IPC Section 96 and 97 in Hindi – भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-
भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 तक प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकारों (Right of Private Defense) के बारे में बताया गया है.
IPC की धारा 96
प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें-
“वह कोई बात अपराध नहीं है, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाती है”.
धारा 96 प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय को बताती है. यह घोषणा करती है कि प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की गई कोई भी बात अपराध नहीं है. इस संबंध में सर हेनरी मेन ने चार सिद्धांत दिए हैं-
(1) समाज या राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के शरीर और संपत्ति की रक्षा करे,
(2) जहां समाज की सहायता प्राप्त हो सकती है, वहां उसे जरूर प्राप्त करनी चाहिए.
(3) लेकिन जहां समाज की सहायता प्राप्त नहीं हो सकती, वहां आत्मरक्षा के लिए जिन साधनों का इस्तेमाल किया जाएगा, वे सम्मानजनक माने जाएंगे.
(4) प्राइवेट प्रतिरक्षा में उतनी ही हिंसा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जितनी हमले के निवारण के लिए जरूरी है.
प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार की दो महत्वपूर्ण सीमाएं हैं. पहला ये कि प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार किसी भी ऐसे कार्य को न्यायोचित नहीं ठहरा सकता, जो निश्चित रूप से प्रतिरक्षा नहीं है, बल्कि एक अपराध ही है. दूसरा ये कि प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल उस समय नहीं किया जा सकता, जब इसकी मांग करने वाला खुद ही आक्रमण करता हो.
उत्तर प्रदेश राज्य बनाम पेप्सू के मामले में कहा गया कि जो व्यक्ति खुद ही आक्रामक है और जो खुद ही अपने ऊपर आक्रमण को आमंत्रित करता है, अपने आक्रमण या प्रहार के कारण वह व्यक्ति प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने का हकदार नहीं है.
IPC की धारा 97
इस धारा के तहत, IPC की धारा 99 में बताए गए निर्बंधनों के अधीन रहते हुए हर एक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपने या किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर, या अपनी या किसी दूसरे व्यक्ति की संपत्ति (चाहे चल हो या अचल) की रक्षा करे.
शरीर और संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार-
“धारा 99 में अंतर्विष्ट निर्बंधनों के अध्यधीन हर व्यक्ति को अधिकार है कि वह-
(1) मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के खिलाफ अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करे,
(2) किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाला अपराध है, या जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न है, अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की, चाहे जंगम (चल संपत्ति) या चाहे स्थावर संपत्ति की प्रतिरक्षा करे.”
धारा 97 यह बताती है कि प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल किस सीमा तक किया जा सकता है. धारा 97 और 99 दोनों मिलकर प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का सिद्धांत पेश करती हैं. धारा 97 के तहत प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार अपने ही शरीर और संपत्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल दूसरे व्यक्ति के शरीर और संपत्ति की प्रतिरक्षा के लिए भी किया जा सकता है.
भारत में हर एक व्यक्ति को अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की, मानव शरीर को प्रभावित करने वाले किसी भी अपराध से या चल और अचल संपत्ति, चाहे अपनी हो या किसी अन्य की…चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार या इनमें से किसी एक को कारित करने के प्रयास से प्रतिरक्षित (बचाव) करने का अधिकार है.
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