निर्मित किया गया. इसीलिए इस मंदिर को ‘शाश्वत तीर्थ’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसे इतिहास में कई बार नष्ट किया गया, लेकिन फिर भी हर बार इस मंदिर की महिमा और भव्यता बरकरार रही. वर्तमान मंदिर के अभिषेक समारोह में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि, “सोमनाथ मंदिर यह दर्शाता है कि सृजन की शक्ति हमेशा विनाश की शक्ति से अधिक होती है.”
मूल मंदिर की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शुरू में आंतरिक मंदिर या गर्भशाय रत्नों से जड़ा हुआ था. लेकिन बार-बार किए गए हमलों में ये सब कुछ लूट लिया गया. अभिषेकम के लिए चंदन का पानी हरिद्वार से लाया गया था और पूजा के लिए फूल कश्मीर से लाए गए थे.
इतिहासकारों के अनुसार, मूल सोमनाथ मंदिर के निर्माण का समय अज्ञात है. प्राचीन भारतीय शास्त्रीय ग्रंथों पर आधारित शोध से पता चलता है कि पहला सोमनाथ ज्योतिर्लिंग प्राण-प्रतिष्ठा वैवस्वत मन्वन्तर के दसवें त्रेतायुग के दौरान श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया गया था.
वाराणसी में जगद्गुरु शंकराचार्य वैदिक शोध संस्थान के अध्यक्ष स्वामी गजानंद सरस्वती के अनुसार, पहला सोमनाथ मंदिर लगभग 8 करोड़ साल पहले बनाया गया था, जैसा कि स्कंद पुराण के प्रभास खंड में उल्लिखित है.
माना जाता है कि सोमनाथ मंदिर का निर्माण चार चरणों में भगवान चंद्र ने स्वर्ण, रावण ने चांदी, भगवान श्रीकृष्ण ने चंदन की लकड़ी और पांडव भाइयों में से एक भीम ने पत्थरों से करवाया था.
माना जाता है कि इसके बाद सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण 320 और 500 ईस्वी के बीच करवाया गया था. फिर 649 ईस्वी के आसपास वल्लभी के मैत्रक राजाओं द्वारा पुनर्निर्माण करवाया गया, जिन्हें देवगिरी के रूप में जाना जाता है.
इसके बाद सिंध के गवर्नर अल-जुनैद ने गुजरात और राजस्थान के आक्रमणों के दौरान लगभग 725 CE में मंदिर को नष्ट कर दिया था. कहा जाता है कि राजा नागभट्ट द्वितीय ने 815 CE में तीसरे मंदिर का निर्माण किया था.
सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनबी का हमला और लूटपाट
1024 में, सोमनाथ मंदिर पर फिर से गजनी के महमूद द्वारा हमला किया गया था. दरअसल, जब अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में सोमनाथ मंदिर की भव्यता और वैभव का वर्णन किया, तो महमूद गजनबी सन 1024 में लगभग 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला करने और इसे लूटने के लिए आ गया.
उसने मंदिर की संपत्ति तो लूटी ही, साथ ही मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे लगभग 50,000 श्रृद्धालुओं का भी बेरहमी से कत्ल कर दिया. फिर मंदिर का पुनर्निर्माण मालवा के राजा भोज और पाटन के राजा भीमदेव प्रथम द्वारा किया गया था.
सोमनाथ मंदिर पर अन्य हमले
इसके बाद सोमनाथ मंदिर फिर से अलाउद्दीन खिलजी की सेना द्वारा विनाश का लक्ष्य बन गया, जिसके बाद मंदिर को फिर से सौराष्ट्र के राजा महिपाल ने 1308 में बनवाया. 1375 और 1451 में गुजरात सल्तनत के मुजफ्फर शाह प्रथम और गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा द्वारा भी मंदिर पर बार-बार हमले किए गए.
मंदिर को 1665 में औरंगजेब के हमलों का भी सामना करना पड़ा. 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर (Rani Ahilyabai Holkar) और ग्वालियर के श्रीमंत पाटिलबुवा शिंदे के संयुक्त प्रयास से मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था. अहिल्याबाई मंदिर पास में ही है.
वर्तमान सोमनाथ मंदिर का निर्माण
(Present Somnath Temple Construction)
वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण भारत के पहले गृहमंत्री और ‘लौहपुरुष’ सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) ने बनवाया था और भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) ने पहली दिसम्बर 1955 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया.
दरअसल, देश की स्वतंत्रता के बाद, जब सरदार पटेल ने सोमनाथ का दौरा किया, तो वह मूल मंदिर स्थल की खराब स्थिति से बहुत दुखी हुए और इसे जल्द से जल्द पुनर्निर्मित करने का संकल्प लिया. 1951 में होल्करों द्वारा 18वीं शताब्दी के निर्माण के बगल में, मूल आधार पर नए मंदिर का निर्माण किया गया था. पुराने मंदिर के अवशेष अब एक संग्रहालय में संरक्षित हैं.
वर्तमान मंदिर को चालुक्य शैली या ‘कैलाश महामेरु प्रसाद’ शैली में बनाया गया माना जाता है. चिनाई का काम सोमपुरा सलात द्वारा किया गया था. सोमनाथ मंदिर से मूल रूप से संबंधित चांदी के तीन द्वारों को मराठा राजा महादाजी शिंदे द्वारा मुहम्मद शाह को हराने के बाद लाहौर से भारत वापस लाया गया था.
सोमनाथ मंदिर में उन्हें फिर से स्थापित करने के असफल प्रयासों के बाद, उन्हें उज्जैन में दो मंदिरों को उपहार में दिया गया- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग और गोपाल मंदिर जहां उन्हें अभी भी देखा जा सकता है.
सोमनाथ मंदिर की विशेषताएं-
(Somnath temple architecture)
भारत के गौरवशाली और समृद्धशाली वैभव की गाथा गाते सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग के दर्शन करना, उनकी पूजा करना और उनकी आरती में शामिल होना अपने-आप में एक सौभाग्य और गर्व की बात है. यहां की भव्यता, सुंदरता और दिव्यता आपको इस स्थान से ऐसा बांध देगी कि आपको यहां से जाने का मन नहीं होगा. यहां से जाते समय हम लोगों को बहुत रोना आ गया था.
सोमनाथ मंदिर को ‘द श्राइन इटरनल’ (The Shrine Eternal) भी कहा जाता है. यह मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र में वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पट्टन में स्थित है. सोमनाथ मंदिर में हर साल बड़ी भीड़ देखी जाती है.
मंदिर की भव्य वास्तुकला में जटिल नक्काशी, चांदी के दरवाजे, एक प्रभावशाली नंदी जी की मूर्ति और केंद्रीय शिवलिंग शामिल हैं. यहां स्थापित शिवलिंग को स्वयंभू माना जाता है. मंदिर के विशाल प्रांगण में समान रूप से बड़ा मंडप (हॉल) और मुख्य मंदिर है.
अरब सागर से घिरे इस मंदिर से सौराष्ट्र प्रायद्वीप (Saurashtra peninsula) का शानदार नजारा देखने को मिलता है. मंदिर को तीन मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया गया है- गर्भग्रह, सभामंडपम और नृत्यमंडपम. मंदिर का शिखर लगभग 50 मीटर ऊंचा है. मंदिर के एक ओर से समुद्र की लहरों पर सूरज की रोशनी के ट्रिपिंग का अलौकिक दृश्य देखा जा सकता है.
Somnath Temple Light and Sound Show-
मंदिर के अन्य स्थान वल्लभघाट के अलावा श्री कपार्डी विनायक और श्री हनुमान मंदिर हैं. वल्लभघाट एक खूबसूरत सूर्यास्त स्थल है. हर शाम मंदिर में रोशनी की जाती है. हर रात 8 बजे से 9 बजे के बीच एक लाइट एंड साउंड शो “जय सोमनाथ” प्रदर्शित किया जाता है, जो तीर्थयात्रियों को भव्य सोमनाथ मंदिर की पृष्ठभूमि और समुद्र की पवित्र लहरों की आवाज में एक अलौकिक अनुभव देता है. बारिश के मौसम में लाइट एंड साउंड शो बंद रहता है.
कार्तिक पूर्णिमा मेला यहां नवंबर के महीने में चार दिनों के लिए आयोजित किया जाता है, जो बड़ी संख्या में भीड़ को आकर्षित करता है.
सोमनाथ मंदिर का समय
(Somnath Temple Timings)
सामान्य दर्शन सुबह 6 बजे से शुरू होकर रात 10 बजे तक होते हैं.
मुख्य मंदिर में आरती सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम 7 बजे होती है.
सोमनाथ मंदिर में लगभग 30 मुख्य प्रकार की पूजा और अभिषेक किया जाता है.
मंदिर के अंदर बेल्ट, मोबाइल फोन, कैमरा और जूते जैसी वस्तुओं की अनुमति नहीं है. जूतों के लिए नि:शुल्क स्टॉल उपलब्ध हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार पर कैमरे और फोन रखने के लिए लॉकर उपलब्ध हैं.
दिव्यांगों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए मंदिर के द्वार पर व्हीलचेयर की सुविधा उपलब्ध है, साथ ही मंदिर के अंदर लिफ्ट की सुविधा भी उपलब्ध है.
मंदिर के आसपास ठहरने के लिए हर बजट में अच्छे होटल और आवास उपलब्ध हैं. लेकिन कहीं भी रूम बुक करने के लिए आपके पास एक वैध पहचान प्रमाण होना जरूरी है. खाने-पीने के लिए भी यहां होटलों या रेस्टोरेंट्स, दुकानों आदि की कोई कमी नहीं है. यहां बड़ी संख्या में नारियल पानी के ठेले लगे रहते हैं. इसी के साथ, सोमनाथ से आप अलग-अलग दामों में गुजराती कपड़ों और सामानों की भी खूब शॉपिंग कर सकते हैं.
कैसे पहुंचे सोमनाथ मंदिर
(How to reach Somnath Temple)
सोमनाथ मंदिर जूनागढ़ से 94 किमी की दूरी पर है. सोमनाथ जाने के लिए निकटतम एयरपोर्ट दीव (लगभग 83 किमी) है और निकटतम रेलवे स्टेशन वेरावल (6 किमी) में है.
By Road- सोमनाथ गुजरात के प्रमुख शहरों जैसे अहमदाबाद, जूनागढ़, द्वारका और चोरवाड़ के लिए राज्य परिवहन की बसों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है.
By Rail- निकटतम रेलवे स्टेशन सोमनाथ (0.5 किमी) है. गुजरात के सभी प्रमुख शहरों से नियमित ट्रेन सेवा उपलब्ध है.
By Air- निकटतम हवाई अड्डा दीव है, जो लगभग 83 किमी दूर है.
सोमनाथ मंदिर प्रबंधन (Somnath Temple management) द्वारा चलाए जा रहे रूम नाममात्र की दरों पर उपलब्ध हैं. www.somnath.org पर जाकर सागर दर्शन अतिथि गृह, लीलावती अतिथि भवन, माहेश्वरी अतिथि भवन में आवास की बुकिंग की जा सकती है.
भालका तीर्थ (Bhalka Tirtha)
यह पवित्र तीर्थ प्रभास वेरावल हाईवे (Prabhas Veraval Highway) पर 5 किमी की दूरी पर स्थित है. इस स्थान से ही भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) पृथ्वीलोक को छोड़कर अपने निजधाम को गए थे. इसके लिए उन्होंने खुद पर ‘जरा’ नाम के शिकारी के बाण लगने की लीला रची थी. भगवान ने शिकारी को आशीर्वाद दिया और कुछ ही दूरी पर स्थित हिरन नदी (Hiran River) के पवित्र तट पर पहुंचकर वहां से अपने निजधाम के लिए प्रस्थान किया.
स्वामी श्री गजाननन्द सरस्वती जी के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने वर्ष 3102 ईसा पूर्व को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के पहले दिन (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 18 फरवरी) अपने निजधाम के लिए प्रस्थान किया था.
श्री गोलोकधाम तीर्थ (Shree Golokdham Tirth)- यह तीर्थ सोमनाथ मंदिर से 1.5 किमी की दूरी पर हिरण के तट पर स्थित है. निजधाम प्रस्थान लीला की दिव्य स्मृति को चिह्नित करने के लिए यहां भगवान श्रीकृष्ण के पदचिह्न उकेरे गए हैं. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव जी ने भी यहीं से अपने मूल रूप शेषनाग के रूप में यात्रा की थी.
कांचीपुरम का अद्भुत कैलाशनाथ मंदिर
चोलों का शक्ति का प्रतीक बृहदेश्वर या राजराजेश्वर मंदिर
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