आजकल ऐसे सवालों को सोशल मीडिया पर बड़े अपमानजनक शब्दों में और मजाक बनाकर पूछा जाता है कि “तुम्हारे बंदर ने इतना बड़ा सूर्य कैसे खा लिया” या “आज के बंदर क्यों नहीं उड़ते…”
समझ नहीं आता कि आजकल कुछ लोग ईश्वर के होने का वैज्ञानिक प्रमाण कैसे मांग लेते हैं. ईश्वर कब से विज्ञान की सीमाओं में बंधने लगा? आखिर विज्ञान की सीमाओं में बंधने वाला ईश्वर कैसे हो सकता है? जिसे वैज्ञानिक तरीके या तर्क से समझा जा सकता हो, तो फिर वह ईश्वर ही कैसे?
एकमात्र ईश्वर ही तो है जो विज्ञान से परे है, संसार से परे है, सभी प्रकार के तर्कों से परे है, और जिसे समझना किसी के वश की बात नहीं. ईश्वर सूक्ष्म से सूक्ष्म बिंदु भी है और अनंत भी, सीमित भी है और असीमित भी. निर्गुण और निराकार भी है, और सगुण और साकार भी.
आज कुछ लोग भगवान के अस्तित्व का प्रमाण उस जन्मांध व्यक्ति की तरह मांगते हैं जो कहता है कि “मैं जब तक सूर्य का प्रकाश देखूंगा नहीं, तब तक नहीं मानूंगा कि सूर्य का प्रकाश होता है”.
अब कोई उस जन्मांध को सूर्य का प्रकाश दिखा भी नहीं सकता और तब ऐसे कुतर्क करने वाला वह जन्मांध व्यक्ति बड़ा खुश हो जाता है और कहता है कि ‘मैं तर्क में जीत गया’.
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खैर, इस तरह के सवालों के जवाबों को कई पॉइंट्स में समझा जा सकता है. आते हैं पहले सवाल पर कि ‘हनुमान जी ने इतना बड़ा सूर्य कैसे निगल लिया?’
तो पहली बात कि हनुमान जी हमारी-आपकी तरह एक साधारण इंसान नहीं, भगवान हैं.
आप जानते ही हैं कि इस ब्रह्मांड में सूर्य का स्थान रेत के एक कण के समान है. और ब्रह्मांड क्या, हमारी गैलेक्सी ‘मिल्की वे’ में ही सूर्य का स्थान एक छोटे से कण के बराबर है.
वहीं, हनुमान जी भगवान शिव के रुद्रावतार हैं. जब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में धरती पर जन्म लेने का निर्णय लिया, तब उनकी सेवा करने की प्रबल इच्छा से भगवान शिव ने अपने एक अंश से हनुमान जी के रूप में अवतार ले लिया. बहुत सारे देवता भी अन्य वानरों के रूप में आ गए.
पहले एक छोटी सी कथा सुनाती हूं और फिर विज्ञान पर भी आती हूं-
14 साल के वनवास से लौटने के बाद जब सीता जी ने अपने लाड़ले पुत्र हनुमान जी के लिए पहली बार भोजन बनाया, तो हनुमान जी बस मजे से खाते ही चले गए. अब जब माता सीता जी भोजन बनाएं, तो भला हनुमान जी क्यों कहें कि ‘मेरा पेट भर गया…’
तो सीता जी भोजन बनाती चली गईं और उनके पुत्र हनुमान जी मजे से खाते ही चले गए. आखिरकार जब सीता जी और उनकी सभी दासियां पूरी तरह थक गईं, तब सीता जी को याद आया कि हनुमान जी तो भगवान शिव के ही रुद्रावतार हैं, और शिव के उदर में तो पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है, भला इनका पेट कौन भर सकता है… ?
तब सीता जी ने तुलसीपत्र में ‘राम’ नाम लिखकर खीर में मिलाकर हनुमान जी को दे दी. उसे खाकर हनुमान जी एकदम तृप्त हो गए (यानी हनुमान जी ‘श्रीराम’ नाम से ही तृप्त होते हैं. अगर आप हनुमान जी के सामने रोज बैठकर प्रेम से ‘श्रीराम’ या ‘सीताराम‘ नाम का जप करते रहें, तो आपको हनुमान जी की कृपा प्राप्त हो जाएगी).
⇒ अब जरा सोचिए कि जो ब्रह्मांड के समान ही विशाल हैं, जिनकी ये अनंत रचना है, उनके लिए छोटे से गर्म कण के समान सूर्य को अपने मुंह में रखना कौन सी बड़ी बात है…
♦ ब्लैक होल छोटे आकार का होते हुए भी असीमित शक्ति रखता है, उससे प्रकाश भी बाहर नहीं आ सकता, वह सूर्य जैसे कई तारों को निगल सकता है, यानी वह सूर्य जैसे कई तारों को अपने अंदर समा सकता है… इसी प्रकार हमारे हनुमान जी आकार में छोटे-बड़े होते हुए भी अतुलित बल के स्वामी हैं, उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं… “राम दूत अतुलित बल धामा।”
विद्वान लेखिका डॉ. किरण भाटिया जी लिखती हैं कि हनुमानजी भगवान शिव के अवतार हैं. उनकी देह पंचभौतिक तत्वों से निर्मित नहीं है. वे कल्पान्तजीवी हैं अर्थात् कल्प के अन्त तक वे रहेंगे. परात्पर ब्रह्म भगवान शिव इस सकल सृष्टि के नियन्ता हैं. निखिल ब्रह्माण्डनायक के अंश से अवतरित हनुमानजी के लिये सूर्य की दूरी अथवा उसकी दाहक तेजाग्नि क्या महत्व रखती है?
सूर्य, चन्द्र व अन्य ग्रहों की शक्ति महावीर के आगे नगण्य है. अपनी इस बाललीला से उन्होंने सूर्य को लीलने के लिए बढ़ते हुए राहु को वहां से हटाकर सूर्य व राहु दोनों को इस सत्य से अवगत कराया कि उनकी शक्तियों पर ईश्वर का अंकुश है, साथ ही रुद्रावतार पवन कुमार ने उन्हें अपनी अपरिमेय शक्ति का परिचय दे दिया.
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हनुमान जी के पास अष्ट महासिद्धि और नौ निधि हैं. अष्ट सिद्धियां दुनिया की सबसे बड़ी शक्तियां हैं, जिन्हें पा लेने के बाद व्यक्ति सर्व-शक्तिमान हो जाता है. अपनी अणिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वशित्व आदि सिद्धियों का प्रयोग करके हनुमान जी अपना आकार और वजन सूक्ष्म मतलब ‘न’ के बराबर या कितना भी विशाल कर सकते हैं.
“सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।”
♦ आप ये भी गौर कर सकते हैं कि जैसी शारीरिक शक्ति और चेतना आज से सैंकड़ों-हजार साल पहले के लोगों में होती थी, वैसी शक्ति आज के लोगों में नहीं है. पृथ्वीराज चौहान, गोरा-बादल, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती और इन सभी के सैनिक आदि (अनगिनत नाम हैं)..
जैसी चेतना और ताकत महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक में थी, वैसी चेतना आज के घोड़ों में नहीं. जैसा संस्कृत भाषा का ज्ञान पाणिनि को था, गणित का जैसा ज्ञान रामानुजन को था, वैसा आज के लोगों में नहीं (आज भी बड़े-बड़े वैज्ञानिक और विद्वान इनके फार्मूलों पर अपना सिर पटकने में लगे हैं, फिर भी समझ नहीं पा रहे).
ये सब देखकर कहा जा सकता है कि आधुनिक (विनाशकारी) विज्ञान चाहे जैसी उन्नति करता नजर आ रहा हो (क्योंकि हम वर्तमान में बस यही देख पा रहे हैं), लेकिन इंसान या किसी भी प्राणी की शारीरिक ताकत, क्षमता, याददाश्त और चेतना आदि लगातार घटती ही जा रही है.
तो अगर हम कहें कि लाखों-करोड़ों सालों पहले मनुष्य और प्राणियों की शक्ति-क्षमता और भी ज्यादा या बहुत ज्यादा होती थी, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं. और फिर जब बात भगवान या उनकी शक्तियों की होती हैं, तब तो बात ही अलग होती है.
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दरअसल, हम लोग केवल उतना ही मान पाते हैं, जितना वर्तमान में अपनी आँखों से देख पाते हैं. और जो नहीं देख पाते, उसे लॉजिक और विज्ञान के नाम पर मानने का मन नहीं करता. कभी उसे अन्धविश्वास कह देते हैं तो कभी कपोल-काल्पनिक बातें. लेकिन अगर हर वैज्ञानिक भी हर बात को सुनकर उसे अन्धविश्वास ही मान ले, तो कभी कोई खोज या आविष्कार हो ही नहीं सकता.
भगवान ने अपनी हर भौतिक रचना बड़ी ही व्यवस्थित तरीके से की है, हर भौतिक रचना में वैज्ञानिक कारण भी बनाए हैं, क्योंकि अगर वे ऐसा न करते तो चिकित्सा शास्त्र और विज्ञान आदि का जन्म ही न हो पाता.
अब आते हैं दूसरे सवाल पर कि ‘पहले देवता नजर आते थे, तो आज क्यों नहीं’
आपके सामने दो चकमक के पत्थर पड़े हैं. आप जानते हैं कि उनसे अग्नि जलाई जा सकती है, यानी उन पत्थरों में अग्नि को प्रकट करने का गुण है, जो दिखाई नहीं देता. दही में मक्खन का गुण दिखाई नहीं देता, लेकिन होता है.
यही ब्रह्म है, जो होते हुए भी दिखाई नहीं देता. इन गुणों (ब्रह्म) को देखने के लिए या इन्हें अपने सामने प्रकट करने के लिए (अपने मन को) लगातार मथना पड़ता है, ज्ञान बढ़ाना पड़ता है, कर्म करना पड़ता है, अभ्यास (तप) करना पड़ता है.
[ईश्वर ब्रह्म है जो निराकार और निर्गुण है, और जब वही ब्रह्म सगुण और साकार रूप लेता है (जिसे हम देख सकते हैं), उसे भगवान या अवतार कहते हैं; जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण, हनुमान जी आदि. प्रेम, विश्वास और भक्ति ही वह शक्ति ही है, जो निर्गुण और निराकार ब्रह्म को भी साकार और सगुण रूप लेने पर विवश कर देती है.]
इसी प्रकार,
मई 2020 की न्यूज है. कोरोनावायरस लॉकडाउन में वाहनों की आवाजाही और फैक्ट्रियां बंद होने से प्रदूषण काफी कम हो गया था. तब लोगों ने देखा था कि जिन स्थानों पर पहले तारे भी नजर नहीं आते थे, वहीं पर 175 किलोमीटर की दूरी के पहाड़ भी नजर आने लगे थे. लोगों ने बताया था कि उन्होंने ऐसा नजारा इससे पहले कभी नहीं देखा था. 30 साल के रमेश नाम के एक व्यक्ति ने कहा था कि उन्हें तो याद नहीं कि इससे पहले उन्हें घर से (175 किलोमीटर दूरी पर स्थित) इस तरह पहाड़ नजर आए हों.
कहने का मतलब ये है कि चीजें (ईश्वर) वहीं हैं, लेकिन हमने ही अपने और उनके बीच में प्रदूषण (अज्ञानता और मन का मैलापन) की ऐसी दीवार खड़ी कर रखी है कि चीजें हमारे आसपास होते हुए भी हम ही उन्हें नहीं देख पा रहे, उन्हें महसूस नहीं कर पा रहे, उनका लाभ ही नहीं उठा पा रहे.
हिलोरें मारते हुए गंदे पानी में चीजों को या उसके तल को नहीं देखा जा सकता है. पानी की तली (सत्य) को देखने के लिए उसका (मन का) साफ और शांत होना जरूरी है.
इसी प्रकार, अंधेरे में अपने पास ही रखी चीज दिखाई नहीं देती. उसे देखने के लिए ‘दीया’ जलाना पड़ता है. अंधकार से प्रकाश की ओर जाना पड़ता है.
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♦ वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि उस समय चंद्र-तारों के साथ-साथ ग्रहों से भी आकाश प्रकाशमान रहता था. भास्कराचार्य बांस से बनाई गई दूरबीन से ग्रहों को आसानी से देख सकते थे, जिसके आधार पर वे खगोल विज्ञान का अध्ययन करते थे. वहीं, आज आप गौर कर सकते हैं कि बहुत जगहों पर अब तारे भी ठीक से नजर नहीं आते.
और अगर आधुनिक विज्ञान और विकास करता रहा, और मान लीजिये कि एक दिन सारा डेटा अचानक जल जाए, खत्म हो जाए (जैसे तक्षशिला, विक्रमशिला और नालंदा आदि) तो आज से हजार साल बाद यह भी बताया जाने लगेगा कि “तारे पृथ्वी से इतनी दूर हैं कि वे यहां से नजर नहीं आ सकते”.
और अगर उस समय कोई कहेगा कि ‘पहले के समय में आकाश में तारों को खाली आँखों से ही आसानी से देखा जा सकता था’, तो शायद उस समय के लोग उस व्यक्ति पर हंसकर कहेंगे कि “ये सब तो अन्धविश्वास है, कल्पना है, नहीं तो आज नजर क्यों नहीं आते?”
तो कहने का मतलब ये है कि अगर जो चीजें आज नहीं होतीं या आज नहीं दिखाई देतीं, तो इसका अर्थ ये बिल्कुल नहीं कि वे पहले भी नहीं होती थीं. और फिर बहुत सी बातें विज्ञान और भौतिकता से परे होती हैं.
♦ किसी ने बिल्कुल सच कहा है कि, “हर त्रेता में श्रीराम जन्म लेते हैं और हर द्वापर में श्रीकृष्ण का जन्म होता है. हम समय चक्र में फँसे हुए हैं, अर्थात सब कुछ घट जाने के बाद हम पुनः हड़प्पा काल में अपना अस्तित्व खोजेंगे…”
मूर्ति पूजा क्यों जरूरी है?
किसी व्यक्ति ने एक संत से पूछा कि “अगर भगवान हर जगह है, तो मूर्तियों-मंदिरों की क्या जरूरत है?” संत ने कहा- “हवा हर जगह है, नहीं तो हम सांस ही नहीं ले पाते, लेकिन हवा को फील (महसूस) करने के लिए हमें पंखे की जरूरत पड़ती है.”
मूर्तियां और मंदिर हमें उस ब्रह्म या ईश्वर से जुड़ने का माध्यम बनकर हमारी मदद करते हैं. ये हमारे लिए एक सेतु का काम करते हैं. इस सेतु का निर्माण हमें ही करना पड़ता है अपने लिए, और इस सेतु की रक्षा भी हमें ही करनी पड़ती है अपने लिए.
आकार को मन में धारण करके ही निराकार की कल्पना की जा सकती है. अगर आपके मन में कोई आकार ही नहीं होगा, कोई ईश्वरीय छवि ही नहीं होगी, तो आपका ध्यान करना बहुत कठिन हो जाएगा.
♦ वेदों को केवल आध्यात्मिक या ऐतिहासिक ग्रंथ मानना, ‘यज्ञ’ शब्द को केवल आग जलाकर उसमें हवन डालने तक सीमित करना हमारी अज्ञानता है. यज्ञ का अर्थ है ‘प्रयोग’ और यज्ञशाला का अर्थ ‘प्रयोगशाला’. इंद्र से बारिश के लिए प्रार्थना करना मात्र एक प्रार्थना नहीं, बल्कि विज्ञान के माध्यम से बादलों के निर्माण से संबंधित है. (मूल) वेदों का अगर सही अर्थ समझ आ जाए तो पता चलेगा कि वेद विज्ञान ही हैं.
अगर हनुमान जी सूर्य को निगल सकते थे, तो लंका में उड़कर क्यों गए थे?
जब मेघनाद ने हनुमान जी पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा, तब हनुमान जी चुपचाप हाथ जोड़कर उससे बंध गए. क्यों? इसे लेकर हनुमान जी ने (ये भी) कहा था कि, “इस ब्रह्मांड की कोई भी शक्ति मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, और न ही मुझे बांध सकती है. लेकिन अगर मैं ब्रह्मास्त्र का मान नहीं रखूंगा, तो फिर संसार में ब्रह्मास्त्र की महिमा ही कहाँ रह जाएगी.”
चूहे को तो बिल्ली के डर से ही भगाया जा सकता है, तो फिर चूहे को मारने के लिए शेर को पालने की क्या जरूरत है? यानी, किसी के सामने शक्ति प्रदर्शन उतना ही करना चाहिए, जितना जरूरी है. अगर हनुमान जी रावण के सामने अपना सारा शक्ति प्रदर्शन कर देते, तो फिर तो रावण सहित राक्षसों का सारा अहंकार चला जाता, वे सब हार ही मान लेते, और फिर इससे उन्हें अपने पिछले पापों का दंड भी नहीं मिल पाता.
हनुमान जी जब छोटे से बालक थे, तब वे ऐसा शक्ति प्रदर्शन करते रहते थे. क्योंकि बच्चे और किशोर अपनी असीम ताकत को नियंत्रण में नहीं रख पाते. और इसीलिए हनुमान जी को कुछ समय के लिए अपनी शक्तियों को (विद्याओं को नहीं) भूल जाने का शाप दे दिया गया. लेकिन जब जामवंत जी ने हनुमान जी को उनकी शक्तियां याद दिलाईं तो कहा कि, “हे महावीर! ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप नहीं कर सकते.”
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आत्मा शक्ति है जो सीमित है ईश्वर सर्वशक्ति जो अनंत है जो पैदा होता है उसका मरना निश्चित है शरीर पैदा होता है आत्मा और ईश्वर पैदा नहीं होते। आत्मा शरीर बदलती है लेकिन ईश्वर सृष्टि को नहीं छोड़ता ना बदलता सृष्टि ही ईश्वर का शरीर है ।
आत्मा निराकार है जो शरीर को धारण करती है ईश्वर निराकार है जिसने पूरी सृष्टि को धारण कर रखा है आत्मा शरीर में होकर भी निराकार ही मानी जाती है ऐसे ही ईश्वर ने सृष्टि को धारण करने से साकार नहीं हो जाता जैसे अग्नि के ताप को साकार नहीं माना जाता।आत्मा ईश्वर का अंश छोटी सी चिंगारी है। ॐ