Rani Ahilyabai Holkar History
हिंदू नारियां (Hindu Women) संस्कृति और परंपरा का अवतार हैं. उन्हें (जननी) समाज के निर्माता के रूप में पहचाना जाता है. उनमें सभ्यता की नींव टिकी हुई है. मूल रूप से हिंदू समाज की नारियां ही हैं, जिन्होंने सदियों से चली आ रही उथल-पुथल के दौरान हमारी सभ्यता के शाश्वत धरोहरों को संरक्षित करते हुए हमारे पूर्वजों के वैभव और प्राचीन संस्कृति को मूर्त रूप दिया. ऐसी ही एक नारी हैं रानी अहिल्याबाई होल्कर जी (Rani Ahilyabai Holkar)!
वास्तव में रानी अहिल्याबाई होल्कर का योगदान असाधारण क्यों है, यह जानकर अचंभित हो जाएंगे. आखिर कौन सोचेगा कि सफेद साड़ी में लिपटी, हाथ में शिवलिंग लिए, साधारण सामग्री से घिरी एक साधु महिला इंदौर की गौरवशाली महारानी बन जाएगी?
अपने पति, ससुर और पुत्र की मृत्यु से आहत, राज्य की चिंता का भार और उस पर अपनों का वियोग, किसी भी सहारे से वंचित, महारानी अहिल्याबाई होल्कर के शासनकाल को मालवा के सबसे शांतिपूर्ण और विकसित युग के रूप में याद किया जाता है. रानी ने अपने कार्यों से सिद्ध किया कि कोई भी ‘युद्ध’ जीतने के लिए अध्यात्मिक शक्ति का होना परम आवश्यक है.
रानी ने अपनी सारी संपत्ति मंदिरों और तीर्थ स्थलों के जीर्णोद्धार पर न्यौछावर कर दी. रानी अहिल्याबाई जी की निगाहें जिस भी पवित्र भूमि को छूतीं, लोगों ने उसी भूमि पर विकास और बहाली को देखा. उनके द्वारा फिर से बनाए गए मंदिरों और घाटों की सुंदरता उनके विनम्र जीवन की तरह ही आश्चर्यजनक है.
रानी सेना में प्रशिक्षित थीं, उन्हें शस्त्र के साथ शास्त्रों का भी ज्ञान था, उन्होंने किसी को दंडित नहीं किया, सभी को पुरस्कृत किया. कितने ही अपराधी भी रानी के एक निर्देश पर सभी अप्रिय गतिविधियों को छोड़ देते थे.
इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर को ‘देवी’ कहा जाता था और सभी के द्वारा आशीर्वाद दिया जाता था. उन्होंने जनमानस को बताया कि विपरीत परिस्थियों से टकराकर स्वयं को कैसे स्थापित किया जाता है. उन्होंने बताया कि सनातन धर्म दुखों से भागने को स्वीकार नहीं करता, बल्कि दुखों से लड़ने और उन्हें हराने में विश्वास करता है.
संत रानी देवी अहिल्याबाई होल्कर जी का स्वर्ण युग एक असाधारण विरासत प्रदर्शित करता है. रानी के चतुर और कुशल प्रशासन के तहत कोई भी उनके राज्य पर हमला नहीं कर सकता था और व्यापार, कला और साहित्य में समृद्ध हुआ.
रानी देवी अहिल्याबाई होल्कर जी जी के प्रमुख सृजन कार्य
द्वारका से गया और गंगोत्री से रामेश्वरम तक, लगभग सभी नदियों के किनारे घाटों का निर्माण, और तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए दान की शुरुआत करना, वर्तमान रूप में सब कुछ अहिल्याबाई के भारतवर्ष को पुनर्स्थापित करने के दृढ़ संकल्प का परिणाम है जो कमजोर विस्मृति में उग्र था. गुजरात के काठियावाड़ में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग और बनारस में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का पुनर्निर्माण, जो करोड़ों हिंदुओं की प्रमुखता और आस्था का प्रतीक है, इस सामंत रानी के समर्पण को दर्शाता है.
रानी ने कुंड, कुएं, भोजन की सुविधा या धर्मशाला के निर्माण के साथ भारत के लगभग हर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया. उन्होंने पूरे भारत में नदियों पर घाटों का निर्माण करवाया, पवित्र स्थलों का विकास किया और गरीबों और तीर्थयात्रियों के लिए भोजन-रसोई की शुरुआत की. तीर्थ स्थलों के विकास और तीर्थयात्रियों की भलाई के लिए देवी अहिल्याबाई ने धर्मशालाओं/धर्मशालाओं और कुओं का निर्माण किया और तीर्थयात्रियों के लिए दान की शुरुआत की और पुजारियों को संरक्षण दिया.
जिन प्रमुख पवित्र स्थलों में सुविधाओं में सुधार हुआ उनमें केदारनाथ, ओंकारेश्वर, काशी, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथ पुरी ओडिशा, गोकर्ण (कर्नाटक), हरिद्वार और कई अन्य स्थल थे. महारानी ने ब्राह्मणों और गायों के रक्षक के रूप में मराठों की विरासत को जारी रखा, और धर्मग्रंथों के उपदेश को जारी रखने के लिए पंडितों को संरक्षण दिया. और ये सभी कार्य रानी अहिल्याबाई होल्कर ने एक नारी होकर उस समय किए, जब आक्रांताओं के भयंकर अत्याचारों से वीर पुरुषों का भी आत्मविश्वास टूट रहा था.
अहिल्याबाई होल्कर द्वारा मंदिरों का जीर्णोद्धार
(Rejuvenation of Temples by Ahilyabai Holkar)
गुजरात में सोमनाथ मंदिर भारत भर में 12 ज्योतिर्लिंग के बीच पहला ज्योतिर्लिंग है, और सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंग होने के नाते, यह धार्मिक स्थल पांडवों, श्रीकृष्ण और आदि शंकराचार्य से जुड़ा हुआ है. सोमनाथ मंदिर आक्रमणों, लूट और विनाश का आकर्षक केंद्र रहा, लेकिन भक्तों ने हमेशा मंदिर को बर्बादी से बचाने में कामयाबी हासिल की है.
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर को इतिहास में कई बार नष्ट किया गया, लेकिन फिर भी हर बार इस मंदिर की महिमा और भव्यता बरकरार रही. वर्तमान मंदिर के अभिषेक समारोह में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि, “सोमनाथ मंदिर यह दर्शाता है कि सृजन की शक्ति हमेशा विनाश की शक्ति से अधिक होती है.”
महमूद गजनी पहला आक्रमणकारी नहीं था जिसने मंदिर को लूटा और हजारों निहत्थों की हत्या कर दी. सोमनाथ मंदिर पर 8वीं शताब्दी में अरबों ने, 13वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने, 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने और 1702 ईस्वी में औरंगजेब ने आक्रमण किया था. मुगल शासक औरंगजेब ने किसी भी मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रयास करने पर पूर्ण विध्वंस का आदेश दे दिया था.
तब इस ज्योतिर्लिंग की रक्षा करने का साहस करने वाली धर्मनिष्ठ हिंदू महारानी अहिल्याबाई होल्कर थीं. मुख्य रूप से निर्मित सोमनाथ मंदिर (1951 में निर्मित) के विपरीत, ‘पुराना सोमनाथ मंदिर’ देवी अहिल्याबाई द्वारा निर्मित (1785 में प्रतिष्ठित) है. लोगों का मानना है कि रानी द्वारा निर्मित पुराने सोमनाथ मंदिर में मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं.
♦ बारह ज्योतिर्लिंग में एक काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के घोर विनाश और ज्ञानवापी मस्जिद की जबरन स्थापना से क्रोधित होकर, रानी ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया. विध्वंस के स्थलों पर मंदिर का निर्माण करने की उनकी समर्पित इच्छा के कारण ही लोग आज भी गंगा के पवित्र किनारे पर पूजा करने में सक्षम हैं.
♦ आक्रांताओं द्वारा नष्ट किए गए कई अन्य ज्योतिर्लिंग का निर्माण या पुनर्निर्माण महारानी अहिल्याबाई द्वारा किया गया था. उदाहरण के लिए, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, औंधा नागनाथ ज्योतिर्लिंग (जिसे औरंगजेब द्वारा क्षति पहुंचाई गई थी), भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर की मरम्मत की गई, तारकेश्वर मंदिर का भी पुनर्निर्माण रानी द्वारा किया गया, साथ ही रानी ने 1750 में नासिक में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में कुशावर्त कुंड का निर्माण करवाया.
♦ और न केवल ज्योतिर्लिंग, महारानी अहिल्याबाई होल्कर जी ने पंढरपुर राम मंदिर, पंढरपुर राम मंदिर, रामेश्वरम में हनुमान मंदिर, गया में विष्णुपद मंदिर, श्री वैद्यनाथ मंदिर, श्रीराम मंदिर और नासिक में विश्वेश्वर मंदिर, ओंकारेश्वर में मंदिर और धर्मशालाएं, महेश्वर में सैकड़ों मंदिर (जहां वह अपने पुत्र के निधन के बाद रहती थीं), रामचंद्र पुरी में मंदिर, सभी माता अहिल्याबाई जी की इच्छा का परिणाम हैं.
♦ देवी अहिल्याबाई द्वारा निर्मित और पुनर्निर्मित मंदिर करोड़ों भक्तों के लिए मौलिक धार्मिक केंद्र हैं. मंदिरों के निर्माण-पुनर्निर्माण के अलावा, महारानी अहिल्याबाई जी ने अयोध्या में राम मंदिर सहित भारत भर के अलग-अलग मंदिरों को दान भी दिया. मंदिर जीर्णोद्धार के अलावा, संत रानी ने तीर्थों में धर्मशाला व घाट भी बनवाए.
♦ सुरम्य दशाश्वमेध घाट महारानी अहिल्याबाई होल्कर का योगदान है. पवित्र गंगा के तट पर स्थित इस घाट का नवीनीकरण माता अहिल्याबाई ने 1774 ईस्वी में करवाया था. यह घाट भारत के करोड़ों लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है. घाट पर प्रसिद्ध गंगा आरती एक लुभावनी दृश्य है. आक्रांताओं की दर्दनाक छाप के बाद आज गंगा के तट पर भक्तों का ध्यान करते देखना किसी चमत्कार से कम नहीं है.
हम कह सकते हैं कि यदि देवी अहिल्याबाई न होतीं, तो चरमपंथियों द्वारा धराशायी किए गए हमारे सभ्यतागत क्षेत्र के केंद्र या तो बलपूर्वक निर्मित मस्जिदों के नीचे फेंके गए खंडहरों में रह गए होते, या लगातार पीढ़ियों की स्मृति से गायब हो गए होते. वह अंधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, जिसे अंधेरा बार-बार ग्रसने का प्रयास करता रहा. रानी की निःस्वार्थ सेवा वास्तव में हमारे सभ्यतागत क्षेत्र का पुनर्जन्म है. इसीलिए यह किसी वरदान से कम नहीं कि हम भारत में पैदा हुए हैं जहां ऐसी देवात्माओं ने जन्म लिया.
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