Amita Deshpande Recharkha Plastic Waste-
दशकों पहले जिस प्लास्टिक (Plastic) का आविष्कार लोगों की सुविधा के लिए किया गया था, आज वही प्लास्टिक सबके लिए चिंता का बड़ा कारण बन चुका है. पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में प्लास्टिक कचरे (Plastic waste) का बहुत बड़ा हाथ है. प्लास्टिक कचरा इसलिए भी सबसे बड़ी समस्या है, क्योंकि यह एक ऐसी चीज है, जिसे नष्ट होने में काफी समय लग जाता है. इन्हें जमीन में गाड़ो तो मिट्टी को नुकसान, पानी में डालो तो जल प्रदूषण और जलाओ तो भयंकर वायु प्रदूषण.
लोग कोई भी फूड प्रोडक्ट (Food product) जैसे- चॉकलेट, बिस्किट्स, चिप्स आदि खरीदते हैं, या बाजार से खरीदी गई कोई भी चीज इस्तेमाल करते हैं, तो उन सबके प्लास्टिक रैपर्स (Plastic wrappers) को ऐसे ही कहीं भी फेंक देते हैं. ये छोटे-बड़े प्लास्टिक रैपर्स यहां-वहां जगह जमा होकर बेहद गंदगी पैदा करते हैं, जो बाद में बड़ी समस्या बन जाते हैं.
पुणे की अमिता ने निकाला एक नया तरीका
सड़कों पर रखे कूड़ेदानों में सबसे ज्यादा यही मिलते हैं…और इन्हें डीकम्पोज होने में 450 सालों से भी ज्यादा लग सकते हैं. दुनिया का लगभग 40 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा पैकेजिंग (Packaging) की वजह से ही पैदा होता है…और इन्हें रीसाइकिल करना भी बहुत मुश्किल होता है. लेकिन आज कई युवा आगे आए हैं इस बड़ी समस्या को हल करने के लिए, जो अपने आइडियाज और टैलेंट से कागज को भी कंचन बना देते हैं. उन्हीं लोगों में से एक हैं पुणे की अमिता देशपांडे (Amita Deshpande, Pune), जो फेंके गए प्लास्टिक रैपर्स से नए-नए आकर्षक प्रोडक्ट्स बनाती हैं.
“सिर्फ बात नहीं, कुछ करना भी चाहती थीं”
पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमिता ने फेंके गए प्लास्टिक रैपर्स और प्लास्टिक कवर्स के ढेर को अपसाइकिल करने का एक अलग तरीका निकाला. अमिता बताती हैं कि उन्होंने अपनी स्टूडेंट लाइफ से ही पर्यावरण के लिए सोचना शुरू कर दिया था. जब वह मात्र 12-13 साल की थीं, तभी से उन्होंने डिस्पोजल या सिंगल यूज प्लास्टिक (Disposable or single-use plastic) का इस्तेमाल करना बंद कर दिया था. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक कचरे और इससे पैदा हुई समस्याओं के बारे में केवल बात करना ही काफी नहीं था, मैं कुछ करना भी चाहती थीं.
अमेरिका जाकर सीखा काम और भारत आकर की शुरुआत
अमिता दादरा और नागर हवेली की रहने वाली हैं. साल 2005 में वह एक IT कंपनी में शामिल हो गईं. उन्होंने 2009 तक वहां काम किया और फिर प्लास्टिक कचरे को रीसाइकिल करने के तरीकों को सीखने के लिए अमेरिका चली गईं, जहां उन्होंने पर्ड्यू यूनिवर्सिटी से सस्टेनेबिलिटी (Sustainability) की पढ़ाई की. अमिता बताती हैं कि वह अमेरिका गईं और वहां सस्टेनेबिलिटी की स्टडी की, ताकि इस प्लास्टिक कचरे की समस्या को अच्छी तरह से सॉल्व करने की कोशिश कर सकें. फिर वापस भारत आकर इस समस्या को हल करने के तरीकों पर काम करना शुरू कर दिया.
फिर काम से जुड़ीं इन दो समस्याओं को ऐसे किया हल
अमिता ने बताया कि “काम शुरू करते समय मेरे सामने दो बड़ी समस्याएं थीं. पहली- मैं इन सभी प्लास्टिक रैपर्स का क्या करूं, इनसे ऐसा क्या बनाऊं जिसकी डिमांड भी हो सके…. और दूसरी कि मैं इन प्लास्टिक रैपर्स को कहां-कहां से इकट्ठा करूं.
फिर मैंने तय किया कि मैं ऐसा कुछ बनाऊगीं, जो तुरंत इस्तेमाल होता हो, क्योंकि चीज जितनी जल्दी इस्तेमाल होने वाली होगी, उतनी ही ज्यादा उसकी डिमांड भी होगी…. और उतने ही ज्यादा प्लास्टिक रैपर्स भी यूज हो पाएंगे”.
“मैंने डिसाइड किया कि मैं इन सभी प्लास्टिक रैपर्स से साइड बैग्स, लैपटॉप बैग, सूटकेस, ग्रो पॉट्स, कुशन कवर आदि बनाऊंगी. फिर मैंने इसके बारे में इंटरनेट पर भी रिसर्च किया, तो मुझे ये सब चीजें बनाने के आइडियाज भी समझ आ गए”.
अमिता ने आगे कहा, “लेकिन मेरे सामने अभी भी दूसरी समस्या ये थी कि मैं इन सब रैपर्स को कहां से कलेक्ट करूं, क्योंकि इन रैपर्स को कबाड़ी वाले भी इकट्ठा नहीं करते. फिर मैंने कई कबाड़ी वालों, कूड़ेवालों आदि से बात की और आखिरकार उन्हें मना लिया कि वो ये सारे प्लास्टिक कचरे भी इकट्ठा किया करें और मुझे अपसाइकिलिंग के लिए दे दिया करें”.
चरखा और हैंडलूम की मदद से होता है काम
अमिता ने बताया कि” हम अपने प्रोडक्ट्स बनाने के लिए किसी बड़ी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि पुराने जमाने का वही चरखा और हैंडलूम जैसे उपकरण इस्तेमाल करते हैं, ताकि हम ग्रामीणों और आदिवासियों को रोजगार दे सकें… और इसीलिए हमने अपनी ऑर्गेनाइजेशन का नाम भी ‘रीचरखा’ (reCharkha) रखा है, क्योंकि हम आज की समस्या को हल करने के लिए चरखा ही घुमा रहे हैं. हमने अपने यहां काम करने वाली महिलाओं को चरखा कताई और प्लास्टिक के धागे को फाइबर में बुनने की ट्रेनिंग दी.”
ऐसे तैयार किए जाते हैं रीचरखा प्रोडक्ट्स
अमिता आगे बताती हैं कि “सबसे पहले हम कूड़ेवालों और कबाड़ी वालों से प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करते हैं. फिर उसे अच्छे से धोकर, सैनिटाइज करके सुखा लेते हैं. फिर हम केवल कैंची से इन्हें पतले-पतले पीस में काटते हैं… और फिर चरखा और हैंडलूम की मदद से इसे फैब्रिक में बदलते हैं. ये पूरा काम हाथों से ही होता है”.
“फिर हम इन सबको सिलकर, डिजाइन करके अलग-अलग चीजें तैयार करते हैं.. और तरह रीचरखा प्रोडक्ट्स तैयार किए जाते हैं, जो दिखने में आकर्षक होते हैं और फिर से नए रूप में इस्तेमाल करने लायक भी. हालांकि लोगों को प्लास्टिक का इस्तेमाल ही कम करना चाहिए, तभी पर्यावरण की इस समस्या का हल निकल पाएगा.”
अमिता का यह आइडिया और स्टार्टअप केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि लोगों को रोजगार देने की नजर से भी बेहतर साबित हो रहा है. प्लास्टिक कचरे से ऐसे ही आकर्षक चीजें बनाने वाली आज कई संस्थाएं काम कर रही हैं. अगर आप भी प्लास्टिक रैपर्स इकट्ठा करके अमिता के ऑर्गेनाइजेशन को भेजना चाहते हैं तो नीचे लिखे पते पर भेज सकते हैं-
reCharkha – The EcoSocial Tribe
Shri Ramkrushna Niwas,
Sridhar Colony,
Opposite Restaurant “Nation52”,
Cummins College Road,
Karve Nagar, Pune, 411052
(ये पता www.recharkha.org से लिया गया है).
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