IPC Section 98 in Hindi – भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-
भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 तक प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकारों (Right of Private Defense) के बारे में बताया गया है.
IPC की धारा 98
ऐसे व्यक्ति के कार्य के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित्त आदि हो-
“जब कि कोई कार्य जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपर, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्तविकृति या मत्तता के कारण या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण, वही अपराध नहीं है, तब हर व्यक्ति उस कार्य के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता.”
उदाहरण-
(1) अगर A नाम का व्यक्ति जो पागल है, B को जान से मारने का प्रयास करता है. A किसी अपराध का दोषी नहीं है (क्योंकि उसे धारा 84 के तहत बचाव मिल सकेगा) लेकिन B को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह A के स्वस्थचित्त होने की दशा में रखता. यहां अगर B को अपने बचाव में A को कोई क्षति भी पहुंचाने पड़े, तो भी B को धारा 98 के तहत प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार मिलेगा.
(2) A रात के समय एक ऐसे घर में प्रवेश करता है, जिसमें प्रवेश करने का उसे वैध अधिकार है. उस घर में रह रहा B सद्भावपूर्वक A को कोई चोर समझकर उस पर हमला करता है. यहां B ने इस भ्रम के कारण हमला किया है कि A चोर है, इसलिए उसने कोई अपराध नहीं किया, लेकिन यहां A को B के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह तब रखता, जब B अपने भ्रम के अधीन कार्य न करता.
धारा 98 के कहने का मतलब ये है कि प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार आक्रमण करने वाले की स्थिति या मानसिक हालत पर नहीं, बल्कि उसके द्वारा किए जा रहे कार्य के दोषपूर्ण प्रकृति पर निर्भर करता है.
जैसे- अगर कोई अवयस्क व्यक्ति या कोई पागल व्यक्ति या नशे की हालत में कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति पर हमला करता है या उसे जान से मारने की कोशिश करता है, तो भले ही उस अवयस्क या पागल व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जाएगा (क्योंकि उन्हें धारा 82 से 86 तक की किसी धारा के तहत बचाव मिल सकेगा), लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वे जिस व्यक्ति पर हमला कर रहे हैं या किसी को जान से मारने की कोशिश कर रहे हैं, तो उसे अपना बचाव करने का कोई अधिकार नहीं है.
कोई अवयस्क या पागल या नशे की हालत में कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति पर हमला करता है, तो जिस व्यक्ति पर हमला किया गया है, उसे उसी तरह अपने बचाव का अधिकार होगा, जैसे किसी स्वस्थचित्त या समझदार व्यक्ति ने उस पर हमला किया हो. यहां उससे ये नहीं कहा जाएगा कि अवयस्क या पागल व्यक्ति अपने कार्य की प्रकृति को नहीं समझता था, इसलिए तुम्हें अपने बचाव में उसे क्षति पहुंचाने का कोई अधिकार नहीं था.
पढ़ें – भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 96 और 97 : प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार
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