सावन का महीना (Sawan Month) पवित्र चातुर्मास में से एक माना जाता है और सावन के महीने के स्वामी भगवान शिव (Bhagwan Shiv) हैं, इसलिए इस महीने का संबंध पूरी तरह से भगवान शिव से ही माना जाता है. कहा जाता है कि इसी महीने में समुद्र मंथन (Samudra Manthan) हुआ था और विश्व को बचाने के लिए भगवान शिव ने विष का पान किया था. विष को ग्रहण करने के बाद उसकी उग्रता या जलन को शांत करने के लिए भक्त पूरे सावन में भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं.
पूरे साल भर भगवान शिव की पूजा करके जो फल मिलता है, वह सावन में भी पूजा करके पाया जा सकता है. तपस्या, साधना और वरदान प्राप्ति के लिए यह महीना बहुत शुभ होता है. इस महीने भगवान शिव की आराधना करें, उनके मंत्रों का जप करें और उनका ध्यान करें. इससे सावन के महीनों में विशेष आशीर्वाद मिलते हैं.
सावन के महीने में कुछ विशेष प्रयोग करके विवाह, स्वास्थ्य, धन आदि के आशीर्वाद पाए जा सकते हैं, क्योंकि संसार में ऐसा कुछ भी नहीं, जिसके स्वामी भगवान शिव न हों. भगवान शिव वैद्यों के भी वैद्य हैं, इसलिए स्वास्थ्य की रक्षा या किसी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए भी भगवान शिव की विशेष पूजा-आराधना की जाती है. सावन के महीने में भगवान शनि की पूजा भी सबसे ज्यादा फलदाई होती है.
सावन के महीने में क्या-क्या किया जाना चाहिए
हमें अपनी भारतीय सनातन परंपराओं और त्योहारों पर बेहद गर्व होना चाहिए, जो हमें त्योहारों के माध्यम से प्रकृति की रक्षा करने, जीवों की रक्षा करने और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का माध्यम देते हैं. हमारे भारतीय त्योहार ही हैं, जिन्हें अगर पारंपरिक और सही तरीके से मनाया जाए, तो ये त्योहार प्रकृति की रक्षा करने में बहुत मदद करते हैं. क्योंकि हर व्यक्ति के पास हर समय प्रकृति की सेवा करने का समय नहीं होता. ऐसे में ये हिंदू त्योहार ही हैं, जिनके बहाने व्यक्ति अपने जीवन में कुछ समय निकालकर प्रकृति की रक्षा में लगाता है.
• सावन के महीने में जल का संचयन जरूर करना चाहिए, क्योंकि यही जल गर्मियों में हमें जीवन देता है और हमारी रक्षा करता है.
• सावन के महीने में पत्तेदार चीजों का सेवन न करें, क्योंकि इस समय इनमें छोटे-छोटे कीड़े आ जाते हैं.
• सावन के महीने में बासी खाना और मांस मदिरा से तो बिल्कुल दूर रहें.
• सावन के महीने में तेज धूप में घूमने से बचें, नहीं तो कई स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
• सावन के महीने में दूध का प्रयोग कम करें और तांबे के बर्तन से दूध अर्पित न करें. तांबे के बर्तन से दूध अर्पित नहीं किया जाता है (दरअसल, तांबे के बर्तन में दूध या दूध से बनी चीजें नहीं रखी जाती हैं).
सावन के महीने में कौन-कौन से पौधे जरूर लगाए जाने चाहिए?
वैसे तो अच्छा काम करने का कोई मुहूर्त नहीं होता. और फिर सावन में तो कोई भी फायदेमंद पेड़-पौधे (Trees) कभी भी लगाए जा सकते हैं. लेकिन कुछ लाभदायक और महत्वपूर्ण पेड़-पौधे ऐसे हैं, जिन्हें सावन में जरूर लगाया जाना चाहिए. जैसे-
सावन के महीने में तुलसी का पौधा लगाना सबसे अच्छा माना जाता है. सावन के महीने में तुलसी का पौधा लगाने से सुख-समृद्धि और बेहतर स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है. शाम को तुलसी के नीचे घी का दीपक जलाएं और इसकी परिक्रमा करें (रोज सुबह खाली पेट दो पत्ते तुलसी के खाने से कई स्वास्थ्य समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है).
केले का पौधा- केले का पौधा घर के पीछे की तरफ लगाया जाता है, सामने नहीं लगाया जाता.
अनार का पौधा- घर के बीचों-बीच अनार का पौधा नहीं लगाना चाहिए, सामने लगाया जा सकता है.
शमी का पौधा- शमी का पौधा घर के मुख्य द्वार के बाईं तरफ लगाना अच्छा होता है.
पीपल का पौधा- सावन में किसी भी दिन पीपल का पौधा लगाया जा सकता है. इसे लगाना बहुत ही अच्छा होता है, लेकिन पीपल का पौधा घर में न लगाएं, किसी पार्क में या सड़क के किनारे या किसी सार्वजनिक स्थान पर जरूर लगाएं.
पीपल की जड़ में जल देने और उसकी परिक्रमा करने से जीवन की बहुत सारी समस्याओं से निजात पाई जा सकती है, यह बात गोस्वामी तुलसीदास जी की जीवन कथा से भी साबित होती है.
सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-आराधना
भगवान शिव ऐसे देव हैं जो थोड़े से जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं और अगर जल भी नहीं है, तो आप भगवान शिव को अपनी पवित्र भावना या भक्ति तो अर्पित कर ही सकते हैं.
रोज थोड़ा सा समय निकालकर अगर सावन में रोज ‘शिवाष्टक‘, ‘रुद्राष्टकम‘ और महामृत्युंजय मंत्र का पाठ किया जाए तो बहुत ही अच्छा. सावन के महीने में रोज सुबह शिव पंचाक्षर स्त्रोत या शिव मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप किया जाना बहुत अच्छा होता है.
लेकिन अगर आप भगवान शिव की कोई स्तुति आदि नहीं जानते हैं, तो मन में केवल ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप करते रहें. इस मंत्र का कोई जवाब नहीं. भगवान शिव के अन्य प्रमुख मंत्र हैं-
ॐ नमो भगवते रुद्राय
ॐ चंद्रशेखराय नमः
ॐ उमामहेश्वराभ्यां नम:
सावन में भगवान शिव को रोज सुबह जल और बेलपत्र चढ़ाएं. सावन के महीने में भगवान शिव को रोज बेलपत्र चढ़ाए जा सकते हैं और अगर रोज चढ़ाना संभव न हो तो हर सावन सोमवार में चढ़ाने की कोशिश की जानी चाहिए. अगर बेलपत्रों पर चंदन से ‘श्रीराम’ लिखा हो तो और भी अच्छा.
शिवलिंग पर सबसे पहले सुगंध, फिर बेलपत्र और फिर जल अर्पित किया जाता है. इसके बाद ही यथाशक्ति ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप करें.
अगर आप रुद्राक्ष धारण करना चाहते हैं तो इसके लिए सावन का महीना सबसे ज्यादा अनुकूल होता है. रुद्राक्ष धारण करने से पहले भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का 108 बार जप जरूर कर लें. मंत्र-जप करके रुद्राक्ष की माला को भगवान शिव को स्पर्श कराकर धारण करना चाहिए.
सावन के महीने में रोज शाम को शिव मंदिर में एक घी का दीपक जलाएं. ऐसा करना बहुत अच्छा होता है. सावन के महीने में भगवान शिव की रोज पूजा करने से कुंडली में चंद्रमा और शुक्र दोनों ही भी मजबूत होते हैं.
रुद्राभिषेक (Rudrabhishek)
जब भगवान शिव का अभिषेक विशेष तरह की पूजा-आराधना और कुछ विशेष तरह की वस्तुओं के साथ किया जाता है, तो उसे रुद्राभिषेक (रुद्र का अभिषेक) कहते हैं. रुद्राभिषेक आप अपने आप, किसी भी समय कर सकते हैं. रुद्राभिषेक के समय शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्याई के मंत्र पढ़े जाते हैं.
वैसे तो रुद्राभिषेक कभी भी किया जा सकता है, लेकिन आमतौर पर रुद्राभिषेक तब किया जाता है, जब हम अपनी किसी समस्या का निवारण चाहते हैं और या फिर सावन, महाशिवरात्रि आदि जैसे विशेष समयों पर. लेकिन भक्ति और प्रेमवश रुद्राभिषेक कभी भी किया जा सकता है.
वैसे तो रुद्राभिषेक करने के लिए निश्चित समय होते हैं और उन्हीं समय पर रुद्राभिषेक करना चाहिए. लेकिन शिवरात्रि, प्रदोष, सावन सोमवार, किसी सिद्धपीठ पर, या किसी भी ज्योतिर्लिंग के स्थान पर बिना कोई तिथि देखे रुद्राभिषेक आसानी से किया जा सकता है.
भगवान रुद्राभिषेक वैसे तो मंदिर में किया जाना चाहिए, लेकिन अगर यह संभव नहीं है, तो घर में मिट्टी का शिवलिंग बनाकर रुद्राभिषेक किया जा सकता है. इसी के साथ पर्वत पर, नदियों के किनारे, पीपल के नीचे बैठे शिवलिंग या किसी शिवालय में रुद्राभिषेक करना सबसे अच्छा माना जाता है.
अलग-अलग मनोकामनाओं के लिए चढ़ाएं कौन-कौन सी वस्तुएं?
• संतान प्राप्ति के लिए शक्कर मिले जल से
• मनोकामनाएं पूरी करने के लिए गन्ने के रस से
• बुद्धि का वरदान प्राप्त करने के लिए शक्कर मिले दूध से
• बीमारियों को दूर करने या आरोग्य पाने के लिए शहद से या गाय के दूध से
रुद्राभिषेक करते समय मन की भावना का जरूर ध्यान रखें, क्योंकि भगवान की पूजा-आराधना का अच्छा फल तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब मन की भावनाएं और पवित्रता साथ हो. भगवान के प्रति कोई संदेह नहीं होना चाहिए.
कांवड़ यात्रा क्या है (What is Kanwar Yatra)
कांवड़ एक पात्र होता है, जिसमें पवित्र जल भरकर शिवलिंग या ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने की परंपरा है. कांवड़ यात्रा अगर पूरे नियमों के साथ की जाए, तो यह एक बेहद कठिन यात्रा है. यह भगवान शिव के लिए प्रेम, भक्ति और उनकी आराधना का ही एक रूप है. इसीलिए कांवड़ के जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से तमाम समस्याएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जो लोग भी कांवड़ से भगवान शिव को नियमानुसार जल अर्पित करते हैं, उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं रह जाता है.
कांवड़ उठाने के नियम
• किसी पवित्र नदी से जल भरकर भगवान शिव पर अर्पित करना चाहिए. इसके लिए गंगा नदी का जल सर्वश्रेष्ठ है. कांवड़ के जल को भूमि पर नहीं रखना चाहिए.
• जो लोग भी कांवड़ उठाते हैं, ऐसे लोग एक समय भोजन करते हैं और लगातार भगवान शिव के मंत्र का जप करते रहते हैं.
• कांवड़ उठाने वाले लोगों के घर में भी सात्विक भोजन ही बनना चाहिए. मांस-मदिरा, नशा आदि से बिल्कुल दूर रहना चाहिए. कांवड़ यात्रियों को चमड़े से बने किसी भी वस्तु का स्पर्श भी नहीं करना चाहिए.
• सिंदूरी वस्त्र धारण करके कांवड़ उठाना चाहिए, ताकि शरीर में ऊर्जा का स्तर बना रहे, शक्ति बनी रहे और मन में भक्ति भाव भी बना रहे. कावड़ को सिर के ऊपर से लेने की मनाही है.
• अगर कांवड़ उठाने वाले व्यक्ति की सेहत बीच में खराब हो जाए, तो उसकी जगह कोई और भी कांवड़ उठाकर उसका संकल्प पूरा कर सकता है.
• जो लोग कांवड़ नहीं उठा सकते, या कांवड़ की यात्रा में नहीं जा सकते, तो ऐसे लोगों को कांवड़ यात्रा का फल प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए-
• सुबह नहा-धोकर एक पात्र में पवित्र जल भर लें. अगर गंगाजल हो तो और भी अच्छा. इस जल को हाथ में लेकर नंगे पैर भगवान शिव के मंदिर की 27 बार परिक्रमा करें और फिर वही जल भगवान शिव पर चढ़ाएं. इस दौरान पीले या नारंगी वस्त्र धारण करें.
• पात्र में थोड़ा सा जल बचा लें और इस जल को घर में लाकर घर के कोने-कोने में छिड़क दें. अगर यह प्रक्रिया सावन के सोमवार को की जाए, तो बहुत अच्छा.
कांवड़ यात्रा को लेकर मान्यताएं-
कांवड़ यात्रा के लिए अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग मान्यताएं रही हैं. ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ लाकर पुरा महादेव में, गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाकर उस पुरातन शिवलिंग का जलाभिषेक किया था. उसी परंपरा का पालन आज भी श्रावण मास में किया जाता है. लाखों लोग श्रावण मास में कावर से जल भरकर भगवान शिव पर अर्पित करते हैं.
पहले के समय में बहुत से श्रद्धालु गोमुख से गंगाजल भरकर रामेश्वरम तक पैदल यात्रा करते थे. इसमें उन्हें 6 महीने लग जाते थे. कांवड़ यात्रा का महत्व पौराणिक भी है और सामाजिक भी. इससे एक तो हिमालय से लेकर दक्षिण तक पूरे देश की संस्कृति में भगवान का संदेश जाता है, इसी के साथ साथ अलग-अलग क्षेत्रों के लौकिक और शास्त्रीय परंपराओं के आदान-प्रदान का भी बोध होता है. हालांकि इस परंपरा में अब काफी बदलाव आ चुका है.
जानिए- भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने के वैज्ञानिक फायदे
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