What is Space Station in hindi– अंतरिक्ष स्टेशन (Space Station) अंतरिक्ष में भेजा जाने वाला मानव-निर्मित बड़ा यान होता है, जिसे अंतरिक्ष यात्रियों (Astronauts) की सुविधा के लिए अंतरिक्ष में स्थाई रूप से स्थापित कर दिया जाता है. यह पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता रहता है. जब अंतरिक्ष यात्री कई दिनों के लिए अंतरिक्ष में जाते हैं, तो वे स्पेस स्टेशन में ही ठहरते हैं.
स्पेस स्टेशन भी एक विज्ञान प्रयोगशाला (Science Lab) होता है. इसमें रहते हुए अंतरिक्ष यात्री कई ऐसे प्रयोग (Experiments) करते रहते हैं, जिन्हें पृथ्वी पर करना संभव नहीं होता, क्योंकि उन प्रयोगों के लिए विशेष वातावरण की जरूरत होती है. इसी के साथ, अंतरिक्ष पर ज्यादा से ज्यादा स्टडी करने और उसके रहस्यों को समझने के लिए स्पेस स्टेशन बहुत उपयोगी होते हैं.
स्पेस स्टेशन कैसे भेजे जाते हैं?
स्पेस स्टेशन को उनके आकार और वजन के अनुसार कई हिस्सों में बांटकर अंतरिक्ष में भेजा जाता है. इन हिस्सों को मॉड्यूल (Modules) कहते हैं. उसके बाद डॉकिंग टेक्नोलॉजी (Docking Technology) से उन सभी हिस्सों या मॉड्यूल्स को अंतरिक्ष में ही आपस में जोड़ दिया जाता है. अंतरिक्ष स्टेशन को पृथ्वी की निम्न कक्षा (Low Earth Orbit-LEO) में स्थापित किया जाता है. स्पेस स्टेशन पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किए जाते हैं.
अंतरिक्ष यात्री स्पेस स्टेशन में क्या-क्या करते हैं?
अंतरिक्ष में यात्रियों को आराम करने का समय बहुत कम मिलता है, फिर भी वे खुद को रिलैक्स करने के लिए अलग-अलग तरह के काम करते हैं. स्पेस स्टेशन की खिड़की से धरती पर होने वाली सभी प्राकृतिक गतिविधियों को देखा जा सकता है, जैसे- सूर्योदय, सूर्यास्त, तूफान, चक्रवात, बिजली का गिरना, बड़े-बड़े देशों के नक्शे आदि.
स्पेस स्टेशन में अंतरिक्ष यात्रियों का सबसे पसंदीदा काम है- वहां से खिड़की से खूबसूरत नीली धरती को निहारना और उसकी फोटोज लेना. स्पेस स्टेशन में रिलैक्स होने के लिए म्यूजिक सुनना तो आसान है, लेकिन किसी वाद्य यंत्र (Instrument) को बजाना बहुत कठिन है, क्योंकि कम ग्रैविटी की वजह से यंत्रों को पकड़ना और उनके कीबोर्ड्स या तारों को छेड़ना बहुत मुश्किल होता है.
भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) ने अंतरिक्ष में करीब एक साल बिताया था. वहां से लौटने के बाद उन्होंने अपना अनुभव लोगों के साथ शेयर करते हुए बताया था कि “अंतरिक्ष में जाने का एक अलग ही अनुभव होता है. लेकिन वहां रहने के दौरान यात्रियों को बहुत एक्सरसाइज करनी पड़ती है, ताकि हड्डियां मजबूत बनी रहें और वजन कम ना हो, साथ ही हृदय भी ठीक तरह से अपना काम करता रहे”.
सुनीता के अनुसार, “सभी यात्री साथ बैठकर लंच-डिनर करते हैं. वहां से प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और साथ बैठकर प्लानिंग भी बनाते हैं. स्पेस स्टेशन पर TV भी देखते हैं. खाली समय में वहां से नजर आ रही पृथ्वी की तस्वीरें लेते हैं. साल 2010 से स्पेस स्टेशन पर इंटरनेट की सुविधा मौजूद है. इंटरनेट प्रोटोकॉल फोन होता है, जिससे सभी यात्री अपने-अपने घर पर फोन भी करते हैं.”
अलग-अलग स्पेस स्टेशन
अंतरिक्ष से जुड़ीं टेक्नोलॉजी बहुत कठिन और खर्चीली होती हैं, इसीलिए इन पर कई देश मिलकर काम करते हैं. इस क्षेत्र में स्टडी और रिसर्च की मुख्य रूप से शुरुआत साल 1960 के दशक से मानी जाती है. शीत युद्ध (Cold War) की प्रतिस्पर्द्धा के कारण इस क्षेत्र में सबसे पहले सोवियत संघ और अमेरिका ने काम शुरू किया. सबसे पहले सोवियत रूस (Soviet Russia) ने साल 1971 में अंतरिक्ष में एक स्पेस स्टेशन को स्थापित किया, जिसका नाम था सल्युत (Salyut).
इसके दो सालों बाद अमेरिका ने भी स्कायलैब (Skylab) नाम से अंतरिक्ष में स्टेशन स्थापित किया. अब तक 11 स्पेस स्टेशन बनाए जा चुके हैं, लेकिन वर्तमान में अंतरिक्ष में ‘अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन’ (International Space Station- ISS) ही काम कर रहा है. साल 2021 में चीन ने अपने स्थायी स्पेस स्टेशन का एक मानवरहित मॉड्यूल लॉन्च किया है, जिसका नाम है- तियानहे या हॉर्मनी ऑफ द हैवन्स.
चीन का नया स्पेस स्टेशन (China new space station)
(चीन (China) अब तक 2 स्पेस स्टेशनों को कक्षा में भेज चुका है- Tiangong-1 और Tiangong-2. ये दोनों ट्रायल स्टेशन थे, जिनमें अंतरिक्ष यात्रियों को कम समय तक रखने की क्षमता थी. ISS तक चीन की पहुंच नहीं है, साथ ही चीन ने साल 2030 तक दुनिया में एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति बनने का लक्ष्य रखा है. इसी से चीन ने साल 2021 में ‘तियानहे’ (Tianhe) नाम से अपने स्थायी स्पेस स्टेशन का एक मानवरहित मॉड्यूल लॉन्च किया है. वहीं, अमेरिका (America) से तनाव के चलते रूस अंतरिक्ष क्षेत्र में चीन के साथ संबंध बढ़ा रहा है).
भारत का स्पेस स्टेशन (India space station)
(वैश्विक शक्ति बनने की कामना रखने वाले भारत के लिए अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाना जरूरी है. इसीलिए भारत की योजना भी साल 2030 तक अपना खुद का स्पेस स्टेशन स्थापित करने की है. इस स्टेशन में 4-5 अंतरिक्ष यात्री करीब 15 से 20 दिनों के लिए रुक सकेंगे. इस स्टेशन को पृथ्वी के लो ऑर्बिट (Low Earth Orbit-LEO) में करीब 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जाएगा. इस स्टेशन का वजन लगभग 20 टन होगा. यानी यह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (450 टन) की तुलना में काफी हल्का होगा).
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS)
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) की स्थापना की शुरुआत साल 1998 में की गई थी. यानी इस स्टेशन का पहला हिस्सा या मॉड्यूल साल 1998 में लॉन्च (रूस द्वारा) किया गया था. यह स्टेशन साल 2011 से काम कर रहा है. यह स्टेशन पृथ्वी से लगभग 250 मील (करीब 400 किलोमीटर) की ऊंचाई पर स्थापित है (यह लगभग 250 मील की औसत ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करता है). इस स्पेस स्टेशन का वजन करीब 450 टन है. इस स्टेशन को बनाने में करीब 16 देशों ने मिलकर काम किया था. इसे बनाने में 160 बिलियन डॉलर का खर्च आया था.
इस स्पेस स्टेशन पर 2 नवंबर 2000 में पहली बार अंतरिक्ष यात्रियों को भेजा गया था. स्पेस स्टेशन अंदर से उतना ही बड़ा है, जितना कि पांच बेडरूम वाला कोई घर. बाहर से इस स्टेशन का एरिया एक फुलबॉल के मैदान के बराबर है. इस स्टेशन में दो बाथरूम, एक व्यायामशाला (Gymnasium) और एक बड़ी खिड़की है. इसमें एक बार में छह लोग रह सकते हैं. इस स्टेशन में अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप की साइंस लैब्स बनाई गई हैं.
इस स्पेस स्टेशन में ऑक्सीजन इलेक्ट्रोलिसिस (Electrolysis) की प्रक्रिया से आती है. अंतरिक्ष यात्रियों और इसमें मौजूद लैब्स के जानवरों का यूरिन ही फिल्टर होकर फिर से स्टेशन के ड्रिंकिंग वॉटर सप्लाई (Drinking water supply) में चला जाता है.
स्पेस स्टेशन के किनारों पर सोलर एरेस (Solar Arrays) हैं, जो सूर्य से एनर्जी इकट्ठा करके उसे बिजली (Electricity) में बदल देते हैं. स्पेस स्टेशन पर लगे एयरलॉक दरवाजे की तरह होते हैं, जिनका इस्तेमाल अंतरिक्ष यात्री स्पेसवॉक यानी स्टेशन से बाहर जाने के लिए करते हैं. ISS करीब 17,500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा करता है. यानी यह हर 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है.
साल 2030 तक धरती पर गिराए जाने की योजना
ISS कई देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के बीच गैर-पक्षपातपूर्ण सहयोग का एक उदाहरण रहा है… और अब तक 200 से भी ज्यादा लोगों की मेजबानी कर चुका है, जिनमें उन देशों के भी अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं जिन्होंने इसे नहीं बनाया है. वर्तमान में ISS पर संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूरोप, जापान और कनाडा मिलकर काम कर रहे हैं और इस पर अपना-अपना धन लगाते हैं.
ISS को साल 2025 में सेवामुक्त करने का फैसला किया गया था, लेकिन अमेरिका के बाइडन प्रशासन ने इस कार्यक्रम में साल 2030 विस्तार करने का ऐलान किया है. अमेरिकी सरकार ने ISS को लंबे समय तक चालू रखने के लिए अतिरिक्त धन देने की घोषणा की है. इस तरह फिलहाल ISS को साल 2030 तक सुरक्षित तरीके से धरती पर गिरा दिए जाने की योजना है.
लेकिन क्या बढ़ती ‘दरारों’ को झेल पाएगा ISS?
हालांकि, वर्तमान हालात को देखते हुए कुछ नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि रूस और अमेरिका (Russia and US) के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के दौरान रूस ने अमेरिका को यह धमकी दी है कि अगर अमेरिका ने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों को जारी रखा, तो वह ISS को उसके ऊपर या यूरोप के ऊपर गिरा देगा.
अमेरिका की तरफ से रूस पर प्रतिबंधों की घोषणा के बाद रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस के प्रमुख दमित्री रोगोजिन ने एक ट्वीट कर कहा, “अगर आपने हमारे साथ सहयोग को रोका, तो ISS अनियंत्रित होकर कहीं भी गिर सकता है. चूंकि ISS रूस के ऊपर से नहीं उड़ता है. ऐसे में हम पर प्रतिबंध लगाने से पहले आप जान लें कि आपको क्या करना है.”
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