साल 2006 से पहले हमारे सौरमंडल (Solar System) में 9 ग्रह हुआ करते थे. यानी आज के वैज्ञानिकों ने, सूर्य की परिक्रमा करने वाले 9 ग्रहीय पिंडों को ग्रहों का दर्जा दिया हुआ था. वह नौवां ग्रह था- प्लूटो या यम (Pluto or Yam), जो सूर्य से सबसे दूर है और छोटा सा है, बुध (Mercury) से भी छोटा. यानी जब तक इसे ग्रह का दर्जा मिला हुआ था, तब तक सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह बुध नहीं, बल्कि प्लूटो था. प्लूटो को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 248 साल लग जाते हैं.
लेकिन फिर धीरे-धीरे प्लूटो वैज्ञानिकों के शक के घेरे में आ गया. वैज्ञानिकों को लगने लगा कि उनसे गलती हो गई. प्लूटो को ‘ग्रह’ का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी चाल-ढाल बाकी ग्रहों से कुछ अलग दिखाई देती है. इसके कई गुण बाकी ग्रहों से मैच नहीं हो पाए. बस, फिर क्या था… नन्हे से प्लूटो से ‘ग्रह’ कहलाने का अधिकार छीन लिया गया और उसे ‘बौने ग्रहों’ (Dwarf Planet) की कैटेगरी में डाल दिया गया.
आज हम इसी प्लूटो की कुछ विशेषताओं के बारे में जानेंगे-
पहाड़ों, घाटियों, मैदानों, गड्ढों और शायद ग्लेशियरों के साथ प्लूटो एक जटिल और रहस्यमयी दुनिया है. प्लूटो लगभग 1,400 मील (2,380 किमी) चौड़ा है. यह संयुक्त राज्य अमेरिका की चौड़ाई का लगभग आधा या पृथ्वी के चंद्रमा की चौड़ाई का 2/3 है. प्लूटो की खोज 18 फरवरी 1930 में की गई थी, और इसकी खोज का श्रेय अमेरिकी खगोलशास्त्री क्लाइड टॉमबौ (Clyde Tombaugh) को दिया जाता है.
प्लूटो कुइपर बेल्ट (Kuiper Belt) नामक क्षेत्र में औसतन 3.6 बिलियन मील (5.8 बिलियन किमी) दूर, पृथ्वी से लगभग 40 गुना दूर रहकर सूर्य की परिक्रमा करता है. प्लूटो सूर्य से 3.7 बिलियन मील (5.9 बिलियन किलोमीटर) या 39 खगोलीय इकाई (Astronomical Units) दूर है (एक खगोलीय इकाई (AU) सूर्य से पृथ्वी की दूरी है). इतनी दूरी से सूर्य के प्रकाश को प्लूटो तक जाने में 5.5 घंटे लगते हैं.
प्लूटो पर एक वर्ष 248 पृथ्वी वर्ष है (प्लूटो को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 248 साल लग जाते हैं). प्लूटो पर एक दिन 153 घंटे या लगभग 6 पृथ्वी दिनों तक रहता है (यानी प्लूटो लगभग 6 पृथ्वी दिनों में अपनी धुरी पर एक बार घूम जाता है).
प्लूटो के चंद्रमा (उपग्रह)
प्लूटो के 5 चंद्रमा (उपग्रह) हैं, जो प्लूटो की परिक्रमा करते रहते हैं- कैरन, निक्स, हाइड्रा, केर्बरोस और स्टाइलक्स. इनमें से सबसे बड़ा चंद्रमा है- कैरन (Charon), जो प्लूटो के आकार का लगभग आधा है. प्लूटो और कैरन को अक्सर “दोहरे ग्रह” के रूप में जाना जाता है, क्योंकि दोनों ही एक-दूसरे के ग्रह की तरह एक-दूसरे की परिक्रमा करते दिखाई देते हैं.
कैरन केवल 12,200 मील (19,640 किलोमीटर) की दूरी से प्लूटो की परिक्रमा करता है. कैरन का नाम वैतरणी नदी (Styx River) में नाव चलाने वाले के नाम पर रखा गया है जो आत्माओं को पाताललोक में ले जाता है.
प्लूटो के अन्य चार चंद्रमा बहुत छोटे हैं, वे 100 मील (160 किलोमीटर) से भी कम चौड़े हैं. इसी के साथ, वे अनियमित आकार के भी हैं, यानी कैरन की तरह गोलाकार भी नहीं हैं. प्लूटो में कोई रिंग सिस्टम यानी छल्ले नहीं है.
प्लूटो की संरचना और वातावरण
प्लूटो पर नाइट्रोजन, मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड से बना पतला वातावरण है. वातावरण में नीले रंग और धुंध की अलग-अलग परतें हैं. सूर्य से बहुत दूर होने के कारण प्लूटो की सतह बहुत ठंडी है- माइनस 375 से माइनस 400 डिग्री F (-226 से -240 डिग्री सेल्सियस). इसलिए वहां जीवन मौजूद नहीं हो सकता है.
हालाँकि, प्लूटो का आंतरिक भाग गर्म है, और कुछ वैज्ञानिकों को लगता है कि इसके अंदर एक महासागर भी हो सकता है. प्लूटो पृथ्वी के चंद्रमा के व्यास का लगभग दो-तिहाई है और संभवतः पानी की बर्फ के आवरण से घिरा एक चट्टानी कोर है. इसके कम घनत्व के कारण, प्लूटो का द्रव्यमान पृथ्वी के चंद्रमा के द्रव्यमान का लगभग छठा हिस्सा है.
प्लूटो की सतह पर पहाड़ों, घाटियों, मैदानों और गड्ढों की विशेषता है. प्लूटो के सबसे ऊंचे पहाड़ 6,500 से 9,800 फीट (2 से 3 किलोमीटर) ऊंचे हैं. पहाड़ पानी की बर्फ के बड़े खंड हैं, कभी-कभी मीथेन जैसी जमी हुई गैसों की परत के साथ. 600 किमी तक लंबी घाटियाँ इस दूर के बौने ग्रह की दिलचस्प विशेषताओं में शामिल हैं. प्लूटो पर देखे गए सबसे प्रमुख मैदान जमी हुई नाइट्रोजन गैस से बने प्रतीत होते हैं.
बाकी ग्रहों की तुलना में, सूर्य के चारों ओर प्लूटो की कक्षा (Pluto’s orbit) असामान्य है. इसकी कक्षा अण्डाकार और झुकी हुई दोनों है. जब प्लूटो सूर्य के करीब होता है, तो इसकी सतह की बर्फ ठोस से सीधे गैस में बदल जाती है और ऊपर उठकर अस्थायी रूप से एक पतला वातावरण बनाती है.
प्लूटो का कम गुरुत्वाकर्षण (पृथ्वी का लगभग 6%) इसके वायुमंडल को अधिक ऊंचाई तक फैलाता है. अण्डाकार पथ पर परिक्रमा करते हुए साल में एक निश्चित समय पर प्लूटो सूर्य से बहुत दूर हो जाता है. इस दौरान वह इतना ठंडा हो जाता है कि इसके वायुमंडल का बड़ा हिस्सा जम सकता है.
प्लूटो से क्यों छीना गया ग्रह का दर्जा
लगभग सभी ग्रह लगभग पूर्ण चक्रों में सूर्य के चारों ओर घूमते हैं. लेकिन प्लूटो नहीं करता. यह अपने केंद्र के पास कहीं भी सूर्य के साथ एक अंडाकार आकार का मार्ग लेता है. हालांकि, बुध की कक्षा भी थोड़ी टेढ़ी-मेढ़ी है, लेकिन प्लूटो जितनी भी नहीं है.
प्लूटो की कक्षा वरुण या नेप्च्यून की कक्षा की तुलना में कभी सूरज के ज्यादा पास होती है और कभी कम, साथ ही इसकी कक्षा बाकी ग्रहों की कक्षा की तुलना में ढलान पर भी है. इसी के साथ, प्लूटो का आकार बहुत ही छोटा है, बुध से आधे से भी छोटा है यह.
बस, इन सब बातों से खगोल वैज्ञानिकों के मन में शंका बैठ गई थी कि कहीं प्लूटो वरुण (Neptune) का ही तो कोई भागा हुआ उपग्रह नहीं. हालांकि ऐसा भी कुछ नहीं निकला. लेकिन फिर साल 2006 में अंतरराष्ट्रीय खगोल संघ द्वारा दी गई ग्रहों की नई परिभाषा की सभी शर्तें प्लूटो पूरी न कर सका, और तब उसे ग्रह मानने से इंकार कर दिया गया.
जानिए- ग्रहों की नई परिभाषा (New Definition of Planets)
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