ISRO Aditya L1 Mission : भारत का पहला सूर्य मिशन आदित्य-एल1 – महत्वपूर्ण तथ्य

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Image Credit : ISRO

ISRO Aditya L1 Mission

विज्ञान की भाषा में भले ही हमारा सूर्य (Sun) बाकी अनगिनत तारों की तरह एक सामान्य सा तारा ही है, लेकिन हमारी पृथ्वी पर जीवन इसी तारे से है. अब तक ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र हमारी पृथ्वी पर ही जीवन की सभी संभावनाएं मौजूद हैं, और पृथ्वी पर यह जीवन हमारे सूर्य की वजह से है. पृथ्वी की ऊर्जा का स्रोत सूर्य ही है. पृथ्वी पर जलवायु, मौसम और पेड़-पौधे सूर्य से ही हैं.

असीम ऊर्जा का यह भंडार पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जीवों के स्वास्थ्य और जीवन को प्रभावित करता है. और केवल पृथ्वी ही नहीं, पूरे सौरमंडल के पदार्थों का लगभग 99 प्रतिशत भाग सूर्य से ही बना है. सूर्य को सभी ग्रहों का राजा कहा जाता है. इसलिए यह तारा हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है.

सूर्य के मौसम और पर्यावरण का अध्ययन करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सौरमंडल के प्रत्येक खगोलीय पिंड के विकास को प्रभावित करता है. ISRO का कहना है कि ‘सूर्य हमारी पृथ्वी का निकटतम तारा है, इसलिए अन्य तारों की तुलना में सूर्य का अध्ययन अधिक विस्तार से किया जा सकता है. सूर्य के अध्ययन से हम अपनी आकाशगंगा के अन्य तारों के बारे में भी गहन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.’

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization-ISRO) देश का पहला सौर मिशन आदित्य-एल1 (Aditya-L1 Solar Mission) लॉन्च करने के लिए तैयार है. यह सूर्य पर अध्ययन को समर्पित भारत का पहला वैज्ञानिक प्रयास है. सूर्य के बारे में हमें ढेर सारी जानकारियां देने के लिए भारत का सूर्ययान 2 सितंबर 2023 को लॉन्च होने जा रहा है. मिशन के हिस्से के रूप में, Aditya-L1 सैटेलाइट को पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी (15 लाख किलोमीटर) दूर L1 पॉइंट यानी लैग्रेंजियन/लैग्रेंज बिंदु-1 के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा (Halo Orbit) में स्थापित किया जाएगा.

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क्यों बदला गया मिशन का नाम?

पहले इस मिशन का नाम आदित्य-1 (Aditya-1 mission) था और इसका उद्देश्य केवल सूर्य के कोरोना का निरीक्षण करना था. आदित्य-1 मिशन में सैटेलाइट को 800 किमी निचली पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना था. बाद में इसरो ने सैटेलाइट को L1 पॉइंट के आसपास हेलो ऑर्बिट में स्थापित करने की योजना बनाई. L1 पॉइंट पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर है. यह बिंदु बिना किसी बाधा के लगातार सूर्य का अवलोकन करने में मदद करता है, इसलिए मिशन का नाम बदलकर Aditya-L1 मिशन रखा गया है. सैटेलाइट को श्रीहरिकोटा से PSLV-XL प्रक्षेपण यान द्वारा लॉन्च किया जाएगा.

लैग्रेंजियन/लैग्रेंज बिंदु क्या है (What is Lagrangian/Lagrange point)

द्विपिंडीय गुरुत्वाकर्षण प्रणाली (Two-body Gravitational System) के लिए अंतरिक्ष में लैग्रेंज पॉइंट वे स्थान होते हैं, जहां पर यदि कोई छोटा पिंड रखा जाए तो उसके वहीं रुक जाने की प्रवृत्ति होती है. अंतरिक्ष में सूर्य और पृथ्वी जैसी द्विपिंडीय प्रणालियों में इन अंतरिक्ष बिंदुओं का उपयोग ईंधन की खपत को कम करने (Reduce Fuel Consumption) के साथ-साथ अंतरिक्ष यान के इन स्थानों पर बने रहने के लिए किया जाता है. लैग्रेंज पॉइंट-1 पर स्थित कोई भी सैटेलाइट, ग्रहण अथवा ऐसी ही किसी अन्य बाधा के बावजूद सूर्य को लगातार देखने में सक्षम होता है.

सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किमी है. पृथ्वी और सूर्य के बीच 5 लैग्रेंज पॉइंट्स हैं. इन लैग्रेंज पॉइंट्स पर गुरुत्वाकर्षण बल का संतुलन बना रहता है.

What is Lagrange Points

जैसे कि मान लीजिये कि सूर्य के केंद्र से लेकर पृथ्वी के केंद्र तक एक सीधी रेखा खींच दी जाए, और इस रेखा के ठीक बीच में किसी वस्तु को रख दिया जाए तो क्या होगा? निश्चित सी बात है कि सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force), जो कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से कई गुना ज्यादा है, इस वस्तु को अपनी तरफ खींच लेगा. अब यदि इस वस्तु को धीरे-धीरे पृथ्वी की तरफ ले जाया जाए, तो क्या होगा?

जैसे-जैसे इस वस्तु को पृथ्वी के करीब लाया जायेगा, इस पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल का असर बढ़ता जाएगा और सूर्य का असर उसी अनुपात में घटता जाएगा. फिर एक स्थिति ऐसी आएगी, जब इस वस्तु पर सूर्य और पृथ्वी दोनों का असर बराबर हो जाएगा, यानी इस स्थिति में इस वस्तु को न तो सूर्य अपनी तरफ खींच पायेगा और न ही पृथ्वी इसे अपनी तरफ खींच पाएगी, बल्कि वह वस्तु अधर में (Balance) लटकी रहेगी. ऐसे में वह वस्तु जिस पॉइंट पर होगी, उस पॉइंट को ही लैग्रेंज पॉइंट (Lagrange Point) कहा जाता है.

यानी ऐसे संतुलन बिंदु, जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वीय बल बराबर होते हैं, लैग्रेंज बिंदु कहलाते हैं. यह केवल समझाने के लिए उदाहरण है. वास्तव में सूर्य और पृथ्वी के बीच इसके अतिरिक्त भी कई ऐसे बल हैं, जो अपना प्रभाव डालते हैं. इन सभी बलों के आपसी खींचतान के चलते सूर्य और पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र में पांच संतुलन बिंदु या लैग्रेंज पॉइंट्स बनते हैं, जिन्हें L1, L2, L3, L4 और L5 पॉइंट्स नाम दिया गया है.

L1 के लिए Aditya-L1 का प्रक्षेप पथ

इसरो के मुताबिक, शुरुआत में अंतरिक्ष यान को निम्न भू-कक्षा में स्थापित किया जाएगा. बाद में कक्षा को अधिक दीर्घ वृताकार बनाया जाएगा और उसके बाद ऑन-बोर्ड नोदन का प्रयोग करके अंतरिक्ष यान को लैग्रेंज बिंदु L1 की ओर भेजा जाएगा. जैसे ही अंतरिक्ष यान L1 की तरफ जाएगा, वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकल जाएगा और उसके बाद अंतरिक्ष यान को L1 के चारों ओर एक विशाल प्रभामंडल कक्षा (हेलो ऑर्बिट) में स्थापित कर दिया जाएगा. आदित्य-L1 इस कक्षा से लगातार सूर्य का अवलोकन कर सकता है. लॉन्चिंग से लेकर L1 तक की इस यात्रा में लगभग 4 महीने का समय लग जाएगा.

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आदित्य-एल1 मिशन के उद्देश्य –

सूर्य की सबसे रहस्यमय विशेषताओं में से एक है- सूर्य का कोरोना (Sun Corona). यह वह स्थान है जहाँ से सौर पवन (Solar Wind) का उद्गम होता है. सौर भौतिकी में सूर्य के कोरोना के अत्यधिक उच्च तापमान तक गर्म होने का कारण अभी भी एक रहस्य है. आदित्य-एल1 का प्राथमिक उद्देश्य अलग-अलग तरंग बैंडों में सौर कोरोना और क्रोमोस्फीयर का अध्ययन करना, सूर्य की सबसे बाहरी परतों की गतिशील प्रकृति और कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) के बारे में डेटा इकठ्ठा करना होगा.

आदित्य-एल1 के उपकरणों को मुख्य रूप से क्रोमोस्फीयर और कोरोना सौर वातावरण का निरीक्षण करने के लिए ट्यून किया गया है. यह मिशन सूर्य के कोरोना, क्रोमोस्फीयर और फोटोस्फीयर के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने में सहायता करेगा. इसके अलावा, यह सूर्य से निकलने वाले कण प्रवाह और चुंबकीय क्षेत्र की ताकत की भिन्नता का अध्ययन करेगा. यह पृथ्वी-निर्देशित तूफानों पर नजर रखने और सौर अवलोकनों (Solar Observations) के माध्यम से इसके प्रभाव की भविष्यवाणी करने में मदद करेगा.

सूर्य का कोरोना क्या है (What Is the Sun’s Corona)?

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हमारा सूर्य गैसों के एक आवरण से घिरा हुआ है जिसे वायुमंडल कहते हैं. कोरोना सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग है. कोरोना सूर्य के चारों ओर उसकी सतह से दस लाख किलोमीटर से भी अधिक फैला हुआ एक क्षेत्र है, आमतौर पर सूर्य की सतह की चमकदार रोशनी से छिपा रहता है. इसे विशेष उपकरणों के प्रयोग के बिना देखना कठिन हो जाता है.

हालाँकि, पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान कोरोना को देखा जा सकता है. सूर्यग्रहण के समय जब चन्द्रमा की छाया सूर्य को ढक लेती है, तब किनारों पर जो प्रकाश दिखाई देता है, वह सूर्य का कोरोना ही होता है (कृपया ग्रहण के दौरान कभी भी सूर्य की ओर सीधे न देखें).

सूर्य के कोरोना का तापमान बहुत ज्यादा है. कोरोना सूर्य के वायुमंडल की बाहरी परत में है, उसकी सतह से बहुत दूर. फिर भी कोरोना का तापमान सूर्य की सतह के तापमान से सैकड़ों गुना अधिक है. सूर्य के केंद्र का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है, सूर्य की सतह पर यह तापमान घटकर मात्र 5000 से 6000 डिग्री सेल्सियस रह जाता है.

सूर्य की सतह से दूर तापमान और भी कम होना चाहिए, लेकिन कोरोना का तापमान 10 लाख डिग्री सेल्सियस से भी अधिक मापा जाता है, और यही बात वैज्ञानिकों के लिए अब तक एक पहेली बनी हुई है. खगोलशास्त्री काफी समय से इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. वैज्ञानिकों ने बहुत सारे अनुमान तो लगाए हैं, पर अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है.

चूँकि सूर्य गर्म गैस से बना है, इसलिए वास्तव में इसकी कोई ‘सतह’ नहीं है. जैसे-जैसे आप सूर्य के केंद्र की ओर बढ़ते हैं, गैस और सघन (Dense) होती जाती है. सूर्य का कोरोना अंतरिक्ष में बहुत दूर तक फैला हुआ है. इससे सौर हवा (Solar Wind) आती है जो हमारे सौरमंडल (Solar System) में घूमती है.

कोरोना के तापमान के कारण इसके कण बहुत तेज गति से चलते हैं. ये गति इतनी अधिक है कि ये कण सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से भी बच निकलते हैं. यह पाया गया है कि कोरोना एक्स-रे विकिरण उत्सर्जित करता है (कोरोना एक प्लाज्मा है. दस लाख डिग्री से अधिक तापमान पर एक प्लाज्मा बहुत सारे एक्स-रे उत्सर्जित करेगा).

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