Sea Ocean Facts : खारे पानी का विशाल भंडार महासागर, कुछ रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य

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दुनिया के 5 महासागरों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य

Sea Ocean Facts

महासागर (Ocean) खारे पानी का एक विशाल भंडार है जो पृथ्वी की सतह के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्से को कवर करता है. और इसीलिए पृथ्वी को जल ग्रह (Water Planet) कहा जाता है. अंग्रेजी का ‘Ocean’ शब्द ग्रीक शब्द ‘Oceanus’ से लिया गया है जिसका अर्थ है पृथ्वी को घेरने वाली विशाल नदी. भूगोलवेत्ताओं ने महासागर को पाँच प्रमुख भागों में बांटा है- प्रशांत, अटलांटिक, हिन्द, आर्कटिक और दक्षिणी. इनमें प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) सबसे बड़ा महासागर है.

भूमध्य सागर, मैक्सिको की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी जैसे छोटे समुद्री क्षेत्रों को समुद्र और खाड़ियाँ कहा जाता है. कैस्पियन सागर और ग्रेट साल्ट लेक जैसे खारे पानी के अंतर्देशीय निकाय (Inland bodies) दुनिया के महासागरों से अलग हैं. विश्व की सबसे लंबी पर्वत श्रृंखला (Mountain Range) पानी के नीचे पाई जाती है.

लगभग 65,000 किलोमीटर तक फैली मध्य-महासागर कटक (Mid-Oceanic Ridge) एक पर्वत श्रृंखला है. इसी के साथ, समुद्र दुनिया की सबसे बड़ी जीवित संरचना – ग्रेट बैरियर रीफ (The Great Barrier Reef) का घर है. महासागर विश्व की जलवायु और मौसम में परिवर्तन को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. समुद्र, समुद्री लहरें और ज्वार-भाटे ऊर्जा की एक बहुत बड़ी आपूर्ति प्रदान करते हैं.

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समुद्र का सबसे गहरा पॉइंट माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई से लगभग 2,000 मीटर अधिक गहरा है- 36,070 फीट गहरी (10,994 मीटर). पश्चिमी प्रशांत महासागर में मारियाना ट्रेंच (लगभग 11,034 मीटर) में चैलेंजर डीप दुनिया का सबसे गहरा हिस्सा है. वहीं, टोंगा ट्रेंच (दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागर) में होरिजन डीप (10,800±10 मीटर) को पृथ्वी पर दूसरा और दक्षिणी गोलार्ध में सबसे गहरा पॉइंट माना जाता है. समुद्र की औसत गहराई लगभग 3,688 मीटर (12,100 फीट) है. समुद्र से घिरे क्षेत्र का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा गहरा, स्थायी रूप से अंधेरा और ठंडा है.

पृथ्वी पर महासागरों के रूप में जल के इस विशाल भंडार की उत्पत्ति कब और कैसे हुई, यह अब तक अज्ञात है. संपूर्ण महासागर में पृथ्वी का 97% पानी है. महासागरों में लगभग 321 मिलियन क्यूबिक मील (1.34 बिलियन क्यूबिक किलोमीटर) पानी है, जो पृथ्वी की जल आपूर्ति का लगभग 97 प्रतिशत है. लवणता (Salinity) समुद्री जल का एक महत्वपूर्ण गुण है. समुद्री जल के भार का लगभग 3.5% उसमें घुले हुए लवणों से आता है. एक अनुमान के मुताबिक, समुद्री जल के एक घन मील में, नमक का वजन (सोडियम क्लोराइड के रूप में) लगभग 120 मिलियन टन है.

समुद्र का अधिकतर भाग एक अंधेरी दुनिया है. सूर्य महासागरों के लिए ऊष्मा ऊर्जा (Heat Energy) का प्रमुख स्रोत है. समुद्र का तापमान उसकी सतह पर पड़ने वाले सौर विकिरण (Solar Radiation) की मात्रा पर निर्भर करता है. महासागरों में ऊष्मा की भंडारण क्षमता (Heat Storage Capacity) अधिक होती है.

महासागर सूर्य की गर्मी को अवशोषित (Absorb) करते हैं, इसे वायुमंडल में स्थानांतरित करते हैं और दुनिया भर में बांटते हैं. गर्मी का यह कन्वेयर बेल्ट वैश्विक मौसम पैटर्न को चलाता है और भूमि पर तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है. यह सर्दियों में हीटर और गर्मियों में एयर कंडीशनर के रूप में कार्य करता है.

समुद्री जीवन (Marine Life)

समुद्र में रहने वाले जीवों का एक अलग ही संसार है. समुद्र की सतह के नीचे एक रहस्यमय दुनिया है. पृथ्वी की सतह का तीन-पाँचवाँ भाग समुद्र के नीचे है, और समुद्र का तल भूमि की सतह जितना ही समृद्ध है. पूरे इतिहास और संस्कृति में समुद्र मनुष्यों के लिए एक अभिन्न तत्व रहा है. मनुष्यों द्वारा समुद्र का भरपूर उपयोग और अध्ययन करना प्राचीन काल से दर्ज किया गया है. समुद्र को पृथ्वी के एक विशाल संग्रहालय (Earth’s Giant Museum) के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है.

समुद्र में दुनिया के सभी संग्रहालयों की तुलना में अधिक कलाकृतियाँ और इतिहास के अवशेष हैं. हमने अब तक महासागरों के केवल 5% रहस्यों का ही पता लगाया है. अभी और भी बहुत कुछ खोजा जाना बाकी है. महासागर पृथ्वी के लाखों पौधों और जीव-जंतुओं का घर हैं, जिनमें छोटे एककोशिकीय जीवों (बैक्टीरिया, आर्किया आदि) से लेकर विशाल ब्लू व्हेल तक, जो पृथ्वी का सबसे बड़ा जीवित जानवर है, शामिल हैं.

समुद्री जल में पाई जाने वाली ऑक्सीजन की मात्रा मुख्य रूप से उसमें उगने वाले पौधों पर निर्भर करती है, जिनमें फाइटोप्लांकटन (Phytoplankton) और समुद्री घास जैसे कुछ संवहनी पौधे भी शामिल हैं. फाइटोप्लांकटन में शैवाल और बैक्टीरिया जैसे अलग-अलग प्रकार के सूक्ष्मजीव शामिल होते हैं, और लगभग सभी प्रकार के जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में पाए जाते हैं. ये ऐसे सूक्ष्म जीव हैं जो सतह पर तैरते हैं और प्रकाश संश्लेषण के जरिये बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं, अतः ये समुद्र के स्वास्थ्य के अच्छे संकेतक माने जाते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत आवश्यक हैं.

एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया की आधी ऑक्सीजन फाइटोप्लांकटन द्वारा उत्पन्न की जाती है. समुद्र में प्रकाश केवल 200 मीटर (660 फीट) तक ही प्रवेश कर पाता है, इसलिए इस हिस्से में पौधे उग सकते हैं. दिन के उजाले में, इन पौधों की प्रकाश संश्लेषक गतिविधि से ऑक्सीजन उत्पन्न होती है, जो समुद्री जल में घुल जाती है और समुद्री जानवरों द्वारा उपयोग की जाती है. रात में, प्रकाश संश्लेषण बंद हो जाता है और घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है. गहरे समुद्र में, जहां पौधों के बढ़ने के लिए अपर्याप्त रोशनी प्रवेश करती है, वहां बहुत कम घुलनशील ऑक्सीजन होती है.

अत्यधिक गहराइयों में भी है जीवन

ऐसा माना जाता है कि जीवन की उत्पत्ति समुद्र में हुई और प्राणियों के सभी प्रमुख समूहों का प्रतिनिधित्व वहीं किया गया. हालाँकि, वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर मतभेद है कि समुद्र में जीवन कहाँ से उत्पन्न हुआ. चूंकि सूर्य का प्रकाश केवल ऊपरी परतों को ही प्रकाशित करता है, इसलिए समुद्र का अधिकांश भाग स्थायी अंधकार में रहता है. इसे लेकर वैज्ञानिकों द्वारा एक समय ऐसा माना जाता था कि समुद्र की सबसे अधिक गहराई में जीवन नहीं है, क्योंकि कोई भी प्रकाश 1,000 मीटर (3,300 फीट) से अधिक नहीं प्रवेश कर पाता है.

लेकिन जब हाइड्रोथर्मल वेंट (Hydrothermal Vents) की खोज की गई, तब यह धारणा बदल गई. ये चिमनी जैसी संरचनाएं ट्यूब वर्म, क्लैम, मसल्स और अन्य जीवों को प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से नहीं, बल्कि केमोसिंथेसिस के माध्यम से जीवित रहने में मदद करती हैं. कीमोसिंथेसिस वह प्रक्रिया है जिसमें बैक्टीरिया रासायनिक ऊर्जा से भोजन बनाते हैं.

महासागरों की अत्यधिक गहराई में, जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच पाता है, वहां ऐसे जीव रहते हैं जिनके शरीर में प्रकाशोत्पादक अंग (Light-producing organs) होते हैं. संवेदनशील आँखों और सिर से निकलने वाले बायोल्यूमिनसेंट ल्यूर (Bioluminescent Lures) वाली विचित्र मछलियाँ सागरों के अँधेरे हिस्से में छिपी रहती हैं, जो अक्सर ऊपर से गिरने वाले जैविक अपशिष्ट और मांस के टुकड़ों को खाकर या उन टुकड़ों को खाने वाले जानवरों को खाकर जीवित रहती हैं.

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हाइड्रोथर्मल वेंट क्या है (What is a Hydrothermal Vents)- हाइड्रोथर्मल वेंट समुद्र तल पर दरारें हैं जिनसे भूतापीय रूप से (Geothermally) गर्म पानी निकलता है. यहां का समुद्री जल नीचे की चट्टान की गहराई में मौजूद धातुओं और खनिजों से समृद्ध है. चूंकि सूरज की रोशनी इन छिद्रों तक नहीं पहुंच पाती है, इसलिए यहां जीवन सूरज की रोशनी से मिलने वाली ऊर्जा के बजाय रसायनों से मिलने वाली ऊर्जा से कायम है. इसलिए, केमोसिंथेटिक बैक्टीरिया जो रसायनों का उपयोग करके ऊर्जा का उत्पादन करते हैं, गहरे समुद्र में हाइड्रोथर्मल वेंट पारिस्थितिकी तंत्र के प्राथमिक उत्पादक हैं.

महासागर और इसके निवासियों के बारे में नियमित खोजों के बावजूद महासागर का 80 प्रतिशत से अधिक भाग अज्ञात है, जिससे यह प्रश्न खुला रहता है कि अभी तक कितनी प्रजातियाँ खोजी जानी बाकी हैं. साथ ही, महासागर दुनिया के कुछ सबसे पुराने प्राणियों को आश्रय देता है, जैसे जेलिफिश लगभग आधा अरब वर्ष से अधिक समय से अस्तित्व में है, हॉर्सशू केकड़े भी लगभग इतनी ही उम्र के हैं.

बैक्टीरिया, प्रोटिस्ट, शैवाल, पौधे, कवक और जानवरों सहित जीवों की एक विस्तृत विविधता समुद्र में रहती है, जो समुद्री आवास और पारिस्थितिक तंत्र की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है. महासागरों की कई दीर्घजीवी प्रजातियाँ (Long-lived Species) संकट में हैं. मूंगा के नाम से जाने जाने वाले छोटे, नरम शरीर वाले जीव, जो चट्टानें बनाते हैं, ज्यादातर उथले उष्णकटिबंधीय पानी में पाए जाते हैं, प्रदूषण, अवसादन (सेडिमेन्टेशन) और ग्लोबल वार्मिंग से खतरे में हैं. शोधकर्ता ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ जैसे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं.

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महासागरों पर मानवीय प्रभाव (Human Impact on Oceans)

महासागर पृथ्वी के जलमंडल का प्राथमिक घटक है और पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है. महासागर एक विशाल ताप भंडार के रूप में कार्य करके जलवायु और मौसम के पैटर्न, कार्बन चक्र और जल चक्र को प्रभावित करता है. महासागरीय धाराएँ विश्वभर के मौसम को नियंत्रित करती हैं.

महासागरों के नीचे टेक्टोनिक प्लेट की हलचल से उत्पन्न होने वाले पनडुब्बी भूकंप विनाशकारी सुनामी, ज्वालामुखी, विशाल भूस्खलन का कारण बन सकते हैं. मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए इस प्रचुर जल पर निर्भर है, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग और अत्यधिक मछली पकड़ने से पृथ्वी के इस सबसे बड़े निवास स्थान को खतरा पैदा हो गया है.

मानवीय गतिविधियाँ (Human Activities) समुद्र के लगभग सभी भागों को प्रभावित करती हैं. मछली पकड़ने के जाल, जहाजों से निकलने वाला तेल और कचरा, घरों और उद्योगों के लिए मैंग्रोव वनों को साफ कर देना, हम सबके घरों से निकलने वाला प्लास्टिक कचरा, खेतों से निकलने वाले रासायनिक उर्वरक आदि समुद्र के विशाल हिस्से को मृत क्षेत्रों में बदल देते हैं. वर्तमान में जिन तरीकों से समुद्री व्यापार यात्रा, खनिज निष्कर्षण, बिजली उत्पादन, युद्ध और तैराकी, नौकायन और स्कूबा डाइविंग जैसी गतिविधियाँ की जा रही हैं, वे लगातार समुद्री प्रदूषण (Marine Pollution) को बढ़ा रही हैं.

ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड समुद्र के पानी को अम्लीय बना रही है, वहीं पिछले कुछ दशकों में अटलांटिक महासागर की धाराएँ लगभग 15 प्रतिशत धीमी हो गई हैं. समुद्र का पानी गर्म हो रहा है, जिससे समुद्री जीवों के लिए तो खतरा उत्पन्न हो ही गया है, साथ ही यह समुद्र के स्तर में वृद्धि और अधिक शक्तिशाली चक्रवाती तूफानों का भी कारण बन रहा है.

रत्नों का भंडार है समुद्र

प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक भूगोल में सागर को ‘रत्नाकर’ भी कहा गया है, एक ऐसा स्थान जहां बहुमूल्य रत्न और संपदा पाई जाती है. समुद्र में रहने वाले कुछ जानवरों द्वारा कई कार्बनिक रत्न बनाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- मूंगा, कैल्साइट, अर्गोनाइट और मोती. ये रत्न समुद्र में रहने वाले जीवों द्वारा बनाए जाते हैं, मुख्य रूप से मूंगा और मोलस्क. कुछ रत्न समुद्री परत से खनन किए जाते हैं जबकि कुछ समुद्र तल पर या तट के पास जमा किए जाते हैं. इन रत्नों का उपयोग आभूषण बनाने के लिए किया जाता है.

मोती (Pearl)- मोती समुद्र में पाया जाने वाला एक जैविक रत्न (Organic Gem) है. मोलस्क (विशेष रूप से सीप, मसल्स और क्लैम) द्वारा निर्मित, मोती अब तक का सबसे महंगा जैविक रत्न है. रत्न-गुणवत्ता वाले मोती लगभग हमेशा चमकदार और इंद्रधनुषी होते हैं. इनका उपयोग हजारों वर्षों से आभूषण बनाने, सौंदर्य प्रसाधनों, दवाओं और पेंट फॉर्मूलेशन में किया जाता रहा है. मोतियों की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि वे कहाँ पाए जाते हैं.

खारे पानी में बनने वाले मोतियों की कीमत मीठे पानी के मोतियों की तुलना में बहुत अधिक होती है. खारे पानी के मोती मोती सीपों, टेरिइडे परिवार के भीतर उगते हैं, जो महासागरों में रहते हैं. मोती अत्यंत दुर्लभ रत्न है. एक मोती पाने के लिए, कई सैकड़ों सीपियों को इकट्ठा करना और खोलना होता है, इसीलिए इनकी कीमत इतनी अधिक होती है.

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मूँगा (Coral)- मूंगे फाइलम निडारिया के एंथोजोआ वर्ग के समुद्री अकशेरुकी जीव हैं. मूँगा, जिसे कोरल और मिरजान भी कहते हैं, एक प्रकार का समुद्री जीव है जो लाखों-करोड़ों की संख्या में एक समूह में रहते हैं. मूँगे की बहुत सी किस्मों में यह जीव अपने इर्द-गिर्द एक बहुत ही कठोर शंख बना लेते हैं, जिसके अंदर वह रहता है. जब ऐसे हजारों-लाखों सूक्ष्म और बेहद सख्त शंख एक दूसरे से चिपककर समूह में बनते हैं, तो वह लगभग पत्थर जैसा हो जाता है. समुद्र में कई स्थानों पर मूंगे की बड़े क्षेत्र पर फैली हुई शृंखलाएं बन जाती हैं, जिन्हें रीफ (Reef) कहा जाता है.

मूँगा गरम समुद्रों में ही उगता है और अलग-अलग रंगों में मिलता है. लाल और गुलाबी रंगों के मूँगे के कीमती पत्थर को पत्थर की ही तरह तराश और चमका कर आभूषणों में प्रयोग किया जाता है. समुद्रों के किनारों पर बसने वाले मनुष्य हजारों साल से मूँगे से परिचित हैं और उन्होंने देखा है के कैसे मूँगे के रीफ बिलकुल पौधों की तरह धीरे-धीरे बढ़ते और फैलते हैं. लेकिन इनके अंदर का हर जीव इतना छोटा होता है के उसे देखा नहीं जा सकता है.

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