Tropical Monsoon Climate : उष्णकटिबंधीय मानसूनी और उष्णकटिबंधीय समुद्री जलवायु

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Credit- worldatlas.com

भारत को उष्णकटिबंधीय मानसून प्रकार की जलवायु (Tropical Monsoon Climate) वाले देश के रूप में जाना जाता है. भारत के बड़े आकार, इसकी अक्षांशीय सीमा, उत्तर में हिमालय और दक्षिण में हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के परिणामस्वरूप भारत के उपमहाद्वीप में तापमान और वर्षा के वितरण में बहुत भिन्नता है.

उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु भूमध्य रेखा के दोनों ओर 10º से 30º अक्षाशों के बीच पाई जाती है. यह क्षेत्र व्यापारिक पवनों (Trade winds) के प्रभाव में रहता है. उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु की मौसमी प्रकृति की विशेषता है- गर्मियां गर्म और नमी वाली होती हैं जबकि सर्दियां ठंडी और शुष्क होती हैं. गर्मियों के मौसम में गर्म महासागरों से स्थल की ओर चलने वाली पवनों से वर्षा होती है, जबकि सर्दियों में स्थल से महासागरों की ओर चलने वाली पवनें मौसम को शुष्क (Dry) बना देती हैं.

भारत की जलवायु भी ऐसी ही है. गर्मियों के मौसम में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनें समुद्र से भारतीय तटीय भूमि की ओर चलती हैं. इससे तटीय क्षेत्रों में वर्षा होती है और फिर धीरे-धीरे अधिकांश भारतीय भूभाग में वर्षा होती है.

कहाँ-कहाँ पाई जाती है यह जलवायु

यह जलवायु भारतीय उपमहाद्वीप, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम और दक्षिण चीन के कुछ हिस्सों और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में मुख्य रूप से मिलती है. इसके अलावा प्रछन्न मानसून (Latent monsoon) के रूप में यह जलवायु मध्य अमेरिका, वेस्टइंडीज, फिलीपींस, पूर्वी अफ्रीका के कुछ हिस्सों, मेडागास्कर, गुयाना तट और पूर्वी ब्राजील में भी पाई जाती है, जिसे उष्णकटिबंधीय सागरीय जलवायु के नाम से भी जाना जाता है.

उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु की विशेषताएं-

तापमान – यहां औसत वार्षिक तापमान काफी अधिक रहता है, सूर्य के उत्तर और दक्षिण की ओर गति करने के कारण गर्मी और सर्दियों के मौसम में तेजी से भिन्नता देखी जाती है. गर्म-शुष्क गर्मी के महीनों (Hot-dry summer months) का औसत तापमान 27º सेल्सियस से 32º सेल्सियस के बीच होता है.

गर्मियों के मौसम में/गर्मियों के दौरान जब सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंबवत् पड़ती हैं, तब उत्तरी गोलार्ध का एक बड़ा भू-भाग गर्म हो जाता है, और तब मध्य एशिया में निम्न वायुदाब का विकास होता है. क्योंकि स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है, इसलिए जलीय भाग का तापमान कम होने के कारण अपेक्षाकृत उच्च वायुदाब होता है.

इस दौरान दक्षिणी गोलार्द्ध में ठंड का मौसम होता है जिसके परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के आंतरिक भागों में अपेक्षाकृत और अधिक उच्च वायुदाब का विकास होता है. उच्च वायुदाब क्षेत्र के कारण, पवनें दक्षिण-पूर्वी मानसून के रूप में इस वायुदाब के केंद्र से जावा-सुमात्रा द्वीपों की ओर चलने लगती हैं, जो भूमध्य रेखा को पार करके कोरियोलिस बल के प्रभाव से अपने दाईं ओर मुड़कर दक्षिण-पश्चिम मानसून के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करती हैं. इस प्रकार मानसूनी जलवायु का विकास होता है.

सर्दियों के मौसम में स्थितियां उलट जाती हूँ. सूर्य के मकर रेखा पर लंबवत होने के कारण मध्य एशिया में सर्दियों का मौसम शुरू हो जाता है, और तापमान में तेजी से गिरावट देखने को मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप महाद्वीपीय उच्च वायुदाब केंद्र विकसित हो जाता है और पवनें उच्च वायुदाब केंद्र से उत्तर-पूर्वी मानसून के रूप में बाहर की ओर चलने लगती हैं.

वर्षण – उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु प्रदेशों में भारी मात्रा में वर्षा होती है, साथ ही शुष्क मौसम भी होता है. मानसूनी क्षेत्रों में वर्षा मुख्य रूप से चक्रवातीय और पर्वतीय होती है, पर कुछ स्थानों पर संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall) भी होती है.

मानसूनी क्षेत्रों की वर्षा की मात्रा, वितरण और समय में अंतर देखने को मिलता है. कुल वार्षिक वर्षा का ज्यादातर भाग केवल 4 महीनों में ही प्राप्त हो जाता है. यह वर्षा भी लगातार नहीं होती. वर्षा के प्रादेशिक वितरण में भी बहुत अधिक भिन्नता देखने को मिलती है. कुछ क्षेत्रों में अतिवृष्टि, तो कुछ क्षेत्रों में अनावृष्टि पायी जाती है.

औसत वार्षिक वर्षा सामान्यत: 200-250 सेमी तक होती है, वहीं कुछ क्षेत्रों में 350 सेमी तक होती है. चेरापूँजी और मॉसिनराम में विशेष पर्वतीय स्थितियों के कारण 1000 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है. मेघालय की पहाड़ियाँ दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती हैं, जिसके कारण भारी मात्रा में पर्वतीय वर्षा होती है.

मौसम – भारतीय उपमहाद्वीप जैसे क्षेत्र, जहां उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु पाई जाती है, में तीन स्पष्ट मौसम, जैसे ठंडा और शुष्क मौसम (अक्टूबर-फरवरी), ग्रीष्म एवं शुष्क मौसम (The Hot and Dry Season) (मार्च से मध्य जून), और वर्षा ऋतु (मध्य जून से सितम्बर) पाए जाते हैं. सूर्य के उत्तरायण होने के साथ-साथ तापमान में वृद्धि होती है और तटीय क्षेत्रों में हल्की बारिश भी होती है. भारतीय प्रायद्वीप में दक्षिण-पश्चिम मानसून से पर्याप्त वर्षा होती है.

प्राकृतिक वनस्पति – उष्णकटिबंधीय मानसूनी क्षेत्रों की प्राकृतिक वनस्पति गर्मियों के मौसम में होने वाली वर्षा की मात्रा पर निर्भर करती है. निश्चित शुष्क अवधि होने के कारण वनस्पति आमतौर पर पतझड़ी या पर्णपाती (Deciduous) पाई जाती है. अत्यधिक कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कटीली झाड़ियाँ पाई जाती हैं. शुष्क मौसम में प्राय: पौधे अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं जिसे पतझड़ कहते हैं.

मानसूनी वनस्पति भूमध्य रेखीय वनों की तुलना में कम सघन होती है और जैव विविधता (Biodiversity) भी कम पाई जाती है. लेकिन इन वनों से कीमती लकड़ी प्राप्त होती है, जो टिकाऊ और कठोर होती है, जैसे- सागौन, साल, देवदार, शीशम, बांस, चंदन, आदि. इसमें सागौन की लकड़ी (Teak wood) सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.

जन-जीवन और आर्थिक विकास – मानूसनी जलवायु प्रदेशों में अधिक जनसंख्या घनत्व पाया जाता है. इन जलवायु प्रदेशों की आर्थिक गतिविधियों में मानसून बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कृषि यहाँ का प्रमुख व्यवसाय है. उष्णकटिबंधीय मानसूनी क्षेत्रों के लोगों की मुख्य आर्थिक गतिविधि कृषि है. अधिकांश कृषि मानूसनी वर्षा पर निर्भर करती है. सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं/व्यवस्थाओं के साथ सघन कृषि की जाती है.

पूर्वोत्तर भारत एवं दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में स्थानांतरित कृषि भी होती है. इस जलवायु प्रदेश में चावल, गन्ना, जूट, मसाले आदि फसलों की कृषि की जाती है. इसके अलावा मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूँ, दालें आदि भी उगाई जाती हैं. पहाड़ी उच्च भूमि स्थानों पर चाय और कॉफी प्रमुख रोपण फसलें हैं. सागौन, नीम, बरगद, आम, साल, यूकेलिप्टस आदि प्रमुख वृक्षों की लकड़ी का उपयोग कॉमर्शियल लेवल पर किया जाता है.

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LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

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