Swaminarayan (Akshardham)
स्वामीनारायण जी (Swaminarayan) या सहजानंद स्वामी (1781-1830 CE) को एक समाज सुधारक और प्रेरणादायक संत के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है. उनका जन्म 3 अप्रैल 1781 को भगवान् श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या के पास गोण्डा जिले के छपिया ग्राम में रामनवमी के दिन हुआ था. इसलिए उनके जन्मदिन पर घर में उत्सव का माहौल था. पिता श्री धर्मदेव व माता भक्तिदेवी ने उनका नाम घनश्याम रखा.
पांच वर्ष की अवस्था में बालक को अक्षरज्ञान दिया गया. आठ वर्ष का होने पर जनेऊ संस्कार हुआ. जब वे केवल 11 वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता का देहांत हो गया. घनश्याम ने सात सालों तक पूरे देश का भ्रमण किया. लोग उन्हें नीलकंठवर्णी कहने लगे. इस दौरान उन्होंने गोपालयोगी से अष्टांग योग सीखा. वे उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कांची, श्रीरंगपुर, रामेश्वरम् आदि तक गये. इसके बाद वे पंढरपुर और नासिक होते हुए वे गुजरात आ गये. उनका कार्यक्षेत्र मुख्यतः गुजरात ही रहा.
संत स्वामीनारायण ने हिन्दू सनातन धर्म के तीन स्तंभों की रक्षा को महत्वपूर्ण बताया-
मंदिर,
वेद और शास्त्र,
संत.
संत स्वामीनारायण के अनुसार, ये तीन तत्व आने वाली सदियों तक हिंदू सनातन धर्म को आगे बढ़ाने के माध्यम के रूप में कार्य करते हैं.
स्वामीनारायण जी एक संत, समाज सुधारक और ईश्वर के भक्त थे, जिन्होंने ब्रिटिशकाल में अपने अनुयायियों के बीच हिंदू धर्म की नैतिकता और आध्यात्मिकता को बनाये रखा. वे अपने शिष्यों को पांच व्रत लेने को कहते थे- मांस, मदिरा, चोरी, व्यभिचार का त्याग और अपने धर्म का पालन. उन्होंने होली, दीपावली आदि हिन्दू त्योहारों को विधि-विधान और धूमधाम से मनाने पर बल दिया. लोगों को ईश्वर में विश्वास, दूसरों की सेवा और नैतिकता पर आधारित जीवन जीने की प्रेरणा दी.
संत स्वामिनारायण ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया, जो स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना हैं. मंदिरों के निर्माण के समय वे स्वयं सबके साथ श्रमदान करते थे. उन्होंने विदेशी आक्रांताओं और समय के प्रभाव से भारतीय समाज में अशुद्धियों के रूप में आईं कुरीतियों जैसे असमानता, सती प्रथा, बलि प्रथा और अंधविश्वासों के उन्मूलन के लिए कार्य किया. व्यसनों से मुक्त जीवन का प्रचार किया, शिक्षा के साथ महिलाओं को फिर जोड़ा. उन्होंने निर्धनों की सेवा को लक्ष्य बनाया. प्राकृतिक आपदा आने पर वे लोगों सहायता करते थे. इससे उनकी प्रसिद्धि चारों तरफ फैल गयी.
अक्षरधाम मंदिर (Swaminarayan Akshardham New Delhi)
नई दिल्ली स्थित अक्षरधाम संत स्वामीनारायण को और उनके आराध्यों को समर्पित है. आठ तरफा खंभों पर टिका हुआ एक 32-फुट ऊंचा तश्तरी के आकार का गुंबद है, जिसके केंद्र में एक विशाल पेड़ के नीचे बैठे संत स्वामीनारायण की एक प्रतिमा स्थापित है. केंद्रीय मंदिर में उनके साथ उनके उत्तराधिकार में गुणितानंद स्वामी, भगतजी महाराज, शास्त्रीजी महाराज, योगीजी महाराज और प्रमुख स्वामी महाराज शामिल हैं. प्रत्येक को सेवा और भक्ति की मुद्रा में चित्रित किया गया है.
‘अक्षरधाम’ मंदिर पूजा का एक हिंदू गृह और भक्ति, शिक्षा और सद्भाव के लिए समर्पित एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परिसर है. इस मंदिर की कला और वास्तुकला में हिंदू आध्यात्मिक संदेश, जीवंत भक्ति परंपराएं और प्राचीन वास्तुकला सभी प्रतिध्वनित हैं. मंदिर के केंद्र के चारों ओर भगवान् के लिए विशेष मंदिर हैं-
• श्री शिव-पार्वती जी और उनके पुत्र श्री गणेश जी
• श्री सीता-राम जी और हनुमान जी
• श्री राधा-कृष्ण जी
• श्री लक्ष्मी-नारायण जी.
गुणितानंद स्वामी
(1784-1867 ई.)
गुणितानंद स्वामी संत स्वामीनारायण जी के पहले आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे. स्वामीनारायण के जाने के बाद, गुणितानंद स्वामी ने लोगों को अज्ञानता से मुक्त करने और उन्हें आध्यात्मिक आनंद प्रदान करने का अपना कार्य जारी रखा. उनकी शिक्षाओं और प्रवचनों को पवित्र ग्रंथ ‘स्वामिनी वातो’ में दर्ज किया गया है.
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