कल्किपुराण (Kalki purana) एक उपपुराण है, जिसमें भगवान विष्णु के 10वें प्रमुख अवतार कल्कि अवतार (Kalki Avatar) के बारे में बताया गया है. विष्णु पुराण में भी भगवान कल्कि की जानकारी दी गई है. इसी के साथ कई और ग्रंथों में भी भगवान कल्कि के बारे में जानने को मिलता है. हर कलियुग के अंत में भगवान विष्णु कल्कि के रूप में अवतार लेकर फिर से सतयुग की शुरुआत करते हैं. भगवान् कल्कि का अवतार तो बहुत समय बाद होगा. कलियुग के अंत में. तब तक के लिए हम हिन्दुओं को ही कल्कि का रूप धारण करना होगा.
सप्तम वैवस्वत मन्वन्तर का 28वां कलियुग
अन्य पुराणों में, जिनमें कल्कि अवतार की चर्चा की गई है, वहां सब जगह भविष्यकालीन क्रिया का प्रयोग किया गया है. जबकि कल्कि पुराण में सब जगह भूतकाल की क्रिया का प्रयोग हुआ है, जिससे पता चलता है कि यह वर्णन किसी विगत कलियुग का है. वर्तमान सप्तम वैवस्वत मन्वन्तर के 28 सतयुग, 28 त्रेता, 28 द्वापर और 27 कलियुग व्यतीत हो चुके हैं और इस समय 28वां कलियुग चल रहा है.
भगवान कल्कि के जन्म, विशेषताओं, कार्यों आदि के बारे में जो जानकारी दी जाती है, वह इस प्रकार है-
द्वापर के अंत में जब राजा परीक्षित का राज था, तभी से कलि ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया था. कलि के विषय में समझाने के लिए इसे इस प्रकार उदाहरण देकर परिभाषित किया गया है- “कलि का नाम अधर्म है और मिथ्या इसकी प्रिया (पत्नी) है. पुत्र का नाम दम्भ है, जिसकी पत्नी का नाम माया है. इनके लोभ और निकृति नाम के पुत्र-पुत्री हैं. लोभ के पुत्र का नाम क्रोध और पुत्री का नाम हिंसा है. इनके पुत्र-पुत्री का नाम कलि और दुरुक्ति है.”
कहां और किसके घर होगा श्री कल्कि का जन्म
कलियुग का समय 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया जाता है. कलियुग के चार चरण हैं. अभी तो कलि का प्रथम चरण ही चल रहा है और भगवान विष्णु किसी भी युग के अंत में ही अपना पूर्णावतार लेते हैं. जब संसार में कलियुग अपने चरम पर होगा, चारों तरफ अधर्म का ही राज होगा, सब ओर हाहाकार मचा होगा, तब उत्तर भारत में (मुरादाबाद के निकट) ‘सम्भल’ नामक गांव में विष्णुयशा और देवी सुमति नाम के श्रेष्ठ, पवित्र और सदाचारी दंपति होंगे, जो श्रीहरि की भक्ति में लीन रहते हैं.
(उसी प्रकार, जैसे हिरण्यकश्यप के भय से पूरा संसार केवल राक्षसों का ही गुणगान करने लगा था, केवल हिरण्यकश्यप के अपने ही पुत्र प्रह्लाद को छोड़कर).
भगवान कल्कि की विशेषताएं
इन्हीं विष्णुयशा और देवी सुमति (Vishnuyasha and Sumati) के यहाँ वैशाख मास की शुक्ल द्वादशी को सायंकाल के समय पुत्र रूप में जन्म लेंगे भगवान कल्कि, जो अत्यंत सुंदर, महान बुद्धि, बल-पराक्रम से संपन्न और सदाचारी होंगे. उनका रंग सांवला या नीला है और वे सिर पर मोर मुकुट धारण करते हैं. भगवान कल्कि 20 कलाओं से युक्त होंगे (जैसे भगवान विष्णु जी के सभी आवेशावतार 10-11कलाओं, श्रीराम 12 कलाओं और श्रीकृष्ण 16 कलाओं से युक्त हैं).
मनसा तस्य सर्वाणि वाहनान्यायुधानि च
उपस्थास्यन्ति यॊधाश्च शस्त्राणि कवचानि च
स धर्मविजयी राजा चक्रवर्ती भविष्यति
स चेमं संकुलं लॊकं प्रसादमुपनेष्यति
उत्थितॊ ब्राह्मणो दीप्तः क्षयांतकृदुदारधीः
स संक्षेपॊ हि सर्वस्य युगस्य परिवर्तकः
(महा. वन. १९० | ९४-९६)
विष्णुयशा के बालक (कल्कि) द्वारा चिंतन करते ही उसके पास इच्छानुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएंगे. ये सभी वस्तुएं उन्हें भगवान शिव से प्राप्त होंगी. भगवान शिव स्वयं भगवान कल्कि को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देंगे, और परशुराम उन्हें वेदों और धनुर्वेद की शिक्षा देंगे.
भगवान कल्कि की पत्नी का नाम
भगवान कल्कि (Bhagwan Kalki) की पत्नी का नाम पद्मा और रमा होगा, जो महालक्ष्मी जी का ही रूप होंगी. पद्मा सिंहल द्वीप के राजा ब्रहद्रथ और रानी कौमुदी की पुत्री होंगी. भगवान कल्कि और पद्मा से जय-विजय नामक दो पुत्र होंगे. वहीं कल्कि और रमा से मेघवाह और बलाहक नाम के दो पुत्र होंगे.
(भगवान श्रीराम को अपने पति रूप में पाने के लिए त्रिकूटा या वैष्णवी सहित हजारों स्त्रियों ने घोर तपस्या की थी. लेकिन श्रीराम का प्रेम केवल सीता जी में था. वे सीता जी के अतिरिक्त किसी और से विवाह नहीं करना चाहते थे. अतः उन्होंने उन सभी स्त्रियों को द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के रूप में अपनी पत्नी कहलाने का वरदान दे दिया था. वहीं, त्रिकूटा यानी वैष्णोदेवी की तपस्या और भी ज्यादा बड़ी थी, अतः श्रीराम ने उन्हें कलयुग में कल्कि के रूप में, अपनी पत्नी कहलाने का वरदान दिया था).
सतयुग की स्थापना
भगवान कल्कि जब हरिद्वार (Haridwar) जाएंगे, तब उन्हें वहां वामदेव, अत्रि और वशिष्ठ आदि महर्षियों के भी दर्शन होंगे. ये सभी महर्षि आज भी अदृश्य रूप में पृथ्वी पर तपस्या कर रहे हैं, जिसका जिक्र रामचरितमानस में भी मिलता है. भगवान कल्कि के आगमन पर ये सभी ऋषि फिर से अपनी प्रकट अवस्था में आ जाएंगे. सतयुग की स्थापना होने पर भगवान कल्कि हरिद्वार में सूर्यवंशी राजा मरु और चंद्रवंशी देवापिने को राजा होने का वरदान दे देंगे.
भगवान कल्कि के अश्व का नाम देवदत्त होगा, जिस पर आरूढ़ होकर वे राजाओं के रूप में छिपकर रहने वाले, पृथ्वी पर सब जगह फैले हुए दस्युओं, पापियों, दुराचारियों और मलेच्छों का संहार करेंगे. उसके बाद वे अश्वमेध नामक महान यज्ञ भी करेंगे और इन सबके बाद अपने बैकुंठधाम के लिए प्रस्थान करेंगे. कल्कि पुराण में भगवान कल्कि द्वारा 68 तीर्थ बनाने और मथुरा-अयोध्या आदि तीर्थों का भी वर्णन मिलता है.
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