Shri Krishna Janmashtami puja vidhi
भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए इस दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) कहते हैं. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-उपासना करने से सुख-समृद्धि, संतान और आयु की प्राप्ति होती है. जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो, उन्हें कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा जरूर करनी चाहिए. भगवान श्री विष्णु जी के अवतार और श्रीराधा रानी के प्रिय भगवान श्रीकृष्ण जी की सच्चे मन से उपासना करके हर मनोकामना पूरी की जा सकती है.
जन्माष्टमी पर बाल कृष्ण की उपासना की जाती है. हालांकि, आप भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति जिस रूप में करते हैं, उनके उसी स्वरूप की पूजा कर सकते हैं. भगवान श्रीकृष्ण की पूजा मधुर भाव से करें. भगवान श्रीकृष्ण जी के प्रत्येक अंग, गतिविधि और क्रिया-कलाप मधुर हैं और उनके साथ होने से अन्य सजीव और निर्जीव वस्तुएं भी मधुरता को प्राप्त कर लेती हैं. इसीलिए भक्ति संत श्री वल्लभाचार्य लिखते हैं-
भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार (Shri Krishna shringar)
भगवान श्रीकृष्ण के श्रृंगार में फूलों का प्रयोग जरूर किया जाता है. इनके श्रृंगार में पीले रंग के वस्त्र, गोपी चन्दन और चंदन की सुगंध, वैजयंती के फूल या पीले फूल आदि का प्रयोग करना चाहिए. पूजा में काले रंग के प्रयोग से बचें.
Shri Krishna Prasadam-
सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री, दही, छाछ आदि बहुत पसंद है. इसी के साथ, उन्हें प्रसाद में पंचामृत जरूर अर्पित करें और उसमें तुलसीदल जरूर डालें. कहीं-कहीं धनिये की पंजीरी भी अर्पित की जाती है.
अगर घर में उस दिन दूध-दही, मेवा आदि की व्यवस्था नहीं है, तो जल में तुलसी के दो पत्ते डालकर भी भगवान को प्रसाद के रूप में अर्पित कर सकते हैं. जन्माष्टमी के दिन, या भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा के दिन घर में बना खाना पूरी तरह से सात्विक होना चाहिए.
जन्माष्टमी की पूजा विधि (Janmashtami ki puja vidhi)-
अलग-अलग जगहों पर जन्माष्टमी की पूजा विधि अलग-अलग है. कहीं पर भगवान का जन्म कमल पुष्प में से, तो कहीं खीरे या फलों के बीच में से, और कहीं पर फूलों के बीच में से भगवान का जन्म कराके उनका पंचामृत स्नान कराया जाता है. उसके बाद विधिवत आरती वगैरह की जाती है. लड्डू गोपाल की पूजा, या सेवा या देखभाल उसी तरह से करनी चाहिए, जैसे अपने किसी नन्हे शिशु की की जाती है. यहां हम जन्माष्टमी की सर्वमान्य सरल पूजा विधि बता रहे हैं.
सुबह जल्दी उठें. स्नान आदि कर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें. श्रीराधेकृष्ण का नाम जपते हुए सूर्य, तुलसी, पीपल, गाय आदि को प्रणाम करें. अगर व्रत रखना चाह रहे हैं तो व्रत का संकल्प ले लें. क्षमतानुसार, दिनभर जलाहार या फलाहार करें. तन-मन दोनों से सात्विक जरूर रहें. जिस स्थान पर भगवान की पूजा करनी है, उस स्थान को फूलों आदि से सजाकर सुंदर और सुगंधित बनाएं. अगर हो सके तो मुख्य द्वार पर बंदनवार जरूर लगाएं.
कहीं-कहीं पर सूरज ढल जाने के बाद शाम को लड्डू गोपाल की प्रतिमा को एक परात या थाली में फल और फूलों से ढककर रख दिया जाता है. इन फलों में खीरा जरूर रखा जाता है. फिर पूजा रात 12 बजे की जाती है. वहीं, कहीं-कहीं पर पूजा शुरू करने के बाद भगवान का सीधे ही पंचामृत स्नान कराया जाता है.
पूजा शुरू करने से पहले हाथ जोड़कर मन ही मन अपने कुलदेवता या इष्टदेव और अपने गुरु का ध्यान करें (अगर कोई गुरु नहीं है, तो भगवान् शिव या गायत्री माता का ध्यान किया जा सकता है). इसके बाद तीन बार आचमन करें. इसके लिए अपने मंदिर में रखे जल में से एक चम्मच जल लेकर अपनी दायीं हथेली पर डालें और उसे श्रद्धपूर्वक पी लें. ऐसा तीन बार करें. इस दौरान ‘ॐ कृष्णाय नम:’ या ‘ॐ केशवाय नम:’ या ‘ॐ माधवाय नम:’ आदि मंत्रों का जप करें. इसके बाद हाथों से माथे और कानों को छूकर प्रणाम करें.
इसके बाद अपनी उस हथेली को धोकर उसी हथेली में थोड़े से चावल, जल और फूल ले लें और आँखें बंद करके भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें और पूजा का संकल्प लें. आँखें बंदकर अपना नाम, गोत्र आदि बोलकर भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें कि, “मैं पूरे विधि-विधान से आपकी पूजा-अर्चना करना चाहती/चाहता हूं. कृपया मेरी प्रार्थना स्वीकार करें.” (दरअसल, भगवान की पूजा करना बड़े भाग्य की बात होती है).
कलश स्थापना (Kalash Sthapna)-
एक जगह चावल का ढेर बनाकर उस पर सजाया हुआ कलश रख दें और उसमें जल भर दें. उस पर रोली, चन्दन, चावल आदि चढ़ाएं. कलश में सुपारी और एक सिक्का डालें. फिर उसमें आम के पत्ते सजाकर उस पर नारियल रखें. कलश पर नया कोरा पीला या लाल कपड़ा चढ़ाएं. फिर उस पर अक्षत चढ़ाकर आँखें बंदकर, हाथ जोड़कर, गंगा-यमुना-सरस्वती का ध्यान करके प्रार्थना करें.
इसके बाद घंटी और शंख बजाएं. घंटी और शंख की ध्वनि से आसपास की बुरी शक्तियां या नेगेटिव एनर्जी दूर जाने लगती हैं और अच्छी या पॉजिटिव शक्तियां पास आने लगती हैं.
अब मंदिर में रखे पूजा जल से वहां रखीं सभी पूजा सामग्री और वहां मौजूद सभी भक्तों पर जल का छिड़काव करें. इसी के साथ, सभी पकवानों आदि में तुलसी के पत्ते डालें.
भगवान श्रीकृष्ण का पंचामृत स्नान
(Bhagwan Shri Krishna ka Panchamrit Snan)
अब दाएं हाथ में जल, फल, अक्षत और फूल लेकर 15 बार ‘ॐ कृष्णाय नमः’ का जप करें और फिर इन सबको भगवान को अर्पित कर दें. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कराके उनका पंचामृत स्नान कराया जाता है. इसके लिए फल-फूलों के बीच में से बड़े प्यार से लड्डू गोपाल को निकाल लें (पूजा में उपस्थित बाकी भक्तों से छिपाकर) और उन्हें एक परात में बिठाएं.
इसके बाद भगवान को दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से स्नान कराएं. अंत में जल से स्नान कराएं. इसे पंचामृत स्नान कहते हैं. जिन चीजों से भगवान श्रीकृष्ण को स्नान कराया जाता है, उन चीजों को शंख में डालकर अर्पित करना चाहिए.
इसके बाद किसी बच्चे की ही तरह उनका शरीर प्यार से पोंछें, और फिर उन्हें इत्र लगाएं और पीताम्बर पहनाकर और चंदन लगाकर उनका श्रृंगार आदि करें. उन्हें झूले में बिठाएं और 9 बार झूला जरूर झुलाएं. फिर उन्हें जनेऊ, गंध, पुष्प और प्रसाद आदि अर्पित करें.
इसके बाद भगवान के प्रसाद के लिए रखे पकवानों के बर्तनों को छूते हुए मन ही मन ‘ॐ‘ का 9 बार उच्चारण करें और भगवान से प्रसाद ग्रहण करने का अनुरोध करें. इसके बाद फल-जल आदि चढ़ाएं और दक्षिणा स्वरुप कुछ धनराशि अर्पित करें. इसके बाद श्रीकृष्ण के मंत्रों का जप करें और फिर आरती की थाली सजाकर बड़े प्यार से भगवान की आरती करें.
इसके बाद सभी जगह और सभी भक्तों को आरती दें, तिलक लगाएं और फिर आँखें बंदकर, हाथ जोड़कर मन ही मन भगवान से क्षमा याचना करें कि, “अगर जाने-अनजाने पूजा में किसी प्रकार की कोई भूल-चूक हो गई हो, तो क्षमा करें..”. इसके बाद अगली सुबह स्नान आदि करके भगवान के बचे हुए जल को तुलसी में चढ़ाएं और भगवान के प्रसाद को ग्रहण कर अपना व्रत खोल लें.
जिस पंचामृत से भगवान का अभिषेक किया है, उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें. अगर इस दिन पंचामृत से भगवान का स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो जल में चंदन, या गुलाबजल, या केसर मिलाकर भी श्रीकृष्ण का स्नान किया जा सकता है. भगवान श्रीकृष्ण के मंत्रों का जप तुलसी या चंदन की माला से किया जाए तो और भी अच्छा.
Shri Krishna Mantra-
भगवान श्रीकृष्ण के रूप और नामों की तरह ही उनके मंत्र भी अनगिनत हैं. आप भगवान श्रीकृष्ण के किसी भी मंत्र का 108 बार जप कर सकते हैं. और अगर मंत्रों का जप नहीं कर पा रहे हैं तो प्यार से ‘राधेकृष्ण’ ही रटते रहें.
गोकुल नाथाय नमः
राधावल्लभाय नमः
ॐ क्लीं कृष्णाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
कृं कृष्णाय नमः
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
भक्तों की वे अधूरी इच्छाएं, जो भगवान श्रीराम ने श्रीकृष्ण के रूप में कीं पूरी
राधाष्टमी : श्रीराधा जी का जन्म
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