Science of Mantra : मंत्र शक्ति का विज्ञान क्या है, मंत्र-जप कैसे और क्या प्रभाव डालता है?

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Mantra Jaap in Hindi (मंत्र जाप करने की विधि, फायदे)

Science of Mantra Chanting

मंत्र प्राचीन वैदिक ऋषियों द्वारा विकसित एक विज्ञान है जो शब्द-शाश्वत ध्वनि की सर्वशक्तिमान शक्ति की प्राप्ति पर आधारित है. शब्दों के समूह विशेष के संयोजन का नाम ‘मंत्र’ है. मंत्र एक खोज होते हैं. मंत्र संयोजित करते समय मंत्रों को बनाने वाले ऋषि एक-एक अक्षर को बड़ी दक्षता से संयोजित करते थे.

यही नहीं, मंत्रों को समाज को देने से पहले उसका प्रयोग स्वयं पर करते थे और मंत्र सिद्धि के बाद ही वे मंत्र वेदों में स्थान पाते थे. ये वैदिक मंत्र कहलाते थे. जैसे महर्षि श्री विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की खोज की थी. मंत्रों की खोज करने वाले ऋषियों को ‘मंत्रदृष्टा’ कहते थे. विश्वामित्र जी को अनेक मंत्रस्वरूपों का दर्शन हुआ, इसलिये वे ‘मन्त्रद्रष्टा ऋषि’ कहे जाते हैं. वैदिक मंत्रों के अतिरिक्त और मंत्र हैं, जो कि उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि वैदिक मंत्र.

मन्त्रदृष्टा ऋषि- वैदिक ऋषियों ने अपने उग्र तपोबल से, योगबल से दृश्य-जगत एवं जड़ प्रकृति के भीतर महान अदृश्य चेतना के सत्य एवं उसके संचालन की क्रमबद्ध व्यवस्था को, ब्रह्मज्ञान को प्राप्त किया. जो ब्रह्म में लीन हो जाता है, वह ब्रह्म ही हो जाता है. जड़ से चेतन तथा स्थूल से सूक्ष्म की खोज करते हुए प्राचीन वैदिक ऋषियों ने अपने भीतर मंत्रों के दर्शन किये, इसलिए उन्हें मन्त्रदृष्टा ऋषि (Mantra Drashta Rishi) कहा जाता है. मंत्रों के दर्शन से तात्पर्य है- मंत्रों के अधिपति देवता के दर्शन करना.

मंत्र-देवता का अर्थ है- चेतना के विशाल महासागर में से अपने लिए अभीष्ट शक्ति के प्रवाह का चयन करना. ब्रह्मचेतना एवं उसकी शक्ति की अनंत तरंगों से समस्त ब्रह्मांड प्रतिपल कम्पायमान रहता है. इन अलग-अलग शक्ति-तरंगों के अलग-अलग शक्ति-केंद्र होते हैं, जिनके स्वरूप और प्रयोजन भी अलग-अलग होते हैं. शक्ति के ये केंद्र ही वस्तुतः मन्त्र-देवता (Mantra Devta) माने जाते हैं. इन्हें मंत्रों के अधिपति या अधिष्ठाता देवता भी कहा जाता है.

मंत्र विज्ञान क्या है (What is Mantra Science)-

मंत्रों में बहुत ताकत होती है. मंत्रों का विज्ञान ध्वनि, आवृत्ति, शाब्दिक शक्ति (Sound Energy) और वाक् के सिद्धांत पर आधारित है. मंत्रों के शुद्ध उच्चारण से मनुष्य के विशेष अंगों पर प्रभाव पड़ता है, जिससे उसे ऐसी वांछित ऊर्जा प्राप्त होती है, जो उसकी इच्छा पूर्ति करने में सहायक होती है.

मंत्र साधना करते समय बहुत सारी बातों का ध्यान रखना पड़ता है. केवल मुंह से बड़-बड़ करने या बुदबुदाने से कुछ नहीं होता. जैसे एक पौधे के विकास के लिए पानी, खाद, सूर्य का प्रकाश, हवा आदि सब जरूरी होते हैं, उसी प्रकार मंत्रों की सिद्धि के लिए भी कई चीजों का एक साथ मिलान आवश्यक होता है.

मंत्र उच्चारण करते समय हमें अपनी समस्त मानसिक शक्तियों को एक ही जगह पर एकत्रित या केंद्रित करना होता है. जैसे सूर्य की किरणों को किसी लेंस के एक ही बिंदु पर केंद्रित करने से आग जलने लगती है.

मंत्र सिद्धि के लिए मनुष्य को एक निश्चित मात्रा और संख्या तक सही तरीके से लयबद्ध होकर उच्चारण करना होता है. यही नहीं, मंत्र सिद्ध करते समय उस व्यक्ति को अपनी समस्त ऊर्जा को संजोकर रखना पड़ता है. इसलिए मंत्र सिद्धि के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन, भूमि-शयन, क्रोध पर नियंत्रण, वाणी का संयमित उपयोग करना बहुत आवश्यक होता है.

लेकिन आज हम लोगों की जो जीवनशैली है, क्या उसमें कोई भी व्यक्ति इन सब नियमों का पालन कर सकता है? शायद नहीं कर सकता, और इसीलिए वह मंत्र सिद्धि भी नहीं कर सकता. दोष मंत्र विज्ञान का नहीं, बल्कि उसे ठीक ढंग से न करने का है. मंत्र शक्ति प्राप्त करना एक साधना है, एक तपस्या है, जो आज के इस युग में संभव नहीं, क्योंकि आज लोगों के पास न समय है और न संयम. मंत्रों की शक्ति नहीं बदली है, बल्कि युग बदल गया है.

गायत्री मंत्र पर अमेरिकी वैज्ञानिक की रिसर्च (Harvard Research on Gayatri Mantra)

अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हावर्ड स्टिंगरिल (Dr.Howard Steingeril) ने गायत्री मंत्र पर अनुसंधान करके बताया था कि गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra) के शुद्ध उच्चारण से प्रति सेकंड 1,10,000 ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती हैं. उन्होंने दुनिया भर से कई मंत्रों को इकठ्ठा कर अपनी प्रयोगशाला में उनकी ताकत का परीक्षण किया था, जिसमें उन्होंने वैदिक मंत्र- गायत्री मंत्र को सबसे ताकतवर पाया था. गायत्री मंत्र के बहुत सारे बड़े चमत्कारी फायदे हैं.

हमें ऐसे तथ्य इसलिए सामने रखने पड़ते हैं, क्योंकि आज हमारे ही देश का एक खास वर्ग ऐसा है जो अपने ही वेदों या ग्रंथों में दिए गए किसी भी साइंस को तब तक ढकोसला बताता रहेगा, जब तक उस साइंस पर किसी अंग्रेज वैज्ञानिक की मुहर न लग जाए. यह खास वर्ग किसी भी तथ्य को नकारने से पहले उस पर कोई प्रयोग करके भी नहीं देखना चाहता.

खैर, आधुनिक समय में भी इससे फिलहाल इतना तो सिद्ध होता ही है कि मंत्रों में विज्ञान है, लेकिन यह विज्ञान इतने पर ही खत्म नहीं होता. मंत्रों का विज्ञान बहुत बड़ा है. यदि आपने स्वामी विवेकानंद से जुड़ी ‘मन की शक्तियां और जीवन गठन की साधनाएं’ नामक पुस्तक पढ़ी होगी, तो आपको मंत्र-साधना को समझने में और अधिक आसानी होगी.

एक साइंस स्टूडेंट अनुराग यादव जी का कहना है-

“कल्पना कीजिए, आप किसी केजी क्लास के बच्चे को 10th क्लास का कोई फार्मूला बताते हैं. वह इसे समझ नहीं सका. लेकिन हमें इसकी परवाह नहीं, क्योंकि हम जानते हैं कि यह उसकी गलती नहीं है, क्योंकि उसका ज्ञान अभी कम है. आज के ज्यादातर साइंटिस्ट केजी क्लास के ही छात्र हैं. बच्चों की तरह ही वे भौतिक दुनिया का पता लगाना और भौतिक दुनिया के ही रहस्यों को खोजना पसंद करते हैं. लेकिन जब वे किसी ऐसी चीज का सामना करते हैं जो उनके ज्ञान से परे होती है, या कुछ ऐसा होता है जिस पर वे विश्वास नहीं कर सकते हैं, तो बिना खोजे ही वे कह देते हैं कि यह नहीं हो सकता या यह मौजूद ही नहीं है.”

मंत्रों की सिद्धि और शक्ति-

हमारे व्यवहार, सोच, इच्छा, विश्वास, मन, शब्द, शब्दों के कम्पन, ध्वनि, वाणी, लय, एकाग्रता आदि में बेहद शक्ति होती है. मंत्र द्वारा शब्द शक्ति से मनुष्य की आंतरिक ऊर्जा प्रवाहित होती है और वह सिद्धि को प्राप्त होता है. मंत्रों में देव शक्ति का बीज छुपा होता है. जब कोई व्यक्ति मंत्र उच्चारण करता है तो उस मंत्र की ध्वनि देव शक्ति को प्रकट कर देती है.

देव शक्ति के प्रकटीकरण से मनुष्य के दुख, आपदा, संकट और सभी बाधाएं दूर होने लगती हैं. मंत्र सिद्धि मनुष्य को ब्रह्मांड की शक्ति से जोड़ देती है, जिससे मनुष्य को प्रकृति से वह सब मिलने लगता है, जो वह चाहता है.

हर व्यक्ति को नहीं दिए जाते मंत्र-

मंत्रों के विषय में एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि हर मंत्र हर व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता है. अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग मंत्र होते हैं, जो कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसी व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर कितना है. आध्यात्मिक स्तर को जानने के लिए गुरु का योग्य होना बहुत जरूरी है.

हालांकि, ऐसे भी कुछ मंत्र हैं जिनका जप सभी कर सकते हैं, जैसे कि ‘ॐ’, गायत्री मंत्र, ‘ॐ नमः शिवाय’, महामृत्युंजय मंत्र, ‘श्रीराम’, सरस्वती बीज मंत्र, गणेश बीज मंत्र आदि.

इन मंत्रों की साधना कोई भी व्यक्ति कर सकता है, विशेषकर गायत्री मंत्र और ॐ नमः शिवाय की. फिर भी यदि कोई सिद्ध गुरु इस मंत्र की दीक्षा दे तो मंत्र प्राप्त करने वाले का आध्यात्मिक विकास अल्पकाल में ही संभव है.

शब्दों और ध्वनियों का हमारे मन पर प्रभाव

ध्वनि की गुणवत्ता जो हम अलग-अलग तरीकों से सुनते हैं, उसका हमारी मानसिक और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं पर सीधा असर पड़ता है. उदाहरण के लिए, शेर की दहाड़ने की आवाज या हाथी की चिंघाड़ने की आवाज पहली बार सुनने पर भी डर का अहसास पैदा करती है, भले ही सुनने वाला यह न पहचान पाए कि ‘वह कौन सी आवाज है?’

इसी प्रकार एक कौवे की कर्कश आवाज और इसके विपरीत किसी बुलबुल की मधुर आवाज अलग-अलग प्रभाव उत्पन्न करती है. बोले गए शब्द अच्छे संबंध या घृणा और शत्रुता का कारण बन सकते हैं. हर प्रकार की ध्वनि में शब्दिममानत के प्रच्छन्न कंपन आसपास की ऊर्जा तरंगों के सागर को हिलाकर अलग कर सकते हैं और बाहर निकाल सकते हैं.

मंत्रों का विज्ञान कैसे काम करता है

वेदों में प्रत्येक मंत्र को एक देवता यानी किसी न किसी अदृश्य शक्ति से जोड़ा गया है, जो ब्रह्मांडीय चेतना के विशिष्ट प्रवाह के एक शाश्वत ऊर्जा क्षेत्र का प्रतीक है. जब भी किसी मंत्र का एक विशिष्ट लयबद्ध तरीके से उच्चारण या जप किया जाता है, तो उससे जुड़ी ध्वनि तरंगें एक विशिष्ट पैटर्न में फैलती हैं और आसपास के अंतरिक्ष में ऊर्जा-कणों की परतों के पार जाने के बाद दैवीय शक्तियों से संबंधित ब्रह्मांडीय नाभिक तक पहुंचती हैं और उसमें प्रवेश करती हैं.

मंत्रों का जप करते समय ध्यान के माध्यम से उत्पन्न मन की सूक्ष्म ऊर्जा ध्वनि तरंगों को विद्युत चुम्बकीय तरंगों में बदलने में मदद करती है, ताकि आवश्यक ब्रह्मांडीय संचरण हो सके. मन्त्र-तरंगों के तदनुरूप शक्ति केंद्र से टकराने से वांछित ब्रह्मांडीय विकिरणों का परावर्तन होता है. साधक के भीतर और उसके आसपास की भौतिक और सूक्ष्म ऊर्जा कोर में वापस लौटती हैं, या ब्रह्मांड में किसी अन्य ‘बिंदु’ पर पहुंचती हैं, जैसा कि संबंधित मंत्र के विशिष्ट जप पैटर्न द्वारा निर्देशित होता है.

साधक और दिव्य केंद्रों के बीच संचरण और स्वागत या ‘संचार’ की उपरोक्त प्रक्रिया शुरुआत में नगण्य प्रभाव दिखाती है. साधक की आंतरिक आस्था, मानसिक पवित्रता, एकाग्रता और संयम में वृद्धि के साथ मंत्र के उपासना और जप में समर्पित अभ्यास और पूर्णता के साथ इसका प्रभाव धीरे-धीरे एक जटिल तरीके से बढ़ता है.

युगों के अनुसार विज्ञान में अंतर

युगों के अनुसार, विज्ञान में भी परिवर्तन आता रहा है. वैदिक युग में सभी प्रकार की उड़ने वाली वस्तुओं को मंत्र शक्ति द्वारा ही सक्रिय किया जाता था. सतयुग और त्रेतायुग मे मंत्र+तंत्र+यंत्र शक्तियों पर काम होता था. जैसे पुष्पक विमान मंत्रों से संचालित होता था.

द्वापर युग में मंत्र शक्ति कमजोर हो जाती है और तंत्र+यंत्र शक्ति बढ़ जाती है, जैसे शाल्व का विमान. वहीं, कलयुग में मंत्र शक्ति समाप्त हो जाती है और तंत्र और यंत्र शक्ति प्रभावी हो जाती है. धीरे-धीरे तंत्र शक्ति का भी लोप हो जाता है और केवल यंत्र शक्ति रह जाती है. आज हम मंत्र-तंत्र की विद्याओं और क्षमताओं को खो चुके हैं और केवल आर्टिफिशियल टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं. अब चारों और यंत्र शक्ति का ही बोलबाला है.

प्राचीन काल में जब किसी मंदिर या देवालय के लिए कोई देव प्रतिमा बनाई जाती थी, तो उस प्रतिमा को बनाने वाला शिल्पकार उसे तराशते समय मौन रहकर मन ही मन उस देवी-देवता के मंत्र का उच्चारण करता रहता था. इस प्रकार मंत्र जप से वह मूर्ति जागृत हो जाती थी.

आयुर्वेद में भी जब किसी बीमार व्यक्ति के लिए कोई विशेष औषधि बनाई जाती थी, तो भी मंत्र जाप किया जाता था. अंगूठी में कोई भी रत्न जड़वाते थे, तो उस अंगूठी के रत्न को मंत्र द्वारा धारण (जागृत) किया जाता था. इसी प्रकार प्राचीन काल में युद्ध के समय जो बाण, अस्त्र-शस्त्र मंत्र पढ़कर छोड़े जाते थे, वे उसी लक्ष्य पर लगते थे जिसका नाम लेकर उसे छोड़ा जाता था. ऐसी थी मंत्र शक्ति.

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1 Comment

  1. Mantra has great strength.Learning & recitation is most important when to talk about Mantras I want to learn more.

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