Shri Maha Lakshmi Puja Vidhi (2)
आगे की पूजा-
अष्टसिद्धिपूजन-
अंङ्गपूजा के बाद निम्नलिखित मंत्रों द्वारा कुमकुम और अक्षत से देवी महालक्ष्मी के पास पूर्वादि क्रम से (पूर्व दिशा से शुरू करके घड़ी की सुई की दिशा के क्रम से) आठों दिशाओं में आठों सिद्धियों की पूजा करें-
ॐ अणिम्ने नमः (पूर्व दिशा में)
ॐ महिम्ने नमः (आग्नेय कोण में)
ॐ गरिम्णे नमः (दक्षिण दिशा में)
ॐ लघिम्ने नमः (नैर्ऋत्य कोण में)
ॐ प्राप्त्यै नमः (पश्चिम दिशा में)
ॐ प्राकाम्यै नमः (वायव्य कोण में)
ॐ ईशितायै नमः (उत्तर दिशा में)
ॐ वशितायै नमः (ईशान कोण में)
नोट –
• पूर्व-दक्षिण दिशा के मध्य स्थान को आग्नेय कोण कहते हैं.
• दक्षिण-पश्चिम दिशा के मध्य स्थान को नैऋत्य कोण कहते हैं.
• उत्तर-पश्चिम दिशा के मध्य स्थान को वायव्य कोण कहते हैं.
• उत्तर-पूर्व दिशा के मध्य स्थान को ईशान कोण कहते हैं.
अष्टलक्ष्मी पूजन-
अष्टसिद्धिपूजन के बाद निम्नलिखित मंत्रों द्वारा कुमकुम, अक्षत और पुष्पों से देवी महालक्ष्मी के पास पूर्वादि क्रम से (पूर्व दिशा से शुरू करके घड़ी की सुई की दिशा के क्रम से) आठों दिशाओं में अष्ट लक्ष्मियों का पूजन करें-
ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः (पूर्व दिशा में)
ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः (आग्नेय कोण में)
ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः (दक्षिण दिशा में)
ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः (नैर्ऋत्य कोण में)
ॐ कामलक्ष्म्यै नमः (पश्चिम दिशा में)
ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः (वायव्य कोण में)
ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः (उत्तर दिशा में)
ॐ योगलक्ष्म्यै नमः (ईशान कोण में)
धूप-
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
धूपमाघ्रापयामि।
(धूप आघ्रापित करें या धूप दिखाएं)
दीप-
कार्पास वर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम्।
तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
दीपं दर्शयामि।
(दीपक दिखाएँ और हाथ धो लें)
नैवेद्य-
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्य समन्वितम्।
षड्रसैरन्वितं दिव्यं लक्ष्मि देवि नमोऽस्तु ते॥
ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
नैवेद्यं निवेदयामि।
(देवी मां को नैवेद्य अर्पित करें- यथाशक्ति मिष्ठान और सूखे मेवे आदि)
मध्ये पानीयम्, उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।
(हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें)
करोद्वर्तन-
“ॐ महालक्ष्म्यै नमः” कहकर करोद्वर्तन के लिए हाथों में चन्दन उपलेपित करें.
आचमन-
शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम्।
आचम्यतां जलं ह्येतत् प्रसीद परमेश्वरि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
आचमनीयं जलं समर्पयामि।
(आचमन के लिए जल दें)
ऋतुफल-
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्।
तस्मात् फलप्रदादेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
अखण्डऋतुफलं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
(यथाशक्ति ऋतुफल अर्पित करें और आचमन के लिए जल दें)
ताम्बूल पूगीफल-
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि।
(लौंग, इलायची और ताम्बूल अर्पित करें)
दक्षिणा-
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
दक्षिणां समर्पयामि।
(दक्षिणा चढ़ाएँ)
नीराजन (आरती)-
चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम्।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्तया गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
नीराजनं समर्पयामि।
(आरती करें, जल छोड़ें और हाथ धो लें)
प्रदक्षिणा-
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥
(प्रदक्षिणा करें)
प्रार्थना-
हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकैर्युक्तं
सदा यत्तव पादपङ्कजम्।
परावरं पातु वरं सुमङ्गलं
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये॥
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि! नमोऽस्तु ते॥
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारम् समर्पयामि।
(प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें)
समर्पण-
पूजन के अंत में “कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम।” का उच्चारण कर समस्त पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा हाथ में जल लेकर छोड़ दें.
भगवती महालक्ष्मी के यथालब्धोपचार पूजन के बाद श्रीदेहलीविनायक, मसिपात्र (दवात), लेखनी, मां सरस्वती जी, कुबेर, तुला-मान और दीपकों की पूजा की जाती है, जो कि महालक्ष्मी पूजन के ही भाग हैं. संक्षेप में उन्हें भी यहां दिया जा रहा है.
सर्वप्रथम श्री देहलीविनायक की पूजा-
व्यापारिक प्रतिष्ठानों में दीवालों पर ‘ॐ श्री गणेशाय नमः’, स्वस्तिक चिन्ह, ‘शुभ-लाभ’ आदि मांगलिक और कल्याणकारी शब्द सिन्दूर से लिखे या बनाए जाते हैं. इन्हीं शब्दों पर “ॐ देहलीविनायकाय नमः” नाम मंत्र द्वारा गंध-पुष्पादि से पूजन करें.
श्री महाकाली पूजा (दवात पूजा)-
भगवती महालक्ष्मी जी के सामने काली स्याहीयुक्त दवात को पुष्प तथा अक्षत पर रखें. उस पर सिंदूर से स्वस्तिक बना दें और मौली लपेट दें. “ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः” मंत्र बोलकर गन्ध, पुष्पादि या षोडशोपचारों से दवात में श्री महाकाली जी का पूजन करें. इस प्रकार प्रार्थना पूर्वक उन्हें प्रणाम करें-
कालिके! त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये॥
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहारद क्षैः।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु॥
(पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें)
लेखनी पूजन (कलम पूजन)
कलम पर मौली बाँधकर सामने रख लें और निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें-
लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना।
लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम्॥
“ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः” मंत्र द्वारा गन्ध-पुष्पादि से पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव॥
सरस्वती पञ्जिका (बही-खाता पूजन)-
पञ्जिका- बही, बसना और थैली में रोली या केसरयुक्त चन्दन से स्वस्तिक चिन्ह बनायें और थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती जी का पूजन करें-
ध्यान-
या कुन्देन्दुतुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्यासना॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवेः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
“ॐ वीणापुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नमः” मंत्र बोलकर पुष्पादि से पूजन करें.
कुबेर पूजन-
तिजोरी या रुपये रखे जाने वाले संदूक आदि पर स्वस्तिक चिन्ह बनायें और उसमें निधिपति कुबेर का आवाहन करें-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर॥
इसके बाद “ॐ कुबेराय नमः” मंत्र द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः॥
इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्व-पूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य आदि से युक्त थैली तिजोरी में रखें.
तुला तथा मान पूजन-
तराजू आदि पर सिन्दूर से स्वस्तिक बना लें. मौली लपेटकर तुलाधिष्ठातृदेवता का इस प्रकार ध्यान करें-
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना॥
इसके बाद “ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः” मंत्र द्वारा पुष्पादि से पूजन कर नमस्कार करें.
दीपमालिका पूजन (दीपक पूजन)-
किसी पात्र में 11, 21 या उससे अधिक दीपों को प्रज्वलित कर महालक्ष्मी जी के सामने रखकर उस दीप ज्योति का “ॐ दीपावल्यै नमः” मंत्र द्वारा पुष्पादि से पूजन करें और प्रार्थना करें-
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः॥
दीपमालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार यथाशक्ति संतरा, ईख, पानीफल, धान का लावा (खील) इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं. खील श्रीगणेश और महालक्ष्मी जी सहित सभी देवी-देवताओं को अर्पित करें. अंत में सभी दीपकों को प्रज्वलित कर उनसे अपने घर को सजाएँ.
प्रधान आरती
सबसे अंत में प्रधान आरती करनी चाहिए. इसके लिए एक थाली में स्वस्तिक आदि चिन्ह बनाकर अक्षत तथा पुष्पों के आसन पर घी का दीपक जलाएं. एक पृथक पात्र में कर्पूर भी प्रज्वलित कर वह पात्र भी थाली में यथास्थान रख लें. अपने आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारिक जनों के साथ घण्टानादपूर्वक महालक्ष्मी जी की आरती करें.
मंत्र-पुष्पाञ्जलि –
दोनों हाथों में कमल आदि के पुष्प लेकर हाथ जोड़ें और निम्नलिखित मंत्रों का पाठ करें-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं
महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः
सार्वायुषान्तादापरार्धात्। पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति
तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति।
ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्।
सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन् देव एकः॥
महालक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।
ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।
(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी जी पर चढ़ा दें)
प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें एवं पुनः हाथ जोड़कर क्षमा-प्रार्थना करें-
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात्॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वम् मम देवदेव॥
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहि मां परमेशानि सर्वपापहरा भव॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥
हाथ में जल लेकर ‘ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतु॥’ बोलते हुए जल छोड़ दें और प्रणाम करें.
विसर्जन-
अब हाथ में अक्षत लेकर (श्री गणेश एवं महालक्ष्मी जी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें-
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च॥
ॐ आनंद! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!
इससे पहले की पूजा : श्रीगणेश जी और महालक्ष्मी जी का पूजन (Click Here)
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