Mahakaleshwar Temple Ujjain
उज्जैन (Ujjain) मध्य भारत में क्षिप्रा नदी के तट पर बसा एक प्रमुख और पवित्र नगर है. यह अत्यंत प्राचीन शहर है और इसे ‘मंदिरों का नगर’ भी कहा जाता है. यह भारत की उन सात प्राचीन पुरियों में शामिल है, जिन्हें मोक्ष देने वाला माना जाता है. यह क्षेत्र दिव्य त्रिमूर्ति-ब्रह्मा, विष्णु और महेश के लिए बहुत पसंदीदा रहा है. उज्जैन का सम्बन्ध भगवान् शिव, भगवान् श्रीकृष्ण के साथ-साथ आदि शंकराचार्य राजा विक्रमादित्य, महाकवि कालिदास जैसी महान विभूतियों से रहा है. उज्जैन भी शिक्षा का बड़ा केंद्र रहा है.
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल ज्योतिर्लिंग इस नगरी में स्थित है. भगवान् श्रीकृष्ण की शिक्षा-दीक्षा उज्जैन में ही गुरु संदीपन के आश्रम में हुई थी. यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी. यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ महाकुंभ मेला लगता है. सिंहस्थ पर्व के पवित्र अवसर पर लाखों साधु और तीर्थयात्री यहाँ स्नान करते हैं. उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा, प्रतिकल्प, अमरावती, शिवपुरी, चूड़ामणि, कुमुदवती आदि हैं.
श्री महाकाल (Shri Mahakal)
पुराणों की कथायें बताती हैं कि जब सृष्टि नहीं थी, या जब कुछ भी नहीं था, तब एक सकारात्मक शक्तिपुंज यूँ ही घूम रहा था. उसी शक्तिपुंज से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई, जिनकी लीलाओं की विभिन्न कथायें हम पढ़ते और सुनते हैं, और फिर इन्हीं तीनों के माध्यम से सृष्टि का निर्माण हुआ. वह शक्तिपुंज ही सदाशिव हैं.
सकारात्मक शक्तिपुंज अर्थात पॉजिटिव एनर्जी. जब सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, ब्रह्मांड कुछ भी नहीं था, तब केवल यह एनर्जी थी, और जब ये सब समाप्त हो जाएंगे तब भी यह एनर्जी ही रहेगी. यही हैं सदाशिव, जो काल अर्थात समय से परे हैं, मृत्यु से भी परे हैं, महाकाल हैं. जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे और जब कुछ नहीं होगा तब भी शिव ही होंगे. संपूर्ण संसार शिवमय है.
भगवान शिव के तीसरे ज्योतिर्लिंग अर्थात महाकालेश्वर के रूप में उज्जयनी में इन्हीं सदाशिव की पूजा की जाती रही है. हमारे जो 12 ज्योतिर्लिंगों का क्रम है, वह बिल्कुल टाइम पीरियड के आधार पर है. कहा जाता है कि महाकाल ज्योतिर्लिंग मानवीय सृष्टि के बाद का पहला ज्योतिर्लिंग हैं. पहले ज्योतिर्लिंग भगवान सोमनाथ की कथा मानवीय सृष्टि के प्रारम्भ होने के पूर्व चन्द्रमा और उनकी पत्नियों से जुड़ती है, और दूसरे ज्योतिर्लिंग भगवान मल्लिकार्जुन की कथा भगवान शिव के उनके अपने परिवार से.
श्री महाकालेश्वर (Shri Mahakaleshwar)
मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर, भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों (स्वयंभू) में से एक है. महाकालेश्वर मंदिर का लिंगम अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में सबसे बड़ा है. ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त गर्भगृह में भगवान् श्री गणेश, श्री कार्तिकेय और माता पार्वती जी के आकर्षक और छोटे आकार के चित्र देखे जा सकते हैं. दीवारों के चारों ओर भगवान शिव की स्तुति में शास्त्रीय स्तवन प्रदर्शित हैं.
इस मंदिर की हवा में एक उत्साहपूर्ण तरंग है. विभिन्न देवताओं, देवियों, अप्सराओं और कीचकों की छवियां मंदिर की दीवारों और स्तंभों को सुशोभित करती हैं. श्री महाकालेश्वर समय के देवता हैं. वे कठिन परिस्थितियों को जीतने में सक्षम देव के रूप में भी प्रसिद्ध हैं. यह दुनिया का एकमात्र लिंगम है जिसका मुख दक्षिण की ओर है. बाकी सभी ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी हैं.
महाकालेश्वर मंदिर भी अठारह महाशक्ति पीठों में से एक है. शक्तिपीठ वे स्थान हैं जहाँ सती देवी के शरीर के अंग गिरे थे. ऐसा माना जाता है कि यहां सती देवी का ऊपरी होंठ गिरा था. इसके अलावा, देवी यहां महाकाली के रूप में लोकप्रिय हैं.
महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास
महाकाल मंदिर सर्वप्रथम कब अस्तित्व में आया, यह बताना तो कठिन है. महाकाल मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है. इन ग्रन्थों के अनुसार यह मन्दिर बहुत भव्य था. इसकी नींव और चबूतरा पत्थरों का बना हुआ था. बहुमंजिला सोने की परत वाले महल और इमारतें और शानदार कलात्मक भव्यता थी. मंदिर प्रवेश द्वार से जुड़ी ऊंची प्राचीरों से घिरा हुआ था. गोधूलि के समय जगमगाते दीयों की जीवंत पंक्तियाँ मंदिर-परिसर को आलोकित कर देती थीं.
महाकालेश्वर मंदिर के इतिहास के अनुसार, सबसे पहले स्वयं ब्रह्मा जी ने इस स्थल पर मंदिर की स्थापना की थी. उज्जैन से बरामद सिक्कों पर भगवान शिव के निशान मौजूद हैं. परमार काल में आक्रांताओं ने मंदिर को नष्ट कर दिया था. बाद में मालवा क्षेत्र के शासक उदयादित्य और नरवर्मन ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था.
‘मेघदूतम’ के प्रारंभिक भाग में, कालिदास महाकाल मंदिर का एक आकर्षक विवरण देते हैं. ‘रघुवंशम’ में कालिदास ने इस मंदिर का वर्णन ‘निकेतन’ के रूप में किया है. जब भगवान श्रीकृष्ण शिक्षा लेने के लिए उज्जैन आए थे, तब उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया था. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है.
सभ्यता का पुनर्जन्म है महाकालेश्वर
महाकाल का वर्तमान मंदिर अठारहवीं शताब्दी के चौथे-पांचवें दशक के दौरान बनाया गया था. इसके साथ ही, मराठा समुदाय के धार्मिक विचारों वाले रईसों ने भी मंदिर-परिसर में कई मंदिरों का निर्माण किया. इस अवधि के दौरान श्रावण मास में पूजा अभिषेक, आरती, सवारी, हरिहर-मिलन आदि जैसी कई प्राचीन परंपराओं को भी पुनर्जीवित किया गया, जो आज भी आनंदमय समारोह और भक्ति उत्साह के साथ जारी हैं. भस्मारती भोर में, महाशिवरात्रि, पंच-क्रोसी यात्रा, सोमवती अमावस्या आदि विशेष धार्मिक अवसर हैं जो मंदिर के अनुष्ठानों से जुड़े हुए हैं.
वर्ष 1234 में इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर को ध्वस्त कर दिया था. तब से वर्ष 1728 ई. तक मालवा पर हिंदुओं का शासन ही नहीं रहा, अतः मंदिर के पुनर्निर्माण की कोई संभावना ही नहीं थी. लेकिन इन 500 वर्षों में भी श्री महाकाल जी की पूजा कभी बंद नहीं हुई. अत्याचार होते रहे, पर भक्तों की आस्था नहीं टूटी. 500 वर्षों तक लोग ध्वस्त मन्दिर में ही जाकर महाकाल को जल चढ़ाते रहे, और उनकी पूजा-अर्चना करते रहे.
समय ने फिर करवट ली. मालवा पर मराठों का अधिकार हुआ. बंगाल विजय को निकले राणोजी सिंधिया उज्जयनी में रुके और उस ध्वस्त मंदिर की ओर देखा. उसी क्षण उन्होंने अपने समस्त अधिकारियों और उज्जयनी के व्यापारियों को बुलाया और पूछा- ‘देखो इस मंदिर को, लज्जा आती है?’
किसी ने उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया, और जब कुछ महीनों बाद राणोजी सिंधिया बंगाल जीतकर लौटे तो महाकाल का भव्य मंदिर खड़ा था.
उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यवनों के शासनकाल में हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थीं, लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और 29 नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया, जिसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा. मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं- पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी. आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया.
केवल मंदिर का पुनर्निर्माण ही नहीं हुआ, मर चुकी समस्त परम्पराओं का पुनर्जन्म हुआ! टूटती आशाओं का पुनर्जन्म हुआ, फिर से महाकाल की सवारी निकलने लगी और उज्जयनी का वैभव फिर लौट आया. इस मंदिर को नुकसान पहुँचाने वाले तो अपने कर्मों को लेकर चले गए, पर महाकाल का भव्य मंदिर आज पूरी शान से खड़ा है और भक्तों के जयकारे से पूरा क्षेत्र गुंजायमान रहता है.
महाकालेश्वर मंदिर की संरचना
महाकालेश्वर मंदिर एक तीन मंजिला संरचना है. महाकालेश्वर के लिंगम की पूजा पहली मंजिल पर की जाती है, जो वास्तव में जमीन के नीचे है. दूसरे स्तर पर ओंकारेश्वर के लिंग की पूजा की जाती है. तीसरे स्तर पर नागचंदेश्वर लिंग की पूजा की जाती है. भूमिजा, चालुक्य और वास्तुकला की मराठा शैलियों में निर्मित यह मंदिर एक वास्तुशिल्प चमत्कार है.
परिसर में एक कुंड है जिसे ‘कोटि तीर्थ’ कहा जाता है. इसे सर्वतोभद्र शैली में बनाया गया है. कुंड की सीढ़ियों से सटे रास्ते पर, परमार काल के दौरान निर्मित मंदिर की मूर्तिकला भव्यता का प्रतिनिधित्व करने वाली कई छवियां देखी जा सकती हैं. कुंड के पूर्व में एक बड़े आकार का बरामदा है जिसमें गर्भगृह की ओर जाने वाले मार्ग का प्रवेश द्वार है. बरामदे के उत्तरी भाग में एक कक्ष में भगवान् श्रीराम और देवी अवंतिका की छवियों की पूजा की जाती है.
मुख्य मंदिर के दक्षिणी भाग में शिंदे शासन के दौरान निर्मित कई छोटे शैव मंदिर हैं, इनमें वृद्ध महाकालेश्वर, अनादि कल्पेश्वर और सप्तर्षि के मंदिर प्रमुख हैं और वास्तुकला के उल्लेखनीय नमूने हैं. रुद्र सागर के पास स्थित, मंदिर में एक विशेष भस्म आरती होती है, जिसके लिए भक्त यहां सुबह 4 बजे से ही इकट्ठा हो जाते हैं.
महत्वपूर्ण तथ्य
महाकालेश्वर मंदिर साल के सभी 365 दिन खुला रहता है. मंदिर सुबह 4 बजे खुलता है और रात 11 बजे बंद होता है. इस दौरान मंदिर में विभिन्न अनुष्ठान भी आयोजित किये जाते हैं. भक्त सुबह, दोपहर और शाम की आरती जैसे इन अनुष्ठानों का हिस्सा बन सकते हैं. यहां की भस्म आरती अद्वितीय है. पुजारी हर दिन सुबह 4:00 बजे शिवलिंग पर भस्म लगाता है. महारुद्राभिषेक के दौरान महाकालेश्वर मंदिर के देवताओं के सामने ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद का पाठ किया जाता है. महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में बहुत भीड़ होती है.
मंदिर प्रबंधन ने तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए दो धर्मशालाओं का निर्माण कराया है. धर्मशालाओं के नाम पंडित श्री सूर्य नारायण व्यास धर्मशाला और श्री महाकाल धर्मशाला हैं. गैर वातानुकूलित शयनगृह, गैर वातानुकूलित कमरे और वातानुकूलित कमरे तीर्थयात्रियों के लिए उचित दरों पर उपलब्ध हैं. इसके अतिरिक्त उज्जैन में कई बजट होटल, 3-सितारा और 5-सितारा होटल उपलब्ध हैं क्योंकि यह विश्व के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है.
अन्नक्षेत्र
अन्नक्षेत्र (Annakshetra) में मन्दिर में आने वाले दर्शनार्थियों के लिए कूपन के आधार पर निःशुल्क भोजन प्रसाद की व्यवस्था की गयी है. 2 आटोमैटिक चपाती मशीन भी यहां स्थापित की गयी है. प्रतिदिन 11 बजे से रात्रि 9 बजे के मध्य लगभग एक हजार से अधिक दर्शनार्थियों द्वारा भोजन प्रसादी का लाभ लिया जाता है. समिति द्वारा मन्दिर परिसर में दर्शनार्थियों को निःशुल्क कूपन दिये जाने हेतु काउन्टर संचालित किया जाता है. जिससे वह कूपन प्राप्त कर अन्नक्षेत्र जाकर भोजन प्रसादी का लाभ प्राप्त करते हैं.
महाकाल लोक कॉरिडोर
11 अक्टूबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर ‘महाकाल लोक’ का उद्घाटन किया था. इससे पहले पीएम मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया था, महाकाल कॉरिडोर उससे भी लंबा है. महाकाल कॉरिडोर 900 मीटर लंबा है, जो प्लाजा को महाकाल मंदिर से जोड़ता है, जिसमें 108 भित्ति चित्र और 93 मूर्तियाँ हैं, जो भगवान शिव से संबंधित कहानियों को दर्शाती हैं, जैसे कि शिव विवाह, गंगा जी को अपनी जटाओं में धारण करना, त्रिपुरासुर वध, शिव पुराण और शिव तांडव स्वरूप आदि. इस पैदल यात्री कॉरिडोर के साथ 128 सुविधा बिंदु, भोजनालय और खरीदारी के स्थान, फूलवाला, हस्तकला भंडार आदि भी हैं. इस उत्थान के बाद परिसर अब आकार में दस गुना बड़ा हो गया है.
विहंगम दृश्य!
सतत् साधना, पूरा मनोयोग, असीम धैर्य, अटल दृढ़संकल्प, अपरिमेय ऊर्जा और अपराजेय जज्बे के परिणामस्वरूप आज उज्जयिनी विलक्षण वैभव से सराबोर है।
इस अद्भुत #ShriMahakalLok को देखकर सनातन धर्म में हमारी आस्था और अधिक प्रबल होगी।
।। जय महाकाल ।। pic.twitter.com/3j9SvY5jgb
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) October 9, 2022
Written By – Aditi Singhal (working in the media)
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