Gravity and Gravitation Force
गुरुत्वाकर्षण (गुरु + त्व + आकर्षण) अर्थात् भारीपन का खिंचाव या आकर्षण.
हम सब जानते ही हैं कि हम किसी भी चीज को ऊपर की तरफ फेंकते हैं, तो वह नीचे ही आकर इसीलिए गिरती है, क्योंकि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force or Gravity) हर वस्तु को अपनी तरफ खींचता है. यही गुरुत्वाकर्षण शक्ति या अपनी तरफ खींचने या आकर्षित करने की शक्ति ब्रह्मांड में सभी पिंडों (Objects in the Universe) को आपस में एक-दूसरे से बांधे हुए है.
सूर्य में गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होता है और उसी के गुरुत्वाकर्षण बल से बंधे सभी ग्रह-उपग्रह उसके चारों तरफ परिक्रमा करते रहते हैं. सभी ग्रह-उपग्रह एक-दूसरे पर भी बल लगाते हैं. गुरुत्वाकर्षण बल ग्रहों को सूर्य के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में रखता है, चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में रखता है.
चंद्रमा (Moon) का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना में कम है. चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव समुद्र को अपनी ओर खींचता है, जिससे समुद्र में ज्वार आते हैं. हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति (Jupiter) में गुरुत्वाकर्षण बल बहुत अधिक है, जिस वजह से उसे सौरमंडल का ‘वैक्यूम क्लीनर’ भी कहते हैं, क्योंकि वह बाहरी उल्कापिंडों को अपनी तरफ खींच लेता है.
ब्लैक होल (Black Hole) की गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी ज्यादा होती है कि उससे प्रकाश तक बाहर नहीं आ पाता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि ब्लैक होल बहुत सारे द्रव्यमान को एक बहुत छोटे से आयतन में पैक कर लेते हैं, जिससे किसी का भी बाहर निकलना असंभव हो जाता है.
लेकिन पिंडों में ये गुरुत्वाकर्षण बल आता कहां से है?
(What is Gravity and where does it come from)
गुरुत्वाकर्षण के नियम के मुताबिक, ब्रह्मांड में कोई भी दो वस्तुएँ एक-दूसरे पर आकर्षण बल (Force of Attraction) लगाती हैं. यह संबंध दो वस्तुओं के द्रव्यमान (Mass) और उनके बीच की दूरी पर आधारित है. दो वस्तुओं का द्रव्यमान जितना ज्यादा होता है और उनके बीच की दूरी जितनी कम होती है, गुरुत्वाकर्षण बल उतना ही मजबूत होता है जो वे एक-दूसरे पर लगाते हैं.
ब्रह्मांड में द्रव्यमान वाली हर एक वस्तु, द्रव्यमान वाली हर दूसरी वस्तु को आकर्षित करती है (द्रव्यमान और दूरी के आधार पर अलग-अलग डिग्री तक). कम द्रव्यमान वाली वस्तु अपने से ज्यादा द्रव्यमान वाली वस्तु की तरफ आकर्षित होती है.
जिस किसी चीज में द्रव्यमान होता है उसमें गुरुत्वाकर्षण बल भी होता है. अधिक द्रव्यमान वाली वस्तुओं में गुरुत्वाकर्षण अधिक होता है. दूरी के साथ गुरुत्वाकर्षण भी कमजोर होता जाता है. इसलिए, वस्तुएं एक-दूसरे के जितने करीब होती हैं, उनका गुरुत्वाकर्षण खिंचाव उतना ही मजबूत होता है.
पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण उसके पूरे द्रव्यमान से आता है. इसका सारा द्रव्यमान आपके शरीर के पूरे द्रव्यमान पर एक संयुक्त गुरुत्वाकर्षण खिंचाव बनाता है. वही आपको वजन देता है. और अगर आप पृथ्वी से कम द्रव्यमान वाले ग्रह पर होते, तो आपका वजन यहां से कम होता. जैसे-
पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल मंगल की तुलना में 2.66 गुना ज्यादा है. यानी मंगल पर आप पृथ्वी की तुलना में 62.5% कम गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करेंगे. अगर पृथ्वी पर आपका वजन 100 पाउंड है, तो मंगल ग्रह पर आपका वजन मात्र 38 पाउंड होगा.
गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी पर भी हर जगह समान नहीं होता है. कम द्रव्यमान वाले स्थानों की तुलना में ज्यादा द्रव्यमान वाले भूमिगत स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण थोड़ा ज्यादा मजबूत होता है.
किसी वस्तु या पिंड में गुरुत्वाकर्षण बल उत्पन्न कैसे होता है?
इसे समझने के लिए आप मान लीजिए कि पूरा अंतरिक्ष एक खोखली टेबल पर बिछाए गए एक चादर की तरह है और अंतरिक्ष के सभी पिंड (ग्रह, तारे आदि) उस चादर पर चल रहे हैं. अब कोई भी वस्तु या पिंड जो उस चादर पर रखा है, वह वस्तु चादर को दबाएगी. कुछ इस तरह से-
उस चादर पर एक छोटी गेंद (कम द्रव्यमान वाली) और एक बड़ी गेंद (ज्यादा द्रव्यमान वाली) रखें. बड़ी वाली गेंद चादर को ज्यादा दबाएगी जिसके चारों तरफ ज्यादा बड़ा गड्डा बनेगा. अब छोटी वाली गेंद को बड़ी गेंद के चारों तरफ लुढ़काने से वह बड़ी गेंद के चारों तरफ चक्कर लगाने लगेगी.
इसी को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं. यानी दोनों गेंदों के बीच जो झुकाव या आकर्षण होगा, उसी से गुरुत्वाकर्षण बल बनता है.
छोटी गेंद को बड़ी गेंद के जितने पास रखेंगे, वह उतनी ही जल्दी बड़ी गेंद के गड्ढे में गिर जाएगी. अगर हम चाहते हैं कि छोटी गेंद, बड़ी गेंद के गड्ढे में न गिरे, तो इसके लिए हमें छोटी गेंद को बड़ी गेंद के गड्ढे की सीमा से उतनी ही दूरी पर रखना होगा.
अगर हम बड़ी गेंद के गड्ढे में पड़ी छोटी गेंद को निकालना चाहते हैं, तो हमें छोटी गेंद को बाहर की तरफ फेंकने के लिए इतना बल लगाना होगा, जिससे वह छोटी गेंद बड़ी गेंद के गड्ढे की सीमा से सीधा बाहर निकल जाए.
जैसे- पृथ्वी से अंतरिक्ष में यान (स्पेसक्राफ्ट) आदि को भेजने के लिए उस यान को पृथ्वी से कम से कम 11.2 किलोमीटर/सेकेंड की स्पीड से भेजना जरूरी है. इस वेग को पलायन वेग (Escape Velocity) कहते हैं, जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से मुक्त होने के लिए जरूरी है. इससे कम वेग होने पर वस्तु वापस पृथ्वी पर आ जाएगी.
यही कारण है कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है और चंद्रमा, पृथ्वी का चक्कर लगाता है. इसी तरह से अंतरिक्ष रूपी इस चादर में कई सारे छोटे-बड़े पिंड एक-दूसरे के चक्कर लगा रहे हैं. इसी तरह से पूरे अंतरिक्ष में बने गड्ढों को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं.
इसी दबने की घटना या बल को विज्ञान में Space Time Curvature (स्थान-काल का दबना) कहा जाता है. यानी स्पेस टाइम एक ही Fabric का हिस्सा है. इस Fabric में जब भी कोई द्रव्यमान वाली वस्तु या पिंड मौजूद होता है, तो स्पेस टाइम में एक Geometrical Curvature (ज्यामितीय बक्रता या घुमाव) बन जाता है और उस वस्तु या पिंड से कम द्रव्यमान वाली वस्तु या पिंड उसकी तरफ आकर्षित होने लगती है या उसकी तरफ खिंचने लगती है.
यानी ग्रैविटी या गुरुत्वाकर्षण बल कोई चीज नहीं, बस Space Time Curvature (स्थान-काल की वक्रता) है. अंतरिक्ष की वक्रता को सीधे नहीं देख सकते हैं, लेकिन हम वस्तुओं की गति में इसका पता लगा सकते हैं.
(उपर्युक्त उदाहरण मात्र एक उदाहरण है)
‘Gravity’ और ‘Gravitation’ में क्या अंतर है?
(Difference between Gravity and Gravitation)
आमतौर पर ‘Gravity’ और ‘Gravitation’ को एक ही अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन फिर भी दोनों में एक बारीक सा अंतर है. Gravitation एक बल है, जो प्रकृति में मौजूद छोटे और बड़े सभी पदार्थों के बीच कार्य करता है. जबकि Gravity शब्द आमतौर पर किसी वस्तु से जुड़ा होता है, जैसे- Gravity of Earth, Gravity of Moon आदि. यह (Gravity) किसी वस्तु द्वारा लगाए गए गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) को रिप्रेजेंट करता है.
आसान शब्दों में हम कह सकते हैं कि Gravitation और Gravity में एक कारण-प्रभाव संबंध (Cause-Effect Relationship) है. Gravitation या Gravitational Force कारण है और Gravity इसका प्रभाव है. Gravity को ‘g’ से प्रदर्शित किया जाता है.
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