Megasthenes Indica Book Facts
इंडिका (Indica or Indika) पुस्तक ग्रीक (यूनानी) लेखक मेगस्थनीज (Megasthenes) द्वारा मौर्यकालीन भारत का एक लेख है. यह पुस्तक मूल रूप से प्राप्त नहीं हुई है. मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) के समय भारत आया था. वह पहला पश्चिमी यात्री था जिसने भारत की यात्रा की.
कई यूनानी दार्शनिकों ने मेगस्थनीज की काफी भर्त्सना की है, क्योंकि उसने अपनी पुस्तक में भारत का अनुपम विवरण दिया है. कई भारतीय क्रिटिक भी मेगस्थनीज को हवाबाज बताते हैं, क्योंकि उसके कई किस्से अविश्वनीय हैं. मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका के आज गिने चुने-हिस्से ही उपलब्ध हैं. उन्हीं हिस्सों के हवाले से कुछ जानने का प्रयास करते हैं-
मेगस्थनीज लिखते हैं-
• भारत एक चतुर्भुज के आकार का देश है, जो दक्षिणी और पूर्वी तरफ महासागर से घिरा है. सिंधु नदी देश की पश्चिमी और उत्तरी-पश्चिमी सीमा बनाती है, जहाँ तक समुद्र है.
• भारत में सिलस नामक एक नदी (Silas River) है, जिसमें कुछ भी डालो, वह डूब जाता है, इसमें कुछ भी तैरता नहीं है. इसके अलावा, बड़ी संख्या में अन्य नदियाँ हैं, जो कृषि के लिए प्रचुर मात्रा में पानी की आपूर्ति करती हैं.
• भारतीयों ने भारत के बाहर कोई उपनिवेश स्थापित नहीं किया है (भारतीय लोगों ने कभी किसी और देश पर आक्रमण किया) और न किसी आक्रमणकारी ने भारत में कभी राज किया है.
• प्रचुर मात्रा में भोजन, बढ़िया पानी और शुद्ध हवा के कारण भारतीय लोग औसत से अधिक कद के हैं. वे कला में अच्छी तरह से कुशल हैं.
• प्राचीन भारतीय दार्शनिकों द्वारा निर्धारित एक कानून, गुलामी पर प्रतिबंध लगाता है. कानून सीधे और साफ हैं. दण्डविधान कठोर है. कानून सभी के साथ समान व्यवहार करता है.
• भारतीय मुक्त समाज है, गुलामी नहीं है. लोग कपड़े और गहने आदि शानदार पहनते हैं. शहर में घर और जायदाद पर ताला आदि नहीं लगता. नगरवासी फ्रूगल यानी मितव्ययी और सादा जीवन जीते हैं.
• भारतीय भूमि पर सोना, चांदी, तांबा और लोहा प्रचुर मात्रा में हैं. टिन और अन्य धातुओं का प्रयोग कई उपकरण, हथियार, गहने और अन्य लेख आदि बनाने के लिए किया जाता है.
• भारतीय योद्धा कृषि और पशुपालन में लगे लोगों को पवित्र मानते हैं. अन्य देशों के योद्धाओं के विपरीत, वे युद्ध विजय के दौरान खेतों को नष्ट नहीं करते हैं. इसके अतिरिक्त, युद्धरत पक्ष (युद्ध में लगे हुए लोग) कभी भी आग से दुश्मन की जमीन को नष्ट नहीं करते और न ही उसके पेड़ों को काटते हैं.
• भारत में बहुत उपजाऊ मैदान हैं, और सिंचाई का व्यापक रूप से अभ्यास किया जाता है. मुख्य फसलों में चावल, बाजरा, बोस्पोरम, अनाज, दालें और अन्य खाद्य पौधे शामिल हैं. प्रति वर्ष दो फसल चक्र होते हैं. गर्मियों में संक्रांति, चावल, बाजरा, के समय बोस्पोरम और सेसामम बोया जाता है. सर्दियों के दौरान गेहूं बोया जाता है.
• भारत में विदेशियों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है. विशेष अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त किया जाता है कि किसी भी विदेशी को कोई नुकसान न पहुंचे, और न्यायाधीश विदेशियों को अनुचित लाभ उठाने वालों को कठोर दंड दें. बीमार विदेशियों की चिकित्सकों द्वारा देखभाल की जाती है. भारत में मरने वाले विदेशियों को दफनाया जाता है, और उनकी संपत्ति उनके रिश्तेदारों तक पहुंचाई जाती है.
नोट – यह सिलस नदी कौन सी नदी है? इस नदी का उल्लेख किसी और जगह नहीं मिलता. चूँकि मेगेस्थनीज कोई भी बात लिखते समय यूनानी नाम आदि का प्रयोग भी करता था, जिससे आज भी पक्के तौर पर यह पता नहीं चल पाया कि वह किसके बारे में बात कर रहा है. जैसे चन्द्रगुप्त को ‘सैण्ड्रोकोट्स’ लिखा गया है. मेगस्थनीज ने इंडिका में भगवान् शिव, श्रीकृष्ण और इंद्र पूजा का भी उल्लेख किया है.
मेगस्थनीज ने भारत में सात जातियों का उल्लेख किया है-
दार्शनिक जाति- ये न किसी के स्वामी हैं न नौकर और न किसी के तहत काम करते हैं. देवताओं को सबसे प्रिय माना जाता है. इनका काम अध्यापन, जीवन-मरण आदि के कर्मकाण्ड करवाना, सूखा-अकाल, अत्यधिक वर्षा बाढ़ आदि की भविष्यवाणी करना है. इन भविष्यवाणियों के आधार पर, नागरिक और शासक पर्याप्त तैयारी करते हैं. जिस दार्शनिक की भविष्यवाणी गलत साबित हो जाती है, उसे कड़ी आलोचना मिलती है और वह शेष जीवन के लिए मौन व्रत धारण कर लेता है, पर उस पर कोई दंड नहीं लगाया जाता है. दार्शनिक जाति में वैद्य का अहम् स्थान है.
कृषक जाति- यह जाति केवल भूमि का काम करत है. भूमि की उर्वरता को मेन्टेन करना, फसल आदि का काम इनके जिम्मे है. इन लोगों को युद्ध-लड़ाई और अन्य सार्वजनिक कर्तव्यों से छूट दी गई है. इन पर कोई भी शत्रु वार नहीं करता. इन्हें राज्य से सुरक्षा प्राप्त होती है. गांव में रहने वाले कृषक जाति के लोग राजा को कर अदा करते हैं और इसी जाति के कारण भारत में खाद्य आदि की कमी नहीं है.
गड़रिया और शिकारी जाति- ये लोग शहर या गांव में नहीं रहते, बल्कि घुमन्तु लोग हैं और इनका काम फसल को नष्ट करने वाले पक्षियों और जानवरों आदि से रक्षा करना है. जंगली जानवरों और पक्षियों से बाकी लोगों की रक्षा करना इनका कर्तव्य है.
कारीगर जाति- इस जाति के लोग तरह-तरह के कार्य करते हैं. इस जाति को करों का भुगतान करने से छूट दी गई है (टैक्स माफ है). इन्हें राजा से सब्सिडी (रखरखाव) भी प्राप्त होती है. ये लोग किसानों और अन्य लोगों के लिए हथियारों के साथ-साथ उपकरण भी बनाते हैं.
सैन्य जाति- इस जाति के लोग भारत में सबसे ज्यादा संख्या में हैं. युद्ध के लिए अच्छी तरह से संगठित और सुसज्जित होते हैं. रणक्षेत्रों में वे शिविरों में रहते हैं और शांतिपूर्ण समय के दौरान मनोरंजन और आराम में लिप्त रहते हैं. इनका काम राज्य की सुरक्षा करना है, हाथी-घोड़े आदि सबकी देख रेख करना है. इस जाति का पूरा खर्चा राज्य उठाता है.
अधिकारी या अधिदर्शक जाति- इनका काम राज्य के कार्यभार संभालना है. ये प्रशासनिक कार्यों को पूरा करते हैं. यह जाति राजा या न्यायधीशों को रिपोर्ट करती है.
परामर्श और आकलन जाति- यह सबसे छोटी जाति है (अर्थात इस जाति के लोगों की संख्या सबसे कम थी). समाज में सबसे ज्यादा सम्मान इस जाति का है. ये लोग मंत्री, न्यायधीश, सैन्य कमांडर, खजांची आदि हैं. शाही सलाहकार, राज्य कोषाध्यक्ष, विवाद मध्यस्थ, सेनापति और मुख्य दंडाधिकारी भी आमतौर पर इसी वर्ग में शामिल थे.
इसी के साथ, कई विभागों में अनेक विदेशी लोग भी नियुक्त हैं जो विदेश से जुड़े मामलों को देखते हैं.
• मेगस्थनीज ने भारत में दास प्रथा का उल्लेख नहीं किया, जबकि कौटिल्य के अर्थशास्त्र में दास-दासियों का उल्लेख मिलता है. लेकिन चूंकि यूरोप या अन्य संस्कृतियों में दासों के ऊपर जिस प्रकार के अत्याचार किये जाते थे, भारत की हिन्दू संस्कृति उन सबसे बिल्कुल अलग रही है. यहाँ दास-दासियों का अर्थ गुलामी से नहीं है. यहाँ दासों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाता था, साथ ही उन्हें कई अधिकार भी दिए गए थे, इसीलिए मेगस्थनीज या अन्य विदेशी यात्री भारत के दास-दासियों की पहचान ही नहीं कर पाए.
मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र के बारे में लिखा है-
मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र को समानांतर चतुर्भुज नगर कहा है. गंगा और Erannaboas नदी के संगम पर बसा यह शहर विशाल है. इसकी लंबाई साढ़े नौ मील और चौड़ाई पौने दो मील है. नगर के चारों ओर एक दीवार है जिसमें अनेक फाटक और दुर्ग बने हैं. नगर के ज्यादातर मकान लकड़ी के बने हैं. चारों ओर से खाई खुदी हुई हैं चौसठ द्वार और 570 वाच टावर हैं.
पाटलिपुत्र में चारों ओर लकड़ी की प्राचीर है जिसके भीतर तीर छोड़ने के स्थान बने हैं. उद्यान में देशी तथा विदेशी दोनों प्रकार के वृक्ष लगाए गए हैं. राजा का जीवन बड़ा ही ऐश्वर्यमय है. सम्राट् का भवन पाटलिपुत्र के मध्य में स्थित है. भवन चारों ओर सुन्दर और रमणीक उपवनों तथा उद्यानों से घिरा है. प्रासाद के इन उद्यानों में लगाने के लिए दूर-दूर से वृक्ष मँगाए जाते हैं. भवन में मोर पाले जाते हैं.
भवन के सरोवर में बड़ी-बड़ी मछलियाँ पाली जाती हैं. सम्राट् प्राय: अपने भवन में ही रहता है और युद्ध, न्याय तथा आखेट के समय ही बाहर निकलता है. मेगेस्थनीज और कौटिल्य दोनों से ही ज्ञात होता है कि राजा के प्राणों की रक्षा के लिए समुचित व्यवस्था थी. अस्त्रधारी स्त्रियाँ भी राजा की रक्षा करती थीं. राजा राजप्रसाद से सोने की पालकी या हाथी पर बाहर निकलता है. सम्राट् की वर्षगाँठ बड़े समारोह के साथ मनाई जाती है. राज्य में शांति और अच्छी व्यवस्था रहती है. अपराध कम होते हैं. प्राय: लोगों के घरों में ताले नहीं लगे होते हैं.
सेना के कार्य और प्रबंध में राजा स्वयं दिलचस्पी लेता है. सेना के छोटे-बड़े सैनिकों को राजकोष से नकद वेतन दिया जाता है. मेगस्थनीज ने भारतीयों के खाने के विषय में भी हल्की-फुल्की जानकारी दी है जैसे चावल का प्रयोग. दरबार में अच्छी सजावट होती है और सोने-चाँदी के बर्तनों से आँखों में चकाचौंध पैदा हो जाती है.
मेगस्थनीज की इंडिका में चाणक्य का उल्लेख क्यों नहीं मिलता है?
कुछ लोग आज यह सवाल उठाते हैं कि मेगेस्थनीज ने इंडिका में चाणक्य का उल्लेख क्यों नहीं किया है. और कुछ लोग तो इसी आधार पर यह भी कह देते हैं कि ‘चाणक्य काल्पनिक हैं’.
तो पहली बात तो यह है कि जिन बातों का उल्लेख इंडिका में नहीं मिलता है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह बात उस समय थी ही नहीं. मेगस्थनीज ने तो इंडिका में महात्मा बुद्ध और बौद्धों से भी सम्बंधित कोई उल्लेख नहीं दिया है. तो इसका अर्थ यह तो नहीं कि हम इन सबको भी काल्पनिक मान लें.
दूसरी बात कि यह सभी जानते हैं कि मेगस्थनीज की इंडिका आज जो हम सबके सामने है, वह मूल पुस्तक नहीं है. मूल इंडिका के कुछ हिस्से ही शेष रह गए हैं, बहुत सारे सन्दर्भ उसमें नहीं हैं, जो मेगस्थनीज ने लिखे थे. हो सकता है कि उसने मूल पुस्तक में चाणक्य का भी उल्लेख किया हो.
तीसरी बात कि मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक में बहुत जगहों पर यूनानी भाषा का ही प्रयोग किया है. जैसे सिलस नदी, सेंड्रोकोट्स, मथुरा को ‘मेथोरा’ आदि. इसलिए उसके कुछ शब्दों को आज भी नहीं समझा जा सका है कि “यहां” वह पक्के तौर पर किसकी बात कर रहा है.
मेगस्थनीज ने मुख्य रूप से भारत, भारत के तत्कालीन शासक, शासन व्यवस्था, भारतीय लोगों, उनके रहन-सहन, खानपान, सामाजिक व्यवस्था आदि का वर्णन किया है. उसने इंडिका में तत्कालीन शासक के किसी भी मंत्री, सेनापति, अमात्य आदि के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया है.
चाणक्य के जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है. चन्द्रगुप्त को राजा बनाने और मौर्य समाज की स्थापना के बाद चाणक्य की भूमिका सीमित हो गई थी. कहा जाता है कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे, क्योंकि उन्होंने अखंड भारत का सपना देखा था, अपने लिए सत्ता और धन का नहीं.
आचार्य चाणक्य का उल्लेख
आचार्य चाणक्य का उल्लेख विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो आया ही है, मुद्राराक्षस, दशकुमारचरितम, कामन्दकीयनीतिसार और कादम्बरी आदि में भी बार-बार चाणक्य और उनके कार्यों का उल्लेख हुआ है.
इसी के साथ, बौद्ध ग्रंथों में भी आचार्य चाणक्य की विस्तृत कथा बराबर मिलती है. बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका और महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का विस्तृत वृत्तांत दिया हुआ है. महावंश में मौर्य समाज की स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त को नहीं, चाणक्य को ही स्पष्ट रूप से दिया गया है. देखिये महावंश का यह उद्धरण-
मोरियान खत्तियान वसजात सिरीधर।
चन्दगुत्तो ति पञ्ञात चणक्को ब्रह्मणा ततो।।१६।।
नवामं घनान्दं तं घातेत्वा चणडकोधसा।
सकल जम्बुद्वीपस्मि रज्जे समिभिसिच्ञ सो।।१७।।
“चाणक्य नामक ब्राह्मण ने मौर्यवंश नाम के क्षत्रियों में उत्पन्न श्री चंद्रगुप्त के हाथों नवे घनानंद का वध करवा के चंद्रगुप्त को संपूर्ण जम्बूदीप का राजा बनाया.”
आचार्य चाणक्य जी के बारे में लिखा है कि कौटिल्य या विष्णुगुप्त नाम से विख्यात चाणक्य (अनुमानतः 376 ई॰पु॰ – 283 ई॰पु॰) बड़े ही स्वाभिमानी और राष्ट्रप्रेमी व्यक्ति थे. वे जन्म से ब्राह्मण, कर्मों से सच्चे ब्राह्मण, उत्पत्ति से क्षत्रिय, सम्राट चन्द्रगुप्त के गुरु तथा अपने माता-पिता की प्रथम संतान थे. वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे और उन्होंने मुख्य रूप से भील और किरात राजकुमारों को प्रशिक्षण दिया.
नंदवंश का नाश कर चन्द्रगुप्त मौर्य को अजापाल से प्रजापाल (राजा) बनाया. उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है, जिसकी चर्चा सर्वत्र मिलती है. अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है. मेगस्थनीज के मौर्य शासनकालीन विवरण चाणक्य के अर्थशास्त्र से मेल खाते हैं.
भारत और यूनान में समानता (Similarities between India and Greece)
यूनानी पौराणिक कथाओं और भारतीय सनातन कथाओं में काफी कुछ समानताएं देखने को मिलती हैं. जैसे ग्रीस की Athena देवी के नीचे भी उल्लू बैठा है (भारत में माता लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू है). ग्रीक लोक कथाओं में हरक्यूलिस देवता के 12 चमत्कार विख्यात हैं जो श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की नकल हैं, जैसे देवता को अनेक मुंह वाले नागों से लड़ते हुए दिखाना, वंशी बजाते हुए गायों को चराते हुए दिखाना आदि. ग्रीस में भी सूर्य को देवता मानकर उसकी पूजा की जाती है. प्राचीन ग्रीस के लोग भी ‘Trinity’ या ‘त्रीणि इति’ की पूजा करते थे, जैसे भारत में ब्रह्मा-विष्णु-महेश की पूजा की जाती है.
इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं, “यूरोपीय विद्वान ‘मित्र’ या ‘मित्रस’ देवता को ईरानी समझकर आश्चर्य प्रकट करते हैं कि ग्रीस और रोम में भी सूर्य देवता की पूजा की प्रथा कैसे चल पड़ी?” उन्होंने यह भी लिखा है कि, “यूरोप में ऐतिहासिक और पुरातत्वीय उत्खनन से प्राप्त वैदिक अवशेष या तो जानबूझकर छिपा दिए जाते हैं, या नष्ट कर दिए जाते हैं या उनका विकृत अर्थ लगा दिया जाता है. जैसे ग्रीस में श्रीकृष्ण की प्रतिमाएं और रामायण के चित्र कई इमारतों में पाए गए, फिर भी उनका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया.”
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