Shri Ram ki Mahima (Ramayan)
रावण ने जब श्रीराम के लिए अपमानजनक भाषा का प्रयोग कर, उनकी पत्नी सीता जी के हरण की योजना मारीच को बताते हुए उससे सहायता करने के लिए कहा, तो मारीच का मुंह सूख गया और वह भय से थर्रा उठा. वह श्रीराम के पराक्रम को जानता है, इसलिए रावण की बात सुनकर वह मन ही मन अत्यंत भयभीत हो जाता है. तब वह हाथ जोड़कर अपने और रावण के हित की बात समझाते हुए कहता है-
“राजन! सदा प्रिय वचन बोलने वाले लोग तो सब जगह होते हैं, लेकिन अप्रिय वचन बोलकर भी हित की बात कहे, ऐसी बात कहने और सुनने वाले, दोनों का ही मिलना दुर्लभ है. मैं तो समस्त राक्षसों का कल्याण चाहता हूं, इसलिए उनके हित की ही बात कहता हूं. निश्चय ही आप श्रीराम को बिल्कुल नहीं जानते. वे गुण और पराक्रम में सबमें बढ़कर हैं. आपने जो अनैतिक कार्य करने का निर्णय लिया है, कहीं उससे क्रोध में आकर श्रीराम सभी लोकों को राक्षसों से विहीन न कर दें.”
“आपके विचार सुनकर मुझे ऐसा लग रहा है कि कहीं जनकनंदिनी सीता आपके जीवन और समस्त राक्षसों का अंत करने के लिए ही तो उत्पन्न नहीं हुई हैं? जो राजा आपके समान दुराचारी, स्वेच्छाचारी, पापपूर्ण विचार रखने वाला होता है, वह अपने साथ-साथ अपने परिजनों और समस्त राष्ट्र का भी विनाश कर डालता है. आपके जैसा राजा पाकर कहीं लंकापुरी आपके और राक्षसों के साथ ही नष्ट न हो जाए. मुझे यह आभास हो रहा है कि कोई आपका परम शत्रु है, जिसने आपको ऐसी उल्टी सलाह दी है.”
“हे राजन! चापलूसों को छोड़कर आपको विभीषण आदि धर्मात्मा मंत्रियों के साथ सलाह करके अपना कर्तव्य निश्चित करना चाहिए. श्रीराम के गुण दोषों और शक्ति को अच्छी प्रकार परख लेना चाहिए, इसके बाद आपको जो उचित जान पड़े, वह कार्य करना चाहिए. जब कोई अपनी शक्ति का प्रयोग पापकर्म में करने लगता है, तो वही शक्ति उसे धोखा दे जाती है. हे निशाचरराज! मेरी दृष्टि में आपका कौशलराजकुमार श्रीराम के साथ युद्ध करना उचित नहीं है. मेरी सलाह आपको बहुत ही उत्तम, उचित और उपयुक्त सिद्ध होगी.”
“जिसे आप एक राज्य का साधारण सा राजकुमार समझ रहे हैं, उन राम की महिमा आप नहीं जानते. श्रीराम न तो अपने पिता द्वारा त्यागे या निकाले गए हैं और न ही उन्होंने धर्म की मर्यादा का त्याग किया है. वे न तो लोभी हैं और न दूषित आचार-विचार वाले हैं. वे धर्म संबंधी गुणों से हीन नहीं हुए हैं. श्रीराम धर्म के मूर्तिमान स्वरूप हैं, साधु और सत्यपराक्रमी है, संपूर्ण जगत के स्वामी हैं. उनका स्वभाव किसी भी प्राणी के प्रति तीखा नहीं है. वे सदा समस्त प्राणियों के हित में ही लगे रहते हैं.”
“उनकी माता कैकई ने पिता को धोखे में डालकर उनके वनवास का वर मांग लिया और श्रीराम ने मन ही मन अपने पिता को सत्यवादी बनाने का निश्चय कर लिया और पिता का प्रिय करने की इच्छा से राज्य का सारा वैभव त्यागकर वन को चल दिए. हे राजन! श्रीराम मूर्ख और अजितेंद्रिय नहीं हैं. उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला है. मैंने उनमें कभी किसी प्रकार का दोष नहीं देखा या सुना है. अतः उनके विषय में आपको ऐसी उल्टी बातें कभी नहीं कहनी चाहिए.”
“जनकनंदिनी सीता जिनकी धर्मपत्नी हैं, उनका तेज अप्रमेय है. आपमें इतनी शक्ति नहीं कि आप उन्हीं सीता जी का अपहरण कर सकें. श्रीराम मनुष्यों में सिंह के समान पराक्रमी हैं. सीता उन्हें प्राणों से भी अधिक प्यारी हैं. इसी प्रकार सीता भी सदा अपने पति का ही अनुसरण करती हैं. सीता प्रज्वलित अग्नि की ज्वाला के समान असहनीय हैं, आपको ऐसी ज्वाला को हाथ नहीं लगाना चाहिए.”
“श्रीराम की पत्नी सीता अपने ही पातिव्रत्य के तेज से सुरक्षित हैं. जिस प्रकार सूर्य की आभा को उससे अलग नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार सीता को श्रीराम से अलग करना असंभव है और आप बलपूर्वक उनका अपहरण करना चाहते हैं? हे राक्षसराज! यह व्यर्थ का उद्योग करके आपको क्या लाभ होगा? जिस दिन श्रीराम की दृष्टि आपके ऊपर पड़ गई, उसी दिन आप अपने जीवन का अंत समझ लेना.”
“श्रीराम बड़े तेजस्वी, आत्मबल से संपन्न और महा बलशाली हैं. वे अकेले ही राक्षस जगत का संहार कर सकते हैं. श्रीराम प्रज्वलित अग्नि के समान हैं. वे अपनी शत्रु सेना के प्राण लेने में अकेले ही समर्थ हैं. आपको अपने प्यारे प्राणों का मोह और राज्य का सुख छोड़कर उन्हें इस प्रकार युद्ध के लिए प्रेरित कर अचानक उस अग्नि में प्रवेश नहीं करना चाहिए. यदि आप अपने जीवन का सुख और परम दुर्लभ राज्य का चिरकाल तक उपभोग करना चाहते हैं, तो श्रीराम के साथ वैर न करें.”
“हे दशानन! श्रीराम मनुष्य रूप में चराचर के ईश्वर हैं. उनसे वैर न कीजिए. सबका जीवन-मरण उन्हीं के अधीन है. जिन्होंने ताड़का और सुबाहु को मारकर शिवजी का धनुष तोड़ दिया. जिन्होंने खर, दूषण और त्रिशिरा का उनकी विशाल सेना के साथ वध कर दिया, ऐसा प्रचंड बली भी भला साधारण मनुष्य हो सकता है? अतः अपने कुल की कुशल विचार कर आप अपने महल को लौट जाइए और लंका के विनाश का कारण न बनिये. अपनी मान, प्रतिष्ठा, उन्नति, राज्य और जीवन को नष्ट न होने दीजिये. पराई स्त्री पर कुदृष्टि डालने से बढ़कर कोई दूसरा महान पाप नहीं है.”
“एक समय था जब मैं अपने पराक्रम के अभिमान में पर्वत के समान शरीर धारण किए इस पृथ्वी पर जहां-तहां चक्कर लगाता रहता था. मेरा स्वभाव क्रूर था. मैं मांस खाता था और रक्तपान करता था. मुझमें एक हजार हाथियों का बल था. मैं बलवान तो था ही, साथ ही मुझे तो वरदान भी मिला हुआ था कि देवता मुझे नहीं मार सकेंगे. किंतु जब श्रीराम की दृष्टि मुझ पर पड़ी, तो उन्होंने ऐसा तीखा बाण छोड़ा कि मैं मरा तो नहीं, लेकिन चोट खाकर सीधा समुद्र में आ गिरा.”
“चेतना आने के बाद मैंने अपना जीवन तपस्या में लगा लिया है. अब मुझे ये सारा वन राममय सा प्रतीत होता है. जब मैं एकांत में बैठता हूं, तो मुझे नित्य श्रीराम के दर्शन होते हैं. मुझे सपने में भी श्रीराम ही दिखाई देते हैं. मैं उनके प्रभाव को अच्छी प्रकार जानता हूं. इसीलिए कहता हूं की श्रीराम के साथ आपका युद्ध कदापि उचित नहीं होगा. खर-दूषण ने ही श्रीराम पर चढ़ाई की, तो वे श्रीराम के हाथों मारे गए, तो इसमें श्रीराम का क्या दोष?”
“हे राजन! मेरी जान इसलिए बच सकी, क्योंकि श्रीराम मुझे मारना नहीं चाहते थे. उस समय मैं उनका प्रयोजन न समझ सका था. परन्तु आज आपकी बात सुनकर समझ आ रहा है कि क्यों उस समय उन्होंने मुझे जीवित छोड़ दिया था. आप मेरे बंधु समान हैं और मैं आपका हितैषी हूं. इसलिए हे राजन, यदि मेरे बार-बार मना करने के बाद भी आप सीता का अपहरण कर श्रीराम से विरोध करेंगे, तो निश्चय ही राक्षसों सहित अपने प्राणों से हाथ धो बैठेंगे. लंका का एक-एक घर जलकर भस्म हो जाएगा.”
परंतु जिस प्रकार मरने की इच्छा रखने वाला रोगी दवा नहीं लेता, उसी प्रकार अपने हित की बात सुनकर भी रावण ने मारीच की एक बात नहीं मानी. श्रीराम की इतनी प्रशंसा सुनकर वह जल उठा और तब उसने मारीच से बहुत से दुर्वचन कहे, साथ ही आज्ञा न मानने पर मारीच को स्वयं ही मार डालने की धमकी दी.
जब मारीच ने दोनों प्रकार से अपना मरण देखा, तब उसने श्रीराम की शरण जाने में ही अपना कल्याण समझा. उसने सोचा कि ‘जब आज हर प्रकार से मेरी मृत्यु निश्चित है, तो फिर मैं श्रीराम के बाण से ही क्यों न मरूँ.’ हृदय में ऐसा निश्चय कर वह रावण के साथ चला.
Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved
All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.
इस उत्तम और जीवनोपयोगी संवाद को साझा करने के लिए आपको साधुवाद।
धन्यवाद!