Brahmarshi Vishwamitra ki Katha
पुरुषार्थ, सच्ची लगन, उद्यम और तप की गरिमा के रूप में महर्षि विश्वामित्र (Maharishi Vishwamitra) का नाम कौन नहीं जानता. मां गायत्री के आशीर्वाद से कौशिक वंश के तेजस्वी और तपस्वी योद्धा विश्वरथ विश्वामित्र बने. वे अपने तप से राजा से राजर्षि, राजर्षि से महर्षि और महर्षि से ब्रह्मर्षि बने. महामुनि विश्वामित्र तपस्या के धनी हैं. इन्होंने गायत्री साधना तथा दीर्घकालीन संध्योपासना की तप:शक्ति से सभी विकारों पर विजय प्राप्त की और तपस्या के आदर्श बन गये.
ब्रह्माजी ने स्वयं प्रत्यक्ष होकर उन्हें ब्रह्मर्षि घोषित किया. किन्तु विश्वामित्र जी का आग्रह था कि गुरु वशिष्ठ जी ही उन्हें ब्रह्मर्षि घोषित करें. जिन वशिष्ठ जी से उन्हें ब्रह्मर्षि बनने की प्रेरणा मिली, उन्हीं वशिष्ठ जी ने समस्त देवताओं के सम्मुख मुक्तकंठ से विश्वामित्र जी को ब्रह्मर्षि घोषित किया. महर्षि वसिष्ठ जी के साथ विश्वामित्र जी का जो विवाद हुआ, प्रतिस्पर्धा हुई, वह भी लोकशिक्षा का ही एक रूप है. इस आख्यान से गोमहिमा, त्याग का आदर्श, क्षमा की शक्ति, उद्यम की महिमा, तपस्या की शक्ति, पुरुषार्थ एवं प्रयत्न की दृढ़ता, कर्मयोग, सच्ची लगन और निष्ठा एवं दृढ़तापूर्वक कर्म करने की प्रेरणा मिलती है.
सृष्टि को विश्वामित्र जी की देन अपूर्व है. उन्होंने अपने तपोबल से गायत्री माता का साक्षात्कार किया. भगवती गायत्री कैसी हैं, उनका क्या स्वरूप है, उनकी आराधना कैसे करनी चाहिये, यह सर्वप्रथम श्री विश्वामित्र जी ने ही हमें बताया है. विश्वामित्र जी को अनेक मंत्रस्वरूपों का दर्शन हुआ, इसलिये ये ‘मन्त्रद्रष्टा ऋषि‘ कहे जाते हैं.
ऋग्वेद के दस मण्डलों में तृतीय मण्डल, जिसमें 62 सूक्त हैं, इन सभी मंत्र समूहों के द्रष्टा ऋषि विश्वामित्र ही हैं. इसीलिये तृतीय मण्डल ‘वैश्वामित्र-मण्डल’ कहलाता है. इस मण्डल में देवताओं की स्तुतियों सहित अनेक ज्ञान-विज्ञान, अध्यात्म एवं गो-महिमा आदि का विस्तृत वर्णन है. इसी तृतीय मण्डल में ब्रह्मगायत्री का मूलमंत्र भी उपलब्ध होता है. इस मंत्र को सभी वेदमंत्रों का मूल या बीज कहा जाता है. इसीलिये गायत्री को ‘वेदमाता’ भी कहा जाता है.
जिन राजा सत्यब्रत को सशरीर स्वर्ग में आने से देवता रोक रहे थे, उन सत्यब्रत के लिए विश्वामित्र जी ने अपने तपोबल से एक नया स्वर्ग ही रच डाला. सत्यधर्म के आदर्श राजर्षि हरिश्वन्द्र का नाम कौन नहीं जानता? किंतु महर्षि विश्वामित्र की दारुण परीक्षा से ही हरिश्वन्द्र की सत्यता में निखार आया. देवता उस समय अहंकारवश स्वयं को ही सर्वश्रेष्ठ मान रहे थे, पर राजा हरिश्चंद्र के जीवन द्वारा विश्वामित्र जी ने यह प्रमाणित कर दिया कि मनुष्य होते हुए भी राजा हरिश्चंद्र देवताओं से भी उत्तम और श्रेष्ठ हैं.
विश्वामित्र जी की महिमा के विषय में इससे अधिक क्या कहा जा सकता है कि साक्षात् भगवान् जिन्हें अपना गुरु मानकर उनकी सेवा करते थे. विश्वामित्र जी ने श्रीराम और लक्ष्मण जी को अपनी विद्याएं और शक्तियां अर्पित कर दीं. विश्वामित्र जी भगवान् श्रीराम की चिन्मय लीलाओं के वे मूलप्रेरक रहे तथा लीला-सहचर भी बने, जैसे- श्रापग्रस्त अहिल्या को मुक्ति दिलवाई, श्रीराम का विवाह सीताजी से संपन्न कराया. राम-सीता जी के विवाह के पश्चात् ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने सप्तर्षियों में स्थान प्राप्त किया. विश्वामित्र जी का जीवन अनुपम, अद्वितीय एवं वंदनीय है.
विश्वामित्र और उनकी तपस्या
विश्वामित्र जी की कठोर तपस्या को देखकर सभी देवता घबरा गए थे, क्योंकि वे अपने तपोबल से देवताओं की शक्तियों को भी चुनौती देने लगे थे. उनकी तपस्या को भंग करने के लिए नाना प्रकार के विघ्न उपस्थित किये गए. जब विश्वामित्र को उनकी तपस्या के फलस्वरूप आशीर्वाद के रूप में खीर प्राप्त हुई, तभी देवराज इंद्र ने एक याचक के वेश में आकर उनसे भोजन की याचना की. विश्वामित्र जी ने वह खीर इंद्र को दे दी और मौन रहकर फिर दीर्घकालीन तपस्या में लीन हो गये.
• कई कथाओं में यह देखने को मिलता है कि जब किसी की वर्षों की तपस्या पूरी हुई, तब उस तपस्या का शुभ फल उसे खीर के रूप में दिया गया. जैसे देवी सुकन्या के पतिव्रत धर्म और तपस्या से प्रसन्न होकर अश्विनी कुमारों ने च्यवन ऋषि को खीर खिलाई थी जिससे उन्हें युवावस्था प्राप्त हुयी थी. इसी प्रकार वर्षों से संतान प्राप्ति की प्रतीक्षा कर रहे राजा दशरथ जी की तपस्या जब सफल हुई, तब यज्ञ के बाद अग्नि देव द्वारा उन्हें खीर दी गई, जिससे तीनों रानियों को भगवान को अपने गर्भ में धारण करने की शक्ति प्राप्त हुई.
विश्वामित्र जी की तपस्या को भंग करने के लिए स्वर्ग की अप्सरा रम्भा को भेजा गया. रम्भा को अपने सौंदर्य पर अत्यंत ही अहंकार था. उन्हें लगता था कि वे अपने सौंदर्य से किसी की भी तपस्या भंग कर सकती हैं. अतः उन्होंने सीधे ही जाकर विश्वामित्र पर अपनी शक्तियों का प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया. लेकिन विश्वामित्र जी पर उनका कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने क्रोध में आकर रम्भा को शाप देकर पत्थर का बना दिया. रम्भा के क्षमा मांगने पर विश्वामित्र जी ने द्रवित होकर उन्हें शाप से मुक्त होने का उपाय बता दिया.
रम्भा को शाप देने बाद विश्वामित्र जी को भी कुछ अहंकार आ गया था, कि अब तो उन्होंने सभी प्रकार के विकारों पर विजय पा ली है. उनका वह अहंकार मेनका ने तोड़ा था, क्योंकि मेनका को अपने रूप-सौंदर्य का अहंकार नहीं था. मेनका के जाने के बाद विश्वामित्र जी समझ गए थे कि ‘ये जो बार-बार मेरी तपस्या भंग हो रही है, उसका दोषी कोई दूसरा नहीं, बल्कि मैं स्वयं हूँ. कहीं न कहीं मेरे ही मन के किसी विकार का द्वार खुला हुआ है, जिससे बाधाएं बार-बार प्रवेश कर रही हैं.’ और तब नन्ही शकुंतला के सुरक्षित कण्व ऋषि के पास पहुँच जाने के बाद, विश्वामित्र जी ने केवल अपनी त्रुटियों पर ध्यान दिया और अपनी तपस्या पर ध्यान केंद्रित कर दिया, और तब उनकी ब्रह्मऋषि बनने की यात्रा पूर्ण हुई.
उनके तप से प्रभावित देवताओं ने ब्रह्माजी से निवेदन किया कि, “भगवन्! महर्षि विश्वामित्र की तपस्या अब पराकाष्ठा को पहुँच गई है. वे क्रोध और मोह की सीमाओं को भी पार कर चुके हैं. उनके तेज के आगे सूर्य और चन्द्रमा का तेज भी फीका पड़ गया है. अतः आप प्रसन्न होकर इनकी अभिलाषा को पूर्ण कीजिये.”
तब ब्रह्माजी ने विश्वामित्र जी को ब्रह्मर्षि की उपाधि प्रदान की किन्तु विश्वामित्र जी ने कहा कि ‘हे भगवन्! जब आपने मुझे यह वरदान दिया है तो मुझे ओंकार, षट्कार तथा चारों वेद भी प्रदान कीजिये. प्रभो! अपनी तपस्या को मैं तभी सफल समझूँगा जब श्री वशिष्ठ जी भी मुझे ब्रह्मर्षि मान लेंगे.’ और तब क्षमा की मूर्ति गुरु वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र जी को समस्त देवताओं के सम्मुख अपने हृदय से लगाकर कहा- ‘महर्षि विश्वामित्र! आप वास्तव में ब्रह्मर्षि हैं.’ दो महान् संतों का अद्भुत मिलन हुआ. देवताओं ने पुष्पवर्षा की. आज भी सप्तर्षियों में स्थित होकर महर्षि विश्वामित्र जगत के कल्याण में निरत हैं.
Read Also :
सनातन धर्म से सम्बंधित तथ्य, सवाल-जवाब और कथाएं
Tags : vishvamitra kaun the, vishvamitra ke putra ka naam, vishwamitra and menaka, vishwamitra aur menka ki kahani, vishwamitra gayatri mantra, gayatri mantra ki rachna kisne ki, gayatri mantra ke rachyita kaun hai, vishwamitra vashist ki ladai, saptrishi ke naam, tapasya kaise kare, brahmarshi vishwamitra, brahman kaise bante hain, vedic rishi
Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved
All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.
Be the first to comment