Tropical Cyclone Causes Effects
पवनों का ऐसा चक्र जिसमें अंदर की ओर वायुदाब कम और बाहर की ओर अधिक होता है, चक्रवात या साइक्लोन (Cyclone) कहलाता है. यह वृत्ताकार या अंडाकार होता है. इसमें वायु चारों ओर उच्च वायुभार के क्षेत्र से केंद्रीय निम्न भार वाले क्षेत्र की ओर चलती है. पृथ्वी के घूर्णन के कारण ये उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत (Anti-clockwise) दिशा में और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुसार (Clockwise) चलती हैं.
चक्रवात के प्रकार-
उत्पत्ति क्षेत्र के आधार पर चक्रवात दो प्रकार के होते हैं-
(1) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclone)
(2) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone)
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति और प्रभाव क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध (Temperate Zone) में ही हैं. ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में केवल शीत ऋतु में आते हैं, लेकिन दक्षिणी गोलार्द्ध में जलभाग के अधिक होने के कारण वर्षभर चलते रहते हैं.
उष्ण कटिबंध में उत्पन्न और विकसित होने वाले चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं. ये चक्रवात उत्तरी और दक्षिणी गोलार्धों में लगभग 5° से 30° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं. ठीक भूमध्य रेखा के ऊपर कॉरिओलिस बल का प्रभाव नहीं पड़ता है, इसलिए वायुदाब कम होते हुए भी पवनें वृत्ताकार रूप में नहीं चलतीं और वहां चक्रवात नहीं चलते.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का व्यास साधारणतः 150 से 750 किमी तक होता है. लेकिन कुछ ऐसे भी चक्रवात होते हैं, जिनका व्यास केवल 40 से 50 किमी तक ही होता है. आकार छोटा होने के कारण इन चक्रवातों में दाब प्रवणता अधिक होती है. अधिक दाब प्रवणता के कारण इन चक्रवातों में पवनों का वेग (Velocity of Winds) प्रायः 100 किमी प्रति घंटा से भी अधिक हो जाता है. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के सेंटर में शांत क्षेत्र (Calm zone) पाया जाता है, जिसे ‘चक्रवात की आंख (Eye of the cyclone)’ कहते हैं.
Causes of Tropical Cyclone
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति तथा विकास के लिए निम्नलिखित परिस्थितियां अनुकूल होती हैं-
• विस्तृत समुद्र तल, जहां तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो,
• कॉरिओलिस बल की उपस्थिति,
• कमजोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर के चक्रवातीय परिसंचरण का होना,
• समुद्री तल तंत्र पर ऊपर अपसरण.
उपर्युक्त परिस्थितियां भूमध्य के निकट इसके उत्तर तथा दक्षिण में मिलती हैं.
हरिकेन और टाइफून (Hurricane and Typhoon) दो प्रकार के उष्णकटिबंधीय चक्रवात हैं. अटलांटिक और पूर्वोत्तर प्रशांत ऐसे क्षेत्र हैं जहां हरिकेन पाए जाते हैं. वहीं, उत्तर पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में टाइफून पाए जाते हैं. तीव्रता और हवा की गति के आधार पर एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात को 5 श्रेणियों में बांटा गया है.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की विशेषताएं-
ये प्रायः समुद्री भाग में ही उत्पन्न और विकसित होते हैं. ये ग्रीष्मकाल में उत्पन्न होते हैं. उष्णकटिबंधीय चक्रवात बड़े विनाशकारी होते हैं. ग्रीष्म काल के उत्तरार्ध या शरद ऋतु के पूर्वार्ध में ये भारत के तटीय भागों में बहुत हानि पहुंचाते हैं. समुद्री मछुआरों के जान-माल की बड़ी क्षति होती है.
इन चक्रवातों के केंद्र से चारों ओर दूरी के साथ तापमान एक समान घटता है. पवनें चक्राकार मार्ग में गति करती हैं. इनमें वर्षा बहुत तीव्र गति से होती है. वर्षा कुछ घंटों से अधिक नहीं होती. वर्षा के साथ हिम और उपलवृष्टि नहीं होती.
ये चक्रवात उष्ण कटिबंध में 5° से 30° अक्षांशों के बीच चलते हैं (5° उत्तर और 5° दक्षिण अक्षांशों के बीच कोरिओलिस बल नगण्य (न के बराबर) होता है, इसलिए वहां चक्रवात नहीं बनते हैं). 15° अक्षांश तक ये सन्मार्गी पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम को जाते हैं. 15° से 30° अक्षांशों के बीच इनकी दिशा अनिश्चित रहती है. इसके बाद ये पछुवा पवनों के साथ पश्चिम से पूरब दिशा में चलकर समाप्त हो जाते हैं.
इन चक्रवातों में ऊर्जा संघनन की गुप्त ऊष्मा से प्राप्त होती है. इनमें वर्षा और वायु तेज हैं, जिस कारण ये बहुत ही विनाशकारी होते हैं. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केंद्र में वायु शांत हो जाती है और वर्षा रुक जाती है.
जब उष्णकटिबंधीय चक्रवात आते हैं, तब मौसम कैसा हो जाता है-
मौसम- उष्णकटिबंधीय चक्रवात के निकट आने पर वायु शांत हो जाती है और आकाश में पक्षाभ स्तरीय मेघ (बादल) छा जाते हैं. सूर्य और चंद्रमा के इर्द-गिर्द ज्योयातिर्मंडल (Halo) दिखाई देने लगता है. चक्रवात के अग्रभाग के पहुंचते ही वायुदाब कम होने लगता है. आकाश में कपासी वर्षा मेघ छा जाते हैं और वर्षा होने लगती है.
चक्रवात की आंख (Eye of the cyclone) के पहुंचते ही वायु शांत हो जाती है और वर्षा बंद हो जाती है और आकाश साफ हो जाता है. जब चक्रवात की आंख समुद्र के ऊपर से गुजरती है तो समुद्र में ऊंची-ऊंची लहरें उठती हैं. आंख के गुजर जाने के बाद पुनः कपासी स्तरीय मेघ छा जाते हैं और पवन तीव्र वेग से चलने लगती है. पृष्ठ भाग के गुजर जाने के बाद पवन का प्रवाह मंद पड़ जाता है और आकाश फिर से मेघरहित हो जाता है.
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