Can Women Touch Shivling
आजकल इस प्रकार का एक विचार फैलाया जा रहा है कि स्त्रियों को शिवलिंग का पूजन और स्पर्श नहीं करना चाहिए, या शिवलिंग को घर में स्थापित नहीं करना चाहिए आदि. हालाँकि शिवलिंग को छूने या उसकी पूजा करने या घर में उसकी स्थापना करने में किसी प्रकार का कोई निषेध या भेदभाव प्राचीन इतिहास में नहीं मिलता है.
एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल ने लिखा है कि “महिलाओं को खासकर कुंवारी कन्याओं को शिवलिंग को हाथ नहीं लगाना चाहिए. यहां तक कि शिवलिंग की पूजा का ख्याल करना भी उनके लिए निषेध है. स्त्री को शिवलिंग के करीब जाने की आज्ञा नहीं है, क्योंकि भगवान शिव बेहद गंभीर तपस्या में लीन रहते हैं. महादेव की तंद्रा भंग न हो जाए. महिलाओं का शिवलिंग को छूकर पूजा करना पार्वती को भी पसंद नहीं है.”
अब इस प्रकार की बात ये लोग किस आधार पर लिखते हैं, उसका कोई रेफरेंस या प्रमाण ये लोग नहीं देते, क्योंकि ऐसी कोई बात हमारे शास्त्रों में लिखी ही नहीं है. बल्कि कथाओं के अनुसार, हरतालिका तीज पर अविवाहित लड़कियों को तो भगवान शिव का पूजन जरूर करना चाहिए. शिवपुराण, लिंगपुराण, स्कंदपुराण आदि में शिवलिंग के निर्माण, उसके पूजन आदि की विधि और नियम बताये गए हैं. उनमें ऐसी कोई बात नहीं लिखी है. इसी के साथ, कुछ उदाहरण देखिये-
• भारत के दक्षिण भाग में एक घुश्मा नाम की स्त्री थी. वह प्रतिदिन शिवलिंग का पूजन किया करती थी. उस पर भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा. इस पर उस स्त्री ने भगवान शिव से यही वर मांगा कि मेरे नाम से आप इसी स्थान पर सदैव निवास करें. भगवान शिव ने यह स्वीकार कर लिया और घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से वहीं प्रतिष्ठित हुए.
• इसके अतिरिक्त माता अनसूया, सुमति, सीमन्तिनी, महानंदा तथा विधवा ब्राह्मणी आदि स्त्रियों द्वारा शिव पूजन की अनेक कथाएं शिव पुराण में हैं. इसी के साथ, रानी अहिल्याबाई होल्कर हों या रानी लक्ष्मीबाई, सभी शिवलिंग का पूजन और अभिषेक किया करती थीं.
• शिव पुराण में सभी के लिए शिवलिंग पूजन का अधिकार बताया गया है.
श्री सूतजी कहते हैं-
ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यः शूद्रो वा प्रतिलोमजः।
पूजयेत् सततं लिङ्गं तत्तन्मंत्रेण सादरम्॥
किं बहूक्तेन मुनयः स्त्रीणामपि तथान्यतः।
अधिकारोऽस्ति सर्वेषां शिवलिङ्गार्चने द्विजाः॥
(शिवपुराण विद्येश्वरसंहिता २१.३९-४०)
अर्थात ‘ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अथवा विलोम संकर कोई भी क्यों न हो, वह वैदिक अथवा तांत्रिक मंत्र से सदा आदरपूर्वक शिवलिंग की पूजा करे. शिवलिंग का पूजन करने में स्त्रियों का तथा अन्य सभी लोगों का समान रूप से अधिकार है.’
• काशीखण्ड में लिखा है-
पुरा हि मृण्मयं लिङ्गमर्च्य लक्ष्मीः प्रयत्नतः।
जाता सौभाग्यसम्पन्ना महादेवप्रसादतः॥
‘श्री महालक्ष्मी जी प्रयत्नपूर्वक श्रद्धा से पार्थिव शिवलिंग की पूजा करके शिव के प्रसाद से सदा सर्वदा के लिए सौभाग्यवती हुईं.’
श्री पार्वती जी ने तो कठिन तपस्या करके ही भगवान शिव को स्वामी रूप में प्राप्त किया.
• पद्म पुराण के अनुसार-
यो न पूजयते लिंग ब्रह्मादीनां प्रकाशकम्।
शास्त्रवित्सर्ववेत्तापि चतुर्वेद: पशुस्तु स:॥
अर्थात ‘ब्रह्म विद्या का प्रकाशक व्यक्ति जो शास्त्रों सहित चारों वेदों का भी ज्ञाता हो, यदि वह शिवलिंग पूजन नहीं करता है, तो वह पशु के ही समान है.’
गङ्गोदकात्पवित्रं तु शिवपादोदकं हितम्।
पीतं वा मस्तकस्थं वा नृणां पापहरं परम्॥
अर्थात ‘गंगाजल से भी शिवजी का चरणोदक हितकर तथा पवित्र है. इसका पान करने से तथा मस्तक पर एवं शरीर में धारण करने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं.’
• शिवमहिम्नःस्तोत्रम् में गंधर्वराज पुष्पदंत कहते हैं कि-
त्वमर्कस्त्वं सोमस्त्वमसि पवनस्त्वं हुतवह-
स्त्वमापस्त्वं व्योम त्वमु धरणिरात्मा त्वमिति च।
परिच्छिन्नामेवं त्वयि परिणता बिभ्रतु गिरं
न विद्मस्तत्तत्त्वं वयमिह तु यत्त्वं न भवसि॥
‘हे शिव! संसार में कहीं ऐसा कोई तत्व या पदार्थ नहीं, जो आप न हों, अर्थात् सब कुछ आप ही आप हैं. सर्वतोव्याप्त सदाशिव से पृथक कोई सत्ता नहीं है.’ इसके बाद वे भगवान् शिव के आठ रूपों पर प्रकाश डालते हैं- सूर्य, चन्द्र, वायु, अग्नि, जल, आकाश, पृथ्वी एवं आत्मा. शास्त्रों में भगवान शिव के भिन्न-भिन्न रूपों को लेकर उनकी उपासना व पूजा-अर्चा का विशद विवरण मिलता है. शिवसहस्रनाम में अष्टमूर्ति: भगवान् शिव का एक नाम भी है. अर्थात ब्रह्माण्ड में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो शिव के संपर्क से रहित हो.
सभी वस्तुएं भगवान शिव को ही समर्पित हैं, अतः उनमें भेदबुद्धि करना सर्वथा अज्ञान ही है. शिव तो सर्वेश्वर हैं, विश्वेश्वर हैं. देवता हों या असुर, सभी भगवान् शिव के भक्त हैं और आदिकाल से शिवलिंग का पूजन करते आ रहे हैं. शास्त्रों में प्रमाण मिलते हैं कि शिवपूजन का अधिकार सभी को समान रूप से है. भगवान की भक्ति के सभी अधिकारी हैं.
• शिवपुराण के विद्येश्वरसंहिता का ग्यारहवां अध्याय कहता है-
लिङ्गकर्मणि सर्वत्र निषेधोऽस्ति न कर्हिचित्॥
सर्वत्र फलदाता हि प्रयासानुगुणं शिवः।
“शिवलिंग का निर्माण कहीं भी करने में किसी प्रकार का निषेध नहीं है. भगवान् शिव सर्वत्र ही भक्त के प्रयत्न के अनुसार फल प्रदान करते हैं. अपनी रुचि के अनुसार ऐसे स्थान पर शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए, जहाँ नित्य पूजन हो सके. पार्थिव द्रव्य से, जलमय द्रव्य से अथवा धातुमय पदार्थ से अपनी रुचि के अनुसार कल्पोक्त लक्षणों से युक्त शिवलिंग का निर्माण करके उसकी पूजा करने से उपासक को उस पूजन का पूरा फल प्राप्त होता है. सम्पूर्ण शुभ लक्षणों से युक्त शिवलिंग तत्काल पूजा का फल देने वाला होता है. यदि चलप्रतिष्ठा करनी हो तो इसके लिये छोटा सा शिवलिंग और यदि अचलप्रतिष्ठा करनी हो तो स्थूल शिवलिंग श्रेष्ठ माना जाता है. ”
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