Section 88 and 89 IPC in Hindi
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-
दूसरे के फायदे के लिए उसकी सहमति से किया गया कार्य अपराध नहीं है, बशर्ते कर्ता का आशय मृत्यु कारित करने का न हो और कार्य सद्भावनापूर्वक किया गया हो
IPC की धारा 88 किसी डॉक्टर को आपराधिक दायित्व से सुरक्षा देती है. इस धारा में उदाहरण भी एक डॉक्टर का ही दिया गया है कि अगर कोई डॉक्टर किसी मरीज की सहमति से उसी के फायदे के लिए उसका ऑपरेशन करता है…और ऑपरेशन असफल हो जाता है, जिससे मरीज की मौत हो जाती है, तो अगर डॉक्टर का आशय मरीज की मृत्यु कारित करने का नहीं था, या डॉक्टर ने अपना काम पूरी सावधानी से किया था, तो डॉक्टर अपराधी नहीं माना जाएगा, फिर भले हो ऑपरेशन से पहले डॉक्टर यह जानता हो कि ऑपरेशन के दौरान मरीज की मौत भी हो सकती है.
IPC की धारा 88 (IPC Section 88 in Hindi)
किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सद्भावपूर्वक किया गया कार्य, जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है-
“वह कोई बात, जो मृत्यु कारित करने के आशय से न की गई हो, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस बात से किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके फायदे के लिए वह बात सद्भावपूर्वक की जाए और जिसने उस अपहानि को सहने या उस अपहानि की जोखिम उठाने के लिए, चाहे अभिव्यक्त या चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की संभाव्यता कर्ता को ज्ञात है.”
धारा 88 के अनुसार, एक कर्ता उस कार्य के लिए दंडित नहीं किया जाएगा, जिसके लिए वह जानता है कि ऐसा कार्य करने से कोई बड़ी क्षति या मृत्यु भी हो सकती है, बशर्ते-
(1) वह कार्य क्षतिग्रस्त व्यक्ति के फायदे के उद्देश्य से किया गया है,
(2) वह कार्य उसी व्यक्ति की सहमति से किया गया है कि वह होने वाली हानि को सहन करेगा (यानी एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावनापूर्वक कोई कार्य करता है, तो उसे वह कार्य बलपूर्वक करने का अधिकार नहीं मिल जाता)
(3) सहमति अभिव्यक्ति या विवक्षित हो सकती है,
(4) कार्य सद्भावपूर्वक किया गया है,
(5) कार्य बिना मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो (फिर भले ही वह जानता हो कि यह कार्य करने से व्यक्ति की मौत भी हो सकती है).
कविराज बना स्टेट (1887) के मामले में कविराज ने बवासीर के एक मरीज का ऑपरेशन एक सामान्य चाकू से किया, जिससे अत्यधिक रक्तस्राव (Bleeding) के कारण मरीज की मौत हो गई. इसमें न्यायालय ने कहा कि कविराज धारा 88 के तहत बचाव का हकदार नहीं है, क्योंकि उसने सद्भावनापूर्वक काम नहीं किया. वहीं, ऐसे व्यक्ति जो मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के रूप में योग्यता प्राप्त नहीं हैं, उन्हें भी धारा 88 के तहत कोई बचा नहीं मिलेगा.
इस धारा के तहत अभियुक्त को बचाव तभी मिल सकता है, जब कार्य सद्भावनापूर्वक किया गया हो, और कार्य किसी तरह की क्षति या मृत्यु कारित करने के आशय से न किया गया हो. यानी अगर अभियुक्ति का कार्य किसी भी रूप में निंदनीय नहीं है, तो वह किसी कार्य के लिए जिसमें मृत्यु भी शामिल है, दोषी नहीं है, फिर भले ही उसे पहले से पता हो कि उसके इस कार्य से मृत्यु भी हो सकती है. इस तरह देखा जा सकता है कि कानून उस व्यक्ति के साथ कितनी उदारता दिखाता है, जो दूसरे के फायदे के लिए काम करता है.
IPC की धारा 89 (IPC Section 89 in Hindi)
संरक्षक द्वारा या उसकी सहमति से शिशु उन्मुक्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य-
“वह कोई बात, जो 12 साल से कम उम्र के या विकृतचित्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक उसके संरक्षक के, या विधिपूर्ण भारसाधक किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा, या की अभिव्यक्ति या विवक्षित सम्मति से की जाए, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो, या कारित करने का कर्ता का आशय हो, या कारित करने की संभाव्यता कर्ता को ज्ञात हो :
लेकिन,
(1) इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्यु कारित करने या मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर नहीं होगा,
(2) इस अपराध का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर बीमारी या किसी अंग को काट देने के प्रयोजन से अलग किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात करने पर ना होगा, जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है.
(3) इस अपवाद का विस्तार स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर ना होगा, जब तक कि मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर बीमारी या अंग काटने की प्रयोजन से न की गई हो,
(4) इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा, जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है”.
धारा 89 के तहत, किसी अवयस्क या पागल व्यक्ति के अभिभावक या संरक्षक की सहमति से किया गया कार्य अपराध नहीं है, बशर्ते वह सहमति और कार्य अवयस्क या पागल व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावनापूर्वक (पूरी सावधानी से) किया गया हो, तो ऐसे में भले ही अवयस्क या पागल व्यक्ति को कोई क्षति पहुंचे, तो भी वह अपराध नहीं माना जाएगा.
उदाहरण-
A का बच्चा किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है और डॉक्टर ने उसके लिए ऑपरेशन जरूरी बताया है. लेकिन डॉक्टर ने यह भी बता दिया है कि ऑपरेशन के दौरान बच्चे की मौत भी हो सकती है. ऐसे में अगर A डॉक्टर को अपने बच्चे के ऑपरेशन की सहमति दे देता है, इस आशय से कि शायद बच्चा बच जाए तो भले ही ऑपरेशन के दौरान बच्चे की मौत हो जाती है, तो भी A ने कोई अपराध नहीं किया, क्योकि उसका उद्देश्य अपने बच्चे को बीमारी से बचाना था. यही बात किसी पागल व्यक्ति के अभिभावक या विधिक संरक्षक पर भी लागू होगी.
इस तरह, धारा 89 के तहत बचाव का अधिकार पाने के लिए जरूरी है कि-
(1) कार्य 12 साल से कम उम्र के बच्चे या विकृतचित्त वाले व्यक्ति के फायदे के लिए किया गया हो,
(2) कार्य सद्भावपूर्वक किया गया हो,
(3) कार्य अभिभावक की तरफ से या अभिभावक की सहमति से, या उस व्यक्ति पर विधिक अधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया हो,
(4) सहमति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है.
इसी के साथ, धारा 89 में 4 अपवाद भी बताए गए हैं, यानी जिन परिस्थितियों में ये धारा लागू नहीं होगी. इन अपवादों में से किसी के भी तहत कोई कार्य नहीं होना चाहिए, नहीं तो इस धारा का बचाव नहीं मिलेगा. अगर किसी अभिभावक या किसी विधिक संरक्षक की तरफ से अपने अवयस्क बच्चे या पागल व्यक्ति की साशय मृत्यु कारित करने या कोई गंभीर चोट पहुंचाने के मकसद से सहमति दी गई हो, तो इस धारा के तहत उसे कोई बचाव नहीं मिलेगा. जैसे- अगर कोई संरक्षक लौकिक फायदे के लिए किसी देवता को अपने बच्चे की बलि चढ़ा देता है, तो वह धारा 89 के तहत बचाव का अधिकारी नहीं होगा.
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