Sardar Patel and Jawaharlal Nehru
जेबी कृपलानी ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है “Gandhi His Life And Thought”. इस पुस्तक के मुताबिक-
आजादी से पहले साल 1946 में अविभाजित भारत में जब प्रांतीय चुनाव (Provincial Elections) हुए, तो इसमें कांग्रेस पार्टी को बहुत बड़ी जीत मिली. उस समय हमारे देश में 1,585 प्रांतीय सीटें थीं, जिनमें से कांग्रेस को 923 सीटें मिली थीं और मुहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग (Muslim League) ने 425 सीटें हासिल की थीं.
चूंकि बहुमत कांग्रेस (Congress) के पास था, इसलिए तय हो चुका था कि जैसे ही ब्रिटिश हुकूमत भारत छोड़कर जाएगी, तो देश में पहली सरकार कांग्रेस की आएगी और प्रधानमंत्री उस नेता को बनाया जाएगा जो कांग्रेस पार्टी (President of Congress) का अध्यक्ष होगा.
मौलाना अबुल कलाम आजाद कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर पिछले 6 सालों से विराजमान थे, यानी 1940 से कांग्रेस की कमान उन्हीं के हाथों में थी, लेकिन यहां सवाल प्रधानमंत्री की कुर्सी का था, इसलिए महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने बिना देर किए अबुल कलाम आजाद को एक चिट्ठी लिखी और उन्हें अध्यक्ष पद के चुनाव से बाहर रहने के लिए कहा और महात्मा गांधी ने चुनाव से पहले ही ऐलान कर दिया कि वे केवल जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) को ही इस पद पर देखना चाहते हैं.
जवाहरलाल नेहरू भी गांधी के समर्थन से बहुत उत्साहित थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि अब उन्हें हराना नामुमकिन है और वही भारत के पहले प्रधानमंत्री (First Prime Minister of India) बनेंगे. लेकिन चुनौती यह थी उस समय अध्यक्ष पद का चुनाव कांग्रेस की प्रदेश समितियों (State Committees of Congress) को करना होता था और उस समय देश में कुल मिलाकर ऐसी 15 समितियां थीं, जिन्हें चुनना था कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन होगा.
साल 1946 के चुनाव में जब कांग्रेस की इन 15 समितियों ने वोट डाला, तब नतीजे देखकर सब हैरान रह गए. नतीजे देखकर जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी सन्न रह गए, क्योंकि जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष पद की दौड़ से पूरी तरह बाहर हो चुके थे.
15 में से 12 वोट अकेले सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) को ही मिले थे, जेबी कृपलानी और पट्टाभि सीतारमैया को कुल मिलाकर 3 वोट मिले थे और जवाहरलाल नेहरू को एक भी वोट नहीं मिला था.
जेबी कृपलानी (JB Kriplani) ने पुस्तक में बताया है कि जब चुनाव के नतीजों में नेहरू का नाम कहीं भी नहीं आया, तब महात्मा गांधी ने खुद से ही उनका नाम प्रस्तावित कर दिया. इस प्रकार अध्यक्ष पद का चुनाव दो नेताओं पर केंद्रित हो गया-
• सरदार वल्लभ भाई पटेल, जिन्हें 15 में से 12 वोट मिले थे और
• जवाहरलाल नेहरू, जो केवल महात्मा गांधी की पसंद थे.
इस प्रकार जवाहरलाल नेहरू तभी अध्यक्ष बन सकते थे, जब सरदार वल्लभभाई पटेल अपना नाम वापस ले लेते. तब महात्मा गांधी ने जेबी कृपलानी से कहा कि वे सरदार वल्लभ भाई पटेल को एक पर्ची पर हस्ताक्षर करने के लिए दें, जिस पर यह लिखा हो कि “वह अपना नाम अध्यक्ष पद से वापस ले रहे हैं..”
और जब जे बी कृपलानी ने वह पर्ची सरदार वल्लभभाई पटेल को दी तो सरदार पटेल इससे बहुत आहत हुए कि और उन्होंने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. फिर यह पर्ची महात्मा गांधी को दे दी गई. अब फैसला महात्मा गांधी को करना था तो उन्होंने बैठक में जवाहरलाल नेहरू से कहा कि, “किसी भी प्रदेश कमेटी ने उनका नाम इस पद के लिए नहीं चुना है, इस पर वह क्या कहना चाहते हैं?”
तब जवाहरलाल नेहरू इस पर चुप रहे और उन्होंने कुछ नहीं कहा. लेकिन चूंकि महात्मा गांधी नेहरू के समर्थन में थे, इसलिए उन्होंने इस चुप्पी को एक संदेश के तौर पर समझ लिया और एक बार फिर इसी बैठक में उन्होंने सरदार पटेल से अपना नाम वापस लेने के लिए कहा.
इस पर सरदार पटेल काफी निराश हुए. वे महात्मा गांधी के कहने पर अपना नाम वापस लेने के लिए तैयार हो गए और चुनाव से बाहर हो गए. तब जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष भी चुन लिया गया और आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री भी.
सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) और सरदार वल्लभभाई पटेल की तुलना में महात्मा गांधी की लोकप्रियता बहुत कम थी. फिर भी महात्मा गांधी ने 1939 और 1946 के चुनावों में प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा लिया, जबकि वह पार्टी में किसी भी पद पर नहीं थे. महात्मा गांधी ने 1934 में ही कांग्रेस की सदस्यता छोड़ दी थी, इसके बावजूद पार्टी में उनका पूरा हस्तक्षेप रहता था और वे जवाहर लाल नेहरू की ढाल बनकर खड़े रहते थे.
सरदार पटेल की जगह नेहरू को चुनने के पीछे महात्मा गांधी ने उस समय 3 मुख्य कारण बताए थे-
पहला कि जवाहर लाल नेहरू युवा थे जबकि सरदार वल्लभभाई पटेल 70 साल के थे.
दूसरा कि गांधी जवाहरलाल नेहरू को मॉडर्न जमाने का नेता मानते थे. उन्हें लगता था कि नेहरू बहुत आधुनिक हैं. एक बार एक इंटरव्यू में महात्मा गांधी ने कहा था कि कांग्रेस के कैंप में नेहरू अकेले ऐसे नेता हैं जो अंग्रेजों जैसे हैं.
जबकि सरदार पटेल के लिए गांधी का सोचना था कि ‘सरदार पटेल बहुत सख्त हैं, वे जिन्ना और अंग्रेजों के साथ अपनी शर्तों पर डील करेंगे.’
और तीसरी वजह कि महात्मा गांधी का कहना था अगर नेहरू को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो वह बगावत कर सकते हैं, देश में अस्थिरता का माहौल पैदा कर सकते हैं जो देश के लिए ठीक नहीं होगा.
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