पक्षी के पर्यायवाची
पक्षी, विहंग, खग, द्विज (दो बार जन्म लेने वाला), सारंग, पखेरू, अण्डज, पंछी, चिड़िया, गगनचर, नभचर, परिंदा, खेचर, विहग, पतंग, कीश
• ‘खेचर’ का अर्थ ‘ग्रह’ भी होता है.
• प्रयोग के अनुसार ‘विहग’ के अर्थ बाण, तीर, बादल, मेघ, चन्द्रमा और सूर्य भी होते हैं.
भंवरा के पर्यायवाची
भंवरा, भ्रमर, मधुप, मिलिंद, मधुकर, भृंग, भौंरा, अलि, चंचरीक, शिलीमुख
मोर के पर्यायवाची
मोर, मयूर, शिखी, महप्रिय, मेहनर्तक, नीलकण्ठ, सितापांग, कलापी, नर्तकप्रिय, शिखण्डी, सारंग, भुजगारि, केकी
कोयल के पर्यायवाची
कोयल, पिक, बसन्तदूत, काकपाली, कुहुकिनी, कोकिला, सारिका, वनप्रिया, मदनशलाका, श्यामा
घोड़ा के पर्यायवाची
घोड़ा, अश्व, बाजि, हय, तुरंग, तुरंगम्, सैंधव, दधिका, सर्ता, आशु
शेर के पर्यायवाची
शेर, सिंह, शार्दूल, मृगराज, मृगेंद्र, केसरी, केहरि, केशी, व्याघ्र, पशुराज, वनराज, पंचमुख, नाहर, हरि
♦ प्राचीन समय में ‘मृग’ का अर्थ सभी जंगली पशुओं से भी लगाया जाता था, इसलिए सभी जंगली पशुओं का ‘इंद्र’ या ‘राजा’ – मृगेंद्र या सिंह. लेकिन वर्तमान में ‘मृग’ का अर्थ केवल ‘हिरण’ से लगाया जाता है.
सिंह जहां बैठता है, वही स्थान सिंहासन (सिंह का आसन) बन जाता है.
हाथी के पर्यायवाची
हाथी, गज, हस्ति, मतंग, नाग, कुंजर, द्विप, द्विरद, वारण, कुम्भी, कारीश, करवर, करी, सारंग, गयन्द, सिन्धुर, वितुण्ड, व्याल
व्याल – दुष्ट हाथी, सर्प, साँप
ध्यान दें- ‘नाग’ का अर्थ ‘सांप’ से भी लगाया जाता है और ‘हाथी’ से भी.
हिरण के पर्यायवाची
हिरण, मृग, एण (काला हिरण, कस्तूरी मृग), कुरंग, सारंग, कृष्णसार, हिरन, हरिन
♦ प्राचीन समय में मृग शब्द का प्रयोग बहुत विस्तृत अर्थ में किया जाता था. प्राचीन आयुर्वेदिक पुस्तकों जैसे मदनपाल निघण्टु और भावप्रकाश आदि में ‘मृग’ शब्द का अर्थ गजकन्द (एक प्रकार का जंगली कंद) बताया गया है.
‘मृग मांस’ का अर्थ ‘गजकन्द का गूदा’ भी हो सकता है. बहुत सी प्राचीन आयुर्वेदिक किताबों में किसी भी फल के गूदे को ‘मांस’ और बीज को ‘गर्भ’ लिखा गया है. जैसे- लौकी का गर्भ, शकरकंद का मांस… आदि.
वहीं, ‘मृग’ का अर्थ ‘अन्वेषण’ भी होता था.
ध्यान रखें- ‘एण’ और ‘ऐण’ में बहुत अंतर है. ‘ऐण’ का अर्थ होता है- गृह, घर, गमन, आश्रय, स्थान, वास… आदि.
उदाहरण- भोला की डर भागियौ, अंत न पहुड़ै ऐण.
(अरे मूर्ख. किस डर से तू भाग आया? क्या मृत्यु घर पर नहीं आएगी?)
लेकिन जो लोग मात्राओं का महत्त्व नहीं समझते, वे लोग ‘ऐण’ का अर्थ भी ‘हिरण’ से ही लगा देते हैं… और इससे वाक्य का पूरा अर्थ ही बदल जाता है.
उदाहरण- ऐणेयं मांसमाहृत्य शालां यक्ष्यामहे वयम्.
अब जैसे वाल्मीकि रामायण के इस श्लोक में कुछ लोग ‘ऐणे’ का अर्थ ‘हिरण’ से लगा देते हैं. ऐसे लोग इस श्लोक का गलत अर्थ निकालने के लिए इसका संधि-विच्छेद भी कुछ इस तरह करते हैं-
ऐणेयं+मांस+माहृत्य
खैर, इसका सही संधि-विच्छेद है-
ऐणे+यं+मां+सम+आहृत्य
ध्यान रखें- ‘मां समान’ को मिलाकर ‘मांसमान’ लिखे जाने पर उसका पुनः संधि-विच्छेद सावधानी से करना चाहिए.
सांप के पर्यायवाची-
सांप, सर्प, उरग, अहि, काकोदर, चक्षुश्रवा, पन्नग, जिह्याग्र, नाग, फणी, फणीश, भुजंग, विषधर, मणी, सारंग, हरि, व्याल
व्याल – सर्प, साँप, दुष्ट हाथी
मणी का अर्थ – साँप
मणि का अर्थ – एक रत्न, बहुमूल्य पत्थर
बंदर के पर्यायवाची
बन्दर, वानर, कपि, मर्कट, हरि, शाखामृग, कीश
• ‘कपीश’ (कपि+ईश) बंदर का पर्यायवाची नहीं है. हनुमान जी को ‘कपीश’ बोलते हैं.
राक्षस के पर्यायवाची
राक्षस, असुर, दानव, दैत्य, निशाचर, निशिचर, रजनीचर, दनुज, यातुधान, जातुधान, देवारि, सुरारि, इंद्रारि, तमचर, ध्वांतचर, शंबर, दितिज, दितिसुत, देवरिपु
• ‘रिपु’ का अर्थ शत्रु या दुश्मन और ‘ध्वांत’ का अर्थ अंधकार होता है.
• दैत्यों की माता को ‘दिति’ कहते हैं.
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