Temples Varanasi Uttar Pradesh
उत्तर प्रदेश के दक्षिण में पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित काशी या वाराणसी (Kashi or Varanasi, Uttar Pradesh) के रहस्य सदियों से भारत के साथ-साथ विदेशी तीर्थयात्रियों को भी आकर्षित करते रहे हैं. प्राचीन गुंबदों, मंदिरों, आश्रमों, संतों-पुजारियों, बनारसी साड़ियों से सजी दुकानों, अलग-अलग उत्तम स्वाद से भरी व्यस्त गलियों और संतुलित आधुनिकता वाला शहर वाराणसी सपनों के रंगीन और आकर्षक भारत का प्रतिनिधित्व करता है. इस शहर के हर गली-कूचे में भगवान शिव का आभास है.
काशी पर ही पड़ी थी सूर्य की पहली किरण
काशी संसार के सबसे पुराने और पवित्र नगरों में से एक है. इस नगरी को भगवान शिव (Bhagwan Shiv) ने बसाया है. कहा जाता है कि इस शहर को भगवान शिव ने देवी पार्वती जी के साथ विवाह (Shiv Parvati Vivah) के बाद अपने निवास के रूप में अपने त्रिशूल पर बनाया था. इसलिए, यह कहा जाता है कि भले ही दुनिया का अंत (प्रलय) हो जाए, लेकिन उस समय काशी शहर बचा रहेगा. माना जाता है कि दुनिया की रचना के समय सूर्य की पहली किरण काशी पर ही पड़ी थी.
भारत के सात पवित्र नगरों में से एक है काशी
काशी भारत के सात पवित्र नगरों (अयोध्या, काशी, मथुरा, हरिद्वार, कांचीपुरम, उज्जैन और द्वारका) में से एक है. शहर में लगभग 84 स्नान घाट और बड़े तीर्थ हैं जो वेदों के समय से मौजूद हैं. कहा जाता है कि जो कोई भी यहां रहता है, उसे आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह भी माना जाता है कि काशी में रहने वाले लोगों को नौ गृह (नवग्रह) प्रभावित नहीं करते हैं, क्योंकि वे भगवान शिव के नियमों का पालन करते हैं. वे भगवान शिव की अनुमति के बिना इस नगर में प्रवेश भी नहीं कर सकते.
सभी प्राचीन ग्रंथों में काशी का उल्लेख
भारत के लगभग सभी प्राचीन ग्रंथों में काशी यानी वाराणसी या बनारस का उल्लेख जरूर है. स्कंद पुराण के ‘काशी खंड ‘में करीब 15,000 श्लोकों में काशी के अलग-अलग तीर्थों का वर्णन मिलता है. पुराणों में, इस शहर का उल्लेख आद्यवैष्णव भूमि के रूप में भी किया गया है और माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा जी ने दशाश्वमेध घाट पर दस अश्वमेध यज्ञ किए थे. इसी के साथ, यह स्थान शक्ति (देवी सती) के भक्तों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शहर एक शक्ति पीठ का भी घर है.
इन महान विभूतियों का काशी में आगमन
गंगा नदी के तट पर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित मणिकर्णिका का घाट एक शक्ति पीठ के रूप में माना जाता है. इस पवित्र नगरी का नाम भगवान शिव के अलावा, भारत की कई महान विभूतियों जैसे- राजा हरिश्चंद्र जी, आदि शंकराचार्य जी, गोस्वामी तुलसीदास जी, रानी अहिल्याबाई होल्कर, रानी लक्ष्मीबाई जी आदि से जुड़ा हुआ है. रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद और गुरुनानक जैसे कई प्राचीन संत काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर न जाने कितनी बार इनकी महिमा गा चुके हैं. मीराबाई जी के गुरु संत रैदास का जन्म भी बनारस में ही हुआ था.
काशी का नाम वाराणसी क्यों
‘भगवान शिव की नगरी’, ‘मंदिरों का शहर’, ‘ज्ञान नगरी’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’, ‘दीपों का शहर’ आदि नामों से प्रसिद्ध काशी को स्कंद पुराण में बारह अलग-अलग नाम दिए गए हैं, जिनमें से वाराणसी, आनंद-कानन, अविमुक्त, रुद्रवास, श्री शिवपुरी और मुक्तिभूमि प्रमुख हैं. ‘काशी’ नाम का अर्थ है प्रकाश या ब्रह्म और विष्णु का प्रकाश. वाराणसी नाम संभवतः यहां की दो स्थानीय नदियों वरुणा और असि से मिलकर बना है. ये नदियां क्रमशः उत्तर और दक्षिण से आकर गंगा नदी में मिलती हैं.
काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple)
इस शहर में भगवान शिव के अनगिनत मंदिर हैं, जिसमें सर्वोपरि है काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath temple). काशी विश्वनाथ मंदिर दुनिया के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है. पवित्र गंगा नदी (Ganga River) मंदिर के बगल में ही बहती है, जिससे मंदिर का आध्यात्मिक मूल्य कई गुना बढ़ जाता है. स्कंद पुराण, शिव पुराण, उपनिषद और वेदों जैसे भारत के प्राचीन ग्रंथों में काशी विश्वनाथ मंदिर का अनगिनत बार उल्लेख किया गया है.
ज्योतिर्लिंगों के राजा हैं भगवान विश्वनाथ- भगवान विश्वनाथ (भगवान शिव) के शिवलिंग बारह महा ज्योतिर्लिंगों (Jyotirlinga) में से एक हैं. ज्योतिर्लिंग का अर्थ है- शिवलिंग का स्वयं प्रकट होना. कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की एक बार की यात्रा बाकी ग्यारह ज्योतिर्लिंगों की यात्रा के बराबर है. इन ज्योतिर्लिंग को सभी ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला भी माना जाता है और इन्हें ज्योतिर्लिंगों का राजा भी कहा जाता है.
इस लोकप्रिय परंपरा का आज भी होता है पालन
एक लोकप्रिय परंपरा जिसका पालन आज भी किया जाता है, वह है- काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के बाद गंगा नदी से लिया गया पानी रामेश्वरम में श्री रामनाथस्वामी के ज्योतिर्लिंग (Shri Ramanathaswamy at Rameshwaram) के अभिषेक के लिए उपयोग किया जाता है. मंदिर से रेत वापस काशी लाया जाता है और भगवान विश्वनाथ को भेंट के रूप में दिया जाता है. माना जाता है कि काशी और रामेश्वरम की तीर्थयात्रा से पूर्ण मोक्ष और ज्ञान प्राप्त होता है.
काशी विश्वनाथ मंदिर का परिसर
काशी विश्वनाथ मंदिर का परिसर चतुष्कोणीय है, जिसमें भगवान दंडपाणि (कार्तिकेय), भगवान विनायक, कालभैरवर, अविमुक्तेश्वर, भगवान विष्णु, विरुपाक्ष, विरुपाक्ष गौरी और भगवान शनीश्वर को समर्पित कई छोटे-बड़े मंदिर हैं. मंदिर के तीन अलग-अलग क्षेत्र हैं- पहला भगवान विश्वनाथ के मंदिर के ऊपर एक शिखर है, दूसरा एक सुनहरा गुंबद है और तीसरा एक त्रिशूल और उसके ऊपर एक ध्वज है. मंदिर में एक सभागृह है, जो गर्भगृह की ओर जाता है जहां शिवलिंग स्थित है.
वर्तमान में काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार
हालांकि, वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार हो चुका है, जिसके तहत मंदिर परिसर को 3,000 वर्ग फीट से बढ़ाकर लगभग 5 लाख वर्ग फीट कर दिया गया है. काशी विश्वनाथ प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद गंगा जी में स्नान करके पारिजात और रुद्राक्ष जैसे पवित्र पेड़-पौधों के बीच से होकर सीधे बाबा विश्वनाथ तक पहुंचा जा सकता है. इन सबके साथ, यहां आदि शंकराचार्य, भारत माता और महारानी अहिल्याबाई जी की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं.
देखिए- पीएम मोदी और काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन
काशी विश्वनाथ मंदिर और रानी अहिल्याबाई होल्कर
आक्रांताओं द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को कितनी ही बार नष्ट करने की कोशिश की जा चुकी है, वह किसी से छिपा नहीं है. पीएम मोदी ने जब काशी के पुराने गौरव को वापस दिलाते हुए काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का निर्माण करवाया, तो उसमें महारानी अहिल्याबाई होल्कर (Rani Ahilyabai Holkar) की प्रतिमा भी स्थापित करवाई. इसका कारण ये है कि रानी अहिल्याबाई जी ने 1780 में काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था. और न सिर्फ काशी, बल्कि उन्होंने सुदूर गया और हिमालय तक पर मंदिरों के निर्माण कार्य कराए.
उन्होंने गुजरात के सोमनाथ में मंदिर का भी पुनर्निर्माण करवाया. रानी अहिल्या बाई जी ने भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की, घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, नए मार्ग बनवाए, कई भवनों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया, भूखों के लिए अन्यक्षेत्र खोले और प्यासों के लिए प्याऊ लगवाईं. भारतीय समाज महारानी के महान और लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए उनका कृतज्ञ है.
Kashi Vishwanath Temple Timings
काशी विश्वनाथ मंदिर रोजाना 2:30 बजे खुलता है और रात 11 बजे बंद हो जाता है. सुबह 3 से 4 बजे के बीच मंगला आरती, सुबह 11:30 से दोपहर 12 बजे के बीच मध्यान्ह भोग आरती, शाम 7 बजे से 8:30 बजे के बीच सप्त ऋषि आरती, रात 9 बजे श्रृंगार भोग और आरती, 10:30 बजे शयन आरती शुरू होती है. सामान्य दर्शन का समय सुबह 4 बजे से 11 बजे तक, दोपहर 12 बजे से शाम 7 बजे तक और रात 8:30 बजे से रात 9 बजे तक है.
वाराणसी के अन्य प्रसिद्ध और सिद्ध मंदिर (Varanasi Temples)-
तुलसी मानस मंदिर (Tulsi Manas Temple)- तुलसी मानस मंदिर भगवान श्रीराम-सीता जी और लक्ष्मण जी को समर्पित है. कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण उस स्थान पर किया गया है जहां संत गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) ने श्री रामचरितमानस (Ramcharitmanas) की रचना की थी. मंदिर की दीवारों पर इस पवित्र ग्रंथ की चौपाइयों को उकेरा गया है.
संकट मोचन हनुमान मंदिर (Sankat Mochan Hanuman Mandir)- यह बहुत सिद्ध मंदिर है, जिसकी स्थापना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी. दरअसल, तुलसीदास जी को हनुमान जी (Hanuman Ji) की कृपा से ही भगवान श्रीराम जी के दर्शन हो सके थे, और हनुमान जी की कृपा से ही वे रामचरितमानस की रचना कर सके थे, इसलिए तुलसीदास जी हनुमान जी को अपना गुरु भी मानते थे और रामचरितमानस में उन्होंने हनुमान जी की आराधना अपने गुरु के रूप में की है.
अन्नपूर्णा मंदिर (Annapurna Temple)- यह मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास, देवी पार्वती जी के एक अवतार अन्नपूर्णा देवी को समर्पित है. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान को भोग लगाने से पहले प्रसाद का वितरण भक्तों में किया जाता है. कहा जाता है कि जो कोई भी भक्ति के साथ मां अन्नपूर्णा जी की आराधना करता है, उसके जीवन में कभी भी भोजन की कमी नहीं होती है.
मृत्युंजय महादेव मंदिर (Mrityunjay Mahadev Temple)- प्रसिद्ध मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर से सिर्फ 1 किमी दूर स्थित इस मंदिर के दर्शन करने के लिए देश भर से श्रृद्धालु आते हैं.
काशी विशालाक्षी मंदिर (Kashi Vishalakshi Temple)- पवित्र मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पीछे स्थित है. यह मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है.
कालभैरव मंदिर (Kalabhairav Temple)- मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर से 1 किमी दूर स्थित है. कहा जाता है कि अपनी काशी यात्रा पूरी करने के लिए इस मंदिर में जरूर जाना चाहिए. माना जाता है कि वह काशी के रक्षक हैं और उनकी अनुमति के बिना कोई भी काशी में प्रवेश नहीं कर सकता है.
मार्कंडेय महादेव मंदिर (Markandeya Mahadev Temple)- काशी विश्वनाथ मंदिर से 29 किमी दूर स्थित यह मंदिर मार्कण्डेय ऋषि से सम्बंधित है. पौराणिक कथा के अनुसार, मृकंदु और मरुदवती नाम के एक दंपति की संतान मार्कंडेय बचपन से ही भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे. उनकी आयु बहुत छोटी थी, लेकिन भगवान शिव की कृपा से उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त हुआ.
भारत माता मंदिर (Bharat Mata Temple)- यह अनोखा मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर से सिर्फ 4 किमी की दूरी पर स्थित है. यहां भारत माता की पूजा की जाती है. गर्भगृह में भारत का नक्शा देखा जा सकता है जिसमें प्रसाद चढ़ाया जाता है. मंदिर का निर्माण बाबू शिव प्रसाद ने किया था.
उपरोक्त मंदिरों के अलावा, वाराणसी शहर में कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक मंदिर हैं, जिनके दर्शनों को जरूर जाना चाहिए. उनमें से कुछ मंदिर दुर्गा मंदिर, त्रिदेव मंदिर, गणेश मंदिर, BHU का शिव मंदिर, बृहस्पति देव मंदिर, व्यास मंदिर, बिड़ला मंदिर, तिलभांडेश्वर मंदिर आदि हैं.
खाने-पीने के शौकीन लोगों के लिए स्वर्ग है काशी
वाराणसी में कदम-कदम पर मिलने वाले मंदिरों के बाहर और यहां की गलियों में आपको हर तरह का स्वाद चखने को मिलेगा. यहां बड़े-बड़े रेस्टोरेंट्स बहुत खुल चुके हैं. वाराणसी में व्यंजन मुख्य रूप से शाकाहारी होते हैं. टमाटर चाट के साथ कचौरी और पूरी जैसी चाट शहर के पारंपरिक व्यंजनों में शामिल हैं. काशी कलाकंद भी यहां का एक लोकप्रिय व्यंजन है और व्यापक रूप से उपलब्ध है. लस्सी और ठंडाई लोकप्रिय पेय हैं जिन्हें शहर में एक सुखद अनुभव के लिए जरूर आजमाना चाहिए.
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उत्तर ही नहीं, उत्तम प्रदेश है UP
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