What is Barycenter (Astronomy) : सामान्य द्रव्यमान केंद्र या बैरीसेंटर क्या है?

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What is Barycenter (Astronomy)

आमतौर पर यही माना जाता है कि ग्रह तारों की परिक्रमा करते हैं (Planets Orbit Stars), लेकिन यह पूरा सच नहीं है. ग्रह और तारे वास्तव में अपने सामान्य द्रव्यमान केंद्र (Common Center of Mass) के चारों ओर परिक्रमा करते हैं. द्रव्यमान के इस सामान्य केंद्र को बैरीसेंटर (Barycenters) कहा जाता है. इसे गुरुत्वाकर्षण का केंद्र (Center of Gravity) भी कहा जाता है. बैरीसेंटर खगोल वैज्ञानिकों को हमारे सौरमंडल से बाहर के ग्रहों की खोज करने में भी मदद करते हैं.

बैरीसेंटर कोई भौतिक वस्तु नहीं है, यह एक गतिशील बिंदु (Moving Point) है. यह खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी जैसे क्षेत्रों का एक महत्वपूर्ण कॉन्सेप्ट है.

इस मामले में होता यह है कि दो पिंडों के बीच एक संतुलन बिंदु होता है. दोनों पिंड इस बिंदु की परिक्रमा करते हैं. लेकिन प्रतीत ऐसा होता है जैसे छोटा पिंड विशाल पिंड के चारों ओर परिक्रमा कर रहा है, और विशाल पिंड थोड़ा डगमगाते हुए दिखाई देता है.

द्रव्यमान का केंद्र क्या है (What is the center of mass)?

प्रत्येक वस्तु का एक द्रव्यमान केंद्र (Center of Mass) होता है. यह उन सभी सामग्रियों का सटीक केंद्र होता है जिनसे कोई वस्तु बनी होती है. किसी वस्तु का द्रव्यमान केंद्र वह बिंदु है जिस पर उसे संतुलित किया जा सकता है.

कभी-कभी द्रव्यमान केंद्र किसी वस्तु के केंद्र में ही स्थित होता है. उदाहरण के लिए, आप किसी रूलर का द्रव्यमान केंद्र आसानी से पता कर सकते हैं. आप अपनी एक उंगली पर रूलर को संतुलित करने का प्रयास करें. आपको रूलर के केंद्र में एक ऐसा पॉइंट मिलेगा जहां आप केवल एक उंगली की नोक पर पूरे रूलर को संतुलित (Balance) कर सकते हैं. वह रूलर का द्रव्यमान केंद्र या बैरीसेंटर है.

लेकिन कभी-कभी द्रव्यमान केंद्र वस्तु के केंद्र में नहीं होता. ऐसा इसलिए, क्योंकि किसी वस्तु के कुछ भागों का द्रव्यमान उस वस्तु के अन्य भागों के द्रव्यमान की तुलना में अधिक हो सकता है. उदाहरण के लिए, एक हथौड़े का ज्यादातर द्रव्यमान उसके एक सिरे पर होता है, इसलिए हथौड़े का द्रव्यमान केंद्र इसके भारी सिरे के बहुत करीब होता है.

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बैरीसेंटर सबसे अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु के सबसे निकट होता है

अंतरिक्ष में, एक-दूसरे की परिक्रमा करने वाली दो या दो से अधिक वस्तुओं (Objects) का भी एक द्रव्यमान केंद्र होता है. यह वह बिंदु है जिसके चारों ओर वस्तुएँ परिक्रमा करती हैं. यह बिंदु वस्तुओं का केंद्र है. बैरीसेंटर आमतौर पर सबसे अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु के सबसे करीब होता है.

(अंतरिक्ष में) जब दो पिंडों का द्रव्यमान समान होता है, तो बैरीसेंटर आमतौर पर उनके बीच में स्थित होगा और दोनों पिंड इसके चारों ओर परिक्रमा करेंगे. लेकिन यदि दो परिक्रमा करने वाले पिंडों में से एक पिंड, दूसरे पिंड की तुलना में बहुत अधिक विशाल है, और दोनों पिंड एक-दूसरे के करीब हैं, तो उनके बीच का बैरीसेंटर आमतौर पर अधिक विशाल वस्तु के भीतर स्थित होगा.

पृथ्वी और सूर्य का बैरीसेंटर (Barycenter of earth and sun)

पृथ्वी और सूर्य के बीच का केंद्र कहाँ होना चाहिए? (आप स्वयं विचार कीजिये). पृथ्वी की तुलना में सूर्य का द्रव्यमान बहुत अधिक है. इसका मतलब है कि सूर्य हथौड़े के सिर की तरह है, तो पृथ्वी और सूर्य के बीच का द्रव्यमान केंद्र सूर्य के केंद्र के बहुत करीब है.

जबकि बृहस्पति ग्रह पृथ्वी से बहुत बड़ा है (द्रव्यमान 318 गुना अधिक है). तो बृहस्पति और सूर्य का द्रव्यमान केंद्र सूर्य के केंद्र में नहीं, सूर्य की सतह के ठीक बाहर है.

जब कम विशाल वस्तु दूर होती है, तो बैरीसेंटर अधिक विशाल वस्तु के बाहर स्थित हो सकता है. यही स्थिति बृहस्पति और सूर्य की है. सूर्य बृहस्पति से हजार गुना अधिक विशाल है, लेकिन उनके बीच की दूरी भी बहुत अधिक है, जिस कारण उनका द्रव्यमान केंद्र सूर्य की सतह से थोड़ा बाहर स्थित है.

सूर्य की वास्तविक गति की गणना करने के लिए केवल चार विशाल ग्रहों (बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून) की गति पर विचार करने की आवश्यकता है (बाकी ग्रहों, बौने ग्रहों आदि का योगदान बहुत ही कम है). यदि ये चार विशाल ग्रह सूर्य के एक ही तरफ एक सीधी रेखा पर होते, तो इन सबके बीच के द्रव्यमान का संयुक्त केंद्र सूर्य की सतह से लगभग 1.17 सौर त्रिज्या या 8,10,000 किमी से थोड़ा ऊपर होता.

हमारे सौरमंडल का बैरीसेंटर (Barycenter of our solar system)

हमारे पूरे सौरमंडल का भी एक बैरीसेंटर है. सूर्य, पृथ्वी और सौरमंडल के सभी ग्रह इस बैरीसेंटर के चारों ओर परिक्रमा करते हैं. यह सौरमंडल में संयुक्त रूप से प्रत्येक वस्तु के द्रव्यमान का केंद्र है (It is the center of mass of everything in the Solar System combined). यह सौरमंडल में सभी पदार्थों का ‘संतुलन बिंदु’ है.

शुद्ध रूप में कहा जाना चाहिए कि सौरमंडल के ग्रह अपने तारे की परिक्रमा नहीं करते हैं. इसके बजाय, सूर्य और प्रत्येक ग्रह पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण के एक बिंदु की परिक्रमा करते हैं जिसे ‘बैरीसेंटर’ कहा जाता है, जिसका स्थान संबंधित पिंडों के द्रव्यमान से निर्धारित होता है.

हमारे सौरमंडल का बैरीसेंटर लगातार अपनी स्थिति बदलता रहता है, क्योंकि इसकी स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि ग्रह अपनी कक्षाओं में कहां हैं. सौरमंडल का बैरीसेंटर सूर्य के केंद्र के निकट से लेकर सूर्य की सतह के बाहर तक हो सकता है. जैसे-जैसे सूर्य इस गतिमान बैरीसेंटर की परिक्रमा करता है, यह इधर-उधर घूमता रहता है.

सभी ग्रहों का एक द्रव्यमान केंद्र होता है जिसके कारण सूर्य अपनी कक्षा में ग्रहों के स्थान के आधार पर अपना केंद्र बदलता रहता है. बैरीसेंटर की स्थिति बदलने के कारण सूर्य डगमगाता हुआ दिखाई देता है. बैरीसेंटर सूर्य के केंद्र के जितने करीब होंगे, ग्रहों की परिक्रमा के कारण सूर्य उतना ही कम डगमगाएगा.

बैरीसेंटर हमें अन्य ग्रहों को खोजने में कैसे मदद करते हैं?

एक्सोप्लैनेट (Exoplanets) की खोज करने का एक तरीका “डगमगाते” सितारों की तलाश करना है. जिस तारे के कुछ ग्रह होते हैं, वह तारा अपने केंद्र के चारों ओर पूरी तरह से परिक्रमा नहीं करता है. दूर से देखने पर, ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह तारा डगमगा रहा हो.

यदि किसी तारे के कुछ ग्रह हैं जो उस तारे की परिक्रमा करते (हुए दिखाई देते) हैं, तो वह तारा एक ऐसे बैरीसेंटर के चारों ओर परिक्रमा करता है जो उसके बिल्कुल केंद्र में नहीं है. इससे तारा ऐसा प्रतीत होता है मानो वह डगमगा रहा हो. जैसा कि ऊपर चित्र में दिखाया गया है कि एक तारा और उसका एक बड़ा ग्रह अपने साझा द्रव्यमान केंद्र, या बैरीसेंटर की परिक्रमा कर रहे हैं.

अन्य तारों के आसपास के ग्रहों को, जिन्हें एक्सोप्लैनेट कहा जाता है, सीधे देखना बहुत कठिन है, क्योंकि वे जिन तारों की परिक्रमा करते हैं, उनकी चमकीली चमक से छिपे रहते हैं. किसी तारे की डगमगाहट का पता लगाना यह पता लगाने का एक तरीका है कि क्या कोई ग्रह इसकी परिक्रमा कर रहा है. बैरीसेंटर का अध्ययन करके और कई अन्य टेक्नोलॉजी का उपयोग करके खगोल वैज्ञानिकों ने अन्य तारों के आसपास कई ग्रहों का पता लगाया है.

इस method का इस्तेमाल करके सैकड़ों ग्रहों की खोज की गई है. हालाँकि, इस method से केवल बड़े ग्रहों (जैसे बृहस्पति या उससे भी बड़े) की खोज की जा सकती है. इस method से पृथ्वी जैसे छोटे ग्रहों को खोजना बहुत कठिन है, क्योंकि इतने छोटे ग्रह छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव ही उत्पन्न करते हैं जिनका पता लगाना कठिन होता है.

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