How deep is the Sea
समुद्र में रहने वाले प्राणियों का एक अलग ही संसार है. समुद्र की सतह के नीचे एक रहस्यमय दुनिया है. गहरे समुद्र को पृथ्वी का सबसे कम खोजा गया बायोम माना जाता है. अनुमान के मुताबिक अब तक सागर के केवल 5% रहस्यों का ही पता लगाया गया है. अभी बहुत कुछ खोजा जाना बाकी है. ऐसा भी माना जाता है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति समुद्र में हुई और प्राणियों के सभी प्रमुख समूहों का प्रतिनिधित्व वहीं किया गया. हालाँकि, वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर मतभेद है कि समुद्र में जीवन कब और कहाँ से उत्पन्न हुआ.
सागर कितना गहरा है- सागर की औसत गहराई लगभग 3,688 मीटर (12,100 फीट) है. पश्चिमी प्रशांत महासागर में मारियाना ट्रेंच (लगभग 11,034 मीटर) में चैलेंजर डीप दुनिया का सबसे गहरा हिस्सा है. एक अनुमान के मुताबिक, विश्व का 97 प्रतिशत पानी समुद्र में पाया जाता है, जिस कारण समुद्र का दुनिया के मौसम, तापमान और सभी प्राणियों की खाद्य आपूर्ति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. अपने आकार और पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के जीवन पर प्रभाव के बावजूद, महासागर एक रहस्य बना हुआ है. महासागर के 80 प्रतिशत से अधिक हिस्से का कभी भी मानचित्रण, अन्वेषण या यहाँ तक कि मनुष्यों द्वारा देखा भी नहीं गया है.
सागर की परतें या जोन (Layers or Zones of Ocean)
वैज्ञानिकों ने सागर की गहराई को पाँच मुख्य भागों में बांटा है, जिन्हें पांच परतें या पांच जोन (Zones) भी कहते हैं. ये परतें समुद्र की सतह से लेकर सबसे अधिक गहराई तक फैली हुई हैं, जहां प्रकाश प्रवेश नहीं कर सकता है. ये गहरे क्षेत्र वे स्थान हैं जहाँ समुद्र के कुछ सबसे विचित्र और आकर्षक जीव पाए जा सकते हैं. जैसे-जैसे हम इन बड़े पैमाने पर अज्ञात स्थानों में गहराई से उतरते हैं, तापमान गिरता है और दबाव (Pressure) बढ़ता है. ऊपर के पानी का भार कुचलने वाली शक्ति के रूप में होता है.
समुद्र का अधिकांश भाग एक अंधेरी दुनिया है. एक समय वैज्ञानिकों द्वारा ऐसा माना जाता था कि समुद्र की सबसे अधिक गहराई में जीवन ही नहीं है. लेकिन जब हाइड्रोथर्मल वेंट की खोज की गई, तब यह धारणा बदल गई. यह समुदाय पृथ्वी पर मौजूद उन कुछ पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं जो ऊर्जा की आपूर्ति के लिए सूर्य के प्रकाश पर निर्भर नहीं है. समुद्र की अत्यधिक गहराई में, जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच पाता है, वहां कुछ विशेष प्रकार के जीव रहते हैं. आज हम समुद्र की गहराई और उसमें पाए जाने विशिष्ट जीवों पर एक संक्षिप्त चर्चा करते हैं-
(1) एपिपेलैजिक जोन (Epipelagic Zone)
एपिपेलैजिक जोन (या ऊपरी खुला महासागर) समुद्र का वह हिस्सा है, जहां पर्याप्त मात्रा में सूर्य का प्रकाश और गर्मी पहुंचती रहती है, जिससे फाइटोप्लांकटन (Phytoplankton) जैसे प्रकाश संश्लेषक जीव सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा में बदलकर पर्याप्त भोजन आदि की व्यवस्था कर पाते हैं. सामान्यतया, यह क्षेत्र समुद्र की सतह से लगभग 200 मीटर (660 फीट) नीचे तक है. एपिपेलैजिक ऐसे सभी प्रकार के जीवों का घर है, जिन्हें हम आमतौर पर जानते हैं, जैसे व्हेल, डॉल्फिन, बिलफिश, ट्यूना, जेलीफिश, शार्क और कई अन्य समूह.
सागरीय जल में पाई जाने वाली ऑक्सीजन की मात्रा मुख्य रूप से उसमें उगने वाले पौधों पर निर्भर करती है, जिनमें फाइटोप्लांकटन और समुद्री घास जैसे कुछ संवहनी पौधे भी शामिल हैं. फाइटोप्लांकटन में शैवाल और बैक्टीरिया जैसे अलग-अलग प्रकार के सूक्ष्मजीव शामिल होते हैं. ये ऐसे सूक्ष्म जीव हैं जो समुद्री सतह पर रहते हुए प्रकाश संश्लेषण के जरिये बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं, अतः ये समुद्र के स्वास्थ्य के अच्छे संकेतक माने जाते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत जरूरी हैं.
(2) मेसोपेलैजिक जोन (Mesopelagic Zone)
मेसोपेलैजिक क्षेत्र (या मध्य खुला महासागर) एपिपेलैजिक के नीचे से शुरू होकर उस पॉइंट तक फैला है जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच सकता है. दूसरे शब्दों में, एपिपेलैजिक जोन के नीचे मेसोपेलैजिक जोन है, जो 200 मीटर (660 फीट) से 1,000 मीटर (3,300 फीट) तक फैला हुआ है. मेसोपेलैजिक क्षेत्र को कभी-कभी गोधूलि क्षेत्र या मध्य जल क्षेत्र (Midwater Zone) के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस गहराई तक प्रवेश करने वाली रोशनी बेहद फीकी होती है, फिर भी यहाँ जीवन है.
मेसोपेलैजिक क्षेत्र एपिपेलैजिक क्षेत्र से बहुत बड़ा है. पृथ्वी पर सबसे अधिक संख्या में कशेरुक प्राणी (रीढ़ की हड्डी वाले जानवर) या छोटी ब्रिसलमाउथ मछलियाँ इसी क्षेत्र में रहती हैं. यहां रहने वाली मछलियों और अकशेरुकी जीवों की कई प्रजातियां भोजन के लिए रात के अंधेरे में एपिपेलैजिक क्षेत्र में आ जाती हैं. इस क्षेत्र में स्क्विड, क्रिल, जेली जैसे प्राणी प्रचुर मात्रा में हैं. प्रकाश की कमी के कारण इस क्षेत्र के कुछ जीवों पर बायोल्यूमिनसेंस भी दिखाई देने लगता है. यहाँ पाई जाने वाली मछलियों की आंखें बड़ी होती हैं, जिससे बहुत कम रोशनी में भी वे अन्य जानवरों के छायाचित्र देख पाती हैं.
♦ महासागरों की अत्यधिक गहराई में, जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच पाता है, वहां ऐसे जीव रहते हैं जिनके शरीर में स्वयं का प्रकाश उत्पन्न करने वाले अंग (Light-producing organs) होते हैं. संवेदनशील आँखों और सिर से निकलने वाले बायोल्यूमिनसेंट ल्यूर वाली विचित्र मछलियाँ सागरों के अँधेरे हिस्से में छिपी रहती हैं, जो अक्सर ऊपर से गिरने वाले जैविक अपशिष्ट (Organic Waste) और मांस के टुकड़ों को खाकर या उन टुकड़ों को खाने वाले जीवों को खाकर जीवित रहती हैं.
(3) बाथपेलैजिक जोन (Bathypelagic Zone)
अगले और भी गहरे क्षेत्र को बाथपेलैजिक क्षेत्र (या निचला खुला महासागर) कहा जाता है. यह क्षेत्र मेसोपेलैजिक के निचले भाग से शुरू होता है और करीब 4000 मीटर (13,000 फीट) तक फैला हुआ है. बैथिपेलैजिक क्षेत्र मेसोपेलैजिक से बहुत बड़ा है. यह पृथ्वी पर सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र है. इसे कभी-कभी मध्यरात्रि क्षेत्र या अंधकार क्षेत्र (Dark Zone) भी कहा जाता है, यह प्रकाश से रहित क्षेत्र है (जिसे एफोटिक कहा जाता है) और यह 4 डिग्री सेल्सियस के साथ बहुत ठंडा भी है. मेसोपेलैजिक जोन के विपरीत, बैथिपेलैजिक जोन में तापमान स्थिर रहता है.
बैथिपेलैजिक में रहने वाले प्राणी प्रतिदिन 24 घंटे पूर्ण अंधकार में रहते हैं. यहां एकमात्र दृश्यमान प्रकाश (Visible Light) वह है जो स्वयं प्राणियों द्वारा उत्पन्न किया गया है (Bioluminescence). यहाँ रहने वाली कुछ प्रजातियाँ ऐसी भी हैं, जो कुछ भी देखने की क्षमता खो चुकी हैं. चूंकि इस क्षेत्र के प्राणियों को कम भोजन के साथ रहना पड़ता है, इसलिए यहाँ रहने वाले कई जीवों का पाचन धीमा होता है. ये प्राणी भोजन की तलाश में ऊर्जा बर्बाद करने के बजाय बैठकर भोजन का इंतजार करना पसंद करते हैं.
इस गहराई पर पानी का दबाव अत्यधिक है, जो 5,850 पाउंड प्रति वर्ग इंच तक पहुँच जाता है. दबाव के बावजूद यहां आश्चर्यजनक रूप से बड़ी संख्या में जीव पाए जाते हैं. ब्लैक हैगफिश, वाइपरफिश, एंगलरफिश और स्लीपर शार्क इस क्षेत्र में रहने वाली आम मछलियाँ हैं. वैम्पायर स्क्विड और डंबो ऑक्टोपस (ब्लाइंड ऑक्टोपॉड) भी इस गहराई तक चले जाते हैं. स्पर्म व्हेल भोजन की तलाश में इस गहराई तक भी गोता लगा सकती हैं. इन गहराईयों पर रहने वाले अधिकतर जानवर प्रकाश की कमी के कारण काले या लाल रंग के होते हैं.
(4) एबिसोपेलैजिक जोन (Abyssopelagic Zone)
सागर के और भी गहरे क्षेत्र को एबिसोपेलैजिक क्षेत्र या एबिसल जोन (Abyssal Zone) कहते हैं, जो बैथिपेलैजिक के नीचे से शुरू होकर समुद्र तल यानी रसातल (Abyss) तक फैला हुआ है. यह 4,000 मीटर (13,100 फीट) से 6,000 मीटर (19,700 फीट) तक फैला हुआ है. इस क्षेत्र के पानी का तापमान शून्य के करीब है और यहाँ बिल्कुल भी रोशनी नहीं है.
अनुमान के मुताबिक, इस गहराई में बहुत कम जीव पाए जा सकते हैं, और उनमें भी अधिकतर अकशेरुकी (जिन प्राणियों में मेरुदंड नहीं होता) हो सकते हैं, जैसे बास्केट स्टार फिश और छोटे स्क्विड. इस क्षेत्र में वही प्राणी पाए जा सकते हैं, जो इस गहराई में रहकर ऊपर के इतने अधिक दबाव को झेल सकते हैं, जो समुद्र तल पर अनुभव किए गए दबाव से 600 गुना तक पहुंच सकता है. निश्चय ही वे प्राणी विशिष्ट हैं.
तिपाई मछली (Tripod Fish) एक विचित्र मछली है जो इस क्षेत्र में पाई जा सकती है. अक्सर समुद्र तल पर आराम करते हुए पाई जाने वाली, तिपाई मछली अपने लंबे पंखों में तरल पदार्थ पंप करके उन्हें कठोर स्टिल्ट की तरह बना सकती है. रैटेल मछली, ऑक्टोपस और समुद्री खीरे भी यहां के तीव्र दबाव के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित हो सकते हैं.
(5) हैडोपेलैजिक जोन (Hadopelagic Zone)
हैडलपेलैजिक समुद्र का सबसे गहरा हिस्सा है जिसमें समुद्री खाइयाँ भी शामिल हैं. यह क्षेत्र दुनियाभर में केवल कुछ स्थानों पर ही मौजूद है. यह 19,700 फीट (6,000 मीटर) से लेकर 36,070 फीट (10,994 मीटर) मारियाना ट्रेंच के बहुत नीचे तक फैला हुआ है. इतनी गहराई में रहने वाले जीवों के बारे में अभी बहुत कम जानकारी है.
यहाँ पानी का तापमान शून्य से ऊपर है और दबाव 8 टन प्रति वर्ग इंच से भी अधिक है. अत्यधिक दबाव और तापमान के बावजूद भी यहां जीवन पाया जाता है. स्टारफिश और ट्यूबवर्म जैसे अकशेरुकी जीव इन गहराईयों पर जीवित रह सकते हैं. गहरे समुद्र में जीव लगभग पूरी तरह से जीवित और मृत कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर होते हैं.
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