Volcano Eruption Facts
ज्वालामुखी उद्गार या ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption) पृथ्वी पर होने वाली एक आकस्मिक घटना है. इससे भू-पटल (Earth’s Crust) पर अचानक विस्फोट होता है, जिसके द्वारा लावा, गैस, धुआं, राख, कंकण, पत्थर आदि बाहर निकलते हैं. इन सब वस्तुओं के लिए के लिए एक प्राकृतिक नली जैसा रास्ता बन जाता है, जिसे निकास नलिका (Vent or Neck) कहते हैं. लावा धरती पर आने के लिए एक छेद बनाता है, जिसे विवर या क्रेटर (Hole or Crater) कहते हैं. लावा अपने क्रेटर के आसपास जम जाता है और एक शंकु के आकार का पर्वत बनाता है. इसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं.
ज्वालामुखी को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि-
“ज्वालामुखी मुख्य रूप से एक दरार या नली होता है, जो पृथ्वी के अंदर आंतरिक भागों से जुड़ा रहता है और इस दरार या नली में से लावा प्रवाह, तप्त जल का फव्वारा या गैसों का विस्फोट आकस्मिक उद्गार या ज्वालामुखी धूल व राख द्वारा होता है. लावा भूतल पर आकर ठंडा होकर जम जाता है और उससे अलग-अलग प्रकार की भू-आकृतियां बनती हैं.”
ज्वालामुखी अर्थात ‘ऐसा मुख जिसमें से ज्वाला निकलती हो’. तो ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या ऐसा मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, भस्म आदि बाहर आते हैं.
ज्वालामुखी के प्रकार (Types of Volcano)-
ज्वालामुखियों को उनके लक्षणों या विशेषताओं के अनुसार अनेक प्रकारों में बांटा गया है. ज्वालामुखी सक्रिय, सुप्त या विलुप्त (Active, Dormant and Extinct) हो सकते हैं.
सक्रिय ज्वालामुखी वे ज्वालामुखी हैं जिनमें हाल ही में विस्फोट हुआ है और निकट भविष्य में भी विस्फोट होने की संभावना है. विश्व का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी हवाई में किलाउआ ज्वालामुखी में पाया जाता है. अन्य सबसे सक्रिय ज्वालामुखी इटली में एटना और ला रीयूनियन द्वीप पर पिटोन डे ला फोरनाइस हैं.
सुप्त ज्वालामुखी वे हैं, जिनमें लम्बे समय से तो कोई विस्फोट नहीं हुआ है, लेकिन भविष्य में होने की सम्भावना है. विलुप्त ज्वालामुखी वे हैं जिनमें सैकड़ों सालों से कोई विस्फोट नहीं हुआ है और किसी को कोई उम्मीद भी नहीं होती कि दोबारा विस्फोट होगा.
24 अगस्त 1879 को इटली के विसुवियस ज्वालामुखी पर्वत (Vesuvius Volcano, Italy) से श्वेत गर्म लावा बाहर निकलकर बहने लगा और भयंकर विस्फोट हुआ. पांपियाई और हरकुलेनियम नाम के दो नगर राख, अंगारों और कीचड़ के नीचे दब गए. दोनों शहरों की कुल आबादी 20,000 से अधिक थी. जब सबकुछ शांत हो गया, तब कुछ वर्षों बाद ज्वालामुखी की राख से निर्मित उपजाऊ भूमि को देख बहुत से लोगों ने फिर से वहां पर नया जीवन शुरू कर दिया. नई बस्तियां बसने लगीं कि अचानक 1931 में फिर भयंकर विस्फोट हुआ और लावा तथा गैसों का इतना भीषण प्रवाह हुआ कि 15 नगर नष्ट हो गए और चार हजार निवासी मारे गए.
ज्वालामुखी विस्फोट के क्या कारण हैं-
ज्वालामुखी विस्फोट के कारणों के बारे में अभी हम सब का ज्ञान सीमित है. इसका कारण यह है कि ज्वालामुखियों का जन्म पृथ्वी के आंतरिक भागों में होता है, जिसे हम प्रत्यक्ष रूप से नहीं देख सकते. अतः इसके कारणों को ढूंढने के लिए हमें बाहरी तथ्यों का सहारा लेना पड़ता है. इन बाहरी तथ्यों के आधार पर जिन कारणों का पता चलता है, वे निम्नलिखित हैं-
भूगर्भ में अत्यधिक ताप का होना- पृथ्वी का सबसे आंतरिक भाग बहुत गर्म है. पृथ्वी के भीतर गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान भी बढ़ता जाता है. क्रस्ट से कोर की तरफ प्रति 32 मीटर पर 1 डिग्री सेल्सियस का तापमान बढ़ जाता है. पृथ्वी के भीतर तापमान में वृद्धि के मुख्य कारण हो सकते हैं- रेडियोधर्मी पदार्थों के विघटन, रासायनिक क्रियाएं तथा ऊपरी दबाव. अत्यधिक गर्मी के कारण पृथ्वी के भीतर अधिक गहराई में पाया जाने वाला पदार्थ पिघल जाता है और भू-तल के कमजोर भागों को तोड़कर बाहर निकल आता है. इससे ज्वालामुखी विस्फोट होता है.
कमजोर भू-भागों का होना- ज्वालामुखी विस्फोट के लिए कमजोर भू-भागों का होना बहुत आवश्यक है. ज्वालामुखी का लावा कमजोर भू-भागों को हो तोड़कर धरातल पर आता है. विश्व में जहाँ-जहाँ ज्वालामुखी पर्वत पाए जाते हैं, उन स्थानों को देखने से पता चलता है कि पृथ्वी के कमजोर भागों से ज्वालामुखी का सम्बन्ध निकटता से रहा है. प्रशांत महासागर के तटीय भाग, पश्चिमी द्वीप समूह और एंडीज पर्वत क्षेत्र इस तथ्य का प्रमाण देते हैं.
गैसों की उत्पत्ति- ज्वालामुखी विस्फोट के लिए गैसों का महत्वपूर्ण स्थान है. गैसों में जलवाष्प सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. वर्षा का जल भूपटल की दरारों और छेदों द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भागों में पहुँच जाता है और वहां पर अधिक तापमान के कारण जलवाष्प में बदल जाता है. समुद्र तट के निकट समुद्री जल भी रिसकर नीचे की ओर चला जाता है और जलवाष्प बन जाता है. जब जल से जलवाष्प बनता है तो उसका आयतन और दबाव बहुत बढ़ जाता है. अतः वह भू-तल पर कोई कमजोर स्थान पाकर विस्फोट के साथ बाहर निकल आता है.
भूकंप- भूकंप से भू-पृष्ठ में विकार आता है और भ्रंश (Faults) पड़ जाते हैं. इन भ्रंशों से पृथ्वी के आंतरिक भाग में उपस्थित मैग्मा धरातल पर आ जाता है और ज्वालामुखी विस्फोट होता है.
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ-
गैसें- ज्वालामुखी विस्फोट के समय कई प्रकार की गैसें निकलती हैं, जैसे- हाइड्रोजन सल्फाइड और कार्बन डाई सल्फाइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, अमोनिया क्लोराइड आदि. गैसों में जलवाष्प का महत्त्व सबसे अधिक है. ज्वालामुखी से बाहर निकलने वाली गैसों में 60 से 90 प्रतिशत अंश जलवाष्प का होता है. जलवाष्प वायुमंडल के संपर्क में आते ही ठंडी हो जाती है और मूसलाधार वर्षा करती है.
तरल पदार्थ- ज्वालामुखी से निकलने वाले तरल पदार्थ को लावा कहते हैं. यह बहुत ही गर्म होता है. ताजा लावे का तापमान 600 से 1200 डिग्री सेल्सियस तक होता है. कई बार लावे के साथ जल भी बाहर निकलता है. लावे की गति उसकी रासायनिक संरचना तथा भूमि की ढाल पर निर्भर करती है. इसकी गति अधिकतर धीमी होती है, लेकिन कभी-कभी यह 15 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से भी बहता है. जब लावा अधिक तरल हो और भूमि का ढाल अधिक तीव्र हो तो यह 80 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से भी बहता है.
ठोस पदार्थ- ज्वालामुखी विस्फोट समय के समय गैसों और तरल पदार्थ के साथ-साथ ठोस पदार्थ भी बड़ी मात्रा में निकलते हैं. ये बारीक धूल कणों और राख से लेकर कई टन भार वाले शिला-खंड (Rock Block) होते हैं. मटर के दाने जितने शिला-खण्डों को लैपिली और छह-सात सेंटीमीटर से लेकर एक मीटर व्यास वाले शिला-खण्डों को ज्वालामुखी बम कहते हैं. कभी-कभी बहुत छोटे-छोटे नुकीले शिला-खण्ड लावा से चिपककर संगठित हो जाते हैं. इन्हें ज्वालामुखी संकोणाश्म (Volcanic Rocks or Breccia) कहा जाता है.
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